काशी में नारायण काफी कुछ देख चुका था और त्रिकालदर्शी से उसकी मुलाकात भी हो गई थी। इसके बाद पंडित रामनारायण की मृत्यु ने नारायण के इरादों को और भी मजबूत कर दिया। नारायण भी अब वापस जाने की सोच ही रहा था, लेकिन इसी बीच आये उसके बेटे चिंतामणि के एक कॉल ने नारायण को टेंशन में डाल दिया।

"पता नहीं चिंतामणि क्या कह रहा था और वो किस मुसीबत में है.? हे भगवान, मेरे परिवार की रक्षा करना।" इन बातों को सोचकर नारायण की धड़कनें तेज होने लगी थी। उसने आखिरी बार पंडित रामनारायण की चिता को देख उसे प्रणाम किया और वहां से जाने के लिए निकल गया।

 

नारायण के कदम बनारस रेलवे स्टेशन की ओर जाने के लिए बढ़ तो रहे थे, लेकिन उसका पूरा ध्यान अपने परिवार के ऊपर था और वो उन्हें लगातार कॉल लगाए जा रहा था। 

“फोन तो उठाओ चिंतामणि। आखिर तुम लोग मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहे हो? कहीं कोई बड़ी घटना तो नहीं घट गई? जो भाग्य की रेखाएं मुझे परेशान कर रही हैं, अगर वो मेरे परिवार तक पहुँच गई होंगी, तो मैं क्या करूँगा?”

ये सोचकर नारायण की हालत और भी खराब होने लगी थी। चार दिन से भूखे नारायण ने आज जाकर पानी की कुछ बूंदे अपने हलक के नीचे उतारी थी और अब वो पागलों की तरह बदहवास होकर बनारस स्टेशन जाने के लिए भाग रहा था।

थोड़े ही देर में नारायण बनारस स्टेशन पहुँच गया, लेकिन जब वो टिकट लेने के लिए टिकट काउंटर के पास गया, तो उसे बड़ा झटका लगा।

"इटारसी के पास एक बड़ा ट्रेन हादसा हो जाने की वजह से मुंबई जाने वाली सारी गाड़ियां अगले आदेश तक रद्द कर दी गई हैं। कृपया आप स्टेशन के बाहर बने वेटिंग एरिया में जाकर नई सूचना का इंतजार करें।" टिकट काउंटर पर रेल कर्मचारी से ये सुनने के साथ ही नारायण के पैरों तले जमीन खिसक गई।

"मेरे घरवाले मुसीबत में हैं। वो मेरी राह देख रहे हैं और ऐसी स्थिति में भी मैं उनसे इतनी दूर फंसा हुआ हूँ। क्या मेरी किस्मत के सितारे अभी भी इतना उल्टा घूम रहे हैं?" ये ख्याल दिमाग में आते ही नारायण अपने सितारों के प्रति अंदर तक नफरत से भर गया। नारायण को कुछ सूझ नहीं रहा था, इसलिए वो बनारस से मुंबई जाने के लिए अन्य साधन का पता करने लगा।

 

नारायण ने बस वालों से भी बात की, लेकिन उसे बनारस से मुंबई जाने के लिए कोई बस भी नहीं मिली। दुविधा में फसे नारायण को जब और कुछ नहीं सूझा, तो वो ट्रेन के दूसरे रूट्स के बारे में पता करने लगा, जिनसे वो मुंबई जा सके। इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए वो इधर से उधर भटक ही रहा था, तभी उसके फोन की घंटी एक बार फिर से बजी।

नारायण ने जब फोन देखा तो ये चिंतामणि था। ये देख नारायण ने तुरंत कॉल उठा लिया, “हाँ बेटा चिंतामणि, तुम लोग ठीक तो हो.? मैं जल्द से जल्द मुंबई लौट रहा हूँ बेटा।”

नारायण की बातें पूरी होती, उससे पहले ही चिंतामणि ने उसे बीच में रोकते हुए कहा, “बाबा, आप जितनी जल्दी हो सके, यहाँ चले आइए। ये पुलिसवाले हमें बहुत परेशान कर रहे हैं बाबा।”

पुलिसवालों का जिक्र सुनते ही नारायण ने घबराते हुए कहा, “मुझे आने दो बेटा, मैं वहाँ आते ही उन पुलिसवालों से बात करूँगा। वैसे अभी वहां कोई है, तो मेरी बात उनसे कराओ।”

