मैथिली जंगल की उस जगह पर आ चुकी थी और आस पास लंबी लंबी झाड़ियों को देख घबरा गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे वो क्या करे? मैथिली कुछ सोचने के बाद थोड़ा आगे बढ़ी ही थी कि अचानक से उसे सामने एक परछाई दिखाई पड़ी, उस परछाई को देखते ही मैथिली की चीख निकल गई, “बचाओ…..”
चीखते हुए मैथिली वहां से भागने ही वाली थी कि उसके सामने एक शख़्स आया, वो कोई और नहीं बल्कि कुमार था। कुमार ने देखा मैथिली ने अभी भी अपनी आंखों को बंद करके रखा था। उसने अगले ही पल कहा, “
कुमार: घबराओ मत मैथिली…. तुम्हें यहां कोई खतरा नहीं है…मैं हूं तुम्हारे साथ…”
मैथिली ने जैसे ही इस आवाज़ को सुना, उसने तपाक से अपनी आँखें खोल दी। मैथिली ने जैसे ही कुमार को अपने सामने देखा, वो बुरी तरह से हैरान हो गई। उसे एक पल के लिए अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ। मैथिली ने मन ही मन कहा,
मैथिली(घबराते हुए) : “इसका मतलब है कि मैं शुरू में जो सोच रही थी, वह सही था…कुमार ने ही वो लेटर लिखा था…मगर क्यों?”
मैथिली को इस तरह ख़ामोश देख कर कुमार ने उससे सवाल करना चाहा ही था कि तभी मैथिली ने उसे घूरते हुए कहा,
मैथिली(गुस्से से) : “कुमार ये सब क्या नाटक है…तुमने यहां मुझे क्यों मिलने बुलाया है…तुम शायद नहीं जानते हो कि मेरी शादी….”
कुमार(बात काटते हुए) : “जानता हूं…सब जानता हूं….तुम्हारी शादी उस जीतेंद्र से तय हो चुकी है….(Pause)... मगर ये गलत है मैथिली…तुम नहीं देख पा रही हो कि वो जीतेंद्र तुम्हारे लिए सही नहीं है….”
कुमार अपनी तरफ़ से मैथिली को समझाने की कोशिश में लगा हुआ था मगर मैथिली का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। उसने काफ़ी देर तक कुमार की बातें सुनी और फ़िर वहां से उसे इग्नोर करते हुए जाने लगी। मैथिली आगे बढ़ी ही थी कि अचानक से कुमार ने उसका हाथ पकड़ लिया। मैथिली को इसका अंदाज़ा नहीं था कि इस तरह सुनसान जगह पर कुमार उसका हाथ यूं पकड़ लेगा। मगर अगले ही पल उसे एहसास हुआ कि वो कुमार की टीचर है, मैथिली ने चिल्लाते हुए कहा, “
मैथिली (जोर से चिल्लाते हुए) :कुमार…अपनी हद में रहो….मुझे मजबूर मत करो…”
मैथिली आगे कहती इससे पहले ही कुमार ने उसका हाथ छोड़ दिया और उसके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा,
कुमार(शांत मन से) : “मुझे माफ़ कर दो…मगर एक बार मेरी बात सुन लो…(pause)... मैथिली मेरा इरादा ग़लत नहीं है…तुम क्यों नहीं देख पा रही हो कि मैं तुमसे जितना प्यार करता हूं…शायद ही वो जीतेंद्र करता होगा…अरे जीतेंद्र ही क्या इस दुनिया में कोई भी आदमी मुझसे ज़्यादा प्यार तुमसे नहीं कर सकता….”
कुमार की बातें सुनने के बाद अब मैथिली को समझ आ गया था कि उसने यहां आकर गलती कर दी थी। उसे अब मन ही मन पछतावा हो रहा था। मैथिली ने काफ़ी देर तक कुमार की बातें सुनी और आख़िर में उसने यही कहा कि वो भी जीतेंद्र से प्यार करती है। मैथिली के मुंह से जैसे ही ये शब्द निकले, कुमार की पूरी दुनिया हिल गई। वो पागलों की तरह इधर से उधर भटकने लगा, उसने एक पत्थर को सामने पेड़ के तने पर मारते हुए कहा,
कुमार(खीज कर) : “नहीं मैथिली…वो जीतेंद्र तुम्हारे लिए सही नहीं है…बस। तुम भी ये बात अच्छे से जानती हो कि मैंने तुम्हारे बारे में कभी भी बुरा नहीं सोचा है…याद है तुम्हें, एक बार जब एक दूसरे क्लास के लड़के ने तुम्हारे बारे में उल्टा सीधा कहा था….उस वक्त मैंने क्या किया था…बताओ याद है?”
