​​ ​​कुमार मैथिली की सारी तस्वीरों को जलाने के बाद एक बार फिर शादी के वेन्यू की ओर निकल पड़ा था। कुमार ने इस बार अलग तरह के कपड़े पहने हुए थे और सिर पर एक टोपी लगा ली थी, ताकी उसे कोई पहचान ना सके। ​​  

​​​ठीक उसी वक्त बारातियों की भीड़ में कुमार शादी के हॉल में अंदर घुस गया। उसे ऐसा लगा जैसे वो अपने मिशन में कामयाब हो चुका है। कुमार की नज़रें मैथिली को तलाश रही थी। काफ़ी देर तक इधर उधर देखने के बाद आखिर में उसे एक कमरे के अंदर मैथिली बैठी हुई मिली। कमरे में जीतेंद्र और कई सारे लोग थे। कुमार एक पिलर के पीछे छुप कर, कमरे में हो रही बातचीत को सुनने की कोशिश करने लगा।​​ ​​​मैथिली ने अपने मम्मी पापा को देखते हुए पूछा,​​  

​​​मैथिली(हैरानी से) : “क्या हुआ…आप लोगों ने मुझे और जीतेंद्र को इस तरह कमरे में क्यों बुलाया…शादी बाहर है यहां नहीं…”​​  

 

​​​मैथिली के कहते ही जीतेंद्र ने भी हां में सिर हिलाया, जिसके तुरंत बाद मैथिली की मां ने कहा, ​​​​“हम तो सोच रहें हैं कि एक शादी यहां भी करने की प्लानिंग कर लेते हैं, क्यों जीतेंद्र की मां?” ​​ ​​​अगले ही पल जीतेंद्र की मां ने भी हामी भरी। मैथिली और जीतेंद्र को अब कुछ कुछ समझ आने लगा था। मैथिली के परिवार ने अचानक से उसकी और जीतेंद्र की सगाई करने का फैसला कर लिया था। मैथिली इस फैसले से थोड़ा घबराई भी हुई थी मगर वह खुश भी थी। मैथिली ने घबराते हुए जब पूछा,​​​​ “मां अचानक से सगाई का फैसला..."​​​​ इसके जवाब में उसकी मां ने कहा,​​ ​​ “देखो बेटी…. तुम्हारे और जीतेंद्र के बीच क्या चल रहा है, हम सब जान चुके हैं, गांव वाले भी तुम दोनों को लेकर कई सारे बातें करने लगे हैं, ऐसे में हमने सोचा कि जब तुम दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर ही लिया है तो फिर इस रिश्ते को आगे बढ़ाते हैं…”​​  

​​​मैथिली ने जब ये सुना तो उसके गाल शर्म से लाल हो गए। कुछ देर पहले कुमार ने जो कुछ भी किया था, वो सब याद करते हुए मैथिली ने मन ही मन सोचा, ​​  

​​​मैथिली(मन में) : “अच्छा है…एक बार मेरी शादी हो जाएगी तो कुमार भी मुझे उसके बाद तंग नहीं करेगा।”​​  

​​​यही सोचते हुए मैथिली ने जीतेंद्र से शादी के लिए हां कह दिया, जीतेंद्र को भी यकीन नहीं हुआ कि मैथिली ने एक ही पल में हां कह दिया था। दोनों खुश थे, वहीं पिलर के पीछे से कुमार ये सब कुछ देखकर आग बबूला हो रहा था। उसने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(गुस्से से) : “मैथिली…आज ही तुमने मेरे प्यार को ठुकराया और आज ही तुमने किसी और की होने का फैसला कर लिया…नहीं मैथिली…मैं ये सब कुछ इतनी आसानी से नहीं होने दूंगा…”​​  

 

​​​कुमार, मैथिली को लेकर ये सब कुछ सोच ही रहा था कि अचानक से उसे एक पुराने दर्द का ख़्याल आया, जिसे कुमार कभी याद नहीं करना चाहता था। उसे एक भारी आवाज़ सुनाई देने लगी, ​​​​“आओ कुमार…यहां आओ….मैं जानता हूं, तुम अपने मां बाबा के प्यार के लिए तरस जाते हो….मगर फ़िक्र मत करो….वह प्यार मैं तुम्हें दूंगा और तुम्हें मज़ा भी बहुत आएगा” ​​  

