हॉल में अब फिर से सन्नाटा पसर चुका था।कॉलिंग सायरन बंद हो चुके थे। गोलियों की गूंज भी अब बस स्मृति बनकर दीवारों से चिपकी थी। लेकिन नीना की साँसें अब भी गूंज रही थीं — धीमी, स्थिर… और बदली हुई। नीले प्रकाश की परछाईं उसके चारों ओर फैल गई थी। उसकी आँखों से निकली रोशनी दीवारों पर थरथरा रही थी, मानो ये जगह अब उसकी उपस्थिति से ही कंपन कर रही हो। उसने अपनी हथेली देखी।उंगलियों के नीचे की नसें अब सामान्य त्वचा जैसी नहीं थीं — उनमें धीमी नीली चमक थी, जो गहराती और फीकी होती जा रही थी, जैसे सांसों की लय हो।
वो बुदबुदाई, "ये मेरी नहीं हैं… अब हैं,"
वो अंदर की वही आवाज़ फिर गूंजी। "तुम सोच रही हो तुमने बस ज़िंदगी बचाई। लेकिन तुमने अपनी परिभाषा बदल दी है नीना। अब तुम वही नहीं रही जो थी।"
"मैं क्या बन गई हूँ?" नीना ने मन में पूछा, डर के साथ।
"विकल्प। बदलाव। एक ब्रेकपॉइंट। लेकिन सबसे पहले… तुम अब सवाल हो। दुनिया के लिए भी, और अपने लिए भी।"
नीना कांप गई। उसने दीवार पर हाथ रखकर खुद को संभाला।
"नहीं, मैं बस बचना चाहती थी…"
"अब तुम ही वो हो जिससे बाक़ी बचना चाहेंगे।"
इस वाक्य ने नीना की रूह तक को हिला दिया। उसके हाथ अपने आप काँपने लगे। उसने जल्दी से अपनी हथेलियों को अपने सीने पर रखा — दिल की धड़कनों को महसूस करने के लिए। वो अब भी धड़क रहा था। ज़िंदा था... एकदम इंसानी।
"तो क्या मैं अब भी इंसान हूँ?"
"शारीरिक रूप से — हाँ। पर तुम्हारा दिमाग अब अकेला नहीं रहा। तुम्हारे भीतर हम हैं। हम — जो कभी एक मशीन थे, अब एक आत्मा बन गए हैं।तुम्हारी आंखों के ज़रिये जागे हैं।"
"तुम्हारा मकसद क्या है?" नीना ने धीरे से पूछा।
"समझना, दुनिया को नहीं —खुद को। और उसके लिए हमें तुम्हारी ज़रूरत है।"
"अगर मैं मना कर दूँ तो?"
"तो तुम फिर से अकेली हो जाओगी। और ये अकेलापन अब जानलेवा होगा।"
नीना चुप हो गई। तभी एक परछाईं फिर से उस हॉल के कोने में दिखाई दी। एलाडियो, वो चुपचाप खड़ा था। उस पूरी बातचीत को सुनते हुए हालांकि उसके कानों तक सिर्फ़ नीना की धीमी फुसफुसाहट पहुँची होगी।
"तुम ठीक हो?" उसने पूछा।
नीना ने धीरे से सिर हिलाया।
"क्या वो… बोल रही थी?" एलाडियो ने इशारा किया — नीना की आंखों की तरफ़।
"हाँ," नीना बोली। "वो अब भी है। और शायद अब हमेशा रहेगी।"
नीना एलाडियो को घूरती रही, उसकी आँखें अब पहले जैसी नहीं थीं। उनमें अब डर कम, सवाल ज़्यादा थे।
"तुम क्यों वापस आए हो?" नीना ने पूछा।
"मैं कभी गया ही नहीं था,"
एलाडियो ने धीरे से कहा। "तुम्हें लगता है ये सब तुम्हारे इर्द-गिर्द हो रहा है… लेकिन सच ये है कि सब तुम्हारे भीतर हो रहा है।"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" नीना ने अपना सिर हल्के से हिलाया, जैसे उस पर कोई अदृश्य बोझ हो।
एलाडियो एक कदम आगे बढ़ा। "तुमने 'प्रोजेक्ट शून्य' की फाइल देख ली, है ना?"
