Show Name: Cursed Eye

Episode: #14- जागती आंखें 

WC - 2138

 

 

धुआँ धीरे-धीरे नीना की बंद पलकों में समा रहा था। हवा में बारूद की गंध भरी थी और ज़मीन पर उसकी साँसें अब भी चल रही थीं—धीमी, टूटी हुई, पर जिंदा।

अभी कुछ देर पहले ही तो बेस की छत फटी थी। गोलियों की आवाज़, एलाडियो की वो ठंडी मुस्कान और स्लोन का चिल्लाना—सब उसकी यादों में गूंज रहे थे। मगर अब… बस खामोशी थी।

फर्श ठंडा था। और उसके कंधे पर अभी भी दर्द की एक लहर बाकी थी, जहाँ गोली छूकर गई थी।

धीरे-धीरे नीना की पलकों ने हरकत की। उसने आँखें खोलीं। हर तरफ धुंध थी—काली, गाढ़ी और डरावनी। रोशनी की लकीरें दीवारों पर झिलमिला रही थीं, जैसे कोई ट्यूब लाइट टूटने से पहले की आख़िरी कोशिश कर रही हो। उसने ऊपर देखा—छत में एक बड़ा सुराख था। वहाँ से टूटे वायर झूल रहे थे, और फर्श पर चारों तरफ़ मलबा बिखरा पड़ा था।

“उठो…” एक धीमी आवाज़ उसके भीतर गूंजी।

“क… कौन?” नीना ने फुसफुसाकर पूछा।

कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन उसका शरीर खुद-ब-खुद हिलने लगा। उसे अपने अंदर हरकत महसूस हो रही थी। मांसपेशियों के नीचे कुछ था—जैसे नाड़ियों के भीतर से कोई सिग्नल निकल रहा हो। उसकी आँखों में हल्की नीली चमक लौट आई थी।

"सिस्टम एक्टिवेटेड…!" एक इलेक्ट्रॉनिक-सी गूंज भीतर से हुई।

“तुम्हें अभी मरना नहीं है।”

नीना ने खुद को ज़ोर लगाकर उठाया। उसके कपड़े धूल और खून से लथपथ थे। हाथ में खरोंचें थीं। और फिर उसे वो याद आया—

एलाडियो।वो यहाँ था। उसी ने कहा था— "मैं तुम्हें लेने आया हूँ।"

 

नीना के चेहरे पर डर नहीं था… लेकिन अब एक अलग किस्म की बेचैनी थी। वह जानती थी यह सिर्फ़ लड़ाई नहीं थी—यह एक शिकार था। और वो शिकार बन चुकी थी।

तभी कॉरिडोर के दूसरी तरफ़ से चिल्लाने की आवाज़ आई—

"फ़ायर! फ़ायर!! कवर लो!!"

और उसके बाद—

“ट्र-ट्र-ट्र-ट्र्र्र्र!”

(गोलियों की आवाज़)

"द डिवीज़न" के जवान अब भी लड़ रहे थे। लेकिन नीना को पता था—ये सिर्फ़ वक्त की बात है। कार्टेल की ट्रेनिंग अलग थी। उनका मिशन साफ़ था—नीना को हर हाल में ज़िंदा पकड़ना।

एक घायल जवान दीवार के सहारे घिसटता हुआ आया और ज़मीन पर गिर पड़ा।

नीना उसके पास गई।

"कोरिडोर—नंबर थ्री… वहां… एक… एक्ज़िट है," वह कराहता हुआ बोला।

 

"धन्यवाद," नीना ने कहा, और उसका हाथ थाम लिया।

उसने उसकी आँखें बंद कर दीं।अब उसे खुद का रास्ता खुद बनाना था।पर जैसे ही वह मुड़ने लगी, सामने से एक और धमाका हुआ।

दीवार फटी।और धुएं में से एक परछाईं उभरी—

एलाडियो फिर सामने था।हाथ में गन नहीं थी। सिर्फ़ उसके होंठों पर वही स्थायी मुस्कान।