अपने परिवार को टेंशन में देख नारायण का ब्लड प्रेशर बढ़ते जा रहा था। तभी चिंतामणि ने सिसकते हुए कहा, “वो पुलिसवाले किसी से बात करने के लिए तैयार नहीं होते बाबा। वो कहते हैं, तेरे बाप ने ही बम विस्फोट किया है और अब यहाँ से भाग गया। वो हम पर ऐसे ही इल्जाम लगाते हैं और घर आकर कभी मुझसे तो कभी आभा से और माँ से भी पूछताछ करते हैं। उनके सवाल बहुत ही घटिया होते हैं बाबा।”

अपने बेटे और परिवार को इस हाल में देख नारायण की आँखों में आँसू आ गए। उसे अब अफसोस होने लगा कि आखिर वो अपने परिवार को यूँ अकेला छोड़कर क्यों बनारस की यात्रा पर निकल आया? ये सब सोचकर नारायण के हलक से शब्द नहीं निकल रहे थे।

उसकी चुप्पी को देख चिंतामणि ने उससे कहा, "आप चुप क्यों हो गए बाबा? आप आ रहे हैं न.?

चिंतामणि के शब्दों से झलक रही उसकी बेचैनी को देख नारायण ने उससे कहा, “बेटा, मैं वापस आने की ट्रेन पकड़ने ही वाला था, लेकिन एक्सीडेंट की वजह से बनारस से मुंबई के बीच ट्रेन सेवा रोक दी गई है। वैसे तुम चिंता मत करो चिंतामणि, ट्रेन रुक गई तो क्या हुआ, मैं कुछ और व्यवस्था कर के जल्द से जल्द मुंबई पहुँचता हूँ।”

चिंतामणि से ये सब कहते हुए नारायण घबरा रहा था, तो उधर ये सब सुनकर चिंतामणि की हालत और भी खराब होने लगी। “ट्रेन बंद हो गई, तो आप फ़्लाइट से आ जाइये बाबा….अगर आप हम लोगों को जिंदा देखना चाहते हैं, तो किसी भी तरह से फ्लाइट का टिकट लीजिए और जल्दी यहाँ आइए बाबा, वरना आगे क्या होगा, हमें भी इसका अंदाजा नहीं है। ये लोग हमें जीने नहीं देंगे बाबा।”

चिंतामणि की बातों को सुनकर नारायण ने अपनी जेब टटोली, तो वो उसे काफी हल्की लग रही थी। नारायण ये तो समझ गया, इतने पैसों से वो मुंबई जाने के लिए फ्लाइट की टिकट नहीं ले पायेगा, लेकिन फिर भी बेटे की ऐसी बातों को सुनकर उसने तुरंत कहा, "ठीक है बेटा। मैं अभी एयरपोर्ट की ओर जाता हूँ और जो फ्लाइट मिलेगी, उसी से मुंबई आ जाऊँगा। बस थोड़ी देर और तुम लोग धीरज रखो।"

 

नारायण ने इतना कहकर फोन रख दिया। अपनी जेब को टटोलकर वो समझ चुका था कि उसके पास फ्लाइट के पैसे नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो वहां से एयरपोर्ट जाने वाली बस में बैठ गया। "नारायण, तुम फ्लाइट की टिकट कैसे लोगे? तुम्हारे पास उतने पैसे नहीं हैं और कोई कीमती सामान भी तो नहीं है।" ये सोचकर नारायण का दिल बैठे जा रहा था।

तभी अगले पल उसे अपने परिवार का ख्याल आया और इसी के साथ उसके हौसले बुलंद होने लगे, “पैसे नहीं हुए तो क्या हुआ नारायण, तुझे फ्लाइट से घर जाना ही होगा। एयरपोर्ट चलकर फ्लाइट के टिकट का दाम पता करता हूँ और फिर जितने पैसे कम होंगे, उतने वहीं पर किसी से माँगने की कोशिश करूंगा….हो सकता है मजबूरी देखकर फ्लाइट वाले भी मुझे कम पैसे में जाने दें।”

 