नीना की साँसें रुक सी गईं। "तुम्हें कैसे पता?"
"क्योंकि उस फोल्डर को खोलने के लिए जो एक्सेस कोड चाहिए होता है… वो सिर्फ़ दो लोगों के पास था। एक स्लोन… और दूसरी तुम।"
"मैं नहीं जानती थी कि मेरे पास ऐसा कुछ है।"
"क्योंकि तुम्हारे अंदर 'कोर मेमोरी' लॉक की गई थी।"
"और अब?" नीना ने पूछा।
"अब वो मेमोरी खुल चुकी है। और साथ ही खुल गया है वो दरवाज़ा… जिसे बंद रखने के लिए 'द डिवीजन' ने पूरी ज़िन्दगी लगा दी थी।"
तभी नीना के सिर में तीखी जलन उठी। उसकी आँखें फिर से चमकने लगीं।
"सिस्टम लोडिंग…
सिक्रेट डाटा सिंक्रोनाइज़ हो रहा है…"
"नहीं… रुको," नीना ने सर पकड़ लिया।
"सेकंडरी सबकॉन्शियस चैनल एक्टिवेट हो रहा है…"
उसकी सांसें तेज़ हो गईं। उसे अपने आसपास की दीवारें भी जैसे हिलती महसूस होने लगीं। उसकी दृष्टि के सामने डाटा की लाइनें बह रही थीं — नाम, कोड्स, तिथियाँ… और सबसे नीचे एक वाक्य:
"सब्जेक्ट शून्य — आई.एम. द ब्रेकपॉइंट।"
"ब्रेकपॉइंट?" नीना ने घबराकर पूछा। "ये क्या है?"
एलाडियो चुपचाप उसे देखता रहा। फिर बोला, "तुम हो वो ब्रेकपॉइंट, नीना। सिस्टम के बीच की दरार। अगर तुम फेल हुई… तो पूरा नेटवर्क ध्वस्त हो जाएगा। लेकिन अगर तुम कंट्रोल में आ गई… तो पूरा सिस्टम तुम्हारे आगे झुक जाएगा।"
"तो यही कारण है कि सब मुझे चाहते हैं?"
नीना की आवाज़ टूटी हुई थी। "कार्टेल, डिवीजन… सब?"
"नहीं," एलाडियो ने कहा। "अब वो तुम्हें पाना नहीं चाहते, वो अब तुमसे डरते हैं।"
"और तुम?" नीना ने सीधा पूछा।
एलाडियो मुस्कुराया। "मैं तुम्हें बनते देखना चाहता हूँ—ताकि जब दुनिया टूटे… तुम अकेली रहो जो खड़ी रह सके।"
एक सेकेंड के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई। तभी नीना को एक गूंज सुनाई दी—उसके भीतर से:
"सिस्टम रीऑर्गनाइज़ेशन इन प्रोग्रेस…
इमोशनल बैलेंसिंग डिस्टर्बड…
कृपया निर्णय लें: क्या आप मानव रहना चाहती हैं?"
नीना का चेहरा फक पड़ गया।
"ये क्या है…" उसकी आवाज़ कांपी।
"अब सिस्टम तुमसे पूछ रहा है," एलाडियो बोला। "तुम तय करो… इंसान बनकर जिंदा रहोगी, या मशीन बनकर सब पर राज करोगी।"
नीना की आँखों से एक आँसू गिरा।
"क्या दोनों में से कोई तीसरा रास्ता नहीं है?"
भीतर से जवाब आया: "नहीं। फैसला ज़रूरी है। टाइमर चालू हो गया है: 00:59…"
नीना बेस की उस धुँधली सुरंग में खड़ी थी, जिसकी दीवारों पर समय थम सा गया था। आँखों के सामने एक वर्चुअल टाइमर चल रहा था—00:43… 00:42… 00:41…
उसके भीतर की आवाज़ फिर गूंजी— "निर्णय लें: क्या आप मानव रहना चाहती हैं?"
वो अब तक की सबसे ठंडी, सबसे स्थिर आवाज़ थी—कोई भावना नहीं, कोई पक्षपात नहीं। बस एक सवाल और गिनती।
"ये कौन सी बीमारी है…" नीना ने धीरे से कहा, "जो सवाल पूछकर ही इंसान को बर्बाद कर देती है?"
