मैथिली पूरी तरह से excited होकर उस बॉक्स को खोल रही थी। तभी उसने देखा कि बॉक्स के अंदर एक लेटर है, जिसके कागज़ का रंग खूनी लाल था। मैथिली ने उस लेटर में लिखे शब्दों को पढ़ना शुरू किया, "अगर ये शादी हुई तो शादी वाले दिन एक बहुत बड़ा राज़ सबके सामने आएगा... जो जीतेंद्र की ही नहीं बल्कि सबकी ज़िंदगी बदल कर रख देगा.... मैंने पहले ही चेताया है कि ये शादी एक श्राप है...."
मैथिली इस पूरे लेटर को पढ़ने के बाद बदहवास होकर बिस्तर पर गिर गई। उसके माथे से पसीना टपकने लगा। मैथिली की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो करे तो करे क्या? उसने ख़ुद से कहा,
मैथिली(परेशान होकर) : "क्या ये लेटर लिखने वाला कुमार है....मगर उसकी राइटिंग को मैं जानती हूं.....तो फ़िर ये कौन है... मैं कुछ नहीं समझ पा रही हूं....क्या सही है और क्या गलत...(Pause)..... और ये किस राज़ की बात कर रहा है?"
मैथिली इतना ज़्यादा सोचने लगी थी कि उसने अचानक से जीतेंद्र को फोन लगा दिया, मगर जीतेंद्र उसका कॉल उठा नहीं रहा था। मैथिली भी कहां शांत बैठने वाली थी, वो बार बार जीतेंद्र को कॉल किए जा रही थी। दसवीं बार में जैसे ही जीतेंद्र ने कॉल उठाया, मैथिली ने कहना शुरू किया, "कहा बिजी हो यार! मैथिली को इस तरह हड़बड़ाया हुआ देख कर जीतेंद्र को समझ नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या है। उसने उसे बताया कि वो बच्चों के कुछ इग्ज़ैम पेपर चेक कर रहा था, थोड़ी देर बाद जैसे ही मैथिली शांत हुई, उसने जीतेंद्र से पूछा,
मैथिली(सोचते हुए) : "जीतेंद्र.... क्या कोई ऐसी बात है, जो तुमने मुझे बतायी नहीं है... या तुम मुझे बताना चाहते हो। या कोई राज़ जो तुमने मुझसे छुपाया हो?"
जीतेंद्र मैथिली की बात सुन कर हैरान हो गया, उसे एक पल के लिए समझ नहीं आया कि आख़िर मैथिली के कहने का मतलब क्या है? उसने तपाक से कहा, "
जीतेंद्र: मैथिली आख़िर बात क्या है...कुछ हुआ है क्या?"
मैथिली(बिगड़ते हुए) : "मुझे कुछ नहीं हुआ है... लेकिन तुम मुझे बताओ जो मैंने पूछा, क्या तुम्हें मुझे कुछ बताना है?"
जीतेंद्र ने एक बार में ही ना में सिर हिला दिया। मैथिली को मगर यकीन नहीं हुआ,उसने दोबारा जीतेंद्र से पूछा, इस बार जीतेंद्र थोड़ा झल्लाते हुए बोला, "
जीतेंद्र (झल्लाते हुए) एक बार कहा न...कोई बात नहीं है... और तुम क्या मेरा इग्ज़ैम ले रही हो... तब से मैं पूछ रहा हूं कि बात क्या है...बता ही नहीं रही हो?"
मैथिली ने पहली बार जीतेंद्र को इस तरह बात करते हुए सुना था, उसे अगले ही पल समझ आ गया कि अगर उसने इस वक्त ज़्यादा कुछ कहा तो बड़ी बहस हो जाएगी, इसलिए मैथिली ख़ामोश हो गई और चुप चाप बिना कुछ बोले फोन काट दिया। वहीं इधर दूसरी तरफ़ कुमार अभी रुकने वाला कहां था, वो जीतेंद्र के बारे में पूरे गांव में गलत अफ़वाह फैला रहा था। इस वक्त वो कुछ लोगों के बीच बैठा हुआ था, जहां पर गांव के कई सारे नौजवान लड़के बैठे हुए थे। "मैथिली मैडम की शादी में बहुत मज़ा आने वाला है...सुना है कि कई तरह के पकवान बनाए जा रहे हैं...." एक लड़के ने कहा, जिसके जवाब में कुमार ने तपाक से कहा,
कुमार(धीरे से) : "मुझे तो मैथिली मैडम के लिए बहुत बुरा लग रहा है...उन्हें एक अच्छा लड़का मिलना चाहिए था... मगर क्या ही कर सकते हैं?"
