काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती हुई चिताओं के बीच त्रिकालदर्शी से मिलते हुए नारायण के भीतर जैसी सिहरन पैदा हुई थी, ठीक वैसा ही उसे आज भी महसूस हो रहा था। कॉल उठाने के बाद नारायण भीतर तक कांप गया और घबराहट की वजह से उसके हलक से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था।
अपने कानों में उस आवाज के गूँजते ही नारायण तुरंत खड़ा हुआ और अपने घर से बाहर निकल आया। बरामदे में खड़ा होकर नारायण ने खुद की साँसों पर बड़ी मुश्किल से काबू किया और घबराते हुए होठों से कहा, “आप.. वो दरअसल मुझे समझ नहीं आ रहा था, आगे क्या करना है।”
डर से काँपते हुए नारायण को भी अब ये सोच कर अफसोस हो रहा था कि बनारस से वापस आने के बाद भी उसने अभी तक ब्रह्मण्ड में फैल रहे असंतुलन के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश नहीं की। नारायण इस बारे में सोचकर और भी डर रहा था कि आखिर त्रिकालदर्शी उसके बारे में अब क्या सोच रहा होगा।
नारायण के मन में ये सब चल ही रहा था, तभी उसके कानों में एक बार फिर से वही आवाज गूँजी, “नारायण वो असंतुलन तुम्हारे सोच से भी ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रहा है। सावधान हो जाओ नारायण, क्योंकि ये बर्बादी के पहले का सन्नाटा है। वो जब आएगा, तो तुम्हें तैयारी का मौका नहीं देगा। इसलिए खुद को तैयार करो नारायण, तुमपर ही अब पूरी मानव सभ्यता की निगाहें टिकी हैं।”
त्रिकालदर्शी के शब्दों ने एक बार फिर से नारायण को चिंता में डाल दिया था। उसकी बातों को सुनकर नारायण के मन में एक साथ हजारों सवाल कुलबुलाने लगे।
"आपका क्या मतलब है.? वो आखिर कौन है और मेरा उससे सामना कब होगा। उससे लड़ने के लिए मैं अपनी तैयारी कैसे करूँ?" नारायण अभी चीखते हुए अपने सवाल पूछ ही रहा था, तभी उसके कानों में कॉल रखने की बीप सुनाई पड़ी।
त्रिकालदर्शी ने एक बार फिर से नारायण को सवालों के भवर के बीच छोड़ दिया था। पिछली बार त्रिकालदर्शी को खोजने की कोशिश में नारायण ने गंगा में छलांग लगा दी थी और इसबार वो तुरंत वापस उसी नंबर पर कॉल लगाने लगा। लेकिन, नारायण के लिए परिणाम पिछली बार की ही तरह रहा और वो नंबर बंद बताने लगा।
अभी कॉल पर त्रिकालदर्शी ने नारायण से जो कुछ भी कहा था, उसे सुनकर नारायण अपने माथे पर हाथ रखकर वहीं खड़ा हो गया, “पहले तो उसने कहा था कि मुझे ब्रह्मांडीय असंतुलन को ठीक करना होगा और अब वो कह रहा है कि कोई है जो मेरे लिए आ रहा है। आखिर ये कौन हो सकता है नारायण, तुम्हें इसका पता लगाना ही होगा।”
कमरे से बाहर खड़ा नारायण ये सब सोच ही रहा था, तभी अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। ये एहसास होते ही नारायण घबराते हुए पीछे मुड़ा, “कौन है.? कौन है.?”
नारायण की आवाज से उसकी घबराहट साफ पता चल रही थी और ये देख उसके सामने खड़ी राधिका भी चौंक गई, “आपको क्या हुआ.? कमरे से आप अचानक बाहर क्यों चले आये और आप इस तरह से घबरा क्यों रहे हैं?”
पत्नी के सवालों को सुन घबराए नारायण ने तुरंत उसके हाथ पकड़े और घर के अंदर चला आया। नारायण के चेहरे पर अभी भी घबराहट साफ झलक रही थी और ये देख राधिका ने पहले नारायण को पानी का ग्लास दिया और फिर उससे पूछा, “सब ठीक तो है न? आखिर आप इतने घबराए हुए क्यों हैं और आपके माथे से इतना पसीना क्यों निकल रहा है?”