कुमार की बातें सुन कर, मैथिली एक साल पहले की घटना के बारे में सोचने लगी, जो उसके स्कूल के बाहर हुई थी। मैथिली को उस घटना ने एक बात तो सीखा दिया था कि कुमार उसका एक अच्छा स्टूडेंट है, जो उसकी बहुत इज़्ज़त करता है।
<फ्लैश्बैक>
ये एक साल पहले की बात थी, स्कूल की छुट्टी हो गई थी। बच्चों के बाद, अब टीचर घर जाने के लिए निकल रहे थे। उस दिन रीमा स्कूल नहीं आई थी, इसलिए मैथिली अकेले ही जा रही थीं। स्कूल से थोड़ी दूरी पर कुछ लड़के चाय की टपरी पर बैठे थे और तंबाकू का सेवन कर रहे थे, मैथिली ने जैसे ही उनको देखा, उसने कहा,
मैथिली(गुस्से से) : “तुम लोगों को शर्म नहीं आती…इतनी छोटी उम्र में ये सब गंदी हरकतें कर रहे हो…अगली बार देखा तो सीधे घर जाकर शिकायत करूंगी….”
मैथिली ऐसा कहते हुए गुस्से में वहा से जाने लगी। उसे जाते हुए देख एक लड़के ने कहा, “भाई…ये हमें जान देने को भी कहेगी तो हम जान भी दे दे…“चीज़ तो ये मैथिली मैडम है बे!!... ऐसे करते हुए वो सारे लड़के एक एक करके मैथिली के बारे में बकवास करने लगे, मगर उनको पता नहीं था कि उसी चाय की टपरी पर कोई ऐसा भी था, जो मैथिली के खिलाफ़ एक लब्ज़ भी नहीं सुन सकता था, वो कोई और नहीं बल्कि कुमार था। अगले ही पल वो उन लड़कों के सामने आकर खड़ा हो गया और घूरते हुए बोला,
कुमार(गुस्से से) : “मैं तीन तक गिनूंगा…. अगर तब तक तुम लोगों ने मैथिली मैडम के पास जाकर माफ़ी नहीं मांगी तो उसके बाद जो भी होगा मैं जिम्मेदारी नहीं रहूँगा…”
कुमार का ऐसा रवैय्या देख कर, वो सारे हंसने लगे, एक ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “तू कौन है बे, कभी देखा तो नहीं है?” कुमार ने देखा जब वो लोग उसे सीरीअस नहीं ले रहे तो उसने अगले ही पल उस लड़के को एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा। कुमार जूनियर था, सारे लोग मिल कर कुमार को मारने लगे। कुमार एक आम लड़का था, इतने लड़कों के सामने वो टिक नहीं पाया। लड़कों की मार से उसकी हालत ख़राब हो गई। उन लोगों ने जब देखा कि कुमार की हालत मार खा कर ख़राब हो गई है, वो रुक गए। मगर कुमार के मुंह से अब भी यही निकल रहा था कि वो सब मैथिली मैडम से जाकर माफ़ी मांगे। ये देख कर एक लड़के ने कहा, “ये गज़ब ज़िद्दी है भाई…इतनी मार खाने के बाद भी अकड़ दिखा रहा है।”
कुछ देर तक रुकने के बाद वो कुमार को उसी हालत में छोड़ कर वहां से जाने लगे। वो कुछ दूरी तक गए ही थे कि अचानक से उन्हें पीछे से एक आवाज़ सुनाई पड़ी। उन लड़कों ने जब मुड़कर देखा, तो उनकी आँखें हैरानी से बड़ी हो गई। सामने कुमार एक हाथ में पेट्रोल से भरी बोतल और दूसरे हाथ में माचिस लिए खड़ा था। कुमार की आंखों में एक अलग ही जुनून दिखाई दे रहा था। उसने चिल्लाते हुए कहा,
कुमार(गुस्से से) : “इस बार मैं तुमलोगों को मौक़ा नहीं दूंगा…आखिरी बार कह रहा हूं…जाओ और मैथिली मैडम के सामने घुटनों पर बैठ कर माफ़ी मांगो….नहीं तो जिंदा जला दूंगा”
