​​​मैथिली ने जब जीतेंद्र से सवाल किया कि आख़िर क्या रिश्ता है उसका और उस लड़की का, जिसके साथ वो कैफै में मिलने गया था। इस सवाल को सुनकर जीतेंद्र थोड़ा सा घबरा गया था, मगर वो जानता था कि उसे क्या जवाब देना है। उसने एक गहरी सांस लेते हुए कहना शुरू किया,​​  

जीतेंद्र​(शांत भाव से) : "जब मैं शहर में रहता था, तब कॉलेज टाइम में वो मेरी दोस्त बनी थी।"​​  

​​​रीमा और मैथिली खामोश थे, वो आगे सुनना चाहते थे। मैथिली अभी कोई भी राय नहीं बनाना चाहती थी और ना ही जीतेंद्र को जज करना चाहती थी इसलिए उसने चुप चाप जीतेंद्र की बातों को सुनते हुए आगे कहने का इशारा किया। जीतेंद्र ने आगे कहा, ​​  

जीतेंद्र​(soft tone में) : " रहा सवाल मेरा आज इससे कैफै में मिलने का, तो ये सब कुछ मैंने तुम्हारे लिए किया। वो एक वेडिंग organiser है। मैंने तुम्हारे लिए एक सप्राइज़ सोचा था कि जब शादी में तुम मुझे वरमाला पहनाओगी उस वक्त क्या थीम रहेगा और किस तरह से हम दोनों लोगों के सामने आएँगे....."​​  

​​​इतना कहने के बाद जीतेंद्र ने मैथिली की आंखों में देखा, मगर उसे कोई भी भाव नहीं नज़र आया। जीतेंद्र ने आगे बताना शुरू किया, "​​​

​​जीतेंद्र: तुम्हें अगर याद होगा तो उस रात जब स्टेज पर आग लगी थी और हम दोनों की फोटो जली, तुम बहुत रोई थी। उसी वक्त मैंने सोचा था कि मैं तुम्हारे लिए इस बार कुछ ऐसा करूँगा कि तुम्हारा वो सारा दुख दूर हो जाएगा।"​​  

जीतेंद्र​ की बात सुनने के बाद मैथिली को मन ही मन अजीब लगने लगा। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था मगर कहीं ना कहीं अंदर ही अंदर मैथिली को अब भी जीतेंद्र की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था, न जाने ऐसा क्या हो गया था, उसे लग रहा था कि जीतेंद्र एक कहानी बना रहा है। मैथिली ने काफी सोचने के बाद उससे बस यही पूछा कि अगर ऐसी बात थी तो वो उसे भी तो ले जा सकता था, मगर तभी जीतेंद्र ने जवाब दिया, ​​​"

​​जीतेंद्र: मैथिली सप्राइज़ का मतलब समझ में आता है? मैं तुम्हें सप्राइज़ देना चाहता था। मैं उस व्वक्त स्टेज पर तुम्हारा रिएक्शन देखना चाहता था!!....(pause)...क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?​​”  

​​​जैसे ही जीतेंद्र के मुँह से भरोसे का शब्द निकला मैथिली ने रीमा की तरफ देखा। रीमा भी कहीं ना कहीं अब अंदर ही अंदर खुद को कोस रही थी कि उसने गांव वालों की बात पर ज्यादा ध्यान दिया। ​​ ​अगले ही पल उसने बात को संभाले हुए जीतेंद्र को वो सब कुछ बताया, जो कुछ भी गांव वाले जीतेंद्र के बारे में बातें कर रहे थे। जीतेंद्र सारी बातें सुनने के बाद अपना सर पकड़कर बैठते हुए बोला, "​​​​ये गांव वाले छोटी सी बात का बतंगड़ बना देते हैं। मतलब मैं क्या ही बोलू इन लोगों को...."​​ ​​​इतना कहने के बाद जीतेंद्र ने मैथिली का हाथ पकड़ते हुए पूछा,​​  

जीतेंद्र​ (nervous होते हुए) : "मैथिली मुझे दुनिया से कोई मतलब नहीं। मैं बस तुमसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा है?"​​  

