नारायण कल रात अपने सपने में दिखे टूटे तारों की वजह से जितने टेंशन में नहीं था, उससे ज्यादा टेंशन उसे सुबह जागने के बाद होने लगी थी। पहले हाथ पर उभरे प्राचीन यंत्र के निशान और उसके बाद अब घर के दीवाल पर लिखी बातें नारायण को काफी परेशान कर रही थी।
घर के दिवाल पर लिखा हुआ "काल आ रहा है" नारायण के दिमाग में बार बार कौंध रहा था। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ये सब कौन कर रहा है। तभी उसकी पत्नी राधिका ने उससे कहा, “ये सब आखिर क्या हो रहा है और आप चुप क्यों खड़े हैं? आप जाकर अपने चॉल वालों से पूछते क्यों नहीं हैं कि ये सब उनमें से किसने किया है?”
राधिका की बातों को सुन रहा नारायण उसपर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा था, क्योंकि उसके दिमाग में इसवक्त कुछ और ही चल रहा था, “अब मैं राधिका को कैसे बताऊँ कि कल रात मेरे हथेली पर भी एक निशान उभर आया है। इसलिए हमारे दीवाल पर ये सब लिखने वाला भी हमारा पड़ोसी नहीं, बल्कि कोई और ही होगा।”
इन बातों में खोया नारायण वहीं चुपचाप खड़ा था। ये देख राधिका ने उससे कहा, “आपको चुप रहना है तो आप रहिए, लेकिन मैं इनलोगों को नहीं छोड़ूंगी। इस चॉल में हम इतने सालों से रह रहे हैं, लेकिन आज तक किसी की भी मुझसे मुँह लगाने की हिम्मत नहीं हुई और मैं आगे भी ऐसा नहीं होने दूँगी।”
नारायण से इतना कहकर राधिका सीढ़ियों से दौड़ते हुए नीचे उतरी और चॉल के बीचोंबीच खड़ा होकर हल्का करने लगी। उधर अपने दीवाल पर लिखी बातों को देख रहा नारायण अभी भी वहीं खड़ा था। नारायण को अपने दिमाग में इस वक्त सैकड़ो वोल्ट का करंट लगने का एहसास हो रहा था।
"त्रिकालदर्शी, लगता है तुम जिस मुसीबत के आने की बात कर रहे थे, वो आ चुका है। अगर ऐसा हो गया है नारायण, तो तुम अब क्या करोगे। तुम इससे आखिर कैसे लड़ोगे नारायण?" इन बातों को सोच रहा नारायण अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था।
एक ओर नारायण अपने सितारों और इन संदेशों के बीच कनेक्शन जोड़ने में व्यस्त था, तो उधर उसकी पत्नी राधिका ने हल्ला करके पूरे चॉल को नीचे जमा कर लिया था। लेकिन नारायण का ध्यान अभी भी उस ओर नहीं था।
तभी उसकी बेटी आभा ने उसे झकझोरते हुए कहा, “बाबा.. बाबा.. आप यहॉं क्यों खड़े हैं? नीचे आई ने पूरे चॉल को जमा कर लिया है और वो सबको भला बुरा कहते जा रही है। आप तुरंत नीचे चलिए बाबा।”
बेटी को यूँ घबराते देख नारायण से भी रुका नहीं गया और वो तुरंत दौड़ते हुए नीचे जाने लगा। नारायण जबतक वहाँ पहुँचा, तो चॉल के सारे लोग बाहर निकल गए थे। उसे हर तरफ लोग फुसफुसाते हुए नजर आ रहे थे और बीच में खड़ी राधिका चीखते हुए उन सारे लोगों को कोस रही थी।
"तुम सबसे हमारी तरक्की देखी नहीं जा रही, तो अब तुमलोग हमारे घर पर उलूल जुलूल बातें लिखकर जा रहे हो। अरे मेरे पति को तो पूरे देश के लोग जानने लगे हैं। तुमसब से यही हजम नहीं हो रहा है न?" इन बातों को चीख चीखकर कहते हुए राधिका का गला बैठने लगा था।
ये देख नारायण ने अपनी पत्नी को रोकते हुए कहा, "अब बस भी करो राधिका। मुझे लगता है, ये सब हमारे चॉल में से किसी ने नहीं किया है। चलो घर चलो।" नारायण ने इतना कहकर राधिका का हाथ पकड़ा, तो राधिका ने तुरंत नारायण के हाथों को झटक दिया।
"आप बिल्कुल चुप हो जाइए। मुझे पता है, ये सब इन्हीं में से किसी ने किया है। अरे ये लोग हमारी बराबरी नहीं कर सकते, तो अब हमसे जलने पर उतर आए हैं। लेकिन इन्हें नहीं पता, ये राधिका इन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी।" राधिका का गुस्सा आज सातवें आसमान पर था। नारायण उससे बार बार वहाँ से चलन की विनती कर रहा था, लेकिन राधिका उसकी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं थी।
ये देख वहीं खड़े एक आदमी ने हँसते हुए कहा, “नारायण भाई, भाभी को ले जाओ। वरना हम क्या आपसे जलेंगे, ये खुद ही आपका घर जला डालेंगी। भला औरत होकर भी कोई इतना बोलता है क्या?”
