इंद्रपुरी से पक्षियों के चले जाने के बाद इंद्रपुरी का माहौल अजीब भयावह हो गया था। कोई चुहल पहल दिखाई सुनाई नहीं पड़ती थी। इतने पक्षियों को मारा गया था कि उनको भूनने की गंध इंद्रपुरी में चारों ओर फैली हुई थी। एक तो नाले की गंध, फैक्ट्री की गंध और ऊपर से अब यह पक्षियों को भूनने की गंध। इंद्रपुरी पूरा गंधाने लगा था।
लोग तो जैसे थे वैसे ही थे, उसी गरीबी और दरिद्रता में दिन काट रहे थे। दिनचर्या जैसी कोई चीज किसी के पास थी नहीं। लेकिन अपने चुन्नी बाबू उर्फ परम प्रतापी को ये सड़ी गली जिंदगी बर्दाश्त नहीं थी। वो दिन रात यही सोचते कि किसी भी तरह से इस क्लेश को काटा जाए। कोई अच्छा काम धाम पकड़ा जाए , रुपयों की व्यवस्था हो और गाड़ी चल पड़े।
लेकिन भैया अब क्या बताऊं। ये इंद्रपुरी है। यहां गाड़ी चलती कहां है? या तो तेजी से निकल जाती है धड़क धड़क या फिर आकर रुक जाती है। और फिर यहीं से शुरू होती है कहानियों की कहानी...
बेलू कक्का अपनी चाय की दुकान में चाय बनाने में व्यस्त थे। अदरक कूटना, चीनी डालना, चाय की पत्ती झोंकना। बेलू कक्का का हाथ इतना सधा हुआ था कि कस्टमर के मांगने से पहले उसे चाय पकड़ा देते।
तो सुबह सुबह काम की तलाश में अपने चुन्नी बाबू भी बेलू की दुकान पर आ खड़े हुए, सोचा एक कप चाय पी लें फिर भटका जाए। अगर भगवान मुझे भटकाना ही चाहता है तो भटकाए इसमें उसी की बदनामी है, चुन्नी की थोड़ी।
तो अपनी आदत से मजबूर, दुकान पर चुन्नी को आते देख बेलू ने चाय कुल्हड़ में डालकर उसके आगे कर दी। चुन्नी ने झेंपते हुए कुल्हड़ थाम लिया। यह झेंपना इसलिए था कि पिछली उधारी चुकी नहीं थी अभी और ऐसे ही चाय चलती रही तो उधारी उधारियों में बदल जाएगी। चाय की पहली चुस्की लेते ही उनकी तंद्रा टूटी। कुछ करने का हौसला बंधा लेकिन किया क्या जाए। थोड़ी देर में वहां लल्लन लाला भी आ गए और कुछ देर में मटकते मटकते रामकृपा पंडित भी आ पहुंचे।
लल्लन के आते ही चुन्नी बाबू थोड़ा असहज हुए लेकिन जब देखा कि पंडित भी साथ ही चले आ रहे हैं तो उनका दिल जोर से धड़कने लगा। साला सुबह सुबह राहु केतू दोनों एक साथ।
दुआ सलाम हुई आपस में फिर पंडित ने पूछा कहो प्रतापी जी, कोई काम धाम लगा या नहीं लगा। कब तक उधारी की चाय पेलते रहोगे
प्रतापी जी को बात जमी नहीं। चाय का आखिरी घूंट लेते सुड़कते हुए बोले, पंडित जी, कम से कम मैं जो चाय पीता हूं उसे उधारी की चाय कहते हैं। उसमें चायवाले को उम्मीद रहती है कि पैसे कभी न कभी मिल ही जायेंगे। लेकिन आप कौन सी चाय पीते हैं? ना कभी पैसे ही देते हैं न उधारी ही बंधाते हैं?
