अनिका ज्योति को देखकर हैरान थी, क्योंकि जो ज्योति अपने आप को सबसे अलग दिखाने के लिए हमेशा सजी-धजी रहती थी, आज उसका रूप बदला हुआ था। उसने अपने काले घने लंबे रेशमी बाल काट लिए थे। सिर्फ अनिका ही नहीं, बल्कि क्लास में और भी लोग थे, जो ज्योति को अजीब नजरों से देख रहे थे। हल्की फुसफुसाहट शुरू हो गई थी, और ज्योति के बदले हुए रूप को लेकर तरह-तरह की बातें होने लगीं। किसी ने इशारों में कहा, "क्या हुआ इसे? बाल क्यों काट लिए?" तो किसी ने कहा, "लगता है, कुछ बड़ा हुआ है।" ज्योति, एक कोने में अकेली बैठी थी, जैसे ही क्लास खत्म हुई और लंच ब्रेक हुआ, एक लड़की, जो ज्योति के साथ कभी-कभार बात किया करती थी, उससे पूछने पहुंची। उसने बहुत चिंता के साथ कहा, "ज्योति, क्या हुआ तुम्हें? इतने छोटे-छोटे बाल ? वो भी अचानक से?" ज्योति ने उसकी तरफ तिरछी नजरों से देखा तो वो लड़की अचकचा गई। ज्योति का ये रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन ज्योति ने उसकी बात को काटते हुए कहा, “कहो तो तुम्हारे भी बाल काट दूं?” ज्योति की आंखों में खौफनाक गुस्सा था। उसका चेहरा तमतमाया हुआ था, जैसे भीतर कोई ज्वालामुखी फूटने को हो। उसके इस तीखे जवाब से वो लड़की चुप हो गई और धीरे-धीरे पीछे हट गई। ज्योति ने फिर अपनी नजरें घुमा लीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। अनिका पूरा दिन ज्योति को देखती रही, उसने अपने मन ही मन में कहा
अनिका- ज्योति के साथ कुछ तो हुआ है, कल तो ठीक थी। आज अचानक इस तरह बात क्यों कर रही है? इसका भी कुछ पता नहीं चलता कब क्या हो जाता है, अटेन्शन सीकर है, पक्के वाली।
जहां एक तरफ अनिका ज्योति को देखकर हैरान थी, वहीं दूसरी ओर, कहीं दूर, एक सुनसान खंडर जैसी जगह पर, अर्जुन और अमन खड़े थे। जगह इतनी वीरान थी कि सिर्फ खंडहरों की दीवारें और सन्नाटा था। अर्जुन बेचैन था। वो बार-बार अपने फोन पर किसी को कॉल करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन फोन लग ही नहीं रहा था। अर्जुन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। उसने गुस्से में अपना हाथ एक पुराने, टूटे हुए पिलर पर मारा।
अर्जुन(चीखते हुए)- ये क्या हो रहा है? फोन क्यों नहीं लग रहा? हम यहां टाइम वेस्ट कर रहे हैं।
अमन, जो एक सिगरेट जलाकर पी रहा था, उसने अपनी सिगरेट नीचे फेंकते हुए कहा,
अमन- अरे यार, इतना क्यों परेशान हो रहे हो? हमारे पास और भी लोग हैं। उनसे पता कर लेंगे।
अर्जुन(बात काटते हुए)- नहीं, विनय बहुत जरूरी कड़ी है। उसने खुद कहा था कि उसे पता है “डी” कहां है और वो क्या करने वाला है?
अर्जुन की आवाज में डर और गुस्सा दोनों ही साफ झलक रहे थे। वो बार-बार फोन करके देखने लगा, लेकिन फोन पर कोई जवाब नहीं आ रहा था। अमन उसकी तरफ देख रहा था, लेकिन अर्जुन की बेचैनी को कम करने का कोई तरीका उसे समझ नहीं आ रहा था। अचानक, खंडहर के सन्नाटे को तोड़ती हुई एक बाइक की आवाज़ आई। अर्जुन और अमन दोनों ने मुड़कर देखा। दो लोग बाइकों पर सवार होकर तेजी से उनकी ओर बढ़ रहे थे। बाइक रुकते ही वे लोग उतरे और अर्जुन के पास आए।
अर्जुन(गुस्से में)- कुछ पता चला?
