लोहे के भारी दरवाज़े की आवाज़ गूंज रही थी।
घड़घड़… ठक… ठक…
नीना की आँखों पर काली पट्टी बंधी थी और उसके हाथ ज़ंजीरों में जकड़े हुए थे। उसे धक्का देकर आगे बढ़ाया जा रहा था। हर कदम के साथ फर्श पर उसके जूतों की घिसटती आवाज़ और उसके दिल की धड़कनों की ताल एक साथ चल रही थी।
"कहाँ लाए जा रहे हैं मुझे?" उसने धीमे से पूछा।
कोई जवाब नहीं मिला। केवल सर्द हवा का एक झोंका जो उसके चेहरे को छूता हुआ आगे निकल गया। तभी पट्टी अचानक हटाई गई। तेज़ सफ़ेद रोशनी ने उसकी आँखों को चुभन दी। उसे कुछ भी साफ़ नहीं दिखा। जब नजरें थोड़ी साफ़ हुईं, तो उसने देखा—वह एक अजीब सी जगह में है।
चारों ओर धातु की दीवारें थीं, जिन पर कुछ न दिखाई देने वाले कैमरे टिके हुए थे। सामने एक मेज़ और उसके उस पार एक खाली कुर्सी।
"बैठाओ इसे।" एक कठोर आवाज़ गूंजी। दो जवानों ने उसे कुर्सी पर धकेल दिया और पीछे हट गए।
कमरे में कुछ देर तक खामोशी छाई रही। फिर—एक और दरवाज़ा खुला।
कॉलोनल वॉल्टर स्लोन।
उसका चलना भी जैसे नियंत्रण में था। हर कदम ठंडा, धीमा, लेकिन बहुत कुछ कहता हुआ। वह आया सामने बैठा और नीना की आँखों में घूरते हुए बोला—
"नीना सिंह। सब्जेक्ट 13।"
नीना ने कुछ नहीं कहा।
"तुम्हें पता है तुम्हें यहाँ क्यों लाया गया है?" स्लोन ने पूछा।
"क्योंकि मैंने कुछ ऐसा देखा... जो मुझे नहीं देखना था?" नीना ने ठंडे स्वर में जवाब दिया। स्लोन मुस्कराया।
"कुछ देखा नहीं, नीना... बहुत कुछ देखा। ज़्यादा देखा। उससे ज़्यादा, जितना तुम समझ पाती हो।"
उसने एक टैबलेट उठाया और टेबल पर टैप किया। तुरंत एक होलोग्राफिक प्रोजेक्शन सक्रिय हो गया। उसमें नीना के ब्रेन स्कैन, उसकी आँखों के रूट मैप और उसकी यादों की डिजिटल ट्रेसिंग दिखने लगी।
“तुम्हारी आँखें अब सिर्फ़ आँखें नहीं हैं। वे पोर्टल हैं। और हम इन पोर्टलों को समझना चाहते हैं।”
नीना चौंकी नहीं। शायद वह पहले से जानती थी कि अब वह सामान्य नहीं रही।
"द डिवीज़न" क्या चाहता है मुझसे?" उसने पूछा।
स्लोन झुका। उसकी आवाज़ और सख्त हो गई।
"सच। वो सच जो तुम्हारे अंदर छुपा है। क्योंकि तुमने झूठ बोला था नीना। और यही कारण है कि तुम अभी तक ज़िंदा हो।"
"झूठ?" नीना ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा।
"हाँ," स्लोन मुस्कराया। "हमने इस प्रोग्राम में कई सब्जेक्ट्स डाले थे। सबने झूठ बोले। लेकिन कोई नहीं बचा। तुम इकलौती हो जो बची। और अब हम समझना चाहते हैं—क्यों?"