​​​इस आवाज़ को सुनते ही कुमार पसीने से लथपथ हो गया, वो शादी हॉल से भाग कर बाहर आ गया। उसने अपने आस पास देखा, चारों तरफ़ सिर्फ़ सन्नाटे के अलावा और कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। कुमार की सांसे तेज़ हो गई थी, उसने ख़ुद के सिर पर मारते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(रोते हुए) : “देखा मैथिली जैसे जैसे तुम मेरी ज़िंदगी से दूर जा रही हो…मुझे वो सब याद आने लगा है…. पहले वो सब कुछ मुझे रात को सपने में दिखता था…मगर अब…” ​​  

यह ​​​कहते कहते कुमार चुप हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था की वो अब क्या करे, कैसे इस situation को संभाले। अगले ही पल कुमार को ख्याल आया कि एक बार मैथिली की जीतेंद्र से शादी हो गई तो जीतेंद्र उसकी मैथिली के क़रीब जाएगा, इस ख्याल के आते ही कुमार बौखला गया, उसने चिल्ला कर कहा,​​  

​​​कुमार(आवेश में) : “नहीं…मैथिली के क़रीब कोई दूसरा मर्द नहीं जाएगा….”​ ​  

​​​कहते कहते कुमार उसी जगह पर पागलों की तरह चिल्लाने लगा। ​​​​सुबह होने के साथ ही मैथिली के घर में हलचल बढ़ गई। पिछली रात को ही दोनों परिवारों के बीच फ़ैसला हो गया था कि सुबह होते ही मैथिली और जीतेंद्र की सगाई हो जाएगी और फ़िर दो महीने बाद धूमधाम से दोनों की शादी होगी।​​ ​इस वक्त मैथिली के घर को सजाया जा रहा था, घर के चारों तरफ फूलों की लंबी - लंबी लड़ियां लगाई थी। कुमार थोड़ी ही दूरी पर, चाय की टपरी से मैथिली के घर पर नजर रखे हुए था। ​​​ठीक उसी वक्त कुमार ने घर के आंगन में मैथिली को निकलते हुए देखा, मैथिली ने एक पिंक कलर का सुन्दर सा लहंगा पहना हुआ था, जो उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहा था। कुमार मैथिली की खूबसूरती में एक पल के लिए खो गया। उसे आज मैथिली किसी परी से कम नहीं लग रही थी। कुमार को ऐसा लग रहा था मानो मैथिली आज उसके लिए तैयार होकर आई है, उसने उसकी नजर उतारते हुए कहा​​  

​​​कुमार (प्यार से) : "मैथिली तुम आज कितनी सुन्दर लग रही हो....( Pause).... तुम्हें किसी की नजर ना लगे..."​​  

 

​​​कुमार ने नज़र वाली बात कही ही थी कि ठीक उसी वक्त पर जीतेंद्र आया। जीतेंद्र का चेहरा देखते ही कुमार के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई और उसे एहसास हुआ कि मैथिली, जीतेंद्र से सगाई करने के लिए इस तरह से तैयार हुई है। ​​ ​​​इधर जीतेंद्र ने मैथिली को देखते ही कहा, ​

​​जीतेंद्र: “​​​​आज तुम बाकी दिनों से सच में बहुत खूबसूरत लग रही हो..."​​  

कुमार दोनों को इतना करीब देखकर गुस्से से दहकने लगा था। कुमार ने अपनी आंखों के सामने जीतेंद्र को अंगूठी निकालते हुए देखा। अगले ही पल जीतेंद्र ने उस अंगूठी को मैथिली के सीधे हाथ की तीसरी उंगली पर पहनाया, जिसके तुरंत बाद चारों तरफ़ से तालियों की आवाज़ आने लगी। ये आवाज़ कुमार को सुई की तरह चुभ रही थी।​​ ​​​कुमार ने तभी देखा, जीतेंद्र ने सभी के सामने मैथिली का हाथ पकड़ा और उसे चूम लिया, ये देखते ही कुमार ने गुस्से से हाथ में पकड़ा हुआ कांच का ग्लास फोड़ दिया, जिसमें गर्म चाय भरी हुई थी। कुमार का हाथ कांच से कट गया, उसका पूरा हाथ ख़ून से भर गया मगर कुमार को इसका होश ही नहीं था। ​​​​उसने जीतेंद्र और मैथिली को अलग करने के लिए मन ही मन प्लान बनाना शुरू कर दिया, वो जानता था कि उसे जल्द ही कुछ करना होगा क्योंकि दो महीने बाद जीतेंद्र और मैथिली की शादी होने वाली थी।​​  

