मैथिली ने जैसे ही अपना फ़ोन उठाया, तो उसे कुमार की आवाज सुनाई दी उसने एक पल के लिए अपने कमरे की ओर देखा जहाँ जीतेंद्र बैठा उसे ही देख रहा था। "मैथिली तुम मेरी आवाज़ सुन रही हो.... ज़वाब दो मैथिली..." कुमार ने जैसे ही कहा, एकाएक ही मैथिली ने जीतेंद्र को देखना बंद कर दिया, मगर जीतेंद्र ने मैथिली का घबराया चेहरा देख लिया था। उसने तपाक से पूछा, “क्या हुआ मैथिली…कौन है फोन पर…”
मैथिली(बेरुखी से) : “कोई नहीं…. और बेहतर यही होगा कि तुम यहां से चले जाओ….तुमने पापा और चाचा जी की बात सुन ही ली है…”
मैथिली के इस अंदाज़ को देखने के बाद जीतेंद्र को बुरा लगा, उसे मैथिली से ये उम्मीद नहीं थी। वो मैथिली को देखते हुए वहां से चला गया। मैथिली को भी जीतेंद्र का उतरा हुआ चेहरा देख कर बुरा लग रहा था मगर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी। उसने इसी झल्लाहट में अपना फोन काट दिया और बंद कर दिया।
दो दिन बीत चुके थे। मैथिली और जीतेंद्र की शादी रोक दी गई थी, वह अपने कमरे में बैठी रो रही थी। वहीं कुमार अपनी छत से दूरबीन की मदद से मैथिली को रोते हुए देख रहा था।
कुमार(मन ही मन) : "मुझे कुछ करना होगा, मैं मैथिली को ऐसे उदास नहीं देख सकता…. ”
कुमार अपने दिमाग में मैथिली को खुश करने की तरकीब सोच रहा था कि तभी वह एक जगह रुक गया। उसके दिमाग में एक ऐसी तरकीब आई, जिसे सोचकर कुमार के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसके अंदर एक जोश भर गया।
“मैथिली मैं तुम्हें कभी रोने नहीं दूंगा, अब मुझे ये कदम उठाना ही पड़ेगा….” इतना कहने के साथ ही कुमार छत से नीचे गया और अपने मां बाबा को तैयार होने के लिए कहने लगा। “पर बेटा हम कहां जा रहे हैं?" कुमार की मां ने पूछा, मगर कुमार ने बिना ज़वाब दिए, बस यही कहा कि उन दोनों के लिए एक surprise है। यह बात सुनकर कुमार के बाबा को गुस्सा आ गया और वह बोले, "कुमार हम कहां जा रहे हैं, पहले ये बताओ, कहीं तुमने कुछ गड़बड़ तो नहीं की है…” कुमार के बाबा पूछ ही रहे थे कि कुमार उन्हें कुछ न बताकर घर से बाहर निकल गया, कुमार के मां बाबा उसे जाते हुए देख रहे थे। "ना जाने क्या चलता रहता है इसके दिमाग़ में?" कुमार की मां ने कहा।
कुछ देर बाद कुमार घर वापस आया। उसके मां बाबा तैयार हो चुके थे। कुमार मुस्कुराते हुए अपने मां बाबा के साथ बाजार की तरफ निकल गया। दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर कुमार उन्हें कहां ले जा रहा है। “हम बाजार में क्यों आए हैं?" कुमार की मां ने पूछा। कुमार बिना कुछ बताए बस आगे चलता रहा। कुमार एक दूकान के सामने रुका जिस पर लिखा था, "हमारे यहां शादी- विवाह का सामान मिलता है।"
कुमार(धीरे से) - "मां हमें कुछ सामान लेना है…लड़की को जब पहली बार देखने जाते है शादी के लिए, हमें वो सभी सामान चाहिए। आइए मेरे साथ आइए…”