कमरे में हवा अजीब हो गई। नीना की साँसें तेज़ चलने लगीं। कमरा अब एक प्रयोगशाला नहीं बल्कि एक मनोवैज्ञानिक युद्ध का अखाड़ा बन चुका था। टेबल के उस पार बैठा कॉलोनल स्लोन अब कोई पूछताछ अधिकारी नहीं लग रहा था बल्कि जैसे किसी गूढ़ सत्य का संरक्षक, जो हर शब्द सोच-समझकर चुन रहा हो। नीना की साँसें गहरी थीं लेकिन मन में चल रहा तूफ़ान चेहरे से झलकने लगा था।
"क्या मैं… एक प्रयोग हूँ?" उसने बमुश्किल अपने होंठों से फुसफुसाया।
स्लोन की आँखों में कोई दया नहीं थी—सिर्फ़ गिनती। वो हल्के से मुस्कराया, जैसे कोई बच्चा पहली बार सच पूछ रहा हो।
"तुम अब एक प्रयोग नहीं, नीना," स्लोन बोला, “तुम अब एक उदाहरण हो। और शायद… एक हथियार भी।”
“हथियार?” यह शब्द नीना के भीतर किसी ब्लेड की तरह घुसा। उसके चेहरे की त्वचा तन गई भौंहें सिकुड़ गईं।
“मैं किसी की हथियार नहीं बनूँगी,” उसने दाँत भींचते हुए कहा। आवाज़ में घृणा थी, लेकिन एक किस्म का भय भी—अपने ही अंदर कुछ खोने का। स्लोन धीरे-धीरे खड़ा हुआ। उसकी वर्दी पर लगे रैंक बैज धुंधली रोशनी में चमक रहे थे। वो एक शिकारी की तरह नीना के चारों ओर चक्कर काटने लगा।
"ये तय तुम नहीं करोगी, नीना।" उसने कहा।
नीना का चेहरा सख्त हो गया। वह उसकी आँखों में झाँकने लगी, लेकिन स्लोन की नज़रें उसके पार कुछ और खोज रही थीं।
"तुम्हारे अंदर जो चीज़ है…" स्लोन की आवाज़ अब और ठंडी हो गई, "वो अब किसी के नियंत्रण में नहीं है। शायद तुम्हारे भी नहीं।"
नीना की साँस अटक गई। उसने खुद को देखा—हाथ, उंगलियाँ, साँसे… सब सामान्य लग रहा था। लेकिन फिर भी वो अंदर से… अलग महसूस कर रही थी। जैसे कुछ जाग रहा हो।
"क्या आप ये कहना चाहते हैं कि मैं अब… अपने आप से भी नहीं बच सकती?" उसकी आवाज़ थरथराई।
"बच सकती थी," स्लोन पलटा, "अगर तुमने झूठ नहीं बोला होता। लेकिन अब… बहुत देर हो चुकी है।"
नीना ने एक गहरी साँस ली। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक आई— न कोई मान्यता, न प्रतिरोध। बस शुद्ध सवाल।
“अगर मेरे अंदर कुछ है… तो आपने उसे क्यों डाला? किसके लिए?”
स्लोन दरवाज़े की ओर बढ़ा।
"हम सिर्फ़ दरवाज़ा खोलते हैं, नीना। भीतर कौन आता है… वो हमें नहीं, तुम्हें तय करना होता है।"
"और अगर कोई भीतर से निकले?" नीना ने पीछे से पूछा।
स्लोन ने दरवाज़े पर रुककर सिर घुमाया।
"तो वही होगा जो हर प्रयोग के बाद होता है—या तो सबकुछ बदल जाएगा… या सबकुछ खत्म हो जाएगा।"
और वह दरवाज़ा खोलकर चला गया। कमरे में अब फिर से वही सन्नाटा था लेकिन अब वह पहले जैसा नहीं था। अब उस सन्नाटे में नीना की साँसें थीं
और उसकी आँखों में सिर्फ़ एक सवाल—
"आख़िर मेरे साथ हो क्या रहा है?"