नारायण ने अपनी जिंदगी में पहली बार एयरपोर्ट के भीतर कदम रखा था। यहाँ की भव्यता और साफ सफाई देख उसे आश्चर्य हो रहा था और किसी तरह लोगों से पूछते हुए वो एक एयरलाइन के टिकट काउंटर के पास लगी लाइन में जाकर खड़ा हो गया।

नारायण ने अभी बेहद साधारण कपड़े पहने हुए थे और इस वजह से लोग उसे बेहद नीची निगाहों से देख रहे थे। अपने अनुभव से नारायण को भी इस बात का अंदाजा हो गया था और वो खुद बेहद संभलकर चल रहा था। तभी उसके पीछे लाइन में लगी एक औरत ने अपने हस्बैंड से हँसते हुए कहा, “आजकल तो भिखारी भी फ्लाइट से घूमने लगे हैं। इसे देखकर लगता भी है कि इसके पास फ्लाइट की टिकट के पैसे होंगे?”

उस औरत की बातें नारायण भी सुन सकता था। ये सारी बातें उसे अपने कानों में पिघलते हुए लावे की तरह चुभ रही थी और उसे खुद पर गुस्सा भी आ रहा था। 

“नारायण आखिर तू इस लाइन में खड़ा ही क्यों हुआ? ये औरत सही ही तो बोल रही है, तेरे पास पैसे कहाँ हैं? तेरी किस्मत भी आजकल इतनी अच्छी नहीं चल रही, जो कोई तेरी हेल्प करे। इसलिए इंसल्ट होने से पहले यहां से निकल लो।”

नारायण वहाँ से जाने और ना जाने के फैसले के बीच अटका ही हुआ था, तबतक उसका नंबर आ गया और काउंटर पर बैठी रिसेप्शनिस्ट ने उसकी ओर देख उससे मुस्कुराते हुए कहा, “एयरभारत में आपका स्वागत है सर। बताइए आज आप कहाँ की यात्रा करना चाहेंगे?”

रिसेप्शनिस्ट के सवाल को सुनकर नारायण ने घबराते हुए मुंबई का नाम लिया। नारायण का जवाब सुनकर रिसेप्शनिस्ट अपने सामने लगे कंप्यूटर स्क्रीन पर डिटेल्स चेक करने लगी। ये देख नारायण ने घबराते हुए कहा, “आप पहले मुझे पैसे बता दीजिए। मुझे वहां जाने के लिए कितने पैसे देने होंगे?”

नारायण की बातों को सुन रही रिसेप्शनिस्ट की नजरें अभी भी अपनी स्क्रीन पर थी और उसने अचानक ही चौकतें हुए कहा, “मुबारक हो सर, आप हमारे एक करोड़वें कस्टमर हैं। इसलिए आज आपकी फ्लाइट की टिकट हमारी कंपनी की तरफ से आपको तोहफे के रूप में दी जा रही है। सर आज आप हमारे बिजनेस क्लास में कुछ बेहद ही चुनिंदा लोगों के साथ सफर करने वाले हैं।”

रिसेप्शनिस्ट की बातों को सुनकर नारायण की आँखें फटी की फटी रह गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी किस्मत भी उसे इतना शानदार अवसर दे सकती है। अगले ही पल रिसेप्शनिस्ट ने जब नारायण के हाथों में बिना कोई पैसे लिए उसकी टिकट पकड़ाई, तो नारायण के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई।

 

अपनी टिकट लेकर नारायण पीछे मुड़ा, तो उसकी नजरें उस औरत से टकराई, जिसने अभी उसे भिखारी कहा था। नारायण और उसके टिकट की ओर वो ललचाई निगाहों से देख रही थी, लेकिन नारायण ने उससे कुछ नहीं कहा और आगे बढ़ गया।

थोड़े ही देर बाद नारायण को वीआईपी गेट से अंदर ले जाया गया और प्लेन में एंट्री के साथ ही कैप्टन ने खुद आकर उसका स्वागत किया, “लेडीज एंड जेंटलमैन, आज हमारे साथ एक बेहद ही खास शख्स ट्रैवल कर रहे हैं, जो हमारे एक करोड़वें कस्टमर हैं। हमारी एयरलाइंस पर उनके और ऐसे ही बाकी कस्टमर्स के भरोसे के लिए मैं सबका शुक्रिया अदा करता हूँ।”

