अपनी आँखों के सामने त्रिकालदर्शी को पहले गंगा की लहरों पर चलते हुए देखना और फिर उन्हीं लहरों के साथ त्रिकालदर्शी का कहीं चले जाना…नारायण को समझ नहीं आ रहा था। उसके मन में अभी भी काफी सवाल थे, जिनका जवाब उसे जानना था और इन सवालों के जवाब जानने के लिए उसे त्रिकालदर्शी से और बात करनी थी।
यही सोच नारायण ने त्रिकालदर्शी को खोजने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए, “त्रिकालदर्शी.. त्रिकालदर्शी.. आप कहाँ हैं? आप मुझे दर्शन देने के बाद इस तरह बीच मझधार में छोड़कर नहीं जा सकते।”
नारायण चीख रहा था, लेकिन उसकी चीखों को सुनकर उनका जवाब देने वाला वहाँ पर कोई नहीं था। ये देख नारायण का मन और भी व्याकुल होने लगा। वो मणिकर्णिका घाट पर इधर से उधर घूमते हुए त्रिकालदर्शी को हर ओर खोज रहा था।
नारायण को जब अपनी आँखों से त्रिकालदर्शी नहीं दिखा, तो उसने लोगों से भी मदद मांगनी शुरू कर दी, "क्या आपने आठ-दस साल के एक बच्चे को देखा था.? वो अभी यहीं घाट पर था, क्या आपने उसे ऊपर आते हुए देखा था?"
नारायण वहाँ से गुजरने वाले हर शख्स से यही सवाल कर रहा था, लेकिन किसी के पास भी उसके सवालों का जवाब नहीं था। ये देख नारायण एक बार फिर से उसी घाट की ओर बढ़ने लगा, जहाँ उसने त्रिकालदर्शी को आखिरी बार देखा था।
घाट की सीढ़ियों से नीचे उतरते वक्त नारायण के मन में बस एक ही बात चल रही थी, "मुझसे अपनी कुंडली के सितारे तो संभल नहीं रहे, मैं पूरी दुनिया का संतुलन क्या ठीक करूँगा….त्रिकालदर्शी तुम अगर ऐसा चाहते हो, तो तुम्हें इसका जवाब देना ही होगा। अगर तुम ऐसे मेरे सामने नहीं आओगे, तो लगता है मुझे ही तुम्हारे सामने आना पड़ेगा।"
ये सोचते समय नारायण की नजरें गंगा की लहरों को देख रही थी, जहाँ पर उसने त्रिकालदर्शी को आखिरी बार देखा था। थोड़ी देर और उस तरफ देखने के बाद भी जब नारायण को त्रिकालदर्शी की झलक नहीं दिखी, तो उसने एक बेहद ही कठिन फैसला किया।
"त्रिकालदर्शी तुम मेरी आँखों के सामने इन्हीं लहरों के साथ गायब हुए थे न, इसलिए मैं तुम्हें अब इन्हीं लहरों के बीच खोजूंगा। मैं तुम्हें खोजने के लिए आ रहा हूँ त्रिकालदर्शी, बस इतना याद रखना मुझे तैरने नहीं आता।"
उन लहरों की ओर देखते हुए नारायण ने अपनी चेतावनी दी और अगले ही पल उसने गंगा में छलांग लगा दी। नारायण को वास्तव में तैरना नहीं आता था, इसलिए पानी में जाने के साथ ही वो नीचे की ओर जाने लगा।
नारायण पानी के अंदर अपनी साँसों को रुकते हुए महसूस कर रहा था, लेकिन उसकी निगाहें अभी भी त्रिकालदर्शी की तलाश में थी, "तुम्हें मेरे पास आना ही होगा, वरना आज मैं इसी पानी में डूब जाऊंगा और फिर ब्रह्मांड के संतुलन को कोई चाहकर भी ठीक नहीं कर सकेगा।"
इन बातों को सोचकर नारायण के चेहरे पर संतोष था। लेकिन ठीक तभी किसी ने नारायण के हाथों को पकड़ा और वो उसे खिंचकर पानी से बाहर ले जाने लगा। ये एहसास होते ही नारायण के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई, "तुम आ गए त्रिकालदर्शी, तुम आ गए।" पानी से निकलते हुए नारायण यही बड़बड़ाते जा रहा था। लेकिन, उसे सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब पानी से बाहर आकर उसने खुद को बचाने वाले शख्स का चेहरा देखा।
"आप, आपने मुझे क्यों बचाया बाबा? मैं इस पानी में किसी की तलाश करने के लिए कूदा था।" नारायण जिससे ये सब कह रहा था, वे एक साधू थे और उन्होंने ही नारायण की जान बचाई थी।
