मैथिली ने जैसे ही हैरान परेशान होते हुए उस बॉक्स को खोला, वो दंग रह गई। बॉक्स के अंदर एक लेटर था। मैथिली ने लेटर पढ़ना शुरू किया, “मैथिली अगर तुम मुझसे मिलने आती हो तो मैं तुम्हें एक ऐसा राज़ बताऊंगा, जो तुम्हारी पूरी लाइफ को बदल कर रख देगा….मेरा यकीन करो…”
इस लेटर को पढ़ते ही मैथिली का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, वो मन ही मन सोचने लगी कि आख़िर ये लेटर किसने भेजा होगा। मैथिली ने मन ही मन सोचा,
मैथिली(सोचते हुए) : “कहीं ये कुमार ने तो नहीं भेजा है….(Pause)... नहीं…नहीं उस रात के बाद तो वो शांत हो गया था…और बिना सबूत के मैं किसी को भी दोषी नहीं ठहरा सकती….हो सकता है ये किसी ने मेरे साथ मज़ाक किया होगा…हां ज़रूर यही बात है।”
मैथिली ने ख़ुद को समझाया और फैसला किया वो इस लेटर को अपने परिवार वालों और जीतेंद्र से छुपा कर रखेगी, नहीं तो बवाल हो सकता था। वो जीतेंद्र को अब तक समझ चुकी थी, अगर उसे इस बारे में पता चल जाता तो ज़रूर वो उस लेटर भेजने वाले को ढूंढ निकालता। मैथिली ने उस बॉक्स को कचरे में फेंक दिया और उस लेटर को अपने हैंड बैग में डाल कर घर के अंदर चली गई। उसके जाते ही सामने लगे पेड़ से एक शख़्स गाना गाता हुआ बाहर निकला, “प्यार हआ, इक़रार हुआ है…. प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल?” वो शख़्स कोई और नहीं बल्कि कुमार था, ये लेटर उसी ने लिखा था। मैथिली की हालत देखकर कुमार ने उसके घर की तरफ़ देखते हुए कहा,
कुमार(cunning smile से) : “मैथिली…उस रात तुमने मुझे पागल कह कर मेरे ज़ख्मों पर नमक डाल दिया था…उस रात मैंने सोच लिया था कि तुम्हें मैं अब माफ़ नहीं करूंगा…मगर फ़िर मुझे ख्याल आया कि मैं तुम्हें नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच भी कैसे सकता हूं…इसलिए मैं अब तुम्हारे साथ वो करूंगा…. जो एक सच्चे आशिक को करना चाहिए….(Pause)... क्योंकि कहते हैं ना….प्यार और जंग में सब कुछ जायज़ है।
रात के क़रीब 10 बज रहे थे। कुमार नदी के किनारे पत्थर पर बैठ कर मैथिली के बारे में सोच रहा था, ठीक उसी वक्त अचानक से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। कुमार एक पल के लिए घबरा गया मगर उसने जैसे ही मुड़ कर देखा तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ। सामने उसकी मैथिली खड़ी थी, जिसके चेहरे पर एक भी भाव दिखाई नहीं दे रहे थे। कुमार ने जब मैथिली को अपने सामने देखा, वो खुशी से उछलता हुआ बोला,
कुमार(excited होकर) : “मैथिली…मुझे पता था कि तुम ज़रूर आओगी…मगर मुझे ये नहीं पता था कि तुम इतनी जल्दी आ जाओगी….तुम सोच भी नहीं सकती कि मैं तुम्हें यहां देख कर कितना खुश हूं…”
कुमार कहे जा रहा था मगर मैथिली चट्टान की तरह चुप चाप खड़ी थी, ना तो वो कुछ बोल रही थी और न ही उसके चेहरे पर कोई भी expressions नज़र आ रहे थे। कुमार को ये थोड़ा अजीब लगा, उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने जब दो से तीन बार मैथिली से कुछ बोलने को कहा, तभी अचानक से कुमार को मैथिली के पीछे एक परछाई दिखाई पड़ी। कुमार ने चिल्ला कर कहा, “कौ..कौन…कौन हो तुम?” कुमार की बात सुन वो परछाई धीरे धीरे पास आने लगी। चांद की रौशनी में कुमार ने उस शख़्स का चेहरा देखा, तभी उसने कुमार से कहा, “कुमार यहां पहले तुम मेरे पास आओ…मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं…घबराओ मत…तुम्हें बड़ा मज़ा आएगा” कुमार उस शख़्स की आवाज़ सुनते ही बुरी तरह से कांपने लगा, उसने मैथिली को खींचते हुए कहा,
