नारायण के साथ आज फ्लाइट में जो कुछ भी हुआ था, उसे वो जिंदगी भर नहीं भूलने वाला था। मुंबई में फ्लाइट लैंड करने के साथ ही उस एयरलाइंस के मालिक खुद नारायण को छोड़ने के लिए एयरपोर्ट के बाहर तक आये थे। नारायण को ऑटों के लिए इंतजार करते देख उन्होंने उसे अपनी कार से घर भेजने का भी इंतजाम कर दिया।
कार में बैठा नारायण अपने अतीत के आखिरी 24 घंटो को याद कर रहा था, लेकिन उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी किस्मत अचानक से इतनी कैसे बदल गई।
"कल मैं बनारस में था और मेरे जीवन में कितनी टेंशन थी। अभी पाँच घंटे पहले तक मुंबई आ पाना असंभव सा लग रहा था, लेकिन किस्मत ने आखिर मुझे मुंबई पहुँचा ही दिया।" अपनी किस्मत के बारे में ये सब सोचकर नारायण को अपने सितारे अब उतने भी खराब नहीं लग रहे थे।
तभी अचानक उसके दिमाग में अपने परिवार का ख्याल आया, "अब मैं जल्दी से घर पहुँच जाऊँ, फिर पुलिसवालों से मिलकर सबसे पहले उन्हें अपनी बेगुनाही का सबूत दूँगा। वो बार-बार मेरे घर पर आ रहे हैं, इससे पड़ोस में हमारे परिवार की कितनी बदनामी हो रही होगी।" ये सोच नारायण काफी घबराया हुआ था।
थोड़े ही देर में उसकी कार कांदिवली के उस इलाके में पहुँच गई, जहां नारायण रहता था। कार के रुकते ही नारायण ने जब अपने कदम बाहर रखे, तो आसपास के नजारे को देख नारायण के होश उड़ गए। उसे अपने चॉल के चारों तरफ पुलिसवाले नजर आ रहे थे और वहाँ पर मीडिया का भी जमावड़ा लगा हुआ था।
अचानक ये सब देखकर किसी अनहोनी की आशंका से नारायण सिहर उठा। उसका पूरा बदन अब काँप रहा था और उसने आगे बढ़ते हुए मीडिया वालों की ओर देखते हुए उनसे पूछा, “भैया, आप लोग यहाँ क्यों आये हैं और यहां ये भीड़ क्यों लगी है?”
नारायण की बातों को सुन रहे उस रिपोर्टर की नजर नारायण के घर की ओर ही थी। इसलिए उसने नारायण पर ध्यान दिए बिना कहा, “अरे हमें नारायण का बस एक फोटो चाहिए….आखिर वो अभी मुंबई की सबसे चर्चित हस्ती जो है। अब तुम यहाँ से जाओ, मेरा दिमाग मत खराब करो।”
उस रिपोर्टर की बातों को सुन नारायण का डर बढ़ने लगा और उसने घबराते हुए कहा, "आप लोग साइड हटिये और मुझे ऊपर जाने दीजिए…..वो मेरा ही घर है।"
नारायण के इतना कहते ही सारे रिपोर्टर एक साथ उसकी ओर घूम गए। नारायण के चेहरे पर अचानक ही सैकड़ो फ्लैशेज चमकने लगे। ये सब नारायण को असहज कर रहा था, इसलिए वो जल्द से जल्द आगे जाना चाहता था। नारायण को वहाँ देख पुलिसवाले भी आगे आये और वे नारायण को मीडियावालों से बचाकर ऊपर ले जाने लगे।
तभी नारायण के कानों से रिपोर्टर का एक ऐसा सवाल टकराया, जो नारायण की पूरी लाइफ बदलने वाला था।
“मिस्टर नारायण, आपने बम धमाकों का जिस तरह से सामना किया और उससे जिंदा बचकर लौटे, उसे देखकर सरकार ने आपको मुंबई बम धमाकों में वीरता का प्रतीक घोषित किया है। आपको ये सम्मान हासिल कर के कैसा लग रहा है मिस्टर नारायण और आप इन बम धमाकों से कैसे जिंदा बचकर बाहर निकले?”
