कैप्टेन अजय के पिता, श्रीधर को अपने बेटे की मौत का ज़िम्मेदार ठहराते थे। श्रीधर की जान लेकर अपने बदले की आग को शान्त करने के लिए आए थे। अपने दुःख और गुस्से को ख़त्म करने के लिए उनको, बस, राइफल का ट्रिगर दबाना था, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
कैप्टेन अजय के पिता ने श्रीधर को मौत की नहीं… ज़िन्दगी की सज़ा दी।
श्रीधर के हिस्से में, न चाहते हुए भी एक बार फिर से ज़िन्दगी ही आई। अस्पताल के उस वार्ड में अब कोई नहीं था। अजय के पिता जा चुके थे। तभी श्रीधर को उस वार्ड के बाहर बनी गैलरी से एक जानी पहचानी आवाज़ आई। आवाज़ बहुत धीरे से आई थी तो श्रीधर आवाज़ को पहचान नहीं पाया। वो वार्ड से बाहर निकला… वहाँ एक सुरंग थी… आवाज़ उसी सुरंग से आ रही थी। श्रीधर फ़ौरन ही उस सुरंग के अन्दर चला गया।
दूसरी तरफ़़, तालाब के अन्दर, आदित्य को उसके ईवल काउन्टरपार्ट ने अभी भी जकड़ा हुआ था। आदित्य उस दुष्ट आदित्य के हाथों की पकड़ से अपनी गर्दन छुड़ाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वो दुष्ट इतना ताकतवर था कि आदित्य पानी में नीचे की तरफ़ डूबा जा रहा था। वो ख़ुद को उसकी पकड़ से नहीं छुड़ा पाया। तालाब के बाहर बिल्कुल सन्नाटा था। पानी की सतह पर, कुछ बुदबुदों के अलावा और कोई हलचल नहीं था। कोई बाहर से देखकर ये बता ही नहीं सकता कि पानी के अन्दर कोई इंसान भी है, जिसे डुबाकर मारने की कोशिश की जा रही है। आदित्य ने बड़ी मुश्किल से फिर से… मदद के लिए गुहार लगायी लेकिन वो यह भी जानता है कि उसकी आवाज़ पानी से बाहर कहीं नहीं पहुँचने वाली… इस मुसीबत से उसे ख़ुद ही बाहर निकलना होगा क्यूंकि उसकी मदद के लिए कोई नहीं आने वाला। तभी आदित्य ने एक बार और हिम्मत की और इस बार अपनी पूरी जान लागाकर दुष्ट आदित्य के मुँह पर कोहनी से वार किया… जवाबी हमला होते ही दुष्ट आदित्य की पकड़ ढीली पद गई। वह पीछे हट गया। आदित्य ने राहत की साँस ली और अगले ही पल पानी के अन्दर उसका दम घुटने लगा… तभी पानी का बहाव एकदम से बहुत तेज़ हो गया… लेकिन आदित्य एक ही जगह पर जम सा गया था। वो पानी की तेज़ हुई रफ़्तार में, बहकर आगे नहीं जा रहा था लेकिन पानी हर बार उससे टकरा के ही गुज़र रहा था… आदित्य को बहुत तकलीफ हो रही थी… उसे पानी का टकराना हर बार ऐसा लगता जैसे उसके ऊपर कई भालों से एक साथ वार किया जा रहा है। कुछ देर बाद, उस तालाब के पानी का बहाव शांत हो गया, पानी के अन्दर दुष्ट आदित्य की जगह अब किसी और ने ले ली थी। आदित्य को अपने ठीक सामने रवि दिखाई दिया। रवि तड़प रहा था, वो पानी की इतनी गहराई में सांस लेने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी हिम्मत अब जवाब दे चुकी थी। तभी आदित्य ने आगे बढ़कर रवि की मदद करने की कोशिश की… वो कोशिश जो उसने तब नहीं की थी जब उसे करनी चाहिए थी। आदित्य जैसे ही रवि के करीब आया… रवि ने आदित्य की गर्दन पकड़ ली और उसकी तरफ़ गुस्से से देखते हुए बोला - “तूने धोखा दिया था मुझे, लौटकर वही धोखा… तेरे पास भी आएगा। मरेगा तू, इसी गुफ़ा के अन्दर… और एक बार नहीं, हज़ार बार मरेगा तू … हज़ार बार”
तभी आदित्य ने माफ़ी मांगते हुए कहा –
आदित्य: रवि, प्लीज माफ़ कर दे मुझे… प्लीज़… माफ़… कर दे यार…
ये सुनकर रवि तेज़ आवाज़ में बोला कि माफ़ी नहीं… मौत मिलेगी तुझे… सिर्फ़ मौत।