कुमार की बात सुनकर उसके मां बाबा चौंक गए। उनको अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। कुमार की मां ने सवाल किया, “बेटा किसकी शादी है और तुम हमें कहां ले जा रहे हो?" कुमार ने बिफरते हुए ज़वाब दिया,
कुमार (बिफरते हुए) : मां कहा न surprise है, आप सामान खरीदिए, थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा।”
कुमार की मां असमंजस में दूकान के अंदर चली गई। उन्होंने दुर्वा, ताजे फूल, सिंदूर, कलश जैसा सामान खरीदा, मगर उनके मन में यही चल रहा था कि आख़िर किसकी शादी है। कुमार के बाबा पहले से ही मुंह बनाए हुए खड़े थे। उनका गुस्सा बढ़ता जा रहा था पर कुमार की मां कि वजह से वह चुप थे। सारा सामान लेने के बाद, कुमार वहां से अपने मां बाबा को लेकर बाज़ार के किनारे एक पतले रास्ते पर चल दिया। दोपहर हो चुकी थी। मैथिली अब भी उदास बैठी हुई थी। उसे रह रह कर जीतेंद्र की याद आ रही थी, कभी कभी उसे लगता था कि वो सब कुछ भूल कर जीतेंद्र को माफ़ कर दे, मगर फिर उसे अपना भविष्य अंधेरे में दिखने लगता था।
दोपहर के 2 बजे अचानक से मैथिली के घर के दरवाज़े पर दस्तक हुई। जब मैथिली की मां ने दरवाजा खोला तो चौंक गई। दरवाजे पर कुमार अपने परिवार के साथ खड़ा था। मैथिली की मां कुछ पूछ पाती, उससे पहले ही कुमार अपने परिवार के साथ घर में दाखिल हो गया था।
“आखिर ये यहां हमें लेकर क्यों आया है?” कुमार के बाबा ने मन में कहा। वहीं मैथिली के घर वाले कुछ समझ नहीं पा रहे थे। तभी कुमार ने मैथिली के पिता के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा,
कुमार (मुस्कुराते हुए)- "नमस्ते अंकल...मैथिली कहीं दिखाई नहीं दे रही है, कहां है वो…उसे बुलाइए ना।”
कहते हुए कुमार बार बार इधर- उधर देख रहा था। उसकी नजरें मैथिली को ढूंढ रही थी। "कौन हो तुम और मैथिली को क्यों ढूंढ रहे हो?" मैथिली के पापा ने पूछा। कुछ देर चुप रहने के बाद कुमार बोला,
कुमार(प्यार से) : " मैं कौन हूं…ये मायने नहीं रखता…मायने ये रखता है कि मैं यहां किस लिए आया हूं….(Pause)... मैं मैथिली से शादी करना चाहता हूं और उसी सिलसिले में आप लोगों से बात करने आया हूं।”
कुमार अपनी बात आगे जारी रखते हुए बोला,
कुमार (confidently)- "जीतेंद्र उसके लिए सही लड़का नहीं है...( Pause)... मैं मैथिली से शादी करूंगा और उसे हमेशा खुश रखूंगा। "
कुमार की बात सुनकर मैथिली के घर वाले हैरान रह गए। मानो उन्होंने कुछ ऐसा सुन लिया था, जिसकी उम्मीद उन्होंने कभी सपने में भी नहीं की थी। मैथिली के पापा ने कुमार को गुस्से से घूरते हुए कहा, "तू पागल हो गया है... दिमाग तो ठीक है तेरा, अपनी उम्र देखी है…”
कुमार(मस्त मौला अंदाज में)- “उम्र का अंदाज़ा आप क्यों लगा रहे हैं…आपकी शादी भी तो कम उम्र में ही हो गई थी न!
कुमार कह ही रहा था कि उसके बाबा ने चिल्ला कर कहा, “कुमार अपनी बकवास बंद करो और घर चलो….”