"भाग रही हो?" उसने पूछा।

नीना ने कुछ नहीं कहा।

"तुम्हें हमारी ज़रूरत है, नीना। और मुझे पता है... अब तुम्हें हमारी भी ज़रूरत है।"

"ज़रूरत?" नीना की आवाज़ थरथराई।

"तुम्हारे अंदर जो है… वो अब तुम्हारे काबू में नहीं। लेकिन हमारे साथ… हम उसे दिशा दे सकते हैं।"

नीना को लगा जैसे ज़मीन काँप रही हो। लेकिन नहीं… वो उसका दिल था। जो अब रफ्तार पकड़ रहा था।

उसने पीछे देखा—कॉरिडोर नंबर थ्री। उसके पास बहुत कम वक़्त था।

 

"मैं तुमसे नहीं डरती," नीना बोली।

"अभी नहीं," एलाडियो मुस्कराया। "पर जब वो आँखें तुम्हारी सोच से ज़्यादा देखने लगेंगी… तुम मेरे पास लौटोगी।"

नीना दौड़ पड़ी।पीछे से आवाज़ आई—"हम मिलेंगे, नीना। बहुत जल्द…!"

 

कॉरिडोर नंबर थ्री, जिसकी छत से पानी रिस रहा था, और दीवारों पर खून के छींटे थे—नीना उसी से होकर भाग रही थी। उसके जूते स्लिप कर रहे थे, साँसे तेज़ थीं, लेकिन उसके कदम एक सेकेंड के लिए भी नहीं रुके। पीछे की तरफ़ से गोलियों की गूंज अब धीमी हो गई थी, पर वो जानती थी, ये खामोशी खतरे की आहट है।

 

"बस थोड़ी और दूरी…" नीना बुदबुदाई।

लेकिन तभी—उसकी आँखों में एक जलन सी उठी।

स्क्रीन ब्लिंकिंग...

डेटा ऑवरलोड…

रिस्टार्टिंग सेंसरी विज़न…

 

नीना रुक गई। उसका सिर घूमने लगा। सामने की दीवार पर उसे अपने ही चेहरे की परछाईं दिखी—लेकिन आँखें उसकी नहीं थीं।

"मैं अब भी खुद को देख सकती हूँ… लेकिन ये मैं नहीं हूँ…" उसने बुदबुदाकर कहा।

तभी अचानक, उसकी आँखों में अजीब सी चमक उभरी और सामने की दीवार ट्रांसपेरेंट हो गई। वह सीमेंट और लोहे को पार करके देखने लगी।

दीवार के पीछे दो कार्टेल सैनिक छुपे थे। उनके पास राइफल्स थीं और उनमें से एक के हेलमेट पर उसका नाम टेप से चिपका था—टारगेट,नीना

उसने कुछ नहीं किया, लेकिन उसके शरीर ने किया।

दाईं ओर झुको…

तीन कदम पीछे हटो…

ध्यान बाईं दिशा में केंद्रित करो…

 

वो किसी कमांड प्रोग्राम की तरह हरकत कर रही थी।

"नहीं! ये मेरे कंट्रोल में क्यों नहीं है?" वह ज़ोर से चीखी।

लेकिन उसका मुँह बंद रहा। आवाज़ उसके भीतर ही गूंज रही थी।

तभी—दीवार फटी।

 

धूल और टुकड़ों के बीच वो दोनों सैनिक घुसे। एक ने नीना पर गन तानी, लेकिन नीना पहले से झुकी हुई थी। उसका हाथ बिजली की तरह उठा और सामने से गुजरती नली से पानी खींच कर सैनिक की आँख में दे मारा।

दूसरा चौंका, पर तब तक नीना का घुटना उसकी पसलियों में जा चुका था।

दोनों ज़मीन पर गिर पड़े।

“फीयर रेस्पॉन्स: डिएक्टिवेटेड।

मोड: प्रोटेक्टिव स्टेट।"

 

नीना थरथराने लगी। उसकी सांसें लड़खड़ा गई थीं।

"मैंने ये किया?" उसने देखा, "या… मेरी आँख ने?"