कुमार(घबराते हुए) : “मैथिली…यहां से चलो…हम सेफ नहीं है…”
कुमार ने देखा वो शख़्स उसके एकदम क़रीब आ गया है, उसने जैसे ही कुमार का हाथ पकड़ा, कुमार चिल्लाया, “बचाओ….” कुमार हड़बड़ाता हुआ बिस्तर से उठ कर बैठ गया। एक बार फ़िर वो पसीने से लथपथ हो चुका था, आज उसने फ़िर से वही सपना देखा, जिसके कारण कुमार सो नहीं पाता था मगर इस बार उसके सपने में मैथिली भी थीं। कौन था वो शख़्स, क्या कनेक्शन था कुमार का उससे, ये उसके सिवा कोई और नहीं जानता था। कुमार ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा,
कुमार(हांफते हुए) : “मैथिली…उस अतीत को मैं तभी भुला पाऊंगा, जब तुम मेरे साथ होगी…..(pause)... वैसे उस लेटर को तुमने पढ़ तो लिया है…. मुझे पूरा यकीन है कि तुम ज़रूर आओगी उस जगह पर मुझसे मिलने….तुम्हें आना ही होगा मैथिली…”
इधर दूसरी तरफ़ मैथिली के दिमाग में अब भी वह बात घूम रही थी कि किस सच की बात लिखी थी उस खत में और इससे मेरी जिन्दगी कैसे बदल जाएगी। मैथिली अपने आप को समझाने की पूरी कोशिश कर रही थी कि वो एक मज़ाक है मगर मैथिली का मन नहीं मान रहा था। पूरी रात सोचते हुए कब निकल गई मैथिली को पता ही नहीं चला।
सुबह होने के साथ ही मैथिली ने दूध गैस पर चढ़ाया और फिर से उस लेटर के बारे में सोचने लगी। मैथिली अपने ख्यालों में इतना खो गई कि उसे पता ही नहीं चला कब दूध उबलकर गिरने लगा। "मैथिली कहां खो गई, नीचे देख..." रीमा ने किचन में आते हुए कहा। अचानक से अपनी दोस्त की आवाज सुनकर मैथिली अपने ख्याल से बाहर आई और चौंकते हुए नीचे देख, सारा दूध गैस उफान चुका था। मैथिली ने बात बदलते हुए जब रीमा के आने का कारण पूछा तो रीमा ने बताया, “मैं स्कूल जा रही थी…सोचा तुझसे पूछ लेती हूं…कि तू जाएगी या अभी छुट्टी पर ही रहेगी।”
मैथिली(बहाना बनाते हुए) : “नहीं…रीमा…अभी शादी की तैयारियां भी करनी है तो मैं अभी छुट्टी पर रहने की सोच रही हूं….”
इतना कह कर मैथिली, रीमा को बिना देखे अपने कमरे में चली गई। रीमा को मैथिली का बर्ताव बड़ा ही अजीब लगा। इधर मैथिली जैसे ही कमरे में आई, उसे टेबल पर वही लेटर दिखाई दिया, वो चाह कर भी उस लेटर को नज़र अंदाज़ नहीं कर पा रही थी। मैथिली ने लेटर की आखिरी लाइन को मन में बड़बड़ाया, “मैथिली अगर तुम मुझसे मिलने आती हो तो मैं तुम्हें जीतेंद्र का एक ऐसा राज़ बताऊंगा, जो तुम्हारी पूरी लाइफ को बदल कर रख देगा….मेरा यकीन करो…( Pause)... कैसा सच और ये किसने लिखा है...?"
मैथिली परेशान हो गई थी, उसके दिमाग में बस उस लेटर में लिखी हुई बातें ही घूम रही थी। उसने उस जगह के बारे में एक बार फिर से पढ़ा, जहां कुमार ने उसे बुलाया था। मैथिली ने सोचा कि एक बार उसे उस इंसान से मिलना चाहिए, जिसने उसे खत लिखा मगर अगले ही पल उसे घबराहट हुई और उसने ये फ़ैसला बदल दिया। मैथिली जहां अपनी सोच में खोई हुई थी ठीक उसी वक्त पीछे से जीतेंद्र ने आकर उसे पकड़ लिया। मैथिली को इसका ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था, वो एकाएक ही चीख पड़ी। मगर सही वक्त पर जीतेंद्र उसके सामने आते हुए बोला,
जीतेंद्र: “अब क्या अपनी होने वाली बीवी को ऐसे पकड़ भी नहीं सकता क्या?”