​​​मैथिली अब चुपचाप होकर जीतेंद्र की आँखों में देख रही थी। उसे इस वक्त बहुत ही अजीब लग रहा था। उसकी धड़कनें तेज थीं, चेहरे पर अलग अलग भाव आ जा रहे थे। काफी देर तक सोचने के बाद मैथिली ने झिझकते हुए हां में सर हिला दिया। ​​ ​​​एक तरफ जहाँ जीतेंद्र और मैथिली आपस में बातें कर रहे थे तो वहीं इधर दूसरी तरफ कुमार मैथिली के ही घर के थोड़ी दूरी पर बेंच पर बैठा मुस्कुरा रहा था। उसने मैथिली के घर की तरफ देखते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(cunning smile से) : "मुझे पता है वो जीतेंद्र तुम्हें अपनी मीठी बातों से उलझा ही लेगा मैथिली मगर तुम चिंता मत करो, अभी एक और धमाका होना बाकी है और वो जब होगा तो जीतेंद्र के परिवार को भी उसका बढ़िया एहसास होगा। बस तुम देखते जाओ....मैंने तुमसे कहा था.... तुम सिर्फ मेरी हो।"​​  

​​​इतना कहते हुए कुमार ने एक लिफाफा निकाला और उसे देखकर शैतानी मुस्कान मुस्कुराने लगा। उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वो कुछ बड़ा प्लान कर रहा है इस बार। कुमार के दिमाग में क्या चल रहा था सिर्फ वो ही जानता था। ​​ ​​​कुमार उसी जगह पर बैठकर किसी का इंतजार कर रहा था, तभी उसे सामने थोड़ी दूरी पर मैथिली के पिताजी आते हुए दिखाई पड़े। उन्हें देखते ही कुमार के चेहरे की मुस्कान और बड़ी हो गई। वो अगले ही पल अपनी जगह से उठा और उसने रास्ते में लिफाफे से कुछ फ़ोटोज़ निकालकर गिरा दिए और वो लिफाफा वहीं छोड़ दिया। ये करने के बाद कुमार जाकर एक पेड़ के पीछे छुप गया और देखने लगा कि अब आगे क्या होता है? ​​  

​​​थोड़ी देर बाद मैथिली के पिताजी जब उस जगह पर आए तो उन्होंने जमीन पर कुछ गिरा देखा। ना चाहते हुए भी उनका ध्यान लिफाफे और लिफाफे से बाहर निकली कुछ तस्वीरों पर पड़ा।​​ ​​​"ये किसकी तस्वीर यहां इस तरह से गिर गई है.." ​​​​कहते हुए मैथिली के पिताजी ने जैसे ही उन तस्वीरों को उठाकर देखा, वो बुरी तरह से हैरान हो गए। उनको अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ। उन्होंने उसी जगह पर ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा, ​​​​"जीतेंद्र!!!!.....ये क्या धोखा है मेरी बेटी के साथ।"​​ ​​​मैथिली के पिताजी को इस तरह से गुस्से से चिल्लाता देख, पेड़ के पीछे छुपे कुमार को काफी खुशी हो रही थी। उसने एक शैतानी मुस्कान के साथ कहा ​​  

​​​कुमार(devil smile से) : "ये हुई ना बात.....अब जीतेंद्र का असली चेहरा सबके सामने आएगा। मैथिली अब तुम्हें ये मानना ही होगा कि जीतेंद्र तुम्हारे लिए सही इंसान नहीं है, इस दुनिया में अगर कोई तुम्हारे लिए सही है तो वो मैं हूँ सिर्फ मैं.....तुम्हारा कुमार।"​​  

​​​इधर दूसरी तरफ करीब आधे घंटे के बाद मैथिली के घर पर बवाल शुरू हो गया था। इस वक्त जीतेंद्र, मैथिली के कमरे में बीचोंबीच खड़ा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो कोर्ट रूम में खड़ा है और अब उसके साथ सवाल जवाब का सिलसिला शुरू होगा। ​​  

​​​उसके चारों तरफ उसके और मैथिली के घरवाले खड़े थे। मैथिली के पिताजी ने ज़ोर से पूछा, ​​​​"जीतेंद्र मैंने तुम्हें कभी भी अपने बेटे से कम नहीं माना। तुम खुद सोचो...जैसे ही हमें पता चला कि तुम्हारा और मैथिली का कुछ चल रहा है, मैंने बिना विरोध किए सीधा तुम दोनों की शादी करा देने का फैसला किया, मगर इन तस्वीरों को देखकर मुझे मेरे फैसले पर पछतावा हो रहा है।"​​  