इसपर चायवाला हंस पड़ा। प्रतापी जी को बोला, आज की चाय के पैसे नहीं लूंगा। भगवान को प्रसाद चढ़ गया। ऐसा ही समझ लीजिए। इसपर लल्लन लाला भी हंसे, खोमचे वाले हंसे, आती जाती काम वालियां हंसी, प्रतापी जी हंसे और तो और बर्तन गिलास चूल्हा चूहा और पास खड़ा मरियल सा कुत्ता भी हंसने लगा।
पंडित को यह बात चुभ गई। झेंपते हुए बोला, अरे खिसियातें क्यों हो भाई प्रतापी जी, हम तो आपके भले के लिए ही बोलते हैं। आप ऊंचे कुल के हैं। ऊंचे कुल के लोगों को यूं बेरोजगार भटकता हुआ देखना अच्छा नहीं लगता, नारायण नारायण
तो क्या किया जाए, आपकी तरह बांध लूं पियरी गमची, नारायण नारायण बोलने लगूं। दुनिया आपकी तरह हो जाएगी पंडित जी तो कौन करेगा मेहनत, कौन चाय पिलाएगा और सबसे बड़ी बात फिर आपका धंधा चलेगा कैसे
लल्लन लाला की ओर मुखातिब होते हुए चुन्नी बोले, लाला जी , झुन्नी काकी बता रही थीं कि इंद्रपुरी में कोई पंडित दो बटेर लिए हुए मंदिर की ओर भागा था? पता चला कौन था वो? हमारे रामकृपा तो ऐसे एकदम नहीं हैं। मुंह से चाहे जैसे हों, पूजा पाठ के पक्के हैं।
बस डूबते को तिनके का सहारा। ऐसे तो पंडित को प्रतापी जी की बातें छीलती जा रही थीं लेकिन आखिरी वाक्य सुनकर थोड़ा मन हल्का हुआ। बात बदलते हुए बोले,
अच्छा अच्छा हटाइए ये सब, ये बताइए कोई काम धाम मिला?
नहीं मिला समझ नहीं आ रहा क्या करूं। कैसे करूं
अब चुन्नी के इस जवाब में पूरा इंद्रपुरी जवाब देने लगा। लाला ने कहा धंधा शुरू करो। बेलू कक्का ने कहा खोमचा लगाओ, पंडित ने कहा ठेला खींचो, खोमचे वालों ने कहा मोची बन जाओ, मारियल कुत्ते ने कहा अंडे की ठेली लगा लो, बर्तन ने कहा कुम्हार बन जाओ, चूहे ने कहा हलवाई की दुकान डाल लो, ऊपर पेड़ पर बैठे कौवे ने कहा चूरन बेचो
सबने कुछ न कुछ सलाह दी
आती जाती काम वालियों ने कहा कि बर्तन चाकर करना शुरू कर दो, पैसा भी मिलेगा, खाने को भी मिलेगा और अलग अलग घरों में थोड़ी थोड़ी देर रहने को भी मिलेगा
लेकिन पटरी के किनारे झाड़ियों में आराम से लेटे हुए अजगर ने अंगड़ाई लेते हुए कहा,
अजगर करे न चाकरी
पंक्षी करे न काम
दास मलूका कह गए
सबके दाता राम
इसपर पंडित रामकृपा हो हो करके हंसे और बोले, देख रहे हैं कैसा घोर कलियुग है, नागराज एक बकरी निगल कर बैठे हैं और मुंह से राम नाम निकालते हैं।
पंडित की ये बात सुनकर, उनके सामने से गुजरती हुई झुन्नी काकी ने जोर से कहा, तेरा ही चेला है पंडित।
बहरहाल इन्हीं सब बातों में अपने प्रतापी जी को एक काम समझ आ गया था. और वह काम था कि जैसे भी हो इसी पटरी के दूसरी तरफ, यानी शहर में किसी के घर पर बर्तन चाकरी का काम पकड लिया जाए. लेकिन बर्तन चाकरी का काम? क्या इसी काम के लिए गाँव छोड़कर आये थे प्रतापी जी. क्या इन्हीं सब कामों को करने के लिए चुन्नी बाबू ने अपना नाम बदलकर परम प्रतापी रखा था. फिर उन्होंने मन ही मन खुद को समझाया. देखो भैया प्रतापी जी, ज़िंदा रहोगे तब न नाम का मतलब रहेगा. ऐसे तो भूखे मर जाओगे. चुपचाप चलकर किसी सेठ के घर पर नौकरी पकड़ी जाए. जो भी काम मिलेगा, जैसा भी काम मिलेगा. मेहनत से कर लिया जाएगा. दो पैसे आयेंगे और खाने को भी मिल जाएगा. क्या बुराई है. चलो पकड़ो काम.
