काव्या की हिम्मत अब जवाब दे चुकी थी, वो कितने घंटों से बिना रुके रेगिस्तान में चल रही थी, इसका उसे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था। काव्या नहीं जानती कि ये कोई आम रेगिस्तान नहीं है। यह एक मायावी रेगिस्तान है जहाँ समय और सच, दोनों इसकी रेट चपेट में आ जाते हैं। यहाँ वक़्त किसी भी तरफ़़ करवट बदल सकता है, कभी भी कोई भी दिख सकता है, कुछ भी हासिल हो सकता है और हासिल हुई चीज़, हाथों से एक पल में फिसल सकती है, बिल्कुल रेत की तरह। काव्या में जब एक भी कदम और उठाने की हिम्मत नहीं बची तो वो रेत के उस टीले पर ऐसे गिरी जैसे पेड़ से एक सूखा हुआ पत्ता गिरता है। काव्या का गला बिल्कुल सूख चुका था, वो बहुत धीरे से बार-बार एक ही शब्द बुदबुदा रही थी… पानी… पानी।
काव्या की आँखें नीले आसमान पर टिकी हुई थी, इस उम्मीद में कि अगर ज़रा सी बारिश हो जाए तो शायद वो इस रेगिस्तान में कम से कम प्यास से तो नहीं मरेगी! पर, रेगिस्तान में बारिश! ऐसा तो किस्सों-कहानियों में भी नहीं होता। पर अचानक ही एक चमत्कार हुआ, आसमान में बादल उमड़ आए, गरजने लगे और अगले ही पल बारिश होने लगी! काव्या की जान में जान आ गयी, उसने दोनों हाथों में थोड़ा थोड़ा पानी जमा करके पिया! पानी पीने के बाद, काव्या जैसे ही वापस से अपने पैरों पर खड़ी हुई, बारिश रुक गयी