उसके सामने की स्क्रीन अब बंद थी लेकिन उसकी आंखें अब भी चल रही थीं। और पहली बार उसने खुद से डरना शुरू किया। कमरे की हवा अब भारी हो चुकी थी। रोशनी अब धीमी पड़ चुकी थी और नीना की आँखें एक ही बिंदु पर अटक गई थीं—स्लोन की पीठ पर जो अब उसकी फाइलों को टटोल रहा था। उसने एक स्लिम टैबलेट उठाया और नीना के सामने रखी टेबल पर धीरे से सरकाया।
"एक कहानी दिखाता हूँ तुम्हें," उसने कहा। "तुम्हारे जैसी ही एक लड़की थी, मगर जगह अलग थी... कोलंबिया।"
नीना ने कुछ नहीं कहा। कमरे की रोशनी धीमी हो चुकी थी, और नीना की नज़र स्लोन के चेहरे पर टिक गई थी। वो शांत था — खतरनाक रूप से शांत। जैसे किसी गहरे राज़ को दिखाने से पहले पलकों के नीचे हँसी रोकने की कोशिश कर रहा हो। स्लोन ने धीरे-धीरे अपनी टेबल के कोने से एक टैबलेट उठाया। उसकी उंगलियाँ स्क्रीन पर नाचने लगीं — जैसे कोई कोड डाल रहा हो जिसे याद करने में सालों लगे हों।
"तुम्हें लगता है तुम अकेली हो?" स्लोन ने धीरे से कहा।
"तुम्हारी तरह का एक और था।"
नीना चौंकी। स्लोन ने एक बटन दबाया, और सामने की दीवार पर एक होलोग्राफिक स्क्रीन उभर आई। वो स्क्रीन सजीव थी। दीवार से निकलती हुई, नीली रोशनी के कण हवा में तैरने लगे।
"ये देखो…" स्लोन की आवाज़ में अब कड़वाहट थी, जैसे वो नीना को कोई सजा देने जा रहा हो।
वीडियो चालू हुआ।शुरुआत में जंगलों के बीच एक पुरानी, धुंध से भरी इमारत दिखाई दी।
"लोकेशन – कोलम्बिया, आउटपोस्ट एक्स-थर्टीन"
स्क्रीन के नीचे टेक्स्ट चल रहा था। कैमरा हिल रहा था, कोई सैनिक या ऑपरेटर उसे अपने शरीर से लगाए दौड़ रहा था। भीतर घुसते ही दृश्य बदल गया। पुराने दरीचे, टूटती दीवारें, लोहे के टैंक, और रेत से भरे फ्लोर के बीच एक आदमी बैठा था। दाढ़ीवाला, शरीर पर टैटू, उसकी पीठ पर कुछ अजीब सिंबल थे। उसकी आँखें—बिलकुल वैसी ही थीं जैसी नीना की… गहराई में चमकती नीली रोशनी।
"सब्जेक्ट ज़ीरो टू नाइन," स्लोन बुदबुदाया।
नीना ने बिना पलकें झपकाए देखा। वीडियो में वह आदमी पहले तो शांत बैठा था। उसकी साँसें धीमी थीं, चेहरे पर कोई हावभाव नहीं। लेकिन फिर… उसने अचानक अपने सिर को घुमाया — कैमरे की तरफ़ सीधा। मानो उसे पता हो कि उसे देखा जा रहा है।
"वो देख रहा है..." नीना ने बुदबुदाया।
उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। वीडियो में वह सब्जेक्ट धीरे-धीरे खड़ा हुआ।
“वे सब झूठ बोलते हैं…।” उसकी आवाज़ आई — कंपकंपाती, टूटी हुई, लेकिन तेज़।
“वे मुझे देखते हैं… हर समय… हर जगह… तो अब मैं भी देखूंगा। मैं भी उन्हें देखूंगा!” फिर उसने सिर पीछे घुमाया… और चीखा। एक तेज़, बेकाबू चीख — जो उस कैमरे के माइक्रोफोन को डिस्टॉर्ट कर गई। फिर...उसने पास पड़ी राइफल उठा ली।
"ट्र-ट्र-ट्र-ट्र!" गोलियाँ चलने लगीं। कैमरे के सामने एक जवान का सिर फटा।दीवार से खून के छींटे उड़ते हुए लेंस पर आ गए। चीखें गूंज उठीं।
"हमें बाहर निकालो! सब्जेक्ट अनकंट्रोल्ड है!" कोई चिल्लाया।
कैमरा अब ज़मीन पर गिर चुका था, लेकिन वह अब भी रिकॉर्ड कर रहा था। लेंस के सामने अब बस खून, पैर, और गोलियों की धमक थी।नीना की साँसें थम गईं। सब्जेक्ट ज़ीरो टू नाइन अब कैमरे के पास आ गया था। उसकी झुकी हुई आँखें, पसीने से भीगा चेहरा… और होंठों पर एक धीमी मुस्कान।
"अगर मैं देख सकता हूँ… तो मैं मिटा भी सकता हूँ," वह बोला और फिर...ब्लैक स्क्रीन।
वीडियो रुक गया।कमरे में अंधेरा लौट आया।नीना कुर्सी पर जड़ हो चुकी थी। उसकी आँखें अभी भी उसी ब्लैक स्क्रीन की ओर टिकी थीं। उसने धीमे से पूछा —"ये… मेरे जैसा कैसे है?"
