​​​मैथिली धीरे-धीरे करते हुए जब उस पेड़ के पास पहुंची, उसकी आंखों ने जो देखा, उसे देख वो हक्का बक्का रह गई। वहां एक खाली कुर्सी पड़ी थी, जीतेंद्र ने जैसे ही उस कुर्सी को देखा, उसने मैथिली से कहा, ​​  

​​​जीतेंद्र (हैरानी से) : "मैथिली यहां तो कोई नहीं है...मुझे लगता है कि ज़रूर तुम्हें कोई ग़लत फ़हमी हुई होगी..."​​  

​​​मैथिली(इनकार करते हुए) : "नहीं...नहीं जीतेंद्र... मैंने यहां किसी को तो देखा था... मुझे अच्छे से याद है...."​​  

​​​मैथिली उस कुर्सी को बार-बार देख रही थी, मगर जीतेंद्र को यही लग रहा था कि मैथिली को आंखों का धोखा हुआ होगा, ऊपर से जीतेंद्र को मैथिली ने अभी तक कुछ भी नहीं बताया था कि कुमार ने उसे जंगल में मिलने बुलाया था। मैथिली को शांत करने के लिए जीतेंद्र ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ​​​​"

जीतेंद्र: मैथिली...मुझे लगता है कि हमें घर चलना चाहिए.... तुम्हारी नींद पूरी नहीं हुई है शायद...."​​  

​​​मैथिली ने हां में सिर हिलाया और चुप चाप जीतेंद्र के साथ वहां से जाने लगी। जाते वक्त बार-बार मैथिली मुड़ कर उस पेड़ की ओर देख रही थी। जीतेंद्र ने जब उसे देखा, तो समझाया, ​​  

​​​जीतेंद्र (प्यार से) : "वहां कोई नहीं है मैथिली...मेरा यकीन करो..."​​  

​​​मैथिली को तभी अचानक से कुमार का ख्याल आया, एक पल के लिए मैथिली को लगा कि कहीं वो कुमार तो नहीं था? मगर अगले ही पल उसने ख़ुद को समझाते हुए कहा, ​​​"

​​मैथिली: मैं कुछ ज़्यादा ही सोच रही हूं...जीतेंद्र सही कह रहा है...कल रात देर से सोने के कारण, मुझे वैसा लगा होगा कि पेड़ के पीछे कोई था..."​​  

​​​धीरे-धीरे वक्त बीत रहा था। मैथिली और जीतेंद्र की शादी की तैयारियां शुरू हो गई थी। दोनों के परिवार वाले चाहते थे कि मैथिली और जीतेंद्र की शादी बहुत ही धूम धाम से हो और पूरे गांव को इस शादी में बुलाया जाए। मैथिली के घर में दीवारों पर पुताई चालू हो गई थी, वहीं घर के आंगन में हलवाइयों ने तरह तरह की मिठाइयां बनानी शुरू कर दी थी। मैथिली के घर वाले भी इधर उधर भटक रहे थे और काम निपटाने की कोशिश कर रहे थे। ​​​​"अरे!...वक्त बहुत कम रह गया है... हमें अभी ढेर सारी तैयारियां करनी है...मेरी इकलौती बेटी की शादी है..."​​​​ मैथिली के पापा ने जोरों से चिल्लाते हुए कहा। ​​  

​​​ठीक अगले ही पल मैथिली अपने कमरे से निकल कर बाहर आई और हलवाइयों के पास जाकर चुप चाप खड़ी हो गई। उसने जैसे ही देखा कि सारे लोग अपने अपने काम में बिजी हैं, उसने अपना हाथ चुपके से लड्डू की तरफ़ बढ़ाया, मैथिली लड्डू उठाने ही वाली थी कि अचानक से उसकी मां ने उसका कान पकड़ते हुए कहा, "​​​​क्या बच्चों जैसी हरकतें कर रही है तू...ये मिठाइयां तेरी ही शादी के लिए हैं...अभी से झूठा कर देगी...तो किस काम के रह जाएंगे ये...."​​ ​​​मैथिली ने तपाक से अपनी मां के हाथ से कान छुड़ाते हुए कहा,​​  

​​​मैथिली(नाराज़गी जताते हुए) : "क्या मां...मेरी ही शादी के लड्डू... मैं नहीं खा सकती...ये कैसी बात हुई भला...."​​  

​​​दोनों मां बेटी जहां ये सारी बातें कर रहे थे, वहीं अपने छत के ऊपर मौजूद कुमार दूरबीन से मैथिली को देखे जा रहा था। वो काफ़ी खुश लग रही थी और उसका चेहरा पहले से काफ़ी खिला हुआ नज़र आ रहा था। कुमार ने मैथिली को देखते ही गुस्से से कहा,​​  