मैथिली ने जब जीतेंद्र को अपने सामने देखा, एक पल के लिए उसने राहत की सांस ली, मगर उसे मन ही मन ये डर लगने लगा कि कहीं गलती से उसके मुंह से जीतेंद्र के सामने लेटर की बात ना निकल जाए। जीतेंद्र ने जब मैथिली को शांत देखा, उसने कारण पूछा, मगर मैथिली ने बहाना करते हुए कहा,
मैथिली(फीकी मुस्कान के साथ) : “मैं तुम्हें यहां देख कर शॉक्ड हूं…तुम यहां कैसे?”
जीतेंद्र: “सोचा स्कूल जाते जाते…तुम्हारे साथ सुबह की चाय पी लूं…एक मिनट रुकना…”
इतना कह कर जीतेंद्र ने सिटी बजाई, अगले ही पल रीमा चाय के तीन कप लेकर कमरे के अंदर आई। मैथिली समझ गई कि ज़रूर रीमा ने ही जीतेंद्र को बुलाया है। उसने ज़्यादा कुछ नहीं कहा, वो दोनों के साथ चाय पीने लगी मगर कहीं ना कहीं मैथिली गुमसुम सी नज़र आ रही थी। जीतेंद्र ने दो से तीन बार नोटिस किया, मगर उसने कुछ कहा नहीं। थोड़ी देर बाद रीमा जैसे ही अंदर गई, जीतेंद्र ने तपाक से पूछा, “
जीतेंद्र: मैथिली कुछ बात है क्या….तुम कुछ परेशान सी लग रही हो?”
मैथिली(normal act करते हुए) : “नहीं…नहीं…मैं तो बिल्कुल ठीक हूं….मुझे भला क्या होगा….”
जीतेंद्र: “पक्का न? कहीं हमारी शादी से जुड़ी कोई बात तो नहीं है…”
जीतेंद्र ने जैसे ही ये पूछा, मैथिली उसे समझाने लगी कि ऐसी कोई बात नहीं है, वो बेकार में ही ज्यादा सोच रहा है। अगले ही पल जीतेंद्र ने मैथिली के हाथ में मौजूद अंगूठी को चूमते हुए कहा, “तुम मेरी हो मैथिली…. तुम्हारी हर परेशानी मेरी है…इसलिए कुछ भी हो मुझे बेझिझक होकर बताना….”
वहीं दूसरी तरफ कुमार नदी के पास एक घने जंगल के बाहर खड़ा मैथिली का इंतज़ार कर रहा था। उसे यकीन था कि मैथिली लेटर पढ़ने के बाद उससे मिलने ज़रूर आएगी। उसने ख़ुद से कहा, ‘मैथिली मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं तुम्हें इस तरह बुलाऊंगा…मगर क्या करूं…. मेरे पास तुमने अब कोई और रास्ता ही नहीं छोड़ा…. कैसे भी करके तुम्हें जीतेंद्र से अलग होना होगा….वो तुम्हारे लिए सही इंसान नहीं है…’
इतना कहते हुए कुमार यहां वहां टहलने लगा, वो आज मैथिली से मिलने के चक्कर में स्कूल भी नहीं गया था। ये आज पहली बार नहीं था, जिस दिन मैथिली स्कूल नहीं जाती थी कुमार भी नहीं जाता था। इधर दूसरी तरफ़ मैथिली ने जीतेंद्र के जाने के बाद मन ही मन सोचा कि उसे एक बार लेटर के बारे में रीमा से बात करनी चाहिए। मैथिली अभी कमरे में यहां वहां टहल ही रही थी कि अचानक से रीमा ने उसके सामने आते हुए कहा, “मैथिली कुछ तो बात है….तू सुबह से कहीं खोयी हुई नज़र आ रही है….चल बता, क्या हुआ है?”
रीमा की बातें सुन मैथिली एकाएक ही घबरा गई। उसे समझ नहीं आने लगा कि वो क्या करे? मगर रीमा भी कहां मानने वाली थी, उसने मैथिली से जब ज़िद करते हुए पूछा तब मैथिली ने ना चाहते हुए उस लेटर को दिखाया। रीमा ने जैसे ही लेटर को देखा, वो हड़बड़ा गई। उसे एक पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ। उसने मैथिली से पूछा, “तो क्या सोचा है तुने?”