उस शख्स की बातों को राधिका ने सुना ही था कि वो उसपर भी बरस पड़ी, “अरे भाई साहब आप इनसे क्या बोल रहे हैं। अगर हिम्मत है तो मुझसे बोलकर देखिए। रही जलाने की बात तो मेरे गुस्से से मेरा घर जेल या ना जले, मैं इस चॉल को जरूर जलाकर ही दम लूंगी।”
राधिका ने इतना कहा ही था, तभी वहाँ अचानक एक दूसरे शख्स की आवाज गूंजी, “पति ट्रेन की बोगी को जलते हुए देख रहा था और यहाँ पत्नी चॉल को जला रही है। क्यों भाई नारायण, तुमलोग शांति से रहोगे या नहीं?”
इस जानी पहचानी आवाज को सुन नारायण पीछे मुड़ा, तो ये कोई और नहीं बल्कि इंस्पेक्टर सिद्धार्थ ही था। नारायण का नाम ट्रेन में हुए विस्फोट से क्लियर तो हो गया था, लेकिन सिद्धार्थ की नजरों में असली दोषी वही था, इसलिए उसने अभी भी हार नहीं मानी थी। वो नारायण के घर के तरफ ही घूमते रहता था और आज चॉल में लगी भीड़ को देख वो वहां चला आया।
इंस्पेक्टर सिद्धार्थ को देख और उसके सवालों को सुनकर नारायण उसे कोई जवाब देता उससे पहले ही चॉल में रहने वाले दूसरे लोग आगे बढ़कर नारायण की शिकायत करने लगे।
"इंस्पेक्टर साहब, जब से ये लोग मीडिया में आए हैं, तभी से ये सबके ऊपर दादागिरी करने लगे हैं। ये किसी को भी धमकी देते हैं और हमारा घर जलाने की भी बात कर रहे हैं। हमें बचा लीजिए इंस्पेक्टर साहब।" कई सारे लोग इंस्पेक्टर सिद्धार्थ से यही बातें कह रहे थे और ये सब सुनकर सिद्धार्थ के चेहरे पर एक शैतानी हँसी फैल गई।
लोगों की बातों को सुनते हुए सिद्धार्थ आगे बढ़ा और नारायण के पास जाकर खड़ा हो गया। ये देख नारायण ने सिद्धार्थ से घबराते हुए कहा, “मेरे घर के दिवाल पर किसी ने कुछ फालतू बातें लिख दी हैं। इसी वजह से राधिका बस गुस्से में इनलोगों से उलझ पड़ी। ये लोग जैसा कह रहे हैं, वैसी कोई भी बात नहीं है।”
नारायण घबराकर अपनी सफाई दे तो रहा था, लेकिन सिद्धार्थ को उसकी सफाई से ज्यादा इंट्रेस्ट नारायण को डराने में आ रहा था। उसने बेहद ही गंभीर होते हुए नारायण से कहा, “नारायण अगर कोई तुम्हें परेशान कर रहा है, तो तुम हमारे पास आओगे न। इसके बाद हम तुम्हारी कंप्लेंट पर कारवाई करेंगे। लेकिन, तुम तो खुद ही कानून को अपने हाथों में लेने लगे हो। आखिर तुमने खुद को समझ क्या रखा है नारायण?”