​​​कुमार(दांत पीसते हुए) : "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपनी लाइफ में ये दिन भी देखूंगा... मैं तुमसे इतना प्यार करता था मैथिली... अब भी करता हूं...मगर तुम्हें तो वो जीतेंद्र दिखाई देता है..."​​  

Narrator:  

​​​इतना कहते हुए कुमार गुस्से से जल उठा, वो इस वक्त करना तो बहुत कुछ चाह रहा था मगर कुमार सही मौके की तलाश में था। इस वक्त उसे वो पल याद आ गया, जब कैफै के पास मैथिली ने गलती से उसे देख लिया था और सही वक्त पर कुमार दीवार फांद कर भाग खड़ा हुआ था। उस दिन के बाद से कुमार बहुत ही ज़्यादा सावधान हो गया था। वो नहीं चाहता था कि मैथिली, जीतेंद्र या रीमा को उस पर ज़रा भी शक हो।​​  

​​​थोड़ी देर तक मैथिली को दूरबीन से देखने के बाद, कुमार छत से नीचे उतर आया। वो अपने कमरे में जा ही रहा था कि अचानक से उसे अपनी मां की आवाज़ सुनाई पड़ी, "​​​​सतीश जी की बेटी मैथिली की शादी बहुत ही धूम धाम से होने वाली है... हमें भी न्यौता मिला है... आपने कुछ सोचा है कि क्या देना है मैथिली बेटी को शादी में?"​​  ​​​अपनी पत्नी की बात सुन कुमार के बाबा कुछ कहने ही वाले थे कि अचानक से कुमार ने उस कमरे में आते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(कड़क आवाज़ में) : "कुछ देने की ज़रूरत नहीं है... वैसे भी पैसे बर्बाद क्यों करना...जब शादी ही नहीं होगी।"​​  

​​​कुमार ने बहुत बड़ी बात कह दी थी, जिसे सुन कर उसके मां बाबा हैरान थे। दोनों को पहले समझ नहीं आया कि कुमार क्या कह रहा है, कुमार की मां ने तभी पूछा, "​​​​क्यों... क्यों नहीं होगी शादी भला... देखा नहीं क्या तूने.... तेरी मैडम के घर अभी से ही तैयारियां चल रही हैं... अब एक हफ्ता ही बचा है शादी में?"​​  

​​​कुमार अपनी मां की बात सुन कुछ कहने ही वाला था कि उसके बाबा ने कहा, ​​​​"ये लड़का तो कुछ भी बकवास करता है... इसकी छोड़ो और कल तुम मेरे साथ बाज़ार चलना...वहीं देखेंगे कि हमें मैथिली बेटी के लिए क्या लेना है?"​​  

​​​कुमार ये सुनते ही गुस्से से बौखला गया, मगर उसने किसी को कुछ कहा नहीं। वो अपने कमरे में आया और शीशे में ख़ुद को देखते हुए बोला,​​  

​​​कुमार(गुस्से से) : "मैं बकवास नहीं कर रहा बाबा.... मैथिली और जीतेंद्र की शादी नहीं होगी...क्योंकि मैं ये नहीं होने दूंगा.... हरगिज़ नहीं।"​​  

​​​रात के क़रीब 11 बज रहे थे। मैथिली के घर के सामने ही एक बड़ा मैदान था, जहां पर शादी की और बारातियों के रुकने की तैयारियां हुई थी। इसी मैदान में कई सारे टेंट बने हुए थे, जिनमें काफ़ी सारा सामान रखा गया था। ​​  

​​​कुछ मजदूर थकावट के कारण गहरी नींद में सो चुके थे। उन्हें ख़बर ही नहीं रही कि एक शख़्स चेहरे पर काला नकाब लगाए अंदर आ घुसा है और वो यहां कुछ बुरे इरादे से आया था। उस शख़्स ने चारों तरफ़ देखा, हर जगह सजावट की गई थी, सामने एक बड़ा सा स्टेज बनाया गया था। वो शख़्स स्टेज पर लगाए गए सभी चीज़ों को बर्बाद करने लगा। उसने स्टेज को देखा, जहां बीचों बीच जीतेंद्र और मैथिली की तस्वीर लगाई गई थी और कहा,​​  

कुमार​ (गुस्से में) : "शादी के फेरों में आग की बहुत बड़ी अहमियत होती है! अग्नि को साक्षी मानकर ही तो विवाह सम्पन्न होता है! चलो मैं भी आज अग्नि को ही साक्षी मानकर इस विवाह में बाधा डालने की शुरुवात करता हूँ! ​  

