​मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों.. वैसे तो गाँव और शहर में जमीन आसमान का फर्क है पर एक होरिज़न ऐसा है जहाँ शहर और गाँव वालों की सोच एक समान हो जाती है। आपने अक्सर अपने बड़े बुज़ुर्गों को कहते हुए सुना होगा कि उनके घर का खाना मत खाओ.. वो हमारे लोग नहीं हैं। या.. उनको कांच के नहीं स्टील के ग्लास में पानी दो.. ये दूसरे लोग हैं। ये फर्क अमीरी-गरीबी से भी ऊपर है। आज भी इंसान का नाम पूछने से पहले उसका सरनेम पूछा जाता है। पहले मुझे लगता था कि ये हमारे.. दूसरे.. का फर्क सिर्फ गाँव में ही होता है पर शहर आके पता चला कि ऊँची ऊँची इमारतों में रहने वाले और बड़ी बड़ी नौकरी करने वालों की सोच आज भी उतनी ही छोटी है। यहाँ पे तो नौकरियाँ भी हमारे दूसरे का फर्क देखकर दी जाती हैं। शहर वाले कितना ही मॉडर्न क्यों न बन जाए पर शादी के वक्त सबसे पहला सवाल यही पूछा जाता है कि रिश्ता हमारी बिरादरी में हुआ है या दूसरी बिरादरी में? गाँव में हालाँकि ये प्रॉब्लम काफी गंभीर है। हमारे.. दूसरे के चक्कर में लोगों के विकेट भी डाउन हो जाते हैं। शहर में तो सिर्फ मार-पीटकर रेलवे ट्रैक पे फेंक देते हैं कि आगे भगवान और भारतीय रेलवे की मर्जी ट्रेन आए या ना आए। गाँव में तो ये फर्क रोज़ देखने को मिलता है पर शहर में रहकर भी बहुत सारे लोग इस हमारे.. दूसरे के फर्क से अनजान रह जाते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया सोशल मीडिया है जहाँ सब अकाउंट एक बराबर हैं। शौर्य भी इसी भ्रम में जीता था, पर आज उसे गाँव की इस कड़वी सच्चाई से रुबरू होना पड़ा। रवि की बात सुनकर शौर्य को बहुत बुरा लगा। वह बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया! शौर्य को गाँव में हमारे दूसरे का फर्क जान के इतना बुरा लगा कि वह इसी सोच में डूबा रहा और उसके दिमाग से गाँव से भागने का ख्याल ही निकल गया। उसके दादा जी भी गाँव में नहीं थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह आखिर किससे ये matter डिस्कस करे! इसलिए उसने शहर अपने डैड को फोन लगाया। नितिन चचा बोले, “शौर्य बेटा, कैसे हो?”​

​​शौर्य : डैड, कैसे हो छोड़िए, पहले मुझे ये बताइए कि मैं हूँ कौन? किस बिरादरी से बेलॉन्ग करता हूँ मैं?​

​अपने बेटे की आवाज़ में दर्द सुनकर नितिन चाचा समझ गए कि शौर्य आज गाँव की किस सामाजिक बुराई से परिचित हुआ है! 
उन्होंने कहा, “शौर्य बेटा, तुम्हें टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। हम ऊँची बिरादरी वाले ही हैं। गाँव में कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा!”​

​​शौर्य : यही तो प्रॉब्लम है डैड! मुझे मेरी बिरादरी की वजह से कोई कुछ नहीं कहेगा नहीं और वो जो दूसरे हैं ना वो गाँव के बाहर कच्चे मकानों में सड़ रहे हैं, उनके पास पीने के लिए साफ पानी नहीं है, पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं, लेकिन कोई उनसे बात भी नहीं करना चाहता.. क्यों? क्योंकि वो दूसरे हैं!​

​नितिन चचा भी शौर्य की बात सुनकर थोड़ा सैड हो गए, “शौर्य, मैं समझ सकता हूँ तुम्हें उनके लिए बुरा लग रहा है पर ये तो सोसाइटी के रूल्स हैं। इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता!”​

​​शौर्य : रूल्स? ये कैसे रूल्स हैं डैड जो समाज के लोगों को ही समाज से अलग कर देते हैं? ये गाँव पहले ही पिछड़ा हुआ है और उन लोगों की गिनती तो पिछड़े हुए गाँव में भी पिछड़े हुए में होती है!​

​नितिन चचा समझ गए कि शौर्य इस टाइम हाई ऑन इमोशन्स है, “शौर्य, calm down! ये रूल्स मैंने नहीं बनाए हैं। ये रूल्स हमारे समाज ने उनके समाज के लिए बनाए हैं!”​