मैथिली(घबराते हुए) : “देख!... मैं झूठ नहीं कहूंगी…मगर मैं कल रात से ही इस लेटर को लेकर परेशान हूं…और मैंने सोचा है कि क्यों ना एक बार मैं उस इंसान से जाकर मिल….”
मैथिली के मुंह से आगे एक भी शब्द निकलता कि इससे पहले ही रीमा ने उसे चुप करा दिया, उसने तपाक से पूछा, “क्या जीतेंद्र को ये सब पता है?” इस पर मैथिली ने ना में सिर हिला दिया। रीमा की हैरानी का कोई ठिकाना ना रहा। उसने अगले ही पल फ़ैसला किया कि वो जीतेंद्र को सब कुछ जाकर कह देगी, मगर मैथिली ने उसे रोकते हुए कहा,
मैथिली(हड़बड़ा कर) : “तुझे हमारी दोस्ती की कसम है रीमा…तू जीतेंद्र से कुछ नहीं कहेगी, अगर वाकई जीतेंद्र का कोई राज है जो किसी को पता है तो मुझे यह जानना बहुत जरूरी है।”
रीमा अब मजबूर हो गई थीं। वो मैथिली को समझाने की कोशिश करने लगी कि जीतेंद्र उसका होने वाला पति है, उसे ये सब कुछ जानने का हक है, मगर मैथिली किसी भी तरह से जीतेंद्र को इन सब से दूर रखना चाहती थी। काफ़ी देर समझाने के बाद भी जब मैथिली नहीं समझी तो रीमा ने कहा, “ठीक है…जैसे तेरी मर्ज़ी….मगर मैं बता दे रही हूं…तू उस इंसान से मिलने नहीं जाएगी बस…बात ख़त्म?”
मैथिली(सोचने के बाद) : “तुझे क्या लगता है, कौन हो सकता है ये लेटर भेजने वाला?”
इसके जवाब में रीमा ने अगले ही पल कहा, “वो जो भी हो…. तुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं है…मुझे स्कूल के लिए देरी हो रही है…मैं आकर तुझसे बात करती हूं….बाय ” कहते हुए रीमा निकल गई, मगर मैथिली के मन में अब भी लेटर भेजने वाले इंसान का ख़्याल चल रहा था। दोपहर हो गई थी, मैथिली के घरवाले खाना खा कर आराम कर रहे थे। काफ़ी देर सोचने समझने के बाद, मैथिली ने फ़ैसला किया कि वो उस जगह पर जाएगी और उस इंसान से मिल कर रहेगी, जिसने उसे लेटर भेजा था। मैथिली ने शीशे में ख़ुद को देखते हुए कहा,
मैथिली(सोचते हुए) : “अगर आज मैंने इसे नज़र अंदाज़ कर दिया…और कल को शादी के वक्त इस शख़्स ने कुछ किया तो…तब क्या करूंगी….ये गांव हैं, यहां लोग मुझे ही गलत समझेंगे, इसलिए मेरा उस इंसान से मिलना ज़रूरी है…और मुझे जानना है कि आख़िर वो ऐसा कौन सा राज़ बताने वाला है?”
मैथिली ने अपने चेहरे पर एक कपड़ा बांधा और घर से छुपते हुए निकल गई। वो जानती थी कि दोपहर का वक्त है, गांव के लोग इस वक्त अपने अपने घरों के अंदर होंगे। मैथिली तेज कदमों से चलते हुए, नदी के किनारे जाने लगी, लेटर में पता साफ़ साफ़ लिखा हुआ था। थोड़ी ही देर में मैथिली उस जगह पर पहुंच गई, उसे आस पास लंबी लंबी घनी झाड़ियां दिखाई दे रही थी, मैथिली को अंदर से थोड़ी घबराहट भी हो रही थी। “तुम जो भी हो…मैं तुमसे मिलने आ गई हूं…प्लीज मेरे सामने आ जाओ….” मैथिली ने घबराते हुए चिल्ला कर कहा, मगर उसकी बातों का किसी ने कुछ जवाब नहीं दिया और न ही कोई वहां पर आया। मैथिली को अब और भी ज़्यादा डर लगने लगा था। मैथिली काफ़ी देर उस जगह पर खड़ी रही, तभी अचानक से उसे सामने मौजूद कुछ झाड़ियां हिलती हुई दिखाई पड़ी। मैथिली ने अपना कदम बढ़ाया ही था कि अचानक से वो रुक गई, और सामने देखते ही घबरा गई। क्या कुमार वहाँ आ चुका था? या वह जीतेंद्र था? क्या सचमें यह कोई मज़ाक था?
जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.