शुरू में तो उन लड़कों को लगा कि कुमार उन्हें बस डरा रहा है, मगर अगले ही पल उसने जब बोतल से पेट्रोल ज़मीन पर गिराया और आग जलाई, तो वो लड़के बुरी तरह से डर गए। “अबे!!.. ये कौन पागल है…भाग यहां से…” कहते हुए वो लड़के वहां से भाग खड़े हुए। कुछ दूर जाने के बाद उन्हें कुमार पीछे से आता हुआ दिखाई पड़ा, वो समझ गए कि उनके पास अब कोई रास्ता नहीं है। वो सारे लड़के मैथिली के घर की तरफ़ भागे।
थोड़ी दूर जाने के बाद उन्हें मैथिली जाती हुई दिखाई पड़ी, वो लड़के एकाएक ही उसके सामने जाकर घुटनों पर बैठ गए और कान पकड़ कर माफ़ी मांगने लगे, “हमें माफ कर दीजिए मैडम…हमने आपके बारे में उल्टा सीधा कहा” मैथिली को हैरानी हो रही थी कि अचानक से इन लड़कों को क्या हुआ? तभी वहां पर कुमार आया, उसने पेट्रोल से भरी हुई बोतल को फेंक दिया था।
<फ्लैश्बैक खत्म>
मैथिली को कुमार की वो हरकत याद आ चुकी थी। उसके सामने कुमार खड़ा था, जो उसे ही देख रहा था। मैथिली ने कुमार को देखते हुए कहा,
मैथिली(नाराज़गी से) : “अगर मैं पहले समझ गई होती कि तुम मेरे बारे में ऐसा कुछ सोचते हो…तो आज ये सब नहीं होता…ग़लती मेरी ही है…मैंने ही तुम्हें बढ़ावा दिया, मुझे लगता था कि तुम मेरी इज्जत करते हो, मुझे अपना सबसे अच्छा गुरु मानते हो…लेकिन मैं नहीं जानती थी कि इन सब की आड़ में तुम इस तरह की घिनौनी हरकत करते हो….”
मैथिली की इन बातों को सुन कर कुमार को थोड़ा बुरा लगा मगर उसने इसे नज़र अंदाज़ करते हुए कहा, “क्या प्यार करना ग़लत है मैथिली?” कुमार के इस सवाल पर मैथिली ने ज़वाब दिया,
मैथिली(झल्ला कर) : “प्यार करना ग़लत नहीं है…. लेकिन तुम जो कर रहे हो, वो ग़लत है…कुमार तुम समझने की कोशिश भी नहीं कर रहे…”
कुमार(बात काटते हुए) : “मैं तुमसे प्यार करता हूं….तुम मेरी हो…इसके अलावा मुझे कुछ नहीं समझना है….(Pause).... तुम स्कूल में बच्चों को समझाती थी कि क्या सही है और क्या ग़लत, मगर तुम ख़ुद नहीं देख पा रही हो कि जीतेंद्र तुम्हारे लिए सही नहीं है।”
“बस…अब जीतेंद्र के बारे में और कुछ भी नहीं….” कहते हुए मैथिली वहां से पैर पटकते हुए जाने लगी। जाते जाते उसने कुमार को कहा कि वो उसका पीछा छोड़ दे नहीं तो अंज़ाम बुरा होगा। कुमार ने आज से पहले मैथिली को इतना ज़्यादा गुस्से में नहीं देखा था, वो मैथिली के पीछे पीछे जाने लगा। कुमार मैथिली से एक मौक़ा मांगने की कोशिश करने लगा मगर मैथिली उसकी एक भी बात नहीं सुन रही थी। कुमार को समझ नहीं आ रहा था कि वो कैसे मैथिली को रोके और कैसे उसे बताए कि जीतेंद्र उसके लिए सही नहीं था।
उसने जब देखा कि मैथिली रुक ही नहीं रही है, तो वो उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। मैथिली का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उसकी बड़ी बड़ी आंखों को देख कर भी कुमार आगे से नहीं हटा। कुमार ने लाचारी दिखाते हुए कहा,