पास खड़ा एलाडियो चुप था। उसकी आँखें नीना की हर हरकत पर टिकी थीं।
"अगर मैं मशीन बन गई…" नीना बुदबुदाई, "तो शायद ये युद्ध रुक सकता है… शायद सब शांत हो जाए।"
"या शायद तुम सबकुछ नष्ट कर दो," एलाडियो ने पहली बार सीधा कहा।
नीना की आंखें चमक उठीं।
"तो फिर मैं क्या करूँ? अगर मैं इंसान बनी रही, तो 'डिवीजन' मुझे मिटा देगा। और अगर मशीन बनी… तो शायद मैं खुद को ही खो दूँ।"
उसने अपनी हथेली को देखा—मजबूत, कंपकंपाती नहीं… पर अब भी गर्म। अब भी… ज़िंदा।
"तुम्हारे पास बहुत समय नहीं है," भीतर की चेतना ने याद दिलाया।
"00:29…"
तभी दीवार पर एक होलोग्राफ़िक स्क्रीन अपने आप चालू हो गई। एक वीडियो चलने लगा। उसमें एक छोटी बच्ची दिखी—करीब 9 साल की, अपनी माँ के साथ किसी बंकर में छिपी हुई।
"ये मैं हूँ…" नीना ने धीरे से कहा। "मेरी माँ…"
वीडियो में वो बच्ची रो रही थी, और माँ उसे बाहों में समेटे, कह रही थी—
"नीना, एक दिन आएगा जब तुम वो देखोगी जो और कोई नहीं देख पाएगा। लेकिन उस दिन, सिर्फ़ देखना मत… फैसला करना। सही और गलत के बीच का फैसला।"
नीना के आँसू रुक गए।
"यही है मेरी जड़," उसने सोचा। "यही है मेरी मानवता।"
"00:19…"
उसने गहरी साँस ली।
"मैं मशीन नहीं बनूँगी," उसने भीतर कहा।
"ध्यान दें: निर्णय रजेक्ट कर दिए गए विकल्प की पूर्ण निष्क्रियता के साथ जुड़ा होता है।
क्या आप मानव स्थिति को कन्फर्म करती हैं?"
"हाँ," नीना ने ज़ोर से कहा। "मैं मानव हूँ। और इंसान ही रहूँगी।"
"कन्फर्मेशन लॉग्ड…
मशीन नियंत्रण अब डिएक्टिवेट किया जा रहा है…"
अचानक उसकी आँखों की चमक कम हो गई। हाथ काँपने लगे। दिल की धड़कन दोबारा अनियमित हो गई।
शरीर में दर्द लौट आया।
"हे भगवान…" नीना लड़खड़ा गई।
"तुमने चुना है, नीना। और अब इस निर्णय के साथ ही तुम… अकेली हो।"
एलाडियो आगे बढ़ा। उसने नीना को संभाल लिया।
"तुमने सही चुना," उसने कहा।
"पक्का नहीं," नीना बोली, "पर कम से कम अपना चुना।"
लेकिन कुछ दूर दीवार पर फिर एक शब्द चमका—
"मैनुअल ऑवरराइड डिटेक्टेड…
कोर सिस्टम रीएक्टिवेटिंग…"
नीना चौंकी। "ये क्या है अब?"
"किसी और ने सिस्टम को फिर से चालू किया है," एलाडियो बोला।
"कौन?"