इतना ​​​कहते हुए उस कुमार ने स्टेज पर आग लगा दी । देखते ही देखते आग पूरे स्टेज में फ़ैल गई। उस शख़्स का काम हो गया था, वो वहां से तेज़ रफ़्तार से जाने लगा। जाते जाते उसने एक कागज़ का टुकड़ा टेंट के बाहर रख दिया।​​  ​​​उस शख़्स के बाहर आते ही मज़दूरों के चीखने चिल्लाने की आवाज़ सुनाई देने लगी। सारे मजदूर चीखते हुए स्टेज पर लगे आग को बुझाने की कोशिश करने लगे। कुछ ही देर में मैथिली के घर वाले भी हड़बड़ाते हुए आ गए। मैथिली जैसे ही मैदान के अंदर गई, उसे अपनी और जीतेंद्र की तस्वीर जलती हुई दिखाई पड़ी। ये देखते ही मैथिली चिल्ला पड़ी, ​​  

​​​मैथिली(चीखते हुए) : "नहीं!!!.... कोई तो आग को बुझाओ... पूरा स्टेज बर्बाद हो रहा है... मैंने और जीतेंद्र ने इतने प्यार से सजाया था इसे...."​​  

इतना ​​​कहते हुए मैथिली फूट फूट कर रोने लगी। ठीक उसी वक्त जीतेंद्र और उसका पूरा परिवार वहां आ गया। मैथिली को इस तरह रोता देख जीतेंद्र उसके पास आया और समझाने लगा, मगर मैथिली बार बार उस जलती हुई तस्वीर की ओर इशारा कर रही थी। "​​​​मैथिली शांत हो जाओ...हम फ़िर स्टेज बनवा लेंगे..."​​​​ जीतेंद्र समझाते हुए मैथिली को किनारे एक टेंट के पास ले गया और उसे पानी लाकर देते हुए कहा,​​  

​​​जीतेंद्र(आराम से) : "मैथिली...अभी इस तरह रोने का समय नहीं है... अभी पहले हमें पता लगाना होगा कि ये आग लगी कैसे.....(Pause)... सबसे अच्छी बात ये है कि किसी को भी कुछ नहीं हुआ है..."​​  

​​​जीतेंद्र, मैथिली को समझाने के बाद बाकी लोगों के पास चला गया। वहीं मैथिली ख़ुद को रीलैक्स करने की कोशिश कर रही थी। कुमार दूर से खड़ा यह सब देख रहा था! ​

​​​कुमार(cunning smile से) : "एक साल पहले तुम्हारे लिए मैं उन लड़कों को जलाने के लिए तैयार हो गया था मैथिली.... और आज तुम्हारे कारण ही तुम्हारी शादी को जला रहा हूं...कभी सोचा नहीं था....तुम्हें ऐसे रोते हुए देख मुझे बुरा तो बहुत लग रहा है! पर कोई नहीं, एक बार तुम मेरी हो जाओगी तो पूरी दुनियाँ को मैं तुम्हारे लिए स्टेज बना दूंगा! जैसे चाहोगी वैसे सजा दूंगा "​​  

​​​कुमार की आंखों में आग साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।​​ ​रात कब बीत गई, किसी को पता ही नहीं चला। सुबह के क़रीब 8 बज रहे थे। मैथिली और जीतेंद्र मैदान से घर की ओर जा रहे थे कि अचानक से मैथिली की नज़र सामने टेंट के पास पड़े एक कागज़ पर पड़ी। "​​​​वहां वो कैसा कागज़ है...."​​​​ कहते हुए मैथिली उस टेंट के पास गई और उसने कागज़ को उठाया। मैथिली ने जैसे ही कागज़ पर लिखे शब्दों को पढ़ा, उसका चेहरा सूख गया। तभी जीतेंद्र, मैथिली के पास आया, उसने मैथिली को ऐसे देखा तो चौंक गया। जीतेंद्र ने मैथिली के हाथ से कागज़ लिया और उसमें लिखे शब्दों को पढ़ना शुरू किया,​​  

​​​"ये शादी एक श्राप है...इसे यहीं रोक दो..."​​​​ जीतेंद्र ने जैसे ही ये पढ़ा, वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। मैथिली ने तभी हैरानी से पूछा,​​  

​​​मैथिली(हैरानी से) : "जीतेंद्र तुम्हें हंसी आ रही है... ये सोचने वाली बात है कि ये चिट्ठी किसने लिखी होगा... वो हमें क्या बताना चाहता है?"​​  