स्लोन ने जवाब नहीं दिया।वो अब टेबल के पीछे जाकर खड़ा हो गया। "तुम समझ नहीं रही, नीना," उसने कहा।
“वो सब्जेक्ट पागल नहीं हुआ था… वो जाग गया था।”
नीना का चेहरा पीला पड़ चुका था। उसने धीमे से पूछा, "तुम मुझे ये क्यों दिखा रहे हो?"
स्लोन वापस अपनी जगह पर बैठ गया। उसकी आँखें अब और ठंडी थीं। “क्योंकि ये तुम्हारा अतीत नहीं, भविष्य है।”
"मैं कभी ऐसा नहीं करूँगी।"
"किया तो नहीं… लेकिन क्या तुम जानती हो कि तुम्हारे भीतर क्या चल रहा है?" स्लोन झुका उसके नज़दीक आया, “क्या तुम जानती हो कि तुम्हारी आँखें अब सिर्फ़ कैमरे नहीं रहीं… वे रिसीवर हैं। और कभी-कभी… ट्रांसमीटर भी।”
नीना ने अपनी हथेलियों को देखा। वो काँप रही थीं।
"उस सब्जेक्ट ने क्या देखा था?" नीना ने पूछा।
स्लोन की मुस्कान गहरी हुई।
"झूठ। उसने झूठ देखा था—अपने आस-पास, अपने अंदर, और सबसे ज़्यादा… सिस्टम में। और यही कारण था कि वह पागल हो गया।"
"फिर मैं क्यों नहीं पागल हुई?" नीना ने धीरे से पूछा।
अब स्लोन सीधा उसकी आँखों में देख रहा था।
“क्योंकि तुमने झूठ बोला था।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
"क्या?" नीना का स्वर टूटा हुआ था।
“बाकी सब्जेक्ट्स सच कहकर मरे। लेकिन तुमने छुपाया, बदला, झूठ बोला। और शायद यही तुम्हारी ताकत बन गया।”
नीना अब सहमी नहीं थी। लेकिन अंदर कुछ टूट रहा था। उसने खुद को हमेशा एक सच के सिपाही की तरह देखा था। लेकिन आज… स्लोन ने जो बताया, वह उसकी आत्मा में ज़हर घोल गया।
"तुमने मेरी ज़िन्दगी को एक प्रयोग बना दिया," नीना फुफकारी।
"नहीं नीना!" स्लोन बोला। “तुम्हारा झूठ ही हमारी सबसे बड़ी सच्चाई बन गया है। और यही हमें आगे ले जाएगा।”
कमरे की दीवारें जैसे नीना की साँसों से थरथराने लगी थीं। स्लोन की बातें उसके दिमाग में गूंज रही थीं— "तुमने झूठ बोला... और वही तुम्हारी ताकत बन गया।"
वो अब भी अपनी जगह बैठी थी, लेकिन उसकी उंगलियां बेल्ट की धारियों को कस कर जकड़े हुए थीं। चेहरा सीधा, लेकिन दिल भीतर से दौड़ रहा था।
तभी—एक धमाका हुआ। कमरे की बाईं दीवार ज़ोर से काँपी। ऊपर लगे एलईडी लाइट्स झपकने लगे। छत से धूल झरने लगी। नीना चौक गई।एक और धमाका। इस बार इतना तेज़ कि पूरा कमरा डोल उठा। सामने की दीवार पर क्रैक्स पड़ गए। मेज़ खिसक गई और स्लोन गिरते-गिरते संभल गया।
"कोड रेड!" किसी इन्टरकॉम से चिल्लाती हुई आवाज़ गूंजी।
स्लोन ने तुरंत अपनी जैकेट की जेब से एक छोटा रिमोट निकाला और टेबल पर जोर से पटका। "शिफ्ट सब्जेक्ट थर्टीन टू सेफ-जोन! इमीजिएटली!"