इंस्पेक्टर सिद्धार्थ की बातों से नारायण को साजिश की बु आने लगी थी। इसलिए उसने सिद्धार्थ से ज्यादा बात करना सही नहीं समझा और राधिका का हाथ पकड़ते हुए बोला, “चलो राधिका, घर चलते हैं।”
राधिका का हाथ पकड़ते हुए नारायण ने सिद्धार्थ की ओर भी देखा और उससे बोला, “इंस्पेक्टर आपकी और मेरी कोई जातीय दुश्मनी नहीं है, फिर भी मैं आपके इरादों को समझ रहा हूं। खैर हम ऐसा मौका कभी आपको नहीं देंगे और अभी भी मैं इन सारे चॉल वालों से माफी माँगता हूं।”
सिद्धार्थ से इतना कहकर नारायण अपनी पत्नी और बेटी को लेकर वहां से जाने लगा। सिद्धार्थ भी जानता था, ये बेहद ही छोटा मामला है, इसलिए उसके नारायण को रोकने की कोशिश तो नहीं की, लेकिन मन ही मन वो गुस्से से उबल रहा था, “तुम अभी तो बच जा रहे हो नारायण, लेकिन ये सब कितने दिन चलेगा। तुम एक न एक दिन मेरे जाल में जरूर फंसोगे और उस दिन मैं तुमसे अपनी बेइज्जती का तो बदला लूंगा ही, साथ ही तुम्हारे हर एक गुनाह की सजा भी तुम्हें जरूर दूँगा।”
इन बातों को सोचते हुए सिद्धार्थ नारायण को घूरते हुए वहां से चला गया। उधर नारायण भी अपनी पत्नी और बेटी को लेकर घर चला गया था। नारायण ने अपनी पत्नी के साथ अभी घर के भीतर कदम रखा ही था, तभी राधिका ने उसके ऊपर भड़कते हुए उससे कहा, “आप आखिर कब तक उस इंस्पेक्टर की बातों को सुनते रहोगे।आप उसकी कंप्लेंट क्यों नहीं कर रहे हो?”
राधिका की बातों को सुन नारायण ने उसे समझाते हुए कहा, “भला इस सब का क्या फायदा होने वाला है राधिका? तुम झूठ का बात क्यों बढ़ा रही हो?”
नारायण के मुँह से इतना सुनते ही राधिका उसके ऊपर बुरी तरीके से बरस गई, “आप अपना मुंह बंद कर लीजिए। अरे आपको पैसा मिला, भगवान ने आपको अलग पहचाना बनने का मौका भी दिया, लेकिन फिर भी आपके ऊपर कोई असर नहीं पड़ रहा है। आपको चाहे भगवान कितने भी मौके दे, आप वही रह जाएंगे, जो आप पहले थे। कंप्लेन नहीं कर सकते, तो कम से कम मीडिया में बनी पहचान का तो फायदा उठा सकते थे न?”
राधिका की बातों को सुन नारायण की निगाहें उसी के ऊपर ठहर गई और उसने बेहद धीमी आवाज में कहा, “तुम मुझसे क्या चाहती हो, जब भी हमारा किसी से विवाद हो, हम तुरंत मीडिया बुलाएं और सबकुछ पूरी दुनिया को बता दें। अरे मीडिया वाले तो आ भी जायें, क्योंकि उन्हें यही सब दिखाना है, लेकिन हमें तो सोचना होगा न राधिका की आखिर क्या गलत है और क्या सही?”
नारायण, राधिका को समझाने की कोशिश तो कर रहा था, लेकिन उसकी हर कोशिश विफल हो जा रही थी। उसकी बातों को सुन राधिका ने और भी तेज आवाज में कहा, “मुझे कुछ नहीं पता, उनलोगों ने मेरे दीवाल पर कालिख पोती है और मुझे बस इसकी सजा उन्हें देनी है।”
राधिका की जिद को देख नारायण अपना सर पकड़ वहीं खड़ा हो गया। उधर राधिका का बड़बड़ाना अभी भी जारी था। तभी उनके बेटे चिंतामणि ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और तेज आवाज में बोला, “आई मैं अपनी किताब पढ़ रहा हूँ और फिर मुझे गुरुजी की क्लास भी करनी है। आप हल्ला मत कीजिये।”
चिंतामणि से इतना सुनते ही राधिका बिल्कुल चुप हो गई और चिंतामणि अपने कमरे में चला गया। ये देख नारायण ने राहत की सांसें ली, लेकिन उसे कुछ खटक रहा था और उसने तुरंत राधिका से कहा, “चिंतामणि अभी किस किताब की बात कर रहा था और वो किस गुरु की क्लास करने वाला है? ये सब आखिर चल क्या रहा है?”