कुमार की बात से वहां मौजूद सारे लड़के हैरान हो गए और कुमार के ऐसा कहने का कारण पूछने लगे। शुरू में तो कुमार ने जान बूझकर बात को नज़र अंदाज़ किया मगर फिर सही मौक़ा देख कर उसने अपनी बात की शुरुआत की,
कुमार(सोचते हुए) : "नहीं... मतलब मैंने कई लोगों से सुना है कि जीतेंद्र सर कई साल शहर में रह कर आएं और वहां उनका कई सारी लड़कियों के साथ चक्कर था ....(Pause).... अब मुझे नहीं पता कि ये बातें सच है या नहीं...मगर स्कूल में कई लड़कों का कहना है कि जीतेंद्र सर जब शहर में रहते थे, तो अकेले नहीं रहते थे! किसी लड़की के साथ रहते थे वो भी बिना शादी के! अब ये तो ऐय्याशी हुई ना भाई..."
कुमार की बातों ने सभी को चौंका दिया था। कुमार जानता था कि अब ये बात पूरे गांव में फ़ैल ही जाएगी, क्योंकि गांव में ये सब बातें आग की तरह फ़ैल जाती थी। कुमार ने जीतेंद्र को याद करते हुए कहा,
कुमार(cunning smile से) : "जीतेंद्र...सर.... क्या करें... अब तुम्हारी शादी रुकवाने के लिए ये सब तो करना ही होगा.... काश!!... तुम मेरे और मैथिली के बीच नहीं आए होते ..."
पूरा गांव अब जीतेंद्र के बारे में बातें करने लगा था। सुबह सुबह मैथिली जब मंदिर जा रही थी, उसने गौर किया कि कई लोग उसे आज अजीब नज़रों से देख रहे थे। मैथिली को लोगों का ये बदला अंदाज़ कुछ अजीब लगा, उसने एक बूढ़ी काकी से पूछा भी कि कहीं कोई बात है क्या... मगर बूढ़ी काकी ने बात बदल दी। मैथिली सोचते हुए मंदिर प्रांगण में चली गई और शिवलिंग की पूजा करते हुए मंत्र पढ़ने लगी। मैथिली ने थोड़ी देर बाद, जब पंडित के पैर छुए तो पंडित जी ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "महादेव तेरे साथ अच्छा करेंगे बेटी....वो किसी के साथ ग़लत नहीं करते.."
मैथिली को पंडित जी की बात अजीब लगी, उसने तपाक से जब इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बात को टाल दिया। मगर मैथिली भी इतनी आसानी से कहां मानने वाली थी, उसने ज़िद करते हुए कहा,
मैथिली(ज़िद करते हुए) : "नहीं पंडित जी.... मुझे बताइए कि बात क्या है.... आपको देख कर ही लग रहा है कि आप कुछ छुपा रहे हैं, बताइए क्या बात है...."
आख़िर में पंडित जी बात को टाल नहीं पाए, उन्होंने अगले ही पल कहा, "देखो बेटी... शादी इंसान को सोच समझ कर करना चाहिए.... इसलिए मैं तुम्हे यही कहूंगा कि तुम पहले जीतेंद्र के बारे में अच्छे से सब कुछ जान लेना....तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो... मेरी बेटी की तरह हो, इसलिए मुझे तुम्हारी चिंता है.... बाकी महादेव भला करें।"
इतना कहते हुए पंडित जी वहां से चले गए, मैथिली उनसे और बात करना चाहती थी मगर वो वहां से ध्यान करने जा चुके थे। इधर अब मैथिली मन ही मन सोचते हुए घर की तरफ़ जाने लगी कि आख़िर पंडित जी ने वैसा क्यों कहा, क्या कारण हो सकता था? मैथिली को पूरे रास्ते लोग अजीब नज़रों से देखते रहे, वो जैसे ही घर के आई, उसने आंगन में रीमा को खड़ा देखा, जो बेसब्री से यहां वहां टहल रही थी। मैथिली को देखते ही रीमा ने उसके पास आकर कहा, "मैथिली तू...ठीक तो है न...मुझे तेरी चिंता हो रही थी!"