इतना सब कुछ मन ही मन ठान लेने के बाद उन्होंने सबसे राम राम कहकर पटरी की ओर भागे लेकिन जाते जाते अजगर को बोलते गए, भाई घेंछु अजगर, अपना गुरु बदल लो, वरना किसी दिन बुरा फंसोगे.
अजगर को तो कुछ समझ नहीं आया. लेकिन चाय की दूकान पर बैठे बाकी सब इस बात को समझ गए और तपाक से हंस दिए. पंडित को बाद में समझ आया कि यह बात प्रतापी जी ने उसी के लिए कही थी.
अब चुन्नी पटरी के इस तरफ खड़े हैं. इस तरफ मतलब इंद्रपुरी से बाहर और शहर की सीमा पर. यहाँ का नजारा एकदम अलग है. यहाँ सबकुछ बहुत तेज है. तेज भागती चमकती दमकती गाड़ियां हैं, जैसा उन्होंने सपने में देखा था. बड़े बड़े आलिशान महल जैसे घर हैं, जैसा उन्होंने सपने में देखा था, बड़े बड़े खाने की दुकाने हैं जिन्हें रेस्त्रां कहा जाता है यहाँ, बाग़ बगीचे हैं, जैसा सपने में देखा था. अपने हुस्न का जलवा बिखेरती अप्सरा जैसी औरतें हैं, इनके सामने तो सपने वाली अप्सराएं भी फेल थीं. यह सब कुछ चुन्नी बाबू देख ही रहे थे तभी उन्हें ध्यान आया कि वो किसी अफसर की तरह शहर का मुआयना करने नहीं आये हैं, बल्कि काम की तलाश में किसी सेठ मालिक के यहाँ नौकर बन्ने आये हैं. चलकर पहले काम तलाशा जाए. शहर में घुस तो गए चुन्नी बाबू लेकिन शहर में पहली बार आये थे. शहर जितना अणि और आकर्षित करता उतना ही वह डरावना भी लगता. किसी भी चीज़ को छूने से डर पैदा होता . कहीं कोई काट न ले. कहीं कोई पीटने न लगे. सड़क का कोना पकड़कर धीरे धीरे से खिसकने के अंदाज़ में चलने लगे. यह रिहायशी इलाका था. यहाँ कई बड़े बड़े घर थे. चुन्नी वहां से गुजरते हुए लोगों से बार बार पूछते, मालिक कोई काम मिल जाएगा, मालिक कोई काम मिल जाएगा क्या,
भाई साहब कोई काम मिल जाएगा?
सुनिए चाचा कुछ काम मिल सकता है क्या?
वो आते जाते लोगों से बार बार यही सवाल पूछ ही रहे थे कि अचानक उन्हें एक मोची ने अपने पास बुलाया. बोला क्या बात है? कैसा काम मांग रहे हो?
चुन्नी बाबू ने कहा, कैसा भी चलेगा. बाहर से आया हूँ. काम चाहिए.
मोची ने कहा, सामने वाले घर में चले जाओ, उनकी काम वाली पिछले महीने एक छोकरे के साथ भाग गयी थी, तबसे दोनों एक नौकर की तलाश में है. अब आजकल कामवालियां मिलना बहुत मुश्किल है. जो मिलती हैं, वो चोरी बहुत करती हैं, ऊपर से पैसा खूब मांगती हैं. तुम वहां चले जाओ. कम बन जाए तो रोज़ का दस रुपया मुझे देना, तुम्हें काम दिलाने का मेहनताना और हाँ, घर के जूते चप्पल का कोई भी काम मिले तो मेरे पास ही ठीक कराने आना, वरना बुढिया के कान भर दूंगा और नौकरी से निकाले जाओगे. बुढिया रोज़ सुबह यहीं से घूमने निकलती है.