वहां खड़े दोनों आदमियों ने नजरें झुका लीं, जैसे कुछ छिपा रहे हों। अर्जुन का गुस्सा और भड़क उठा। उसकी आवाज़ तेज़ और खतरनाक हो गई,
अर्जुन- बोलो... चुप क्यों हो? मुंह में दही जमा लिया है?
दोनों आदमी हिचकिचाते हुए एक दूसरे की तरफ देखने लगे, फिर उनमें से एक, जिसका नाम शेरा था, उसने अर्जुन के हाथ में एक भूरे रंग का लिफाफा पकड़ाया। अर्जुन ने लिफाफा खोलते ही देखा, उसमें बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था –
अर्जुन- "लव फ्रॉम डी"
लिफाफे में लिखे शब्दों ने अर्जुन और अमन को जैसे सन्न कर दिया। अर्जुन की आंखें फटी की फटी रह गईं और अमन के चेहरे पर डर उमड़ आया। और उस पल उनके बीच की खामोशी जैसे सब कुछ कह गई। शेरा ने थोड़ी देर रुककर कहा, “विनय के घर को किसी ने आग लगा दी, भैया। घर से ही ये लिफाफा मिला। हमने उसके बाकी ठिकानों पर भी देखा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। पूरा घर जलकर राख हो चुका है, लेकिन नदी के पास ये लिफाफा और इसके साथ ये लाइटर मिला है।”
अर्जुन ने शेरा के हाथ में पड़े लाइटर को ध्यान से देखा। लेकिन उसे देखकर अर्जुन को कोई हैरत नहीं हुई, ऐसा लगा मानों वो उस लाइटर की पहचान से वाकिफ है। अर्जुन ने शेरा और उसके साथी को जाने का इशारा किया, लेकिन उनके जाने से पहले शेरा ने एक और बात बताई, “वहां एक मछुवारा है, उसकी झोपड़ी नदी के पास ही है। उसने बताया कि उसने एक जवान लड़की को वहां देखा था। थोड़ी देर बाद वो वहां से चली गई थी।”
ये सुनकर अर्जुन का चेहरा एक बार फिर हैरानी से भर गया। उसने शेरा की तरफ देखकर कहा
अर्जुन- मुझे उस लड़की के बारे में एक-एक डीटेल चाहिए, किसी को पैसे खिलाने पड़े खिलाओ, अपने खबरियों को अलर्ट करो, और हाँ, मीरा और अनिका दोनों के घर के बाहर कॉलेज के बाहर सिक्युरिटी दो, लेकिन ध्यान से उन्हें पता ना चले। समझे.... अब निकलो।
अर्जुन की बात पर शेरा और उसके साथी ने हामी भरी, अर्जुन ने उन्हें अपनी जेब से निकाल कर कुछ पैसे दिए। जिन्हें लेकर शेरा और उसका साथी वहां से निकल गए। अर्जुन और अमन एक पल के लिए खामोश खड़े रहे। अर्जुन के दिमाग में एक के बाद एक सवाल उठ रहे उसने अमन की तरफ देखकर कहा
अर्जुन- लड़की? क्या डी किसी लड़की के साथ रहता था। विनय ने तो बताया था कि उनके गैंग में अभी तक कोई लड़की नहीं है। फिर अचानक??? विनय कहाँ गया?