​​​इधर दूसरी तरफ़ जीतेंद्र और मैथिली की एक साथ फोटो खींची गई। मैथिली, जीतेंद्र के कंधे पर सिर रखकर बैठी हुई थी, वहीं दूसरे पोज़ में जीतेंद्र और मैथिली दोनों एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे। दोनों एक साथ काफ़ी अच्छे लग रहे थे, दोनों को देख रीमा ने खुशी से कहा​​​​, "दोनों कितने सुन्दर लग रहे हैं….मुझे लगता है तुम दोनों को ऊपर वाले ने एक दुसरे के लिए ही बनाया है….”​​ ​​​कुछ ही देर में सगाई का कार्यक्रम खत्म हुआ और सभी मेहमानों के जाने के बाद जीतेंद्र ने मैथिली को गले लगाया और वहां से चला गया।  इधर कुमार के दिमाग में बहुत सारे ख्याल आने लगे, तभी कुमार ने खुद पर काबू करते हुए कहा, ​​  

​​​कुमार (खुद से) : "कुमार फोकस कर…. तुझे मैथिली के सामने अपने प्यार को साबित करना होगा और उस जीतेंद्र को उससे दूर करना होगा…. नहीं तो फ़िर क्या होगा ये तू अच्छी तरह से जानता है…”​​  

 

​​​ये ख्याल आते ही कुमार के माथे पर एक शिकन आ गई, उसे एक डर सताने लगा, कुमार ने फ़ैसला किया कि उसके साथ जो हुआ था, वो मैथिली के साथ नहीं होगा। पूरी रात कुमार आसमान में देखता रहा और सोचता रहा कि कैसे वह जीतेंद्र और मैथिली को अलग कर सके। तभी उसके दिमाग में अचानक से एक idea आया और उसका उतरा हुआ चेहरा एक दम खिल उठा। ​​  

​​​कुमार (शैतानी मुस्कराहट के साथ) : "अब मैं भी देखता हूं कि जीतेंद्र, मैथिली से कैसे अलग नहीं होता..."​​  

 

​​सगाई के अगले दिन, मैथिली घर के बाहर कुर्सी पर बैठे कुछ सोच रही थी। वो आज बहुत खुश थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी शादी सच में जीतेंद्र से होने वाली है। मैथिली, जीतेंद्र की पहनाई हुई अंगूठी को देखते हुए मुस्कुरा रही थी। वह मैथिली इस बात से अनजान थी कि दूर से दो आंखें उस पर नज़र बनाए हुई थी। ​​  

​​​ये कोई और नहीं बल्कि कुमार था, जो अपने घर की छत पर खड़ा होकर दूरबीन से मैथिली को देखे जा रहा था। कुमार ने जैसे ही मैथिली को सगाई की अंगूठी को निहारते हुए देखा, उसके चेहरे के भाव बदल गए। कुमार सोच ही रहा था की तभी उसकी नजर दूर से आते हुए जीतेंद्र पर पड़ी, जो सीधे मैथिली के घर की तरफ ही चला आ रहा था। ​​ ​​​जैसे ही मैथिली ने जीतेंद्र को आते हुए देखा तो उसका चेहरा और भी ज़्यादा खिल गया। जीतेंद्र के चेहरे पर मगर इस वक्त कुछ और ही भाव नज़र आ रहे थे। मैथिली ने जब इसके पीछे का कारण पूछा, तो जीतेंद्र ने तपाक से कहा,​​  

​​​जीतेंद्र(सोचते हुए) : “मैथिली….मैं उस लड़के के बारे में सोच रहा था….क्या नाम बताया था उसका…..(pause)... कुमार…हां…क्या उसने फ़िर तुमसे कुछ कहा क्या?”​​  

​​​मैथिली को समझ नहीं आया कि अचानक से जीतेंद्र, कुमार के बारे में क्यों पूछ रहा है। मगर अगले ही पल मैथिली के बदले रीमा ने पीछे से आते हुए जवाब दिया​​​​, “वो एक शरारती लड़का है…जो शरारत कर रहा था…क्या तुम उससे घबरा रहे हो दूल्हे बाबू?”​​  