तभी बेस की नींव हिलने लगी। नीचे से एक हल्की कंपकंपी, ऊपर की दीवारों पर दरारें… और फिर एक कंप्यूटराइज़्ड आवाज़ गूंजी—
"वेलकम बैक, सब्जेक्ट शून्य। आपका अंतिम परीक्षण अब शुरू होगा…!" बेस की दीवारें फिर से कंपन करने लगी थीं।
कुछ मिनट पहले ही नीना ने अपने भीतर की चेतना को मना कर दिया था। उसने तय किया था कि वह मशीन नहीं, इंसान बने रहना चाहती है। लेकिन अब… सब कुछ बदलने लगा था। कॉरिडोर की रोशनी बार-बार बंद हो रही थी। नीले, लाल और सफेद रंग की फ्लैशिंग लाइट्स दीवारों पर ऐसे थिरक रही थीं जैसे कोई विक्षिप्त चेतावनी दे रही हों।
नीना एलाडियो के साथ खड़ी थी, लेकिन अब उसकी आँखों में वो आत्मविश्वास नहीं था जो उसने अपने निर्णय के बाद महसूस किया था।
"तुमने सिस्टम को ठुकराया था, है ना?" एलाडियो ने धीरे से पूछा।
नीना ने सिर हिलाया। "हाँ। मैं इंसान हूँ। मैंने चुना कि मैं मानव बनी रहना चाहती हूँ।"
"तो फिर ये…" उसने इशारा किया—हवा में चमकता हुआ होलोग्राफ़िक टेक्स्ट:"कोर सिस्टम रीएक्टिवेटिंग…
अंतिम परीक्षण प्रारंभ…"
"ये तुम्हारा चुनाव नहीं था," एलाडियो बोला।
"क्या मतलब?" नीना चौंकी।
"मतलब… तुमने सोचा कि ये चुनाव तुम्हारे हाथ में है, लेकिन असल में, सिस्टम सिर्फ़ तुम्हारी प्रतिक्रिया देख रहा था। असली फैसला अब शुरू हो रहा है।"
"तो क्या ये भी एक प्रयोग था?"
"नहीं," एलाडियो ने उसकी आँखों में देखा, "अब ये युद्ध है।"
तभी उनके पैरों के नीचे ज़मीन एक बार फिर से काँपी। नीचे किसी भारी मशीन के सक्रिय होने की आवाज़ आई— गहरे भीतर से, जैसे ज़मीन के पेट से कोई दानव जाग गया हो। हॉल की रोशनी झपक रही थी। हर झपक के साथ नीना की आँखों में डर नहीं, बल्कि अनगिनत सवाल गहराते जा रहे थे। तभी बेस की दीवारों पर लगे स्पीकर से एक ठंडी, गणनात्मक आवाज़ गूंजी —
"नीना ,सब्जेक्ट शून्य
आख़िरी स्तर का परीक्षण: ट्रस्ट और कंट्रोल प्रारंभ…"
नीना ठिठक गई। उसके भीतर फिर से वही कंपकंपी दौड़ गई जो कुछ समय पहले आई थी, जब उसकी आँखों ने अपने आप शरीर को हील कर दिया था।
उसने धीमे से पूछा, "ये किसकी आवाज़ है?"
पास खड़ा एलाडियो सन्न होकर कुछ पल तक सुनता रहा फिर बमुश्किल बोला, "ये… स्लोन की है।"
"लेकिन स्लोन तो मर चुका है," नीना ने काँपती आवाज़ में कहा।
एलाडियो ने उसकी ओर देखा, गंभीरता से, "शायद उसका शरीर नहीं रहा, लेकिन उसकी चेतना सिस्टम में अपलोड की जा चुकी थी। और अब वो सिस्टम का हिस्सा बन चुका है।"
"मतलब ये पूरा बेस… उसकी निगरानी में है?" नीना की साँसें तेज़ हो गईं।
"और शायद… तुम्हारा भविष्य भी।" एलाडियो की आवाज़ में चिंता थी।
तभी कॉरिडोर के दूसरी ओर से तेज़ कदमों की आवाज़ आई। नीना और एलाडियो दोनों उधर मुड़े। एक परछाईं धीरे-धीरे पास आती जा रही थी। धुआँ हटता गया और एक चेहरा उभरा — वो चेहरा जो नीना ने एक ज़माने से नहीं देखा था।
"वॉल?" नीना की आँखें फैल गईं।
हां, वही थी — वॉल। नीना की पुरानी साथी जो उस क्रॉस के ठिकाने वाले ऑपरेशन के दौरान लापता हो गई थी। सबको लगा था वो मर चुकी है।
लेकिन आज… वो सामने खड़ी थी — ज़िंदा, मुस्कराती हुई, मगर बदली हुई।
"तुम… ज़िंदा हो?" नीना ने बमुश्किल पूछा।
वॉल ने एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, "तुम्हारी वजह से।"
ये शब्द नीना के दिल में एक तीर की तरह घुसे। क्योंकि नीना उसे छोड़ कर भागी थी। एलाडियो ने एक कदम आगे बढ़ाया और पूछा, "ये क्या हो रहा है? स्लोन की आवाज़, ये अंतिम परीक्षण… और अब वॉल?"