कुमार(समझाते हुए) : “तुम एक बात बताओ….क्या जीतेंद्र जानता है कि सुबह उठते ही तुम्हें कड़क मसाले वाली चाय पसंद है, मगर मैं जानता हूं….क्या वो जानता है कि तुम्हें गेंदें के फूलों से नुकसान पहुंचता है, उनके पास जाते ही तुम्हें खांसी होने लगती है…(pause)...रात को आसमान में घंटों तक तुम्हें चांद तारे देखना पसंद है…क्या ये सब कुछ जीतेंद्र जानता है…नहीं बिल्कुल भी नहीं।”
मैथिली ने जब ये सब कुछ सुना तो वो पूरी तरह हैरान हो गई। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ये आदतें किसी दूसरे इंसान को पता होगी, क्योंकि मैथिली की सबसे अच्छी दोस्त रीमा भी ये सब कुछ नहीं जानती थी। मैथिली अब गुस्से से कांपने लगी थी क्योंकि उसे अब ऐसा लगने लगा था कि कुमार एक खतरनाक लड़का है। उसने उसे धक्का देते हुए कहा,
मैथिली(बिगड़ते हुए) : “खबरदार आइंदा मुझ पर नज़र रखी तो…या मेरे आस पास भी आए तो…”
कहते हुए मैथिली वहां से तेज़ कदमों से आगे बढ़ती गई। कुमार चिल्लाता रह गया, मगर मैथिली के कानों में कोई प्रभाव नहीं पड़ा। “मैथिली…सुनो तो…मैथिली मेरी बात सुनो…” कुमार तब तक चिल्लाता रहा, जब तक वो उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई। आख़िर में कुमार ने अपनी दोनों मुट्ठियां भींचते हुए कहा,
कुमार(गुस्से से) : “मैथिली अगर तुम ऐसे नहीं सुनोगी…तो मेरे पास और भी तरीके है…बहुत जल्द ही तुम्हारे सामने जीतेंद्र का सच आएगा….”
अगले दिन मैथिली सुबह सुबह तैयार होकर जीतेंद्र के साथ गांव के बाहर बने उसी कैफै में आ गई, जहां पर वो जीतेंद्र के साथ पहली बार आई थी। मैथिली और जीतेंद्र बाहर ही कुर्सी पर बैठ कर अपनी शादी की प्लैनिंग कर रहे थे। “
जीतेंद्र: ये देखो मैथिली…. मैंने इस रंग का लहंगा तुम्हारे लिए देख रखा है…बताओ कैसा है?”
जीतेंद्र ने अपने फोन में लहंगे की फोटो दिखाते हुए कहा, मैथिली उस लहंगे को देखते ही खुश हो गई। दोनों एक दूसरे के काफ़ी करीब बैठे हुए थे। कुमार दूर से बैठे हुए मैथिली को देख रहा था कि अचानक से उसने देखा, जीतेंद्र ने अपना हाथ मैथिली के कंधे पर रखा था। कुमार ने ख़ुद से बड़बड़ाते हुए कहा,
कुमार(खीज कर) : “इसके हाथ को मैं उखाड़ के फेंक दूंगा। जब एकहो तब मैथिली के कंधे पर रखता है”
इतना कहते ही कुमार के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई, मगर ठीक उसी वक्त इधर दूसरी तरफ़ मैथिली की नज़र अचानक से सामने पेड़ की तरफ़ गई, उसे वहां कोई नज़र आया। मैथिली ने तपाक से कहा, “वहां कोई है…. जो छुप कर हमें देख रहा था…”
इतना कहते हुए मैथिली उठी और उस पेड़ की तरफ़ बढ़ने लगी, जिसके पीछे से कुमार उन दोनों को देख रहा था। जीतेंद्र भी मैथिली के पीछे पीछे आया, मैथिली मन में कई सारे सवाल लिए आगे बढ़ रही थी, वो जैसे ही पेड़ के पास पहुंची तो हैरान रह गई। क्या कुमार वहाँ अब भी था? या उसकी कोई नई शरारत थी? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.