अमन(गहरी सांस लेकर)- शायद वहीं जहां से कोई वापस नहीं आता। D को पता चल गया होगा कि हमने उसे खरीद लिया है। वैसे भी वो दोनों तरफ का काम कर रहा था। पर सबसे बड़ी बात उस लड़की की है। उसका पता लगाना होगा।
अर्जुन ने अमन के हाथों की तरफ देखा, अमन एक हाथ में वही लाइटर लिए खड़ा था जो शेरा ने उसे दिखाया था, और दूसरे हाथ में बिलकुल वैसा ही दूसरा लाइटर था। अर्जुन ने गहरी सांस ली और उसकी तरफ देखा। अमन ने अर्जुन की तरफ एक हल्की मुस्कान फेंकी, लेकिन उसकी आवाज में गंभीरता थी। उसने कहा,
अमन- ये तो नहीं कहूँगा कि चिंता मत करो, लेकिन कोई ना कोई रास्ता निकल जाएगा। शेरा बहुत होशियार है, वो पता लगा लेगा। बस अब हमें थोड़ा सावधान रहना होगा। वो अब मारने-मरने पर उतर आया है।
अमन ने धीरे-धीरे लाइटर को अपने हाथों में घुमाते हुए कहा,
अमन- समझ रहे हो ना मेरे भाई, मैं आज वापस जा रहा हूँ। फोन बंद रखूँगा, अनिका को भी बता दिया है। तुम एक बार उससे मिलना ज़रूर। और अपना भी ध्यान रखना।
अर्जुन ने अपने अंदर उबालते गुस्से को काबू करते हुए अमन की बात पर हामी भरी। दोनों के बीच एक अनकहा समझौता हो चुका था। दोनों भाइयों ने एक-दूसरे को गले से लगा लिया। वहीं दूसरी तरफ कॉलेज के माहौल में हलचल थी, लेकिन आज अनिका का ध्यान कहीं और था। वो क्लास में बैठी थी, पर उसका दिमाग लगातार सुबह की घटनाओं पर अटका हुआ था। खासकर ज्योति पर। अनिका के लिए ये चौंकाने वाला था, उसने तय किया कि उसे ज्योति से बात करनी चाहिए, शायद उसे कुछ पता चले। अनिका उठी और धीमे कदमों से ज्योति के पास गई।
अनिका- ज्योति, तुम ठीक हो?
ज्योति ने अनिका की तरफ देखा, उसकी नजरों में एक अजीब सी थकान और निराशा थी। उसने नीरस अंदाज में कहा, “हाँ, ठीक हूँ। लेकिन तुम्हें मेरी फिक्र क्यों हो रही है?"
ज्योति के जवाब ने अनिका को चौंका दिया। वो ज्योति से ये उम्मीद नहीं कर रही थी। अनिका ने संभलकर कहा,
अनिका- फिक्र नहीं, बस तुम्हें देखकर थोड़ा अजीब लगा।
अनिका की यह बात ज्योति को भड़काने के लिए काफी थी। ज्योति ने तीखी नजरों से अनिका को घूरते हुए कहा, “मेरी नहीं, अपनी फिक्र करो, अनिका। अभी बहुत कुछ अजीब घटने वाला है, जो तुम सोच भी नहीं सकती।
ज्योति की ये बात रहस्यमय थी, और अनिका को इस बात का सही मतलब समझ नहीं आया। लेकिन ज्योति की आंखों और उसके लहजे में जो इशारा था, उससे अनिका को कहीं न कहीं ये एहसास हो गया कि ज्योति उसे चौकन्ना करना चाह रही थी। अनिका ने उसे हैरानी से देखकर कहा
अनिका- तुम कभी किसी सीधे सवाल का सीधा जवाब क्यों नहीं देती ज्योति? पहले तो तुम इस तरह नहीं करती थी, अब अचानक क्या हो गया है। साफ-साफ बोलो ना....
ज्योति ने अनिका के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, और वहाँ से चली गई। अनिका ने ज्योति के इस बर्ताव से और भी उलझन महसूस की। वो समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ज्योति क्या इशारा कर रही थी। उसके मन में अब सवाल और भी गहराने लगे थे। अर्जुन और अमन को लेकर उसकी बेचैनी बढ़ रही थी, और अब ज्योति के अजीब बर्ताव ने उसे और परेशान कर दिया था। जैसे ही अनिका ने वहां से जाने का फैसला किया, कॉलेज का एक चपरासी उसके पास आया। उसकी आवाज ने अनिका को चौकन्ना कर दिया, उसने तेज़ आवाज़ में कहा "आपका नाम अनिका साहाय है?"