मैथिली को रीमा के कहने का मतलब समझ नहीं आया, उसने पूछा, "क्या मतलब, मुझे क्या हुआ है?" मैथिली के इस सवाल से रीमा समझ गई कि उसे कुछ नहीं पता है। रीमा ने आगे कहा, "गांव वाले जीतेंद्र को लेकर बातें कर रहे हैं....तुझे नहीं पता क्या?" मैथिली ने तपाक से ना में सिर हिला दिया, जिसके बाद रीमा सोच में पड़ गई। मैथिली उससे ज़िद करने लगी कि आख़िर पूरी बात क्या है, बहुत पूछने पर रीमा ने कहा, "वो गांव वाले आपस में बातें कर रहे थे कि जीतेंद्र जब शहर में रहता था...वो वहां किसी लड़की के साथ बिना शादी के रहता था...."
मैथिली ने जैसे ही ये सुना, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसे समझ नहीं आया कि वो कैसे रीऐक्ट करे, उसने पहले हंसते हुए रीमा से कहा, "तू मेरे साथ मज़ाक कर रही है ना?" मगर रीमा ने जैसे ही दोनों की दोस्ती की कसम खाई, मैथिली का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। रीमा ने उसे समझाते हुए कहा, मैथिली... मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ होगा....गांव वालों को ज़रूर कोई ग़लत फ़हमी हुई होगी....(Pause).... मगर फ़िर भी तुम्हें एक बार उससे बात कर लेनी चाहिए..."
मैथिली(धीरे से) : "नहीं रीमा....इस तरह लोगों के कहने पर अगर मैं जीतेंद्र पर शक करने लगी तो फ़िर हमारा रिश्ता शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगा....मुझे जीतेंद्र पर पूरा विश्वास है।"
एक तरफ़ मैथिली जीतेंद्र पर विश्वास के दावे कर रही थी तो वहीं इधर दूसरी तरफ़ जीतेंद्र गांव के बाहर मौजूद कैफै में बैठा हुआ था। आज वो कैफै के अंदर कोने में बैठा हुआ था, जहां किसी की भी नज़र उस पर ना पड़े। जीतेंद्र टेबल पर बैठे किसी का इंतज़ार कर रहा था, ठीक उसी वक्त पर वहां पर एक लड़की आई। उसे देख कर लग रहा था कि वो शहर से आई है। "Hey!... जीतेंद्र... what's up....." उस लड़की ने जैसे ही कहा, जीतेंद्र ने उठ कर उसे हग किया और फिर उसे सामने कुर्सी पर बैठने को कहा। जीतेंद्र ने उसका हाथ पकड़ रखा था। दोनों हंसते हुए बातें कर रहे थे। दोनों अपने में ही इतने बिजी थे कि उनको एहसास भी नहीं था कि उनसे थोड़ी ही दूरी पर एक शख़्स बैठा था और चुपके से दोनों की तस्वीरें खींच रहा था। ये शख़्स कोई और नहीं बल्कि कुमार था, उसने अपना फोन इस तरह से पकड़ा हुआ था कि किसी को भी देख कर नहीं लग रहा था कि कुमार किसी की तस्वीरें खींच रहा है। कुमार ने चार पांच तस्वीरें खींची और एक कुटिल मुस्कान लिए कैफै से निकलता हुआ बोला,
कुमार(कुटिल मुस्कान लिए) : "क्या यार जीतेंद्र सर! इतनी अच्छी लड़की है आपके साथ और आप हो की मैथिली के पीछे पड़े हो, बहुत गलत बात है। अब बटाईए मैथिली जब इन तस्वीरों को देखेगी तो उसने कितना बुरा लगेगा! वो रोएगी! फिर उसे कंधा कौन देगा?? अरे! मैं दूंगा ना! मैथिली का कुमार!
शाम के वक्त मैथिली आंगन में हलवाइयों को कुछ कह रही थी, तभी अचानक से एक बच्चा उसके पास आया और उसने एक लिफाफा मैथिली को देते हुए कहा, "मैथिली दीदी.... ये आपको उसने देने को कहा है..." मैथिली बच्चे से आगे पूछती कि इससे पहले ही बच्चे ने लिफाफा मैथिली को थमाया और वहां से चला गया। मैथिली हैरानी से उस लिफ़ाफे को देखने लगी। उसे समझ नहीं आया कि किसने भेजा होगा ये लिफाफा, मैथिली ने जैसे ही उसे खोला, उसे जीतेंद्र की तस्वीरें दिखाई, वो एक अनजान लड़की को हग किए हुए था, दूसरी तस्वीर में उसने लड़की का हाथ पकड़ा था। मैथिली इन तस्वीरों को देख ही रही थी कि उसे उन्हीं के बीच एक कागज़ मिला, जिसमें लिखा था, "छी छी छी! मतलब गाँव में जो बातें हो रही है वह लगता है सच ही है मैथिली!..."