पत्नी के सवालों को सुन रहा नारायण किसी बुत की तरह एक जगह बैठा था। उसके ध्यान में अभी भी सिर्फ त्रिकालदर्शी की ही कही बातें चल रही थी, "आखिर वो कितना ताकतवर होगा और मैं उसका सामना कैसे करूँगा.? त्रिकालदर्शी मुझे किसका सामना करने के लिए तैयार रहने को कह रहा था? वो कभी मेरे पूरे सवालो का जवाब भी तो नहीं देता है.?"
इनबातों को सोचते हुए नारायण ये तो भूल ही गया था कि राधिका भी वहीं पर है। तभी उसके ख्यालों में खलल डालते हुए राधिका ने उसे झकझोरते हुए कहा, "आपकी तबियत तो ठीक है न.? आपने बाहर ऐसा क्या देख लिया, जो आपको इतना बड़ा सदमा लग गया?
राधिका की बातों को सुनने के बाद नारायण ने उसकी तरफ डरती हुई निगाहों से देखा और कहा, “कुछ नहीं राधिका.. तुम बस अपने घर के बारे में बोल रही थी न, उसी के बारे में सोच रहा था। वैसे अब बहुत रात हो गई है, चलो सोने चलते हैं।”
नारायण इसवक्त भीतर से बहुत डरा हुआ था और ये राधिका साफ साफ महसूस कर सकती थी। उसने नारायण को रोकते हुए आगे कुछ कहना चाहा, लेकिन नारायण उससे हाथ छुड़ाते हुए आगे की ओर बढ़ गया। नारायण के इस अजीब व्यवहार को देख राधिका को भी गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन उसने खुद को शांत किया और चुपचाप सोने के लिए चली गई।
उधर बिस्तर पर लेटे हुए नारायण की आँखों से नींद कोसों दूर थी। उसके कानों में अभी भी वही आवाज गूंज रही थी, “त्रिकालदर्शी आखिर मुझसे कोई भी बात साफ साफ क्यों नहीं करता है। बनारस से आने के बाद भी मैं इसलिए ही चुप बैठ गया, क्योंकि मुझे आगे का कोई रास्ता मालूम नहीं था। वही हाल इसबार भी है। आखिर मैं आगे क्या करूँ?”
खुद से ही ये सवाल करते हुए नारायण की नजरें बार बार अपनी खिड़की से दिख रहे चाँद से जा टकरा रही थी। चाँद की रौशनी भी आज नारायण को कुछ ज्यादा ही चमकती हुई नजर आ रही थी।
इन्हीं बातों में खोए हुए नारायण की आँखें कब लगी, इसका उसे खुद भी पता नहीं चला। बेहद गहरी नींद में सोया हुआ नारायण अभी त्रिकालदर्शी के ख्यालों से दूर गया ही था, तभी उसे अचानक एक बड़े विस्फोट की आवाज सुनाई पड़ी।
ये आवाज सुनते ही नारायण बिस्तर से खड़ा हो गया और तुरंत खिड़की की ओर भागा। नारायण की नजरें बाहर की ओर देखकर ये अंदाजा लगाने की कोशिश कर रही थी कि नीचे क्या हुआ है, तभी अचानक उसे दूसरे विस्फोट की आवाज सुनाई दी।
इस विस्फोट की आवाज को सुन नारायण ने जब अपनी नजरें ऊपर कि तो उसके होश उड़ गए। आसमान में अचानक से निकले तारों के बीच लगातार विस्फोट हुए जा रहा था और ये देख नारायण का पूरा बदन काँपने लगा।
"हे भगवान, ये सब आखिर क्या हो रहा है? आसमान में निकले तारों में अचानक से विस्फोट कैसे होने लगा। आखिर आप कौन सा संदेश देना चाहते हैं?" नारायण अभी ये सोच ही रहा था, तभी उसे ऐसा कुछ दिखाई पड़ा, जिसने उसके होश उड़ा दिए।