अनिका- हाँ, मेरा ही नाम अनिका है।
चपरासी ने उसके हाथ में एक लिफाफा थमाते हुए कहा, "ये चार दिन पहले तुम्हारे लिए आया था। पता नहीं कॉलेज का पता क्यों लिखवाते हो, घर का लिखवाना चाहिए।" चपरासी ये कहकर बिना और कुछ बोले वहां से चला गया। अनिका उस लिफाफे को हाथ में थामे खड़ी रह गई। लिफाफा बहुत आम था, भूरे रंग का, लेकिन उसे देखते ही अनिका कुछ अजीब सा महसूस हुआ। उसके हाथ हल्के से कांपे, और दिल की धड़कनें तेज हो गईं। उसने धीरे-धीरे लिफाफा खोला। लिफ़ाफ़े में एक लैटर और कुछ तस्वीरें थी। जैसे ही उसने अंदर का लैटर बाहर निकाला, उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। उसमें जो लिखा था, उसने उसे पूरी तरह से हिला कर रख दिया। शब्द उसकी आंखों के सामने नाचने लगे, और उसका दिमाग एक झटके में खाली सा हो गया। उसने पढ़ते हुए कहा
अनिका- तुम्हें पता है, अनिका? सच कभी छुपा नहीं रहता। और अब वक़्त आ गया है कि तुम सच का सामना करो। अर्जुन और अमन से दूर रहो, वरना तुम्हारी ज़िन्दगी राख हो जाएगी, ध्यान रखना।– तुम्हारा शुभचिंतक
अनिका के हाथ से लैटर लगभग छूट गया। उसके दिमाग में हजारों सवाल घूमने लगे। अनिका ने अपने चारों तरफ नजरें घुमाई और फिर एकाएक नजर वापस लैटर पर लाकर बोली
अनिका- मीरा को सब बताना होगा अभी।
अनिका की हालत से अनजान मीरा अपने कमरे में अकेली बैठी थी। उसके हाथों में एक पुरानी शर्ट थी, जिसे वो बार-बार देख रही थी। ये शर्ट उसके लिए बहुत खास थी, शायद किसी ऐसी याद से जुड़ी जो उसके दिल के बहुत करीब थी। कमरे में हल्की रोशनी थी, मीरा के चेहरे पर एक अजीब सी उदासी और सोचने वाली नजर थी। उसके विचार कहीं दूर भटक रहे थे। तभी अचानक, उसके घर का दरवाजा ज़ोर से खुला। दरवाजे की आवाज इतनी तेज थी कि मीरा घबराकर खड़ी हो गई। उसकी नजरें दरवाजे की तरफ गईं और उसने देखा कि अनिका हांफती हुई अंदर दाखिल हुई। अनिका का चेहरा बुरी तरह से घबराया हुआ था, उसकी सांसें तेज चल रही थीं, मानो वह भागकर आई हो। मीरा उसे देख कर हैरान हो गई। उसके माथे पर शिकन आ गई और उसने तुरंत पूछा,
मीरा- "क्या हुआ अनिका? इतनी घबराई हुई क्यों हो?"
अनिका ने बिना कुछ बोले जल्दी से दरवाजा बंद किया और अंदर से कुंडी भी लगा दी। उसकी घबराहट ने मीरा को और भी बेचैन कर दिया। वो कुछ समझ नहीं पा रही थी। अनिका तेजी से मीरा के पास आई और उसके हाथ में तस्वीरें थमा दी। अनिका की आँखों में डर और बेचैनी साफ दिखाई दे रही थी, मानो वह कुछ कहना चाह रही हो, लेकिन शब्द उसके गले में अटके हुए थे।मीरा ने उन तस्वीरों पर नजर डाली, तो उसके होश उड़ गए, उसने डरते हुए कहा
मीरा- "ये...ये क्या है?"
आखिर क्या था उस लैटर में? क्या अर्जुन और अमन की जान खतरे में है? क्या अनिका ज्योति का राज़ जान पाएगी?
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