​​शौर्य : ओह गॉड डैड! मतलब हमारे समाज भी अलग-अलग हैं! हमारे समाज ने उनके समाज के लिए रूल्स बना दिए और उनका कंसेंट भी नहीं लिया। ये कैसा इंसाफ है डैड आपके गाँव का?​


​नितिन चचा को लगा कि अब बेटा ज़्यादा ही कर रहा है। वो बोले, “शौर्य, तुम्हें क्या लगता है कि ये फर्क सिर्फ गाँव में ही होता है? ये फर्क तो इस देश के बड़े शहरों में भी फैला हुआ है। तुमने कभी नोटिस नहीं किया क्योंकि तुम लकी हो कि तुम हमारे समाज में पैदा हुए। शायद इसलिए कभी तुमने ध्यान भी नहीं दिया। कभी सोचा है कि हमारे घर पे जो मैड्स आती हैं उनके लिए खाना अलग बर्तन में बनता है और हमारे लिए अलग बर्तन में क्यों? इसलिए नहीं क्योंकि उनके और हमारे बैंक बैलेंस में फर्क है बल्कि इसलिए कि वो दूसरे लोग हैं और ऐसा नहीं है कि मैंने कभी इस फर्क को खत्म करने की कोशिश नहीं की। मैंने कितनी बार उनके लिए सेम बर्तन में खाना बनवाया पर हर बार उन्होंने खाने से मना कर दिया।”​

​​यह सुनकर शौर्य को बहुत बुरा लगा। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये सामाजिक बुराई उसके घर में उसकी आँखों के सामने होती रही पर फिर भी कभी उसकी नज़र इसपे नहीं पड़ी। शौर्य को आँखों वाले अंधे की फीलिंग आ रही थी।​

​​शौर्य : पर डैड कुछ तो होगा ना जो हम इस फर्क को खत्म करने के लिए कर सकते होंगे?​


​नितिन चचा बोले, “If you want तो मैं गाँव के उन दूसरे लोगों के लिए पक्के मकान और क्लीन वॉटर सप्लाई का बंदोबस्त करवा देता हूँ। इसी बहाने हमारी कंपनी की कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी भी पूरी हो जाएगी इस साल की!”​

​​शौर्य : डैड कभी तो बिजनेस के बाहर भी कुछ सोच लिया करो! सिर्फ उन लोगों को अच्छे घर और साफ पानी देने से उनके और हमारे बीच का ये फर्क खत्म नहीं हो जाएगा! सबसे पहले तो उन्हें दूसरा कहना बंद कीजिए डैड!​ 
 
​शौर्य ने गुस्से में फोन काट दिया। अपने डैड से बात करके शौर्य को इस प्रॉब्लम का न तो कोई सॉल्यूशन मिला और न ही उसका मन हल्का हुआ बल्कि उसके दिल पे बोझ और बढ़ गया कि वो खुद भी इस सामाजिक बुराई का हिस्सा है! शौर्य से होश में ये सब सहन नहीं हो रहा था इसलिए उसने नशे का सहारा लेना सही समझा और ललिता दीदी की दुकान पर दारू लेने चला गया। ललिता दीदी उसे दिन में दारू खरीदते देख हैरान हो गई!​

​​ललिता : Why बीयर इन सनशाइन? इस ब्रेन फंक्शन गुड योर?​

​​शौर्य  : ललिता जी मैंने आपको बोला था ना की गाँव आने के बाद मेरी इंग्लिश की प्रॉब्लम हो गई है। प्लीज मुझसे हिंदी में बात कीजिए।​

​​ललिता  : भरी दोपहरी में दारू खरीदने आ गए.. दिमाग सही है?​

​​शौर्य  : दिमाग खराब है तभी तो दारू लेने आया हूँ! अब आप प्लीज मुझे एक चिल्ड बीयर दे दीजिए!​

​​ललिता  : वैसे तो मैं सूरज ढलने से पहले दारू नहीं बेचती पर स्पेशल तुम्हारे लिए मैं अपना ये रूल तोड़ रही हूँ। कोई दूसरा होता तो मैं कभी दारू नहीं देती।​

​दूसरा शब्द सुनते ही शौर्य के दिमाग की नस गुस्से में फटने लगी और वो ललिता दीदी पर भड़क उठा…​

​​शौर्य  : अच्छा मतलब अब दारू में भी हमारे.. दूसरे का फर्क करेंगे आप गाँव वाले! उन दूसरे को जो गाँव के बाहर कच्चे मकानों में बंध रखे हैं बिना साफ पानी और बिजली के, उनके पास पीने के लिए साफ पानी नहीं है, पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं, लेकिन कोई उनसे बात भी नहीं करना चाहता.. क्यों? क्योंकि वो दूसरे हैं!​

​​ललिता  
ए गोबरचट्टा.. कौन सा स्टेशन पकड़ लिए तुम? मैंने बात करी जापान से तुम जवाब दिए चीन से! का घटना घट गई तुम्हारे साथ?​