कॉरिडोर के अंत में एक स्टील डोर था। उस पर रेड एक्स था—जो दर्शाता था कि वो रास्ता बाहर की ओर नहीं जाता।

लेकिन नीना ने हाथ बढ़ाया।सिक्योरिटी पैनल डिटेक्टेड…हैकिंग इन प्रोग्रेस…

"मैंने तो कुछ किया ही नहीं..." नीना काँपते हुए पीछे हट गई।दरवाज़ा अपने आप खुल गया।

अंदर अंधेरा था। सिर्फ़ एक नीली लकीर ज़मीन पर चमक रही थी—मानो उसे रास्ता दिखा रही हो।

 

"ये मैं नहीं हूँ…" उसने दोहराया।

"पर ये मैं हूँ," अंदर से एक आवाज़ आई।

वही आवाज़… उसकी आंख की।

"तुम मुझे नहीं चला सकती।" नीना ने कहा।

"मैं तुम्हें चला नहीं रही… मैं बस तुम्हारी वो बन रही हूँ जो तुम बनने से डरती हो।"

"और वो क्या है?" नीना ने पूछा।

"सच।"

 

नीना ने आँखें बंद कीं और उस सुरंग में कदम रखा।

 

सुरंग के उस पार हल्की नीली रोशनी में डूबा एक खाली हॉल था। नीना धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। हर कदम जैसे किसी अनजाने क्षेत्र की ओर ले जा रहा था। पीछे छूट चुकीं गोलियों की आवाज़ें अब सिर्फ़ यादें थीं, लेकिन उनकी धमक अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी।

वह हॉल के बीचों बीच पहुँची, जहाँ फर्श पर गोल घेरा बना था—शायद किसी तरह की टेक्निकल स्कैनिंग डिवाइस। तभी उसके बाएं कंधे में कुछ चुभा।

“धप्प!”

वो झटके से पलटी।

पीछे खड़ा था—एक कार्टेल ऑपरेटिव। राइफल हाथ में, लेकिन चेहरा ढंका हुआ। नीना लड़खड़ाई। उसके कंधे से गर्म खून बहने लगा। उसने अपना हाथ ज़ख्म पर रखा, लेकिन वह कोशिश ही बेकार थी। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और आँखों की रोशनी धुंधलाने लगी।

“यहाँ तक पहुँचना तुम्हारा कमाल था,” ऑपरेटिव बोला। “लेकिन यहीं पर तुम्हारी कहानी ख़त्म होनी चाहिए।”

नीना ने जवाब देने की कोशिश की, लेकिन मुँह से आवाज़ नहीं निकली। ज़मीन उसके पैरों से खिसक रही थी।

वह नीचे गिरी और अंधेरा छा गया। लेकिन फिर… उसकी आँखों के अंदर कुछ जागा। धीरे-धीरे एक हल्की नीली रोशनी भीतर से बाहर फैलने लगी।

 

“सिस्टम क्रैश डिटेक्टेड…

बायो रिस्पॉन्स इन एक्टिवेशन…

सेल्फ हीलिंग प्रोटोकॉल प्रारंभ…”

 

नीना की बंद पलकें फड़फड़ाईं। उसका शरीर जो अब तक शांत था फिर से हरकत करने लगा।

“ये क्या हो रहा है…” वह मन ही मन बुदबुदाई।

उसने महसूस किया—जैसे घाव के भीतर कोई काम कर रहा हो।

एक टुक-टुक सी सनसनाहट…

जैसे कोई धागा भीतर से उसकी माँसपेशियों को सिल रहा हो।

जैसे कोई अदृश्य सर्जन, जो मांस नहीं मशीन जानता हो।

नीना की साँस अटक गई।

“ये… कौन है?”

उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा, जैसे जवाब से पहले ही डर ने जकड़ लिया हो।

"तुम मर नहीं सकती,"

वो आवाज़ फिर गूंजी।

 

"अभी नहीं। हमने तुम्हें ऐसा नहीं बनाया।"

नीना की पुतलियाँ फैल गईं।

उसने थरथराते हुए खुद से सवाल किया—

"कौन हो तुम?"

वहीं आवाज फिर नीना को सुनाई दी, "हम… तुम हैं। लेकिन वो जिसे तुम हमेशा छुपाती रही हो। वो जिसे तुमने नज़रअंदाज़ किया। जिसे तुमने झुठलाया… लेकिन जो हमेशा था।"

 

नीना सिहर उठी। उसके हाथ काँपने लगे।

"ये मेरी सोच है… या कोई और बोल रहा है मुझसे?"

"तुम्हारी आंखें अब सिर्फ़ देखने का माध्यम नहीं हैं," आवाज़ धीमे लेकिन ठोस लहजे में बोली, "अब वे स्वयं एक इकाई हैं।

चेतन।

जागरूक।

और सक्रिय।"

 

नीना जैसे अपने ही शरीर में कैद हो गई थी। उसने खुद को ज़मीन से ऊपर खींचा, दीवार का सहारा लिया। कंधे का ज़ख्म अब पूरी तरह गायब हो चुका था। उसने अपनी हथेली को देखा—नसें नीली चमक से लहरा रही थीं।

 

"ये… मेरी नहीं हो सकती…" उसने घबराकर मन में कहा।

"यह अब तुम्हारी है। हम तुम्हारे भीतर ही थे। अब हम तुम्हारे साथ हैं। तुम अकेली नहीं हो, नीना।"

"तुम… मुझसे क्या चाहते हो?"

नीना की आवाज़ डर से डूबी हुई थी। उसकी सोच, भावनाएँ, पहचान — सब जैसे हिलने लगी थीं।

 

"पूरा होना, एक होना और अब… समय आ गया है।"

"पूरा होना?" नीना ने सवाल दोहराया।

"क्या मैं अधूरी थी?"

"तुमने खुद को हमेशा बाँट दिया। इंसान और मशीन के बीच। डर और झूठ के बीच। अब जब निर्णय का क्षण आया… तो हम उठे।"

 

नीना का गला सूखने लगा था। उसके भीतर का इंसान चीख रहा था, "ये मैं नहीं चाहती थी। ये… मुझसे बिना पूछे कैसे?"

"तुमने चुना था, नीना।जिस दिन तुमने पहली बार किसी को बचाने के लिए अपनी आँखों को इस्तेमाल किया था —तब तुमने हमें बुला लिया था।अब हम लौटे हैं, तुम्हारे रूप में।"

 

नीना अब दीवार से टिक गई थी।उसके हाथ उसके सिर पर थे, आँखें भींची हुईं।

"मैं… बस जीना चाहती थी।मैं ये नहीं माँग रही थी…"

"अब जीने का अर्थ बदल चुका है।अब तुम जीवित नहीं, जागृत हो और जागृति… अकेले नहीं आती। उसके साथ आता है — दायित्व।"

 

एक लहर उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। उसकी आँखों के सामने फ्लैश हुआ — स्लोन, एलाडियो, सब्जेक्ट 029, और फिर — खुद उसका चेहरा। लेकिन आँखें मशीन की थीं।

 

"नहीं!" उसने ज़ोर से चीखा।

"मैं अब भी मैं हूँ! मैं नीना हूँ! तुम नहीं…!"

 

"तुम्हारे इनकार से सच्चाई नहीं बदलेगी, नीना। हम तुम्हारे भीतर हैं। अब फैसला तुम्हें करना है —

हमें अपना हिस्सा मानोगी, या दुश्मन?"