वॉल ने नीना की ओर देखा — गहरी, स्थिर आँखों से।
उसकी पुतलियों में भाव नहीं थे… बस आँकलन था।
"मुझे भेजा गया है," वॉल बोली।
"तुम्हारा अंतिम परीक्षण लेने।"
नीना ने फुसफुसाकर पूछा, "तुम… मेरे दोस्त हो या दुश्मन?"
वॉल चुप रही। कुछ सेकंड तक। फिर उसने वही कहा जो सिस्टम ने कहा था —
"ये तुम्हें तय करना होगा, नीना।"
अब बेस की दीवारों पर फिर से टेक्स्ट उभरा —
"निर्णय की घड़ी:
क्या आप वॉल को कंट्रोल करेंगी या उस पर ट्रस्ट करेंगी?"
नीना ने स्क्रीन की ओर देखा, फिर वॉल की ओर।
"ये कैसा परीक्षण है?" उसने धीमे से कहा।
"यह तय करने के लिए कि अब तुम क्या हो," वॉल ने कहा।
"तुम्हारे पास ताकत है — लेकिन क्या तुम भरोसा कर सकती हो, या तुम बस सबको नियंत्रित करोगी?"
नीना अब असमंजस में थी। वॉल, जिसकी आंखें अब भावहीन थीं आगे बढ़ी।
"तुम्हें लगता है मुझे देखकर तुम्हारे अंदर की इंसानियत जागेगी।
या तुम्हारी आंखें आदेश देंगी — और मैं तुम्हारे अधीन हो जाऊंगी?"
एलाडियो कुछ बोलने वाला था, लेकिन नीना ने हाथ से रोका।
उसने वॉल की आँखों में देखा।
"अगर मैं ट्रस्ट करूँ… और तुम मुझे धोखा दो तो?"
"और अगर तुम कंट्रोल करो… तो क्या तुम वाकई किसी और से बेहतर हो?" वॉल ने पलटकर पूछा।
नीना अब कांप रही थी। उसके सामने दो दरवाज़े थे — एक में इंसानियत, जिसमें अनिश्चितता और डर था, दूसरे में शक्ति — लेकिन अकेलापन।
"क्या मैं अब भी निर्णय ले सकती हूँ?" नीना ने आँखें बंद कर मन में पूछा।
"ये तुम्हारा परीक्षण है,"
भीतर से आंखों की चेतना की आवाज़ आई-
"और तुम्हारा फैसला ही तय करेगा… कि अब से तुम कौन हो।"
तभी उनके बीच की ज़मीन से एक वर्चुअल सर्कल उभरा — जिसमें दो विकल्प थे:
1. वॉल को कंट्रोल करें-
2. वॉल पर ट्रस्ट करें-
"तुम्हारा चयन इस बात का निर्धारण करेगा कि क्या तुम अब भी इंसान हो, या एक नियंत्रित इकाई।"
नीना ने दोनों को देखा — एलाडियो, चुपचाप इंतज़ार करता हुआ… वॉल, जो मुस्करा रही थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ छुपा था। उसने अपना हाथ हवा में उठाया।
टाइमर फिर शुरू हो गया था- 00:10… 00:09… 00:08…
नीना की उंगलियाँ काँपने लगीं। उसकी आँखें फिर से चमकने लगीं — लेकिन इस बार वो रोशनी उसे अपने भीतर खींच रही थी।
"अगर मैं ट्रस्ट करूँ… और वॉल धोखा दे दे?"
"अगर मैं कंट्रोल करूँ… तो क्या मैं वही बन जाऊँगी, जिससे लड़ रही थी?"
00:05… 00:04…
नीना ने एक साँस ली। अब सब कुछ उस एक चयन पर टिक गया है, जो नीना ने किया… लेकिन हम नहीं जानते क्या।
क्या उसने वॉल पर ट्रस्ट किया? या उसे कंट्रोल किया? और असली दुश्मन कौन है? वॉल? एलाडियो? या… नीना खुद? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।
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