उस रिपोर्टर की बातों को सुनकर नारायण के लिए वक्त ठहर सा गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी जिंदगी में अचानक इतना सब कैसे बदल गया। हालांकि, इन सब के बीच भी उसे अपने परिवार की चिंता सता रही थी, इसलिए वो दौड़ते हुए अपने घरवालों की तरफ भागा।
नारायण को वहाँ से जाते देख टीवी रिपोर्टर्स इस वक्त लाइव रिपोर्टिंग कर रहे थे।
"आपसब ये देख सकते हैं कि नारायण इस धमाके के बीच सबसे बहादुर सर्वाइवर (surviour) बनकर बाहर निकले हैं। जिस बोगी का हर एक पैसेंजर मारा गया हो, वहाँ से भी जिंदा बाहर निकल आना, नारायण की जीवटता को दर्शाता है और इसलिए सरकार ने उन्हें इस धमाके के बाद बहादुरी का प्रतीक घोषित कर दिया है।"
ऐसी ही रिपोर्ट्स इस वक्त तमाम न्यूज़ चैनल्स पर चल रही थी।
नारायण आज पूरे मुंबई के लिए हीरो बन गया था और जब वो अपने घर के भीतर गया, तो उसके घरवाले भी दौड़ते हुए उसके गले लग गए। नारायण ये सब देखकर हैरान था, तभी राधिका ने उससे कहा, “आप हमें छोड़कर कहां चले गए थे? आपके बिना तो ये घर हमें काटने को दौड़ता था।”
राधिका ने आज न जाने कई सालों के बाद नारायण से इतने प्यार से बात की थी। उसकी बातों को सुनकर नारायण ने कुछ नहीं कहा और उसने सबसे पहले चिंतामणि को दूसरे कमरे में ले जाते हुए उससे कहा, “ये सब क्या है चिंतामणी.? कल रात को तो तुम कह रहे थे कि पुलिसवाले तुम लोगों को परेशान कर रहे हैं। लेकिन, यहाँ तो सबकुछ बदला हुआ है। फिर तुमने मुझसे झूठ क्यों बोला चिंतामणि.?”
नारायण के शब्द अब थोड़े तल्ख थे। ये देख चिंतामणि ने उसे घर पर आया एक पत्र दिखाया और कहा, “बाबा, कल रात तक सच में ये लग रहा था कि पुलिसवाले हमें ही जेल में डाल देंगे। लेकिन, आज सुबह चार बजे अचानक हमारे घर पर ये पत्र आया और इसके बाद सब कुछ बदल गया।”
चिंतामणि की बातों को सुनकर नारायण हैरानी भरी निगाहों से उस पत्र को देखने लगा। ये देख चिंतामणि ने नारायण से कहा, “बाबा इसमें लिखा हुआ है कि उच्च अधिकारियों ने जब जाँच की तो उन्हें एक ऐसे बचने वाले शख्स का पता चला, जिसके बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। इसलिए सरकार ने आपको बहादुरी का प्रतीक घोषित किया है और इसी वजह से हमारे घर के बाहर मीडिया वालों की इतनी भीड़ भी लगी है।”
अपने बेटे की बातों को सुनकर नारायण ने अपना हाथ सर पर रख लिया। “हे भगवान, आखिर आप चाहते क्या हैं? जब लगने लगा था, हम लोग बर्बाद होने वाले हैं, तब आपने हमारे ऊपर इतनी बड़ी कृपा कैसे कर दी? आखिर मेरे सितारे मुझे किस ओर ले जाना चाहते हैं भगवान?”
खुद से ये सवाल कर रहा नारायण काफी दुविधा में था। तभी उसकी पत्नी ने वहाँ आते हुए कहा, "बाहर वही पुलिसवाला आया है, जिसने हमें इतना परेशान किया था। कहीं वो हमें फिर से परेशान करने तो नहीं आ गया?"