कुमार(बेख़ौफ़) : “बाबा हम घर जाने के लिए नहीं आए हैं…हम यहाँ मेरा रिश्ता पक्का करने के लिए आए है…”
मैथिली के घरवाले हैरान परेशान कुमार और उसके परिवार को देख रहे थे। "क्या ये आपका बेटा है?" मैथिली की मां ने कुमार की मां से पूछा। कुमार की मां ने बस हां में सिर हिला दिया। उनको अंदर से बहुत अजीब लग रहा था। उनको यकीन नहीं हो रहा था कि कुमार इस तरह अपनी ही मैडम के घर शादी की बात करने आ जाएगा। कुमार ने आगे कहा,
कुमार(आशा से)- " आप मेरा यकीन कीजिए, मैं मैथिली को अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करूंगा, मैं उसे हमेशा खुश रखूंगा।"
कुमार अभी भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था। "क्या यही संस्कार दिया आपने अपने बेटे को?" मैथिली की मां ने कुमार की मां पर ताना कसते हुए कहा। "मैं उसकी तरफ से आप लोगों से माफी मांगती हूं।" कुमार की मां ने हाथ जोड़ते हुए कहा और उसे वहां से जाने लगी। तभी कुमार को गुस्सा आ गया और उसने कहा,
कुमार ( गुस्से से)- " नहीं मां मैं मैथिली से प्यार करता हूं…. आपको मैथिली से अच्छी बहू पूरे गांव में नहीं मिलेगी।”
अब कुमार के अंदर का गुस्सा बाहर आ रहा था। कुमार खुद को शांत करने की पूरी कोशिश कर रहा था। वहीं मैथिली के पिताजी अब भी समझ नहीं पा रहे थे कि आख़िर उनके घर में हो क्या रहा है? "चला जा यहां से वरना... अच्छा नहीं होगा तेरे लिए।" मैथिली के पापा ने कहा।
कुमार (आक्रोश से)- " ले लीजिए आप भी मेरे प्यार की परीक्षा...( Pause)... ये तो हर जमाने में होता है कि हर आशिक की परीक्षा ली जाती है….”
कुमार के अंदर जाने ऐसी कौन सी ऊर्जा दौड़ रही थी, वो इस वक्त ज़रा भी नहीं घबरा रहा था। कहीं ना कहीं वो जानता था कि जीतेंद्र के साथ मैथिली की शादी टूट चुकी है, अब यही अच्छा मौका है मैथिली को अपना बनाने का। वहीं बाहर का शोर सुनकर मैथिली के चाचा जी अपने कमरे से आए। “क्या हो रहा है यहां?" मैथिली के चाचा जी ने कड़क लहजे में पूछा। तभी उनकी नजर कुमार पर गई, जो सामने खड़ा था। कुमार के बाबा ने एक बार फिर से कहा, “कुमार मैं कहता हूं चलो यहां से...और तमाशा मत करो यहां….”
कुमार कहां मानने वाला था। उसने अपने मन में ठान लिया था कि वह मैथिली से हां करवाकर ही जायेगा। कुमार ने इनकार करते हुए कहा,
कुमार: "नहीं बाबा मैं नहीं जाऊंगा, जब तक मैथिली के पापा शादी के लिए हां नहीं कर देते….(Pause )...मैथिली तुम कहां हो...प्लीज बाहर आओ….”
दूसरी तरफ़ मैथिली जो अपने कमरे में उदास बैठी हुई थी, उसने जैसे ही कुमार की आवाज़ सुनी, वो बुरी तरह से चौंक गई। एक पल के लिए उसे लगा कि उसके कान बज रहे हैं, मगर जब कुमार की आवाज़ उसे बार बार सुनाई देने लगी, वो हड़बड़ाते हुए अपने कमरे से बाहर आई। उसने जैसे ही सामने कुमार और उसके मां बाबा को देखा, वो चौंक पड़ी। वहीं कुमार ने देखा मैथिली की आँखें लाल हो चुकी थी। उसने पास जाकर कहा,
कुमार (चिन्ता से):" मैथिली तुम रो रही हो, तुम उस जीतेंद्र के लिए परेशान हो...( Pause)... वो जीतेंद्र तुम्हारे लिए सही नहीं है मैथिली…और मेरे होते हुए तुम्हें परेशान होने की क्या ज़रूरत है, देखो मैं अपने मां बाबा को लेकर आया हूं….शादी की बात करने के लिए….”