"विस्फोट के बाद ये सारे टूटे हुए तारे पृथ्वी पर क्यों गिर रहे हैं? कहीं ये टूटते तारे पृथ्वी की बर्बादी का संदेश तो नहीं हैं? मेरी मदद करो त्रिकालदर्शी आखिर ये सब क्या है.?" इनबातों को सोचते हुए नारायण काफी चिंतित था।
टूटते तारों को देख नारायण की जिंदगी बिखर सी गई थी। उधर वे तारें पृथ्वी की ओर बढ़ते हुए धीरे धीरे नारायण की ओर बढ़ने लगे। ये देख नारायण कुछ समझ पाता, तभी उसे उन तारों में किसी का चेहरा नेजर आने लगा था।
नारायण को इसवक्त हर तारे में एक अलग चेहरा दिखाई पड़ रहा था और उसे ये एहसास हो रहा था, जैसे वो चेहरा उसी को घूर रहा है। नारायण इन चेहरों से पूरी तरह से अंजान था। इस नजारे को देख घबराहट के मारे नारायण की हलक से आवाज भी नहीं निकल रही थी। उधर उन टूटते तारों में उभरे चेहरे नारायण को देख कभी मुस्कुरा रहे थे, तो कभी उनके चेहरे से गुस्से की आग झलक रही थी।
उन तारों की गर्मी को नारायण अपने शरीर पर महसूस कर रहा था। जैसे जैसे वो तारे उसके नजदीक आते गए, उसे ऐसा लगने लगा, जैसे उनकी गर्मी से नारायण का पूरा बदन जल रहा है। इन तारों की गर्मी की वजह से नारायण का हलक भी सूखने लगा था।
"पानी.. पानी.. मुझे पानी पीना होगा और इन तारों की आग बुझानी होगी।" नारायण ये कहते हुए खिड़की से दूर जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन वे चेहरे नारायण को अपनी ओर खिंचे ही जा रहे थे। ये देख नारायण की घबराहट और भी बढ़ने लगी। नारायण उन तारों को खुद से दूर हटाने की कोशिश करते हुए चीख पड़ा, “दूर हो जाओ मेरे से, दूर हो जाओ.? आखिर तुम मुझसे चाहते क्या हो?”
नारायण ने अभी चीखते हुए ये कहा ही था, तभी उसके कानों में राधिका की आवाज सुनाई पड़ी, “क्या हुआ जी.? क्या हुआ.? आपने कोई बुरा सपना देखा क्या?”
राधिका की आवाज को सुन नारायण ने जब घबराते हुए अपनी आंखों को खोला, तब उसे एहसास हुआ कि ये टूटते तारे सिर्फ उसके सपने के हिस्से थे। अपने बगल में चिंतित खड़ी राधिका की ओर देखते हुए नारायण ने उससे कहा, “हाँ बस एक सपना ही था। वैसे लगता है, आज सुबह थोड़ी जल्दी हो गई।”
नारायण की बातों को सुन राधिका वहीं बैठ गई। "आप मुझसे क्या छिपा रहा हैं.? कल रात से ही मैं आपके इस बदले व्यवहार को देख रही हूँ। आखिर क्या बात है? आपको किसी ने डराया है, तो आप वो भी हमें बता सकते हैं।" अपनी पत्नी की बातों को सुन नारायण ने हँसते हुए उससे कहा, “अरे ऐसी कोई बात नहीं है भाग्यवान। चलो मैं नहाने जाता हूँ।”
कल रात को नारायण ने उन टूटते तारों को देखा तो अपने सपने में था, लेकिन उनकी गर्मी उसे अभी भी महसूस हो रही थी। इसलिए वो तुरंत नहाने के लिए जाने लगा। नारायण ने ये सोचते हुए अपने कदम बढ़ाए ही थे, तभी उसकी नजरें अपनी हथेली पर पड़ी। अपनी हथेली को ध्यान से देख नारायण का पूरा बदन फिर से डर के मारे काँपने लगा।