वहीं पानी के तालाब से दूर, सूखे रेगिस्तान में… एक ऊँचे पोल पर टंगी हुई वो बड़ी सी दीवार घड़ी, रुकने का नाम नहीं ले रही थी। घड़ी फिर घूमी और काव्या अपने अतीत की उस याद में लौट आई जब उसका पहला ब्रेकअप हुआ था। काव्या के बॉयफ्रेंड ने उसपर चीट किया था। काव्या ने कॉन्फ़्रोंट किया तो उसके बॉयफ्रेंड ने काव्या को बहुत बुरी तरह ट्रीट किया। वो कारण पूछती रही, ये उम्मीद करती रही कि उसका बॉयफ्रेंड अपनी गलती मान के उससे माफ़ी माँगे लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, उल्टा उनके रिश्ते में जो भी ठीक नहीं चल रहा था, उन सबका ज़िम्मेदार उसने काव्या को ठहरा दिया… उस रोज़ काव्या खूब रोई थी… कुछ ही देर में, वो घड़ी उसे अतीत से वापस तो ले आई लेकिन काव्या के आँसू अभी भी ज़ारी थे। काव्या ख़ुद को संभालती उससे पहले ही पोल पर लगी वो घड़ी फिर से घूम गयी लेकिन इस बार घड़ी की सुई पीछे की तरफ़ नहीं, आगे की तरफ़ घूम गयी… यानी भविष्य की तरफ़… और फिर काव्या को वो दिखा जो उसने सपने में भी कभी नहीं सोचा था। काव्या, हृदय गुफ़ा के अन्दर ही कहीं ज़मीन पर ज़ख़्मी हालत में पड़ी हुई है… उसके सिर में चोट लगी है और खून बह रहा है… काव्या हिम्मत करके उठी और एक चट्टान के पीछे जाकर छुप गयी। एक कपड़े से उसने सिर से बहता खून रोका। काव्या किसी से छुप रही है, ख़ुद को बचा रही है। तभी वहाँ किसी के आने की आहट हुई… काव्या घबरा गयी, उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया ताकि उसके वहाँ होने का एहसास भी किसी को ना हो… लेकिन काव्या को जो ढूंढ़ रहा था… उसने उसे ढूंढ़ ही लिया… काव्या ने सामने खड़े उस शख्स को देखा… काव्या हैरान थी… वो शख्स कोई और नहीं, रूद्र था… रूद्र ने बिना कुछ कहे… काव्या के माथे पर बन्दूक तान दी। काव्या मिन्नतें करती रही…
काव्या: “प्लीज मत मारो… छोड़ दो मेरे बच्चे को…. इसकी कोई गलती नहीं है… क्यों मरना चाहते हो मेरे बच्चे को??? ये तो अभी दुनिया में आया भी नहीं है!”
रूद्र को काव्या पर ज़रा भी तरस नहीं आया और उसने पॉइंट ब्लेंक काव्या पर गोली चला दी।
काव्या ने अभी-अभी अपना आने वाला कल देखा था… उस रेगिस्तान के ऊँचे टीले पर अब वो दीवार घड़ी नहीं थी। काव्या की आँखों से आँसू गिर रहे थे… उसने अपना एक हाथ पेट पर रखा हुआ था। काव्या को लग रहा था जैसे वो अपना बच्चा इसी पल में खो चुकी है। कुछ देर रो लेने के बाद, काव्या ने खुद को सम्भाला और उठकर आगे की तरफ़ चलने लगी। उसकी आँखों में, अब डर नहीं… जूनून था… जूनून, उसे ख़त्म करने का जो उसके होने वाले बच्चे को मारने वाला है… और काव्या के बच्चे को मारने वाला… रूद्र है।
रूद्र, संध्या को छाया के चंगुल से बचाने के लिए उसी जगह आ गया जहाँ ऋषि की मूर्ति थी। रूद्र ने संध्या को देख लिया… वो ऋषि की मूर्ति के सामने खड़ी थी। मूर्ति के ऊपर वो मणि अभी भी हवा में घूम रही थी। रूद्र ने आसपास देखा लेकिन छाया उसे कहीं नहीं दिख रही थी। फिर रूद्र ने गौर किया कि संध्या ऋषि की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी… संध्या ने ऋषि को मूर्ति में उपस्थित मानकर उनसे पूछा…
संध्या: क्या मैं आपको जानती हूँ?... कौन हैं आप? और उस छाया के कहने पर मैं तो आपकी ये मणि लेने ही वाली थी… फिर इस मणि ने सिर्फ़ छाया को ख़त्म क्यूँ किया? मुझे क्यूँ नहीं?... वैसे मैं जानती हूँ मुझे कोई जवाब मिलने वाला नहीं है… लेकिन मन का मन में नहीं रखना था इसलिए पूछ लिया। आई होप कि वक़्त आने पर मुझे मेरे सवालों के जवाब मिलेंगे।
संध्या ने जैसे ही अपनी बात पूरी की, रूद्र उसके पास आ गया। रूद्र को देखते ही संध्या का चेहरा खिल गया। मुस्कुराते हुए, रुद्र बोला…
रुद्र: लगता है उस जादूगरनी छाया को यहाँ से भगा दिया है तुमने?...