 

धीरे-धीरे नीना की पलकों ने हरकत की। उसकी सांसें अब तेज़ नहीं, स्थिर थीं — लेकिन उनमें एक अजीब सी ताक़त थी। जैसे किसी गहरे समुद्र की सतह पर खड़ी शांति, जिसके नीचे सुनामी इंतज़ार कर रही हो।उसने आँखें खोलीं। नीली रोशनी की एक हल्की रेखा उसकी पुतलियों में दौड़ गई — न कोमल, न हिंसक — लेकिन सजीव। कंधे का दर्द… जैसे कभी था ही नहीं। उसने अपनी बाँह घुमाई — कोई जकड़न नहीं। हर ऊंगुली, हर नस, अब पहले से ज्यादा तीव्र, सटीक और ज़िंदा महसूस हो रही थी। एक अजीब सी गर्मी उसकी हथेलियों में थी — लेकिन वह जलन नहीं थी, वो चेतना थी। कुछ ऐसा जो अब तक सोया हुआ था।

उसने सामने देखा — कार्टेल का ऑपरेटिव अब भी वहीं खड़ा था। हथियार उसके हाथ में था, लेकिन चेहरा सन्न, सांसें अटकी हुईं। उसकी आँखें नीना पर टिकी थीं — जैसे वो किसी इंसान को नहीं, किसी अनजानी शक्ति को देख रहा हो।

"तुम… तुम मरी नहीं?"

वो काँपा। नीना ने कोई डर नहीं दिखाया। वो धीरे-धीरे, बहुत संयम से उठ खड़ी हुई। उसका चेहरा शांत था, लेकिन उसकी आँखें — अब एक लपट की तरह जल रही थीं।

नीली, साफ़, कंपकंपाती हुई… जैसे बिजली की नसें।

 

"मैं मरी नहीं…" नीना ने कहा,

"मैं बदली हूँ।"

वो कुछ कहने ही वाला था, लेकिन नीना की चाल ने उसकी आवाज़ दबा दी। वो आगे बढ़ी और सिर्फ़ एक झटके में उसकी गन छीन ली। बिना कोई ज़ोर लगाए बिना आंखें झपकाए 

जैसे हथियार खुद उसके हाथ छोड़कर नीना के सामने झुक गया हो। उसने बंदूक को ज़मीन पर पटक दिया ,एक कर्कश आवाज़, जो उस हॉल की खामोशी को चीर गई।

"अब मैं सिर्फ़ देखती नहीं..."

उसकी आवाज़ धीमी थी लेकिन गूंजदार,

"अब मैं चुनती हूँ — किसे देखना है… और किसे मिटाना है।"

 

ऑपरेटिव पीछे हटा। उसके होंठ हिले, लेकिन कोई आवाज़ नहीं निकली। नीना ने बस एक शब्द कहा —"भाग जा।"

उसका लहजा आदेश जैसा था —और सैनिक बिना एक पल की देरी किए उल्टे पाँव दौड़ पड़ा। उसके कदमों की थरथराहट दूर तक गूंजती रही। हॉल अब फिर से शांत हो गया। लेकिन नीना जानती थी अब ये शांति वही नहीं थी जो पहले थी। अब यह एक चेतावनी थी। उसके भीतर की। नीना फर्श पर बैठ गई, उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं।

 

“मैं कौन हूँ अब?”

भीतर से जवाब आया—

"तुम अब वो हो, जो किसी का हथियार नहीं… बल्कि एक अस्त्र है, जिसे खुद अपना निशाना तय करना है।"

 

नीना की आँखों से एक आँसू गिरा। पहली बार उसे लगा… डर सिर्फ़ बाहर नहीं था… वो अब भीतर पल रहा था। नीना अब समझ चुकी है — ये तकनीक, ये आँख, ये शक्ति… अब सिर्फ़ उसमें लगी नहीं, बल्कि जाग चुकी है। और ये निर्णय अब उसके हाथ में नहीं रहा कि वह इंसान रह पाएगी या नहीं।

 

 

 

 

 

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