नारायण से इतना कहते हुए राधिका की आँखों में खौफ साफ नजर आ रहा था। ये देख नारायण समझ गया था कि उसके जाने के बाद उसके परिवारवालों को कितना प्रताड़ित किया गया होगा। इस बारे में सोचकर ही वो गुस्से से भर आया और तुरंत जाकर इंस्पेक्टर सिद्धार्थ के सामने खड़ा हो गया।
"अब आप मेरे परिवार को कैसे परेशान करना चाहते हैं, जो आप यहाँ आ गए? मेरे पीठ पीछे आखिर आप मेरे घरवालों को क्यों टार्चर कर रहे थे? आपको मेरे ऊपर शक था, तो आप मेरे आने का इंतजार कर लेते।" इंस्पेक्टर सिद्धार्थ को सामने देखने के साथ ही नारायण ने अपनी भड़ास उसके ऊपर उतार दी।
उधर नारायण की बातों को सुनकर सिद्धार्थ उसका चेहरा देखे जा रहा था। नारायण की बातें उसे बुरी तो लग रही थी, लेकिन फिर भी वो अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कुराहट लाते हुए नारायण से बोला, “नारायण जी, हमारी इन्वेस्टीगेशन की वजह से आपको काफी परेशानी उठानी पड़ी है और मैं इस बात को समझ रहा हूँ। इसलिए मैं आपको खुद यहाँ पर सॉरी बोलने आया हूँ, ताकि आपके मन में कोई गीला शिकवा ना रहे।”
अपने उम्मीद के विपरीत इंस्पेक्टर सिद्धार्थ की ऐसी बातों को सुनकर नारायण को आश्चर्य तो हुआ, लेकिन वो तुरंत ही समझ गया कि सिद्धार्थ ये सब अपने सीनियर्स और मीडिया के दबाव में आकर कर रहा है।
ये एहसास होते ही नारायण को अपने परिवार की इंसल्ट याद आने लगी और उसने तुरंत इंस्पेक्टर से कहा, "आपने मुझे परेशान किया, ये तो मैं बर्दाश्त कर सकता हूँ….लेकिन आपने मेरे परिवारवालों को परेशान कर के ठीक नहीं किया। इसलिए अगर आपको माफी मांगनी भी है, तो आप मेरे परिवारवालों से मांगिये।"
नारायण ये सब क्यों बोल रहा है, सिद्धार्थ भी ये समझ रहा था और उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गई। लेकिन वो मीडिया के सामने कोई तमाशा नहीं खड़ा करना चाहता था। इसलिए वो चुपचाप नारायण के घर के भीतर आया और उसने राधिका, चिंतामणि और आभा के आगे हाथ जोड़ते हुए उनसे माफी माँगी और गुस्से में वहाँ से जाने के लिए निकल गया।
इंस्पेक्टर सिद्धार्थ की माफी के बाद नारायण के पूरे परिवार के चेहरे पर उनकी मुस्कुराहट लौट आई थी, उधर सिद्धार्थ ने गुस्से में पागल होते हुए अपने हवलदार से कहा, “अपने सीनियर्स की वजह से मैंने इनसे माफी तो माँग ली है, लेकिन मैं इन्हें ऐसे नहीं जाने दूँगा। इस बम विस्फोट से मैं नारायण का कनेक्शन खोज निकालूंगा और फिर इसी कांदिवली में उसका जुलूस निकालूंगा।”
इंस्पेक्टर सिद्धार्थ भी अब किसी बहाने से नारायण को टार्गेट करने की योजना बना रहा था, तो इधर उसके जाने के बाद नारायण और उसका परिवार, अब काफी रिलैक्स महूसस कर रहे थे। आज नहा धोकर न जाने कितने दिनों के बाद नारायण को घर का खाना नसीब हुआ।
खाना खाने के बाद नारायण ने टीवी ऑन किया तो हर न्यूज़ चैनल पर उसी की चर्चा थी, ये देख नारायण के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। नारायण ये सब देखकर खुश तो था, लेकिन उसके मन का एक कोना, इसके बारे में सोचकर काफी परेशान भी हो रहा था।
"नारायण तुम्हारा जीवन तो बदल रहा है। पिछले कुछ घंटों में तुम्हें ऐसी चीजें मिल गई हैं, जो तुम्हें पूरी लाइफ में नहीं मिली थी। इस थोड़े से समय में तुम्हारा जीवन पूरी तरह बदल चुका है, लेकिन ये सब तुम्हारे साथ क्यों हो रहा है.? आखिर इन सब के पीछे तुम्हारे भाग्य के कौन से सितारे छिपे हैं नारायण.?" ये सोचते हुए नारायण काफी चिंतित था।