नारायण की बातों को सुन साधु ने किनारे पर रखे अपने सूखे कपड़े को पहनते हुए नारायण से कहा, "तुम जिसे खोजना चाह रहे हो, वो ऐसे नहीं मिलता। मुझे पता है, वो तुम्हें एक बार दर्शन दे चुका है। इसलिए अब तुम ये भरोसा रखो की अगर जरूरत होगी, तो वो दूसरी बार भी तुमसे जरूर मिलेगा। इसलिए अब अपनी व्यर्थ की जिद छोड़ो और अपने कर्म पर ध्यान दो।"
साधु की बातों को सुनकर नारायण को अब समझ आ गया था कि वो त्रिकालदर्शी से ऐसे नहीं मिल सकता। इसलिए उसने साधु को दंडवत होकर प्रणाम किया और वहाँ से जाने के लिए निकल गया।
त्रिकालदर्शी से मिलने के बाद नारायण को कई सवालों के जवाब तो मिले थे, लेकिन उसकी समस्या अभी भी खत्म नहीं हुई थी और ये सोचकर उसका मन व्याकुल हो रहा था। इसलिए मणिकर्णिका घाट से निकलने के बाद नारायण एक बार फिर पंडित रामनारायण के घर पहुँचा और अभी वो उनके सामने खड़ा था।
"आपके चरणों में मेरा शत शत नमन है गुरुजी, जो आपने मुझे मणिकर्णिका घाट की ओर भेजा। वहाँ त्रिकालदर्शी ने मुझे दर्शन दिए गुरुजी और उसने मेरे सवालों का जवाब भी दिया।" गुरुजी से अपनी बातों को कहते हुए नारायण पहले से थोड़ा चिंतामुक्त तो हो गया था, लेकिन उसकी बेचैनी अभी भी साफ झलक रही थी।
ये देख पंडित रामनारायण ने उसके सर पर अपना हाथ रखते हुए भभूत उसके माथे में लगा दिया और उससे कहा, "लगता है नारायण तुम्हें अपने सवालों का जवाब तो मिल गया, लेकिन तुम्हारी बेचैनी अभी तक खत्म नहीं हुई है। बताओ नारायण, आखिर वहाँ पर क्या हुआ था.?"
पंडित रामनारायण की बातों को सुन नारायण ने उनसे कहा, "गुरुजी, त्रिकालदर्शी ने मुझे बताया है कि किसी ने ब्रह्मांडीय संतुलन के साथ छेड़छाड़ की है और इसी की वजह से मेरी कुंडली में ये सब हो रहा है। उनका कहना है कि मुझे ही ये सब ठीक करना होगा, क्योंकि इस असंतुलन का सबसे पहला शिकार मैं बना हूँ।"
नारायण की बातों को सुनकर पंडित रामनारायण के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आये थे और वो बड़े ही ध्यान से नारायण को देख रहे थे। पंडित रामनारायण को इस तरह अपनी ओर देखता देख, नारायण को थोड़ा अजीब तो लगा, लेकिन उसने अपनी बातें बतानी जारी रखी।
"गुरुजी, उन्होंने मुझे मेरी समस्या के बारे में तो बता दिया, लेकिन बात जब समाधान देने की आई, तो वो मुझे बीच मझधार में छोड़कर चले गए। उन्होंने कहा है कि जवाब मेरी आँखों के सामने है और मेरी कुंडली से जुड़ा है, जिसे मुझे ही खोजना है। अब आप ही बताइए, इसे मैं कहाँ खोजूं.?" गुरुजी से ये सब कहते हुए नारायण के चेहरे पर बेचैनी थी, तो उधर नारायण की बातों को सुनकर गुरुजी के चेहरे पर मुस्कुराहट उभर आई।
"नारायण, हम जो चाहते हैं, जरूरी नहीं हमें उसका जवाब तुरंत मिल जाए। इसलिए थोड़ा धीरज रखो। वैसे भी अगर त्रिकालदर्शी ने स्वयं तुम्हें दर्शन देकर बताया है, तो सचमुच तुम्हारे अंदर जरूर कोई खास बात छिपी हुई है। खुद पर अपना भरोसा और मजबूत करो नारायण, तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब जरूर मिलेगा।" नारायण से इतना कहकर पंडित रामनारायण अपने बिस्तर पर लेट गए।
अचानक पंडित रामनारायण के चेहरे के भाव बदलने लगे थे, लेकिन नारायण का ध्यान इन पर नहीं था। उसने पंडित रामनारायण से कहा, "गुरुजी, क्या आप भी कभी त्रिकालदर्शी से मिले हैं? वैसे अगर उसके पास इतना ज्ञान है, तो फिर उनकी उम्र दस साल के बालक जितनी क्यों है.?"