"ये निशान.. मेरी हथेली पर ये कैसा निशान उभर आया है? कल तक तो ये नहीं था और ना ही मैंने इसे बनवाया है, फिर मेरी हथेली पर ऐसा निशान कहाँ से उभर आया.?" नारायण जानता था कि ये सब उसका सपना नहीं है और वो निशान सचमुच उसकी हथेली पर उभर आया है।
वो निशान देखने में किसी प्राचीन यंत्र की तरह था। उस निशान को देख नारायण तुरंत उसपर पानी डालकर उसे धोने लगा। लेकिन, नारायण की ये कोशिश भी बेकार गई। वो निशान नारायण की हथेली पर किसी टैटू की तरह हमेशा के लिए उभर आया था।
देखने में बेहद ही छोटे उस निशान ने नारायण को अंदर तक डरा दिया था। उस निशान को देख नारायण नहाने की बात भूलकर तुरंत अपनी किताबों की ओर भागा।
"मेरे शरीर पर कोई निशान उभर आया और मुझे ही उसका पता नहीं चला। आखिर ये कैसा संदेश है? मुझे इस निशान के बारे में जानना ही होगा कि आखिर ये किस चिज से जुड़ा है और इस प्रतीक का मतलब क्या है.?" ये सोचते हुए नारायण बेहद तेजी के साथ अपने किताबों के पन्ने पलटने लगा, लेकिन उसे उन निशानों से जुड़ा कुछ भी नहीं मिल रहा था।
"मुझे ये खोजना ही होगा, ये निशान आखिर क्या है और किससे जुड़ा है, शायद ये पता लगा लेने से मुझे मेरे मकसद को पूरा करने में आसानी हो। अगर ये निशान ब्रह्माण्डीय असंतुलन से जुड़ा है, फिर तो तुम्हें तुरंत इसका पता लगाकर आगे की ओर बढ़ना होगा।" ये सोचकर नारायण के हाथ और भी तेजी से चलने लगे।
थोड़ी ही देर में नारायण ने अपने घर में रखी ज्योतिष और पुराणों से जुड़ी हर एक किताब को खंगाल डाला, लेकिन उसे कही भी उस निशान से जुड़ा कुछ भी पढ़ने को नहीं मिला। अपनी हथेली पर अचानक उभर आये उस निशान को नारायण जितनी बार देखता था, उसकी बेचैनी उतना ही बढ़ते जा रही थी।
"आखिर ये निशान क्यों उभरा है और ये मेरे हाथों पर कैसे आ गया.? तुझे इन सवालों के जवाब हासिल करने ही होंगे नारायण, तभी तूम्हारी बेचैन आत्मा को शांति मिलेगी।" घबराहट की वजह से नारायण अपने किताबों को दुबारा पढ़ने लगा, लेकिन उसे उन निशानों से जुड़ा कुछ भी नहीं मिल रहा था।
नारायण उस निशान का पता लगाने की कोशिश कर ही रहा था, तभी उसके कानों में अचानक ही अपनी बेटी आभा की आवाज सुनाई पड़ी, “आई, बाबा.. आपलोग जल्दी बाहर आइए।”
आभा को यूँ चीखते देख नारायण और राधिका तुरंत दौड़ते हुए बाहर निकले, तो आभा ने अपनी उंगली से उन्हें दूसरी तरफ दिखाते हुए कहा, “बाबा, ये हमारे दीवाल पर किसने लिख दिया.?”
नारायण के दीवाल पर बड़े बड़े काले शब्दों में लिखा था-
"काल आ रहा है।" ये देख नारायण की धड़कनें और भी तेज हो गई और किसी अनहोनी की आशंका से वो सिहर उठा।
आखिर किसने लिखा दिया नारायण की दीवाल पर ये सब?
नारायण की हथेली पर उभरे निशान का क्या है मतलब?
क्या इन बातों का त्रिकालदर्शी और टूटते तारों से भी है कोई संबंध.?
जानने के लिए पढ़ते रहिए STARS OF FATE..
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