कैप्टन की बातों को सुनकर नारायण को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। उसके लिए ये सब किसी सपने के जैसा था और थोड़ी देर के लिए वो भूल ही गया था कि उसके सितारे गर्दिश में चल रहे हैं।

 

नारायण अब अपनी सीट पर बैठ चुका था और आज नारायण के बगल में खुद उस एयरलाइंस कंपनी के मालिक बैठकर ट्रैवल कर रहे थे। उनसे बातें करते हुए नारायण के दिमाग में बार बार एक ही चीज आ रही थी, “नारायण तेरी किस्मत के सितारे आखिर तेरे साथ कौन सा खेल कर रहे हैं? अचानक से तेरी किस्मत इतनी अच्छी कैसे हो सकती है?”

नारायण ये सोच ही रहा था, तभी उसके बगल में बैठे एयरलाइंस कंपनी के मालिक ने उससे कहा, “मिस्टर नारायण, मुझे बेहद खुशी है कि आप हमारे लकी ट्रैवलर बने हैं। वैसे आप काम क्या करते हैं मिस्टर नारायण?”

उसकी बातों को सुनकर नारायण ने उसे मुस्कुराते हुए बताया की वो एक ज्योतिष है। ये सुन एयरलाइंस कंपनी के मालिक के चेहरे पर मुस्कान फैल गई और उन्होंने तुरंत अपना हाथ आगे बढाते हुए नारायण से कहा, “मुझे इन सब में बिल्कुल भी भरोसा नहीं हैं, फिर भी आप मेरा हाथ देखकर मुझसे क्या कहना चाहेंगे.?”

नारायण बहुत ध्यान से उसका हाथ देखने लगा। उसकी हाथों की हर एक रेखा को नारायण बड़े ही ध्यान से देखकर उनके भविष्य का अंदाजा लगाते जा रहा था। तकरीबन दस मिनट तक उस शख्स के हाथों को देखने के बाद नारायण ने कहा, “मेरे साथ आपकी ये यात्रा, आपकी किस्मत बदल देगी और आप इसे पूरी जिंदगी नहीं भूल पाएंगे।”

 

एयरलाइंस का मालिक नारायण की इन बातों को सुनकर सन्न रह गया और वो चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद अचानक ही उस प्लेन का कैप्टन वहाँ आया और उसने एयरलाइंस कंपनी के मालिक के कानों में फुसफुसाते हुए कुछ कहा। 

कैप्टन की बातों को सुनकर एयरलाइंस कंपनी के मालिक के चेहरे का रंग अचानक ही बदल गया और उसने तुरंत नारायण की ओर देखते हुए कहा, “आज आपने मेरा नजरिया ही बदल दिया। मेरी सालों से अटकी हजारों करोड़ो की डील, जो अब असंभव सी लग रही थी, वो पूरी हो गई है मिस्टर नारायण। बताइए आपको मुझसे क्या चाहिए? आप जो बोलेंगे, आज आपको मैं वो दूँगा।”

उस शख्स की बातों को सुनकर नारायण ने मुस्कुराते हुए अपने हाथ जोड़ लिए। नारायण ने उस शख्स से कुछ मांगा तो नहीं, लेकिन अब पूरे रास्ते सब लोग उसकी सेवा में लगे रहे।

नारायण के लिए ये सब किसी सपने से कम नहीं था और उसे ये महसूस हो रहा था कि उसकी ये यात्रा सिर्फ एक शहर से दूसरे शहर के बीच नहीं, बल्कि एक नए भाग्य की ओर है। नारायण की ये यात्रा उसके जीवन के एक नए अध्याय में प्रवेश का प्रतीक बन गई थी, जहाँ उसकी पूर्व मान्यताएं काम नहीं करती। नारायण अभी ये सब देखकर आश्चर्यचकित तो हो रहा था, लेकिन उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि मुंबई में उसका इंतजार कौन कर रहा है।

 

मुंबई पहुँचने के बाद नारायण की किस्मत लेगी कौन सा मोड़.?

आखिर अचानक इतनी कैसे बदल गई नारायण की किस्मत.?

अपनी किस्मत और ब्रह्मांडीय संतुलन को तोड़ने वालों के बीच की लड़ाई को कैसे लड़ेगा नारायण.?

जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!
 

 

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