नारायण के इस सवाल को सुनकर पंडित रामनारायण की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गई और उन्होंने हैरान होते हुए नारायण से कहा, "क्या उनकी आयु बस दस साल के बच्चे जितनी थी? नारायण तुम उनके दर्शन की बात कर रहे हो। अरे उनसे मिलना तो छोड़ो, पिछले सैकड़ो सालों से किसी ने उनकी झलक भी नहीं देखी है। मेरे कहने पर तुम वहाँ गए और उन्होंने तुम्हें दर्शन भी दिए, मेरे लिए यही बात स्वर्ग प्राप्ती के समान है नारायण।"
नारायण से ये कहते हुए पंडित रामनारायण की आँखों में खुशी के आँसू भर चुके थे और उनकी जुबान भी लड़खड़ाने लगी थी। उनकी ये हालत देख नारायण ने उन्हें पीने के लिए पानी दिया और उनसे कहा, "गुरुजी, अगर उनका दर्शन इतना ही दुर्लभ है, तो फिर मुझे मेरे सवालों का जवाब कौन देगा? आखिर मैं अकेले इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ूंगा?"
नारायण की बातों को सुन पंडित रामनारायण के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान फैल गई और उन्होंने नारायण से कहा, "त्रिकालदर्शी ने स्वयं तुम्हें दर्शन दिया है, तो इसका मतलब है कि अब तुम्हारा मार्ग निश्चित है नारायण। इसलिए जाओ और अपने कर्म पर ध्यान दो। बाकी सब अच्छा होगा।"
नारायण चुप था, तभी पंडित रामनारायण ने उससे आगे कहा, "नारायण इधर आओ। तुमने जिन नेत्रों से त्रिकालदर्शी का दर्शन किया, मुझे उन नेत्रों को छूना है नारायण।"
पंडित रामनारायण की इन बातों को सुनकर नारायण को थोड़ा अजीब तो लगा, लेकिन फिर भी वो उनके पास गया और उनके हाथों को अपनी आँखों पर रख दिया। थोड़ी देर तक ऐसे ही रहने के बाद भी पंडित रामनारायण ने जब अपने हाथों को नहीं हटाया, तब नारायण ने उनसे कहा, "गुरुजी, मैं आपके हाथों को हटा दूं?"
नारायण के इस सवाल का भी पंडित रामनारायण ने कोई जवाब नहीं दिया। ये देख नारायण को बेहद आश्चर्य हुआ और जब उसने अपनी आँखों को खोला, तो उसे काफी तेज झटका लगा।
"गुरुजी.. आप भी मुझे छोड़कर कैसे जा सकते हैं?" पंडित रामनारायण की सांसें अब थम चुकी थी और ये देख नारायण की आंखों से आँसू निकलने लगे। नारायण की चीखों को सुनकर पंडित रामनारायण का सेवक दौड़ते हुए आया।
उसे दरवाजे पर खड़ा देख नारायण ने उससे कहा, "गुरुजी अभी मुझसे बात कर रहे थे और वो अचानक ही हमें छोड़कर चले गए।"
नारायण की बातों को सुनकर पंडित रामनारायण के सेवक के चेहरे पर भी मायूसी छा गई थी और उसकी भी आँखें भर आई। तभी अचानक उसे कुछ याद आया और उसने दौड़ते हुए पंडित रामनारायण की आलमारी खोल दी। थोड़ी देर तक उसमें कुछ ढूंढने के बाद उसके हाथों में एक कागज लगा, जिसे देख उसकी आँखें और भी बड़ी हो गई।
उस लड़के ने कागज के टुकड़े को नारायण की ओर बढाते हुए कहा, "गुरुजी ने आज से दस साल पहले ही अपनी मौत की तारीख तय कर ली थी। देखिए इस पर उन्होंने क्या तारीख दर्ज की है?"