​​​अगले ही पल जीतेंद्र के पिताजी ने बीच में आकर यही समझाने की कोशिश की कि उनका बेटा कुछ भी गलत नहीं कर सकता है। उनको अपने बेटे पर पूरा भरोसा है। जीतेंद्र के पिताजी अपने बेटे का पूरा साथ दे रहे थे मगर वहीं मैथिली का पूरा परिवार, यहाँ तक कि इस वक्त उसके चाचा-चाची भी उस कमरे में मौजूद थे।  हर कोई उन तस्वीरों को देखकर दंग था। उनको समझ नहीं आ रहा था कि जीतेंद्र एक स्कूल टीचर होकर इस तरह की गंदी हरकत कैसे कर सकता है, क्योंकि जीतेंद्र खुलेआम तस्वीरों में उस लड़की से गले मिलते हुए दिख रहा था। ​​  

जीतेंद्र​ इस वक्त कुछ कहता, इससे पहले ही मैथिली ने बीच में आकर कहा,​​  

​​​मैथिली(कठोर होकर) : "तुमने मुझे जो कुछ भी कहा और मैंने जो कुछ भी सुना, तुम सब कुछ भूल जाओ। तुम सभी को सच बताओ जीतेंद्र...."​​  

​​​मैथिली के मुँह से ऐसे शब्दों को सुनकर जीतेंद्र को झटका लगा। उसे लगा था कि उसकी बातों ने मैथिली को यकीन दिला दिया है मगर अब मैथिली से इस तरह की बातें सुनने के बाद वो दंग रह गया। उसने कहा,  ​​​​"

जीतेंद्र: मैथिली, क्या तुम्हें सच में लगता है कि मेरा उस लड़की के साथ चक्कर चल रहा है?"​​  

​​​मैथिली ने कुछ नहीं कहा मगर उसकी खामोशी ने बहुत कुछ कह दिया था। जीतेंद्र अपमान का ये घूँट पीकर रह गया और उसने एक गहरी सांस लेते हुए कहा,​​  

जीतेंद्र​ (आवेश में) : "ठीक है, अगर आप लोग सच सुनना चाहते हैं तो अब मैं कुछ कहूंगा नहीं बल्कि उस लड़की जिसका नाम सोनिया है, मैं उसे आप सबके सामने कॉल करता हूँ। मेरे और उसके बीच जो भी बातचीत होगी, आप लोग सुन लीजिएगा। उसके बाद आप सबको यकीन हो जाएगा कि आखिर सच क्या है?"​​  

जीतेंद्र​ की बात सुनने के बाद मैथिली के फैमिली वाले आपस में खुसुर फुसूर करने लगे।  वहीं जीतेंद्र के पिताजी और उसकी माँ अब भी मुँह बनाए खड़े थे। उनको ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि इस तरह से जीतेंद्र को बीचो बीच खड़ा करके, उससे सवाल जवाब किया जाए या उसके चरित्र के बारे में कुछ पूछा जाए। ​​ जीतेंद्र​ की माँ ने अपने पति से कहा,​​​​ "ये लोग अभी से ही मेरे बेटे पर इस तरह से शक कर रहे हैं। मेरा तो मन कर रहा है कि मैं इस शादी को तोड़ दूं...."​​  

जीतेंद्र​ की माँ आगे कहती, इससे पहले ही उनके पति ने उनको शांत कर दिया और चुप रहने का इशारा किया क्योंकि वे दोनों जानते थे कि कहीं न कहीं ये शादी इस तरह से टूटेगी तो नाम दोनों परिवार का खराब होगा और मैथिली एक बहुत ही अच्छी लड़की थी। गांव में उसकी जैसी खूबसूरत, संस्कारी और सुशील लड़की मिल पाना मुश्किल ही था, इसलिए जीतेंद्र के पिताजी ये शादी तोड़ना नहीं चाहते थे। ​​  

​​​थोड़ी ही देर में जीतेंद्र ने सोनिया को फ़ोन लगाया। फ़ोन स्पीकर पर था। जीतेंद्र ने सोनिया को एक पल में सब कुछ कह सुनाया, सारी बातें कहने के बाद जीतेंद्र ने सोनिया से बस यही पूछा कि वो सब को बताये कि उसके और सोनिया के बीच क्या रिश्ता है और जीतेंद्र आज उससे क्यों मिलने गया था?​​  