मैथिली की आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे, वो सिसक सिसक कर रोने लगी। आस पास मौजूद लोग उसे रोते हुए देखते, इससे पहले ही मैथिली भागती हुई रीमा के घर की तरफ़ जाने लगी। इस वक्त उसके दिमाग़ में सवालों का तूफ़ान उठा हुआ था। थोड़ी ही देर में जैसे ही रीमा को मैथिली ने सारी तस्वीरें दिखाई, रीमा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसने एकाएक ही कहा, "तो क्या गांव वाले जो कह रहे थे....(Pause)... नहीं... नहीं जीतेंद्र ऐसा नहीं है.... ज़रूर कुछ ग़लत फ़हमी हुई है... मैथिली तुझे उससे बात करनी चाहिए..."
मैथिली(बिफरते हुए) : "मुझे अब किसी से कुछ बात नहीं करनी है...सारा सच बाहर आ गया... मैंने कितना विश्वास किया था जीतेंद्र पर...."
मैथिली गुस्से से बड़बड़ाए जा रही थी, मगर वहीं रीमा ने जीतेंद्र को उसके घर आने को कह दिया था, रीमा जानती थी कि अगर दोनों के बीच बात नहीं हुई तो बात बिगड़ सकती थी। क़रीब आधे घंटे बाद, जैसे ही जीतेंद्र रीमा के घर आया, उसने मैथिली को वहां देखा। मैथिली उसे देखते ही बोली,
मैथिली(फुफकारते हुए) : "धोखेबाज...तुमने मुझे धोखा दिया है...\चले जाओ मेरी नज़रों के सामने से..."
जीतेंद्र को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैथिली उसे ऐसा क्यों कह रही है? उसने शांत भाव से ही पूछा, "
जीतेंद्र: मैथिली आख़िर बात क्या है...क्यों तुम मुझे धोखेबाज कह रही हो... आख़िर मैंने किया क्या है?"
मैथिली(गुस्से से) : "तुमने मुझे धोखा दिया है... और इसके बाद भी भोले बन कर पूछ रहे हो कि तुमने किया क्या है?"
सारी बातें जीतेंद्र के सिर के ऊपर से जा रही थी, तभी रीमा ने सारी तस्वीरें जीतेंद्र को दिखाई और वो सब बताया, जो गांव वाले बातें कर रहे थे। उन तस्वीरों को देखते ही जीतेंद्र हक्का बक्का रह गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सारी तस्वीरें आज दोपहर की थी और मैथिली के पास कैसे आईं? उसने पूछा,
जीतेंद्र(चौंक कर) : "ये... ये सारी तस्वीरें तुम्हारे पास कैसे आई मैथिली... क्या तुम मेरा पीछा कर रही थी... क्या तुम्हें मुझ पर शक है मैथिली...बताओ?"
जीतेंद्र का चेहरा बता रहा था कि उसे शॉक लगा था। रीमा भी उसके बर्ताव को देख कर हैरान थी। उसने जीतेंद्र से पूछा, "जीतेंद्र ये सवाल अभी ज़रूरी नहीं है...."
जीतेंद्र (बात काटते हुए) : "ज़रूरी है रीमा...मुझे ये जानना है कि क्या मैथिली मेरा पीछा कर रही थी?"
एक पल के लिए वहां पर ख़ामोशी छा गई, मैथिली ने कुछ देर सोचने के बाद कहा,
मैथिली(कड़क आवाज़ में) : "वो मैं बता दूंगी.... पर पहले मुझे जानना है कि तुम इस लड़की से आज कैफै में क्यों मिलने गए थे? कौन है यह लड़की? और इतना छुप कर क्यों बैठे हो इसके साथ तुम?"
जीतेंद्र अब एक पल के लिए शांत हो गया, उसका चेहरा सुखने लगा था। मैथिली और रीमा ने दोबारा ये सवाल जीतेंद्र से किया, आखिर में जीतेंद्र ने कहा,
जीतेंद्र(धीरे से) : "हां ये तस्वीर सही है.... और मैं इसी लड़की को बस में बिठा कर आ रहा हूं..."
"कौन है ये तुम्हारी?" इस सवाल का जवाब जीतेंद्र ने जब दिया, मैथिली और रीमा दोनों ही चौंक पड़ी, दोनों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। क्या कहा जीतेंद्र ने ऐसा?
जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।
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