उस लड़के की बातों को सुनकर नारायण ने जब उस कागज को देखा, तो उसके भी होश उड़ गए। क्योंकि उस कागज के टुकड़े पर ठीक आज की ही तारीख अंकित थी। ये देख नारायण आगे बढ़कर पंडित रामनारायण के चरणों में गिर गया, "गुरुजी आपके जैसा ज्योतिषी इस दुनिया ने ना देखा होगा और ना ही देख पायेगा। अरे जीवन के बारे में बताने वाले ज्योतिषी तो बहुत होंगे, लेकिन अपनी मौत को तारीख से बांधने वाला इस दुनिया में और कोई नहीं होगा।"
पंडित रामनारायण से आखिरी बार आशीर्वाद लेने के बाद नारायण ने उस लड़के की ओर देखते हुए कहा, "इनका इस दुनिया में और कोई भी नहीं है। इसलिए लोगों को खबर करते हैं और इनके अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू करते हैं।"
नारायण की बातों को सुनकर उस लड़के ने अपने आसपास के लोगों को खबर कर दी। लेकिन, थोड़े ही देर में ये खबर पूरे बनारस में फैल गई और पंडित रामनारायण को विदा करने के लिए सब लोग सड़कों पर उतर आए। आज काशी के सारे गणमान्य लोग पंडित रामनारायण की अंतिम यात्रा में शामिल थे और उनकी इस यशगाथा को नारायण भी महसूस कर रहा था।
थोड़े ही देर में नारायण एक बार फिर से मणिकर्णिका घाट पर खड़ा था। पंडित रामनारायण की चिता भी सज चुकी थी और उनके सेवक ने उन्हें मुखाग्नि दी। पंडित नारायण की जलती हुई चिता को देख सबकी आंखें नम थी, तो उधर नारायण ने भी एक जरूरी निर्णय ले लिया था।
"नारायण, सारे ज्ञानी लोगों का कहना है कि मुझे ही ये ठीक करना होगा। वे लोग बिना सोचे कुछ भी नहीं बोलते, इसलिए तुम्हें अब ये करना ही होगा। वैसे भी जो बात त्रिकालदर्शी की इच्छा और पंडित रामनारायण की अंतिम इच्छा हो, उसे तुम ऐसे नहीं छोड़ सकते।" ये फैसला करने के बाद अब नारायण को काफी अच्छा महसूस कर रहा था।
उधर पंडित रामनारायण की चिता जल चुकी थी और उसकी राख ठंडी हो रही थी। सूरज भी अब डूबने को था और घाट पर उस चिता के सामने सिर्फ नारायण और पंडित रामनारायण का सेवक बैठे हुए था।
नारायण वहाँ से उठकर वापस जाना चाहता था, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था, वो किस ओर जाए। तभी उसके फोन की घंटी बजी। नारायण ने तीन दिनों बाद आज अपना फोन ऑन किया था और फोन ऑन करते ही घर से कॉल आते देख नारायण चौंक गया।
नारायण को घबराहट तो काफी हो रही थी। फिर भी उसने डरते हुए फोन उठाया और फोन उठाते ही उसके कानों में चिंतामणि की आवाज गूँजी, "बाबा, आप जितनी जल्दी हो सके घर आ जाइये।"
चिंतामणि ने इतना कहा ही था कि कॉल कट हो गया। चिंतामणि द्वारा घबराहट में कहे गए इन शब्दों को सुनकर नारायण की भी हालत खराब होने लगी थी।
आखिर क्यों नारायण को इतनी जल्दी घर बुला रहा है चिंतामणि.?
त्रिकालदर्शी द्वारा बताए गए रास्ते पर चलने के लिये अब किसका सहारा लेगा नारायण.?
क्या पंडित रामनारायण की मौत, त्रिकालदर्शी और नारायण के बीच भी है कोई संबंध.?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!
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