​​​जीतेंद्र(तपाक से) : “नहीं…नहीं मैं घबरा नहीं रहा हूं…मुझे बस लगा कि कल मेरी और मैथिली की सगाई हो गई और उसने कुछ कहा तक नहीं…. उस दिन के बाद से वो दिखाई ही नहीं दिया….”​​  

 

​​​जीतेंद्र के मुंह से कुमार की बातें सुन कर मैथिली ने उससे कुछ और बात करने को कहा। तीनों को लग रहा था कि कुमार को सबक मिल गया है, वो अब कोई शरारत नहीं करेगा, मगर किसी को भी ये पता नहीं था कि इस वक्त उसके दिमाग़ में एक प्लान चल रहा था। कुमार बस सही समय का इंतज़ार कर रहा था। कुमार कोई आम लड़के जैसा नहीं था, वो मैथिली के प्यार में पागल था और इतनी आसानी से कुमार रुकने वाला भी नहीं था। जीतेंद्र और रीमा सोच भी नहीं सकते थे कि आगे कुमार मैथिली के लिए किस हद तक जाने वाला था।​​  

अचानक से मैथिली ने पूछा,​​​​ “जीतेंद्र तुम यहां किसी काम से आए थे क्या?”​​​​ जीतेंद्र ने तभी बताया कि वो मैथिली को बाज़ार घुमाने के लिए ले जाने आया है।​​ ​​​इधर दूसरी तरफ़ अपने छत पर मौजूद कुमार दूरबीन से तीनों को देख तो रहा था मगर उनकी बातें उसे सुनाई नहीं दे रही थी। कुमार ने बड़बड़ाते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(गुस्से से) : “जीतेंद्र को देख कर लगता है कि वो मेरी मैथिली को कहीं ले जा रहा है…। ​

 

​​​कुमार इतना कहने के बाद वहां से अपने कमरे में गया और तैयार होकर घर से बाहर जाने लगा। ठीक उसी वक्त उसके बाबा ने उसे रोकते हुए पूछा, “​​​​आज कल तू कर क्या रहा है…कभी भी घर में आता है और कभी भी निकल जाता है, तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है?”​​  

​​​अपने बाबा की बात सुनते ही कुमार के चेहरे के expressions बदल गए। उसे उन्हें देख ऐसा लगने लगा जैसे उसे अब अपने बाबा से नफ़रत हो गई हो, इसके पीछे भी एक राज़, कुमार के सीने में दफ़न था। कुमार अपने बाबा की बात को नज़र अंदाज़ करते हुए जाने लगा कि तभी उसकी मां ने कड़क आवाज़ में पूछा, “​​​​इस तरह बिना ज़वाब दिए कहां जा रहा है…तेरे बाबा ने कुछ पूछा है…बता क्या करता रहता है आज कल?”​​  

​​​अपनी माँ को देखते हुए कुमार ने ज़वाब दिया,​​  

​​​कुमार(sarcastically) : “किस हक से पूछ रहे हैं आप लोग ये सब….हम तीनों का रिश्ता तो बस इतना रह गया है कि मैं आप दोनों के घर में रहता हूं, खाता पीता हूं…बस…इससे ज़्यादा कुछ नहीं।”​​  

 

​​​अपने बेटे के मुंह से ऐसी बातें सुन कुमार के मां बाबा बुरी तरह से हैरान हो गए। उनको एक पल के लिए अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ। वो आगे कुछ कहते कि इससे पहले ही कुमार घर से बाहर चला गया। ​​ “​​ये कैसा ज़वाब था तुम्हारे बेटे का…कुमार की मां…. इतनी कड़वाहट कहां से आ गई इसके अंदर?”​​​​ कुमार के बाबा ने हैरानी से पूछा, जिसका जवाब उसकी माँ के पास भी नहीं था।​​  ​​​शाम के क़रीब 5 बजे मैथिली जब घर वापस आई, उसे दरवाज़े पर एक छोटा सा बॉक्स दिखाई पड़ा।​​ ​​​“ये क्या है…” ​​​​कहते हुए मैथिली ने जैसे ही उस बॉक्स को उठाया, उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।​​ ​ऐसा क्या था उस बॉक्स के अंदर? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग। 

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