तभी उसकी पत्नी राधिका ने उसके पास आते हुए कहा, “आप मुझे माफ़ कर दीजिए, जो मैंने आपको और आपके ज्योतिष को इतना भला बुरा कहा। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि आप ये सब हमारे लिए ही कर रहे हैं।”
राधिका की बातों को सुनकर नारायण के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। “भाग्यवान सच कहूं तो, ये सब क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, मुझे इसका जरा भी अंदाजा नहीं है। कल तक हमारे जो सितारे गर्दिश में थे, आज अचानक वो इतने कैसे बदल गए, मैं खुद ये नहीं समझ पा रहा। बस उम्मीद करता हूँ कि आगे भी सब कुछ सही से चलता रहे।”
नारायण को यूँ चिंतित देख राधिका ने उससे कहा, "अजी आप चिंता क्यों कर रहे हैं? भगवान ने जब हमें इतनी मुसीबत से निकाल दिया, तो वो हमारा साथ सदैव देंगे। अब आप भी सो जाइये, आपने भी कई दिनों से आराम नहीं किया है।"
नारायण सोने के लिए चला तो गया, लेकिन उसे अभी भी यही लग रहा था कि उसके सितारे आखिर कौन सा खेल कर रहे हैं? इसी बारे में सोचते हुए नारायण की कब आंखें लग गई, खुद उसे भी इसका पता नहीं चला।
अगली सुबह जब नारायण की आँखें खुली, तो उसे आज का सूरज काफी नया लग रहा था। धीरे-धीरे समय बीतता गया और नारायण की जिंदगी भी तेजी से करवट लेती गई। हर तरफ इस वक्त नारायण की ही चर्चा थी और उसके ज्योतिष का काम भी अब जोरों शोरों से चलने लगा। बम विस्फोट को हुए अब एक महीने बीत चुके थे और इन दिनों में नारायण मुंबई के गुमनाम ज्योतिष से एक बेहद ही फेमस ज्योतिष तक का सफर तय कर चुका था।
नारायण की इस सक्सेस को देख राधिका और उसका परिवार भी पूरी तरह से बदल गया। एक दिन नारायण जब थोड़ी देर से घर लौटा, तो राधिका ने खाना खाते हुए उससे कहा, "भगवान की कृपा से अब सब कुछ कितना सही चलने लगा है न? आपका काम भी चल निकला और चिंतामणि भी कॉलेज में अच्छा कर रहा है। जल्द ही उसकी भी कहीं नौकरी लग जायेगी। धीरे-धीरे हम लोग इतने अच्छे से सेट हो रहे हैं, तो क्यों ना हम अब एक घर ले लें?"
कांदिवली के चॉल में रहते हुए नारायण की भी इच्छा थी कि वो अपना घर ले। इसलिए राधिका की बातों को सुन उसके चेहरे पर मुस्कुराहट उभर आई और उसने कहा, “राधिका ये तो मेरा भी सपना है और इसे मैं भी पूरा करना चाहता हूं। लेकिन, अभी हमारा बस नाम हुआ है, हमारे पास उतने पैसे नहीं आये हैं। थोड़ा और पैसे कमा लेने दो, फिर हम घर जरूर खरीद लेंगें”
नारायण की बातों को सुन राधिका भी मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई। तभी नारायण के फोन पर एक अंजान नंबर से कॉल आया। नारायण ने जब उस कॉल को उठाया, तो उसके कानों में वही आवाज गूंजी, जो उसने उस रात बनारस में मणिकर्णिका घाट पर सुनी थी, “बहुत आराम कर लिया। अब समय आ गया है नारायण!”
नारायण को आये इस कॉल का क्या मतलब है.?
इस कॉल के बाद अब आगे क्या करेगा नारायण और क्या उसकी किस्मत फिर से लेगी करवट.?
नारायण के सितारे अब दिखाएंगे कौन सा खेल?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!
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