​​​जीतेंद्र(हंसते हुए) : "यही कि ये बस एक मज़ाक है और कुछ नहीं... इसलिए इस पर ज़्यादा ध्यान मत दो चलो यहां से..." ​​  

​​​जीतेंद्र कूल था मगर मैथिली के दिल में अब डर बैठ गया था। उसे एक पल के लगता कि कहीं ये सब कुछ कुमार ने तो नहीं किया है, मगर अगले ही पल वो ये सोच कर चुप हो जाती कि कुमार इतना बड़ा कांड नहीं कर सकता, क्योंकि ये किसी 16 साल के लड़के के बस का नहीं था। ​​ ​​​मैथिली के मां बाबा भी परेशान हो गए थे, उनको समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब अचानक से क्या हो गया, उनके परिवार की खुशियों को किसकी नज़र लग गई। शाम हो चुकी थी मगर मैथिली अभी तक नॉर्मल नहीं हुई थी। रीमा, जो मैथिली से मिलने आई थी, उसने उसे समझाते हुए कहा,​​​​ "देख मैथिली... आग लगने के बहुत कारण हो सकते हैं... इसलिए तू इतना मत सोच... मैं जब से आई हूं, तू टेंशन लिए बैठी है..."​​  ​​​मगर मैथिली पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था। रीमा ने देखा मैथिली बर्फ़ की तरह जमी हुई बैठी है, उसने उसके कंधे पर जैसे ही हाथ रखा,​​ ​तभी मैथिली ने कहा,​​  

​​​मैथिली(उदासी से) : "रीमा उस नोट में साफ़ लिखा था कि ये शादी एक श्राप है... मैं सोच रही हूं कि अगर मैंने शादी की और आगे चल कर कहीं कुछ...."​​  

​​​इसके आगे मैथिली से बोला नहीं गया, रीमा उसे समझाने लगी कि वो इतना नहीं सोचे और चुप चाप शादी पर ध्यान दे, क्योंकि कहीं न कहीं मैथिली को देख कर जीतेंद्र भी टेंशन में आ गया था। मैथिली ने रीमा के सामने हां में सिर हिलाया और उसे छोड़ने बाहर तक आई।​​ ​​​इधर दूसरी तरफ़ कुमार एक बार फ़िर से हाथ में एक छोटा सा बॉक्स लेकर निकला। उसके चेहरे पर फिर एक बार devil smile थी। कुमार ने ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(मन में) : "मैथिली! मेरी प्यारी मैथिली!! मैंने कहा था ना....मेरे पास और भी बहुत तरीके हैं...इस बार तुम जो देखोगी... उसके बाद तुम सोचने पर मजबुर हो जाओगी।"​​  

​​​कुमार चलते हुए मैथिली के घर से थोड़ी दूरी पर आकर खड़ा हो गया और इंतज़ार करने लगा। शाम हो चुकी थी, कुमार ने अगले ही पल अपने सिर पर टोपी पहनी और मैथिली के घर के बाहर जाकर खड़ा हो गया। उसने बॉक्स को दरवाज़े के सामने रखा और दरवाज़ा खटखटाने लगा। ​​  

​​​थोड़ी ही देर में जैसे ही दरवाज़ा खुला, अंदर से मैथिली की मां आई, उन्होंने जब बाहर देखा तो कहीं कोई नहीं था। उनको थोड़ी हैरानी हुई मगर तभी उनका ध्यान नीचे रखे बॉक्स पर गया। जिसके ऊपर लिखा था, फॉर मैथिली....जीतेंद्र की तरफ से....जीतेंद्र का नाम पढ़ते ही मैथिली की मां ने बॉक्स को उठा लिया।​​ ​​​"मैथिली.... देख..दामाद जी ने तेरे लिए कोई तोहफा भेजा है....देख तो क्या है..."​​​​ कहती हुई मैथिली की मां अपनी बेटी के पास गई, मैथिली ने जब जीतेंद्र का नाम पढ़ा तो वो भी खुश होते हुए बॉक्स को देखने लगी मगर अपनी मां के सामने वो उस बॉक्स को नहीं खोलना चाहती थी।​​  ​​​"मां आप जाओ ना... मैं बाद में बता दूंगी कि क्या है इसमें!"​​​​ मैथिली ने अपनी मां को कमरे से बाहर भेजते हुए कहा, मां के जाते ही मैथिली ने बॉक्स के अंदर देखा और उसे देखते ही बुरी तरह से चौंक गई। उसके मुंह से एकाएक ही निकल गया,​​  

​​​मैथिली(हैरानी से) : "हे भगवान!.... क्या हो रहा है मेरे साथ ये?"​​  

जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।

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