​शौर्य शांत हुआ और उसने ललिता दीदी को रवि से लेकर नितिन चचा तक पूरी बात समझाई। ललिता दीदी को शौर्य के भोलेपन पर तरस आया और उसका साफ दिल देखकर खुशी भी हुई।​

​​ललिता  : देखो बाबू तुम्हारी बात तो सही है पर ये हमारे.. दूसरे का फर्क तो सदियों से चला आ रहा है! हमें तो खुद ई सब नहीं पसंद! गाँव में ज्यादातर लोगों को भी नहीं पसंद पर का करें कुछ लोग अभी भी इस फर्क को समाजिक बुराई नहीं समाजिक नियम मानते हैं और जबरन इसका पालन करने पर मजबूर करते हैं और अगर कोई इसके खिलाफ जाता है तो…​

​​शौर्य ​ : ​​तो उसके लिए खेतों की दूसरी तरफ बरगद के पेड़ का हैंगिंग गार्डन बनाया हुआ है। ये तो मैं समझ गया पर मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि अगर ज्यादातर लोग इसके खिलाफ हैं तो आप लोग पुलिस की मदद क्यों नहीं लेते? कानून तो इस फर्क के सख्त खिलाफ है! मुझे पता है। मैंने आयुष्मान खुराना की आर्टिकल 15 देखी है!​

​​ललिता ​ : तुम्हें क्या लगता है.. लोगों ने कोशिश नहीं की? मेरी बचपन की सहेली रज्जो ने इस समाजिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाई थी। वो गाँव गाँव में जाकर नुक्कड़ नाटक करती थी और लोगों को जागरूक करती थी। फिर एक दिन किसी हमारे ही ने गुस्से में आकर रज्जो का वीडियो बना डाला!​

​​शौर्य  : You mean MMS?​

​​ललिता  : अरे नहीं.. अश्लील वीडियो नहीं। उसके नाटक का वीडियो बना डाला और उसका वीडियो शहर में किसी टीवी सीरियल वाले को भेज दिया। रज्जो को सीरियल वालों ने बंबई बुला लिया और वो अपना जागरूकता फैलाने का मिशन बीच में ही छोड़के एक्ट्रेस बनने शहर चली गई और अब वो वहाँ पे स्ट्रगलर बनके धक्के खा रही है। हर किसी की कहानी का एंड सैड नहीं होता। कुछ का एंड दर्दनाक भी होते हैं! बस फिर क्या था रज्जो के स्ट्रगल की कहानी सुनके किसी ने दोबारा जागरूकता फैलाने की हिम्मत ही नहीं की।​

​​शौर्य  : इसका मतलब ये हमारे… दूसरे का फर्क इस समाज से कभी नहीं मिट सकता?​

​​ललिता  : बाबू भगत सिंह एक दिन में इनक़लाब लेकर नहीं आए थे और ना ही गांधीजी को अफ्रीका की ट्रेन से उतरते ही आज़ादी मिल गई थी। बदलाव आता है। बदलाव आने में टाइम भी लगता है। इसलिए जरूरी है कि उम्मीद ना हारी जाए क्योंकि उम्मीद पे ही दुनिया कायम है। तुम अपना फर्ज निभाते चलो। फर्क अपने आप हट जाएगा। उ का होता है अंग्रेजी मा.. Be the chhutte paise you want to watch.​

​​शौर्य  : छुटे पैसे नहीं.. Be the change you want to see in the world!​

​​ललिता  : पता है.. छुटे पैसे को ही अंग्रेजी में change कहते हैं। राशन की दुकान चलाती हूँ। इतना ज्ञान है मुझे। तुम अपनी तरफ से ये फर्क खत्म करो एक दिन दुनिया में ये फर्क अपने आप खत्म हो जाएगा।​ 
 
​शौर्य को ललिता दीदी की बात में दम लगा पर उसे पता था कि ये बहुत बड़ा बदलाव है जो शायद वो जीते जी इस देश में ना देख पाए। ये सोचके उसका मन फिर से उदास हो गया और वो बीयर लेकर घर चला गया। उसका लटका हुआ मुंह देखकर रवि ने शौर्य को आवाज लगाई पर शौर्य उसे इग्नोर करता हुआ घर चला गया। जब रवि ने ललिता दीदी से पूछा तो उन्होंने बताया कि शौर्य का मन उदास है। रवि से शौर्य की उदासी देखी नहीं गई और उसने उसे खुश करने का प्लान बनाया। कैसे खुश करेगा रवि शौर्य को? क्या शौर्य दो बीयर में हमारे दूसरे के फर्क से ऊपर उठ पाएगा? क्या कभी राज्जो बड़ी एक्ट्रेस बन पाएगी? सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँववालों के अगले भाग में।​

 

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