नारायण को यूँ सवाल करते देख राधिका के चेहरे पर अब शिकन साफ नजर आने लगी थी। ये देख नारायण भी समझ गया कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ जरूर है। इसके बाद जब उसने दो तीन बार सख्ती से राधिका से पूछा, तो राधिका ने उससे कहा, "आप गुस्सा मत कीजियेगा। वो दरअसल आप जब बनारस गए थे, तो चिंतामणि को ज्योतिष का ज्ञान हासिल करना था। इसलिए उसने जब इससे जुड़ी किताब मंगाई, तो वो तांत्रिक ग्रंथ की किताब निकली।"
राधिका से इतना सुनने के साथ ही नारायण के माथे से पसीना निकलने लगा और उसने तुरंत राधिका की ओर देखते हुए कहा, “लेकिन, चिंतामणि ने वो किताब नहीं लौटाई और वो उसे ही पढ़ने लगा। उसके गुरुजी भी उसे इसी तरह से मिले हैं?”
नारायण की बातों को सुन राधिका ने नजरें चुराते हुए कहा, “हाँ, उस किताब में ही एक अनजान साधक के बारे में भी लिखा हुआ था, जिससे ऑनलाइन जुड़कर भी बातें की जा सकती हैं। इसलिए चिंतामणि उस तांत्रिक क्रियाओं से जुड़े ग्रंथ को पढ़कर साधक से उन्हें समझ रहा है।”
राधिका की बातों को सुन नारायण के पैरों तले जमीं खिसकने लगी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसका बेटा भी ये सब कर सकता है। उसने राधिका की तरफ देखते हुए कहा, “हम अभी किस दौर से गुजर रहे हैं, तुम्हें इसका अंदाजा भी नहीं है राधिका और इस बीच में चिंतामणि का ये कदम हमारे पूरे परिवार को बर्बाद कर सकता है। ज्योतिष और तंत्र मंत्र बिल्कुल अलग चीजें है राधिका, तुम्हें उसे वो किताब नहीं पढ़ने देनी चाहिए थी।”
नारायण की बातों को सुन राधिका चुप थी। तभी नारायण अपनी जगह से उठा और वो जाकर चिंतामणि के कमरे का दरवाजा खटखटाने लगा। "दरवाजा खोलो चिंतामणि। तुम्हें ज्योतिष सीखना था, तो उसके लिए घर में सैकड़ो किताबें पड़ी हैं, फिर भी तुम ऐसी तंत्र मंत्र की किताबें कैसे पढ़ सकते हो?"
नारायण आज काफी गुस्से में था। लेकिन चिंतामणि ने दरवाजा नहीं खोला। ये देख नारायण ने एक बार फिर से चीखते हुए कहा, “दरवाजा खोला चिंतामणि, वरना अंजाम सही नहीं होगा। तुम्हें ये किताब फेकनी ही होगी।”
नारायण ने किताब के बारे में इतना कहा ही था, तभी चिंतामणि ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और नारायण की आँखों में आँखें डालते हुए उससे बोला, “आप क्यों बकवास कर रहे हैं बाबा। आप अभी नहीं जानते, आप कौन हैं!”
चिंतामणि की इन बातों को सुनकर नारायण सन्न था और तभी चिंतामणि ने दरवाजा बंद कर लिया।
क्या किसी साजिश के तहत किसी ने चिंतामणि को दी है वो किताब?
अपने परिवार पर आए इस संकट से आखिर कैसे निपटेगा नारायण?
जिनका ब्रह्मांड को असंतुलित करने में है हाथ, क्या वही खेल रहे हैं नारायण के परिवार के साथ ये खेल?
जानने के लिए पढ़ते रहिए STARS OF FATE.
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