​​​सोनिया ने फ़ोन के दूसरी तरफ़ से कहना शुरू किया, ​​ ​"देखिए!!...आप सब जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है। जीतेंद्र और मैं classmate थे और जीतेंद्र ने शहर में मेरी कई बार मदद की थी। मुझे ये एक अच्छा इंसान लगा था इसलिए मैंने इससे दोस्ती की थी। इससे ज्यादा हमारे बीच कुछ भी नहीं है और तो और जीतेंद्र ने कई बार मेरी मदद की थी इसलिए मैंने ही इससे उल्टा कहा था कि कभी भी तुम्हें मेरी जरूरत पड़े तो तुम बेझिझक बोलना। मैं तुम्हारी मदद के लिए हमेशा तैयार हूँ... और इसलिए मैं उससे मिलने गांव के कैफै में आई थी..."​​  

​​​सोनिया ने कहा ही था कि मैथिली के चाचा ने पूछा, ​​​​"तो फ़िर तुम बिना किसी से मिले क्यों चली गई... अगर तुम्हारे मन में चोर नहीं था तो तुम जीतेंद्र के मां और पिताजी से मिली क्यों नहीं?" ​​ ​"क्योंकि मुझे decorations के लिए सारा सामान जमा करना था, और शादी में तो सबसे मिलना ही होता इसलिए मैं जल्दी वापस आ गई...." ​​  

​​​सोनिया ने अपनी सफ़ाई में कहा। कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था, जीतेंद्र ने देखा कि अभी मैथिली और उसके परिवार वाले चुपचाप खड़े एक दूसरे को देख रहे थे। उनके चेहरे के expressions बता रहे थे कि उनको  सोनिया की बातों पर भरोसा नहीं हुआ है। ​​ जीतेंद्र​ ने सोनिया को बाय बोलकर फ़ोन काट दिया। इसके बाद मैथिली को देखते हुए कहा, ​​  

जीतेंद्र​(प्यार से) : "मैथिली.... मेरा यकीन करो, मैं सिर्फ़ तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हें धोखा देने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता और तुम खुद सोचो अगर मेरा सोनिया के साथ चक्कर होता तो मैं तुम्हारे साथ शादी क्यों करता।"​​  

जीतेंद्र​ मैथिली के जवाब का इंतज़ार कर ही रहा था कि उसकी चाची ने मुंह बनाते हुए कहा, "​​​​ताकि तुम एक तरफ घरवाली रख सको और एक तरफ बाहर वाली.... शहरों में तो ये आम है, हम नहीं जानते हैं क्या?"​​  ​​​चाची के ये कहने के बाद वहाँ का माहौल और भी ज्यादा बिगड़ गया। वहाँ उस कमरे में जो अब तक थोड़ी बहुत बहस हो रही थी, उसने अब बड़ा रूप ले लिया था। जीतेंद्र के माँ बाप अब चुप नहीं रहने वाले थे, वो भी जोरों शोरों से अपने बेटे की अच्छाई के बारे में बताने लगे और मैथिली के चाचा चाची भी मैथिली को लेकर चिंता जताने लगे। ​​  

​​​मैथिली और रीमा दोनों एक दूसरे को देखते हुए सोच रहे थे कि अब आगे क्या होगा? माहौल को गरमाता देख मैथिली के पिताजी ने सभी को चुप कराया और जीतेंद्र से कहा, ​​​​"जीतेंद्र... क्या सच है और क्या झूठ...कुछ पता नहीं चल पा रहा है....इसलिए बेहतर यही होगा कि जब तक हम छानबीन ना कर लें... तुम मैथिली से ना मिलो...."​​  

​​​इस फैसले को सुनते ही जीतेंद्र का दिल दहल गया, उसने मैथिली को देखा, जो ख़ामोश थी। उसके चेहरे पर उदासी आ गई थी।​​ ​​​वहीं मैथिली भी मन ही मन सोच रही थी कि जो हुआ बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ। ​​​​​तभी अचानक से मैथिली का फ़ोन बजा और उसने  जैसे ही अपना फोन देखा, वो चौंक गई। ​​​​"ये unknown number किसका है? उठाऊं या नहीं....​​​​" मैथिली​​​​ कहते हुए सोच में पड़ गई, उसने देखा फ़िर से उसी नंबर से कॉल आ रहा है। इस बार मैथिली ने बिना ज़्यादा सोचते हुए call receive किया, ​​​​"hello... कौन बोल रहा है?"​​ ​​​मैथिली की बात सुनते ही कॉल के उस पार से किसी की आवाज़ आई, जिसे सुनते ही मैथिली का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। किसका कॉल आया था मैथिली को? अब क्या चाल चली है कुमार ने?

जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।

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