संध्या: मैंने कुछ नहीं किया… जो किया उस मणि ने किया… इसकी रौशनी अचानक ही इतनी ज़्यादा बढ़ गयी कि वो जादूगरनी छाया एक ही झटके में राख हो गयी।
रुद्र: वो तो होना ही था… सब नारायण का लिखा हुआ है… चलो, चलते हैं यहाँ से… हमारी ज़रुरत अभी कहीं और है।
रूद्र की आधी बातें संध्या को थोड़ी अजीब लगती हैं… उसे लगता है कि रूद्र इस हृदय गुफ़ा के बारे में कुछ ज़्यादा ही जानता है। जितना वो बताता है, उससे कहीं ज़्यादा वो छुपा लेता है। संध्या ने एक बार और ऋषि की मूर्ति की तरफ़ देखा और मणि लिए बिना ही रूद्र के साथ वहाँ से चली गयी। संध्या नहीं जानती कि सिर्फ़ उसने ही ऋषि को नहीं देखा… उसे जाते हुए ऋषि ने भी देखा था… ऋषि की मूर्ति केवल एक मूर्ति नहीं है… और मूर्ति के ऊपर मौजूद वो मणि केवल एक मणि नहीं है… वो शक्ति चक्र है… जिसका संधान केवल वही कर सकता है जिसके अन्दर ईश्वरीय ऊर्जा का तत्त्व मौजूद हो। वैसे, रुद्र को इस हृदय गुफ़ा का कितना ज्ञान है, मैं… आपका सूत्रधार, अगर ये बताऊँ तो इतना ही कहूँगा कि रुद्र को इस हृदय गुफ़ा के बारे में सब कुछ पता है… ऐसा, रूद्र को लगता है…
उधर तालाब के अन्दर, अब रवि नहीं था… आदित्य, तालाब के दूसरी ओर पर आकर गिरा… और बेहोश हो गया। तभी श्रीधर जो एक आवाज़ का पीछा करते हुए काफ़ी देर से सुरंग में चल रहा था… सुरंग के आखिरी छोर पर आ गया था… श्रीधर जैसे ही उस सुरंग से बाहर निकला, वो सीधा उसी तालाब में आकर गिरा। ठीक उसी वक़्त, रेगिस्तान में चल रही काव्या को रेत का एक दरवाज़ा दिखा… काव्या जैसे ही रेत के उस दरवाज़े से बाहर निकली… मिट्टी की वो मूर्ति जिसमें काव्या कैद हुई थी, वो टूट गयी और काव्या आज़ाद हो गयी। काव्या को सीढ़ियाँ दिखी, वो जैसे ही सीढ़ियों से ऊपर गयी तो सामने वही तालाब था। काव्या को तालाब में श्रीधर दिखा तो उसने भी तालाब में छलाँग लगा दी। तालाब में गिरते ही, श्रीधर और काव्या को तालाब के आख़िरी छोर पे आदित्य दिखा। दोनों ने मिलकर उसे बाहर निकाल लिया। तालाब से बाहर आते ही आदित्य को होश आ गया। श्रीधर और काव्या को सामने देखकर आदित्य ने चैन की साँस ली। तभी रुद्र और संध्या भी वहीं आ गए।
रूद्र के पूछने पर, जिसके साथ जो कुछ भी हुआ… उसने वो बता दिया… लेकिन काव्या ने रेगिस्तान में जो भी देखा, अपने भविष्य के बारे में, वो किसी से नहीं कहा। सब वहाँ से जैसे ही चलने लगे, उनके पैरों तले ज़मीन थरथराने लगी। “भूकंप!” वो सभी चिल्लाये!
भूकंप काफ़ी तेज़ था और उसके चलते ज़मीन दो हिस्सों में बँटने लगी। इसके पहले की आदित्य और उसके दोस्त, कुछ समझ पाते, वो सब, एक ही झटके में ज़मीन के अंदर चले गए।
आख़िर क्यूँ बँटी दो हिस्सों में ज़मीन?
अब आगे क्या होगा?
कैसे इस नई मुसीबत से बच पाएंगे आदित्य और उसके दोस्त?
No reviews available for this chapter.