अपने चुन्नी उर्फ़ प्रतापी जी को तो बस काम चाहिए था. फ़ौरन भागते हुए घर में पहुचे. यह भी नहीं देखे कि बाहर दरवाजे पर कुछ लिखा भी है कि नहीं लिखा है.
धडधडाते हुए अन्दर घुसे तो साक्षात यमराज की तरह एक भयानक कुत्ता गुर्राते हुए सामने खड़ा था. प्रतापी जी की सारी प्रतापी इस समय जाने कहाँ गायब हो गयी. तुरंत मुंह से अम्मा की याद आई और वहीँ खड़े खड़े रोने लगे. अम्माssss अम्माsssss बचाओ बचाओ. आज तो मर गया.
वो जितना रोते कुत्ता उतना ही भौंकता.
तभी अन्दर से एक खूबसूरत महिला निकली. क्या बात है? कौन है तुम? क्या काम है? वाये आर यू मेकिंग नॉयस ?अरे बाबा वाये आर यू कराइंग?
अब चुन्नी को कहाँ अंग्रेजी आती. बस हुआँ हुआँ कर रोते जाते.
महिला समझ गयी कि कुत्ते के भौंकने से डर गया है ये. कुत्ते की ओर देखकर कहा, बेबी डोंट बार्क श श श.. साईलेंन्स।
कुत्ता एकदम चुप हो गया.
महिला ने चुन्नी से कहा, अरे चुप हो जाओ, वो खा थोड़े ही जाएगा. देखो, बंधा हुआ है. आदमी होकर डरता है तुम? बताओ किस लिए आया है तुम इधर.
कुत्ता बंधा है, यह सुनकर चुन्नी की जान में जान आई. बोले, काम खोज रहा हूँ दीदी. वो सामने मोची ने कहा कि इस घर में चले जाओ, वहां बुड्ढा बुढिया रहते हैं, उनकी कामवाली भाग गयी है. उन्हें एक नौकर की तलाश है, वो तुम्हें काम दे देंगे.
हाय रे भोलू चुन्नी. चुन्नी बाबू हमारे संकट में फंसते नहीं, बल्कि संकट में ही रहते थे. पहले तो उन्होंने उस महिला को दीदी कहा, बताओ भला, वो ‘दीदी’ जैसी दिखती है क्या? महीनों हजारों रुपये फिटनेस पर खर्च करती है और एक झटके में एक जाहिल ने उन्हें दीदी बना दिया.
अब दीदी बना दिया तब भी ठीक था. बुड्ढा बुढिया रहते हैं का क्या मतलब था. यह जो सामने महिला खड़ी थी- यही वो बुढिया थी, जिसे नौकर की तलाश थी. क्या होगा रे तेरा चुन्नी.
सामने खड़ी मिस चड्ढा के तो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी. एकबारगी तो उन्हें इतना गुस्सा आया कि कुत्ते को इस आदमी के ऊपर छोड़ दें, लेकिन हाय रे मज़बूरी. इस शहर में नौकर मिलते कहाँ हैं? तो गुस्से का घूंट पीकर उन्होंने उससे पूछा, अच्छा अच्छा. हाँ सीधे खड़े हो जाओ.
मैं ही हूँ इस घर की मालकिन. मुझे ही एक नौकर की तलाश है.
पर हमारे चुन्नी की बुद्धि का क्या ही करें:
झट से बोल पड़े, लेकिन वो मोची तो कह रहा था कि कोई बुढिया है जिसे नौकर की तलाश है...
हरी ॐ तत्सत
कुछ नहीं हो सकता अपने चुन्नी का.
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