कुमार की बात सुनकर मैथिली मानो वहीं जम गई थी। कुमार रिश्ता लेकर उसके घर आया था, ये बात मैथिली सोच सोच कर ही हैरान हो रही थी। उसका मन हुआ कि वो कुमार को एक थप्पड़ मारे मगर तभी मैथिली के चाचा जी ने कुमार का कॉलर पकड़ लिया। “उतारूं तेरी आशिकी का भूत, तेरी ये मजाल कि तू हमारे ही घर में आकर तमाशा करे….” मैथिली के चाचा ने दांत पीसते हुए कहा। उनका गुस्सा देख कुमार थोड़ा घबरा गया। वो समझाने लगा कि वो यहां तमाशा करने नहीं आया है। मगर मैथिली के चाचा जी उसकी एक नहीं सुन रहे थे। वो कुमार को खींचते हुए घर से ले जा ही रहे थे कि कुमार ने कहा,
कुमार (एकाएक ही) : “मैथिली भी मुझसे प्यार करती है।"
कुमार की बात सुनकर मैथिली के चाचा रुक गए और हैरानी से मैथिली की तरफ देखने लगे। अब मैथिली के मां पापा भी मैथिली को देख रहे थे। तभी मैथिली ने गुस्से से कहा,
मैथिली (गुस्से से)- "ये तुम क्या बकवास कर रहे हो कुमार, मैं तुम्हारी क्लास टीचर हूं... पहले भी तुम्हें समझा चुकी हूँ यह बात! अजीब पागल हो तुम! हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी यह हरकत करने की?”
कुमार (मुस्कुराते हुए) : " प्यार उम्र देखकर नहीं होता मैथिली और जीतेंद्र के साथ शादी के कारण तुमने मेरे प्यार को ठुकराया था…अब क्या परेशानी है…बताया दो न इन सब को की कैसे तुम मेरा ध्यान रखती हो! मुझे सबसे बचाती हो। यह प्यार नहीं तो और क्या है?”
कुमार जिस तरह की बातें कर रहा था, मैथिली और कुमार के घर वालों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। "देख लड़के तू नाबालिक है इसलिए हम तुझे कुछ कह नहीं रहे हैं इसका ये मतलब नहीं कि तू अपनी मन मानी करे।" मैथिली के पिताजी ने चिल्ला कर कहा।
कुमार अभी मैथिली की ओर बढ़ ही रहा था कि मैथिली के चाचा ने उसे घसीटते हुए घर से बाहर निकाल दिया। कुमार दरवाजे पर खड़ा मैथिली को आवाज लगा रहा था। मैथिली ने उसे घूरते हुए कहा,
मैथिली (गुस्से से)- " कुमार पागलपन की भी हद होती है...तुम्हें समझ में नहीं आता क्या?।”
कुमार को मैथिली की बातें तीर की तरह चुभ रही थी। उसे जितना बाकी लोगों की बातों का बुरा नहीं लगा उतना बुरा उसे मैथिली की बातों का लग रहा था।
कुमार (उदासी से)- "मैथिली कम से कम तुम तो ऐसा मत बोलो... मैं तुमसे प्यार करता हूं।"
मैथिली(गुस्से से) : “मगर मैं तुमसे प्यार नहीं करती और तुम्हे अगर ये लग रहा है कि मैं और जीतेंद्र दूर हो गए हैं…तो ऐसा बिलकुल नहीं है…बस कुछ दिन रुक जाओ…. क्योंकि यह शादी तो होकर रहेगी”
कुमार मैथिली की तरफ बढ़ा और उसकी आंखों में देखते हुए कहा, "अगर तुम मुझसे प्यार नहीं करती तो जब क्लास में बच्चे मुझे परेशान करते थे तो तुम हर बार मुझे बचाने क्यों आ जाती थी?"
मैथिली (परेशान होते हुए)- " कुमार मैं तुम्हारी टीचर हूं, मेरा फर्ज है हर student का ख़्याल रखना।”
कुमार के बाबा से अब बर्दाश्त नहीं हुआ, उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए घर ले जाने लगे। कुमार की मां ये सब देख कर घबरा गई। उन्होंने मन ही मन कहा, “कुमार के साथ ना जाने उसके बाबा क्या करेंगे….मुझे उन्हें रोकना होगा।” थोड़ी देर बाद जब कुमार की मां घर पहुंची तो चौंक गई। उन्होंने देखा, कुमार हाथ में एक जलती हुई लकड़ी लिए खड़ा है। उसकी आंखों में एक अलग ही जुनून दिखाई दे रहा था। कुमार की मां ने आस पास देखा, उसे अपने पति कहीं नहीं दिखाई दे रहे थे, ये एहसास होते ही उसकी मां का दिल घबरा उठा। ऐसा क्या किया होगा कुमार ने अब? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.