दरवाज़ा खुला। दो हैवी हथियारों से लैस कमांडोज़ अंदर घुसे। बिना कुछ कहे नीना को कुर्सी से हटाया गया। उसकी बाँहें कसकर पकड़ी गईं।
"चलो इसे बाहर निकालो!" स्लोन गरजा। “हम पर हमला हुआ है—कार्टेल का!”
नीना को जैसे कुछ समझ ही नहीं आया।“क्या कहा तुमने… कार्टेल?” उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। कमांडोज़ उसे लगभग घसीटते हुए इंटरोगेशन रूम से बाहर ले जा रहे थे। बाहर का दृश्य किसी युद्ध क्षेत्र से कम नहीं था। सायरन गूंज रहे थे। सुरंगें लाल रोशनी से जगमगा रही थीं। दीवारों पर लगी स्क्रीनें कोड्स से भरी हुई थीं—सिस्टम लॉकडाउन चालू हो चुका था। एक कॉरिडोर में पहुँचते ही गोलियों की आवाज़ बेहद करीब से सुनाई दी।
“ट्र-ट्र-ट्र-ट्र्र्र्र!!!”
एक गार्ड की छाती से खून का फव्वारा निकला और वह नीना के सामने गिर पड़ा।
"नीचे झुको!" कमांडो चिल्लाया।
नीना को ज़मीन पर धकेल दिया गया। वो बेसुध-सी पड़ी थी, लेकिन उसकी आँखें अब सक्रिय हो चुकी थीं। ऑटोमैटिक ट्रैकिंग चालू।थर्मल विज़न एक्टिवेटेड।
लाइव डेंजर मैप: अपडेटिंग...
नीना की दृष्टि अब मशीन जैसी हो गई थी। उसे साफ़ दिखाई दे रहा था कि सामने एक छाया तेज़ी से बढ़ रही है।
और फिर—वो छाया सामने आ खड़ी हुई। एलाडियो कोर्तेज़।
कार्टेल का वो आदमी जिसे नीना ने सिर्फ़ फाइलों में देखा था। अब वो सामने था—हकीकत में।
काले गियर में लिपटा हुआ, चेहरे पर मास्क, पर आँखों में वही खूनी ठंडक।
"नीना..." उसने धीमे से कहा।
"तुम…" नीना साँस रोककर बोली।
“मैं तुम्हें लेने आया हूँ। बहुत वक़्त हो गया।”
नीना कुछ कहने ही वाली थी कि तभी पीछे से एक और धमाका हुआ। छत का हिस्सा टूटकर ज़मीन पर गिरा। गोलियाँ गूंज उठीं एक गोली नीना के पास से गुज़री और सामने लगे शीशे को चकनाचूर कर गई। कमांडोज़ ने फायरिंग शुरू कर दी। एलाडियो की टीम ने भी जवाब दिया। बेस का पूरा सेक्शन बंद हो चुका था। अलार्म चीख रहा था। नीना अब भी ज़मीन पर थी, लेकिन तभी कुछ अजीब हुआ—
उसकी आँखों की स्क्रीन ब्लिंक करने लगी।
“डेंजर डिटेक्टेड — सिस्टम रीसेटिंग...”
उसका शरीर कांपने लगा। जैसे भीतर कुछ फिर से एक्टिव हो रहा हो।एक और धमाका… और फिर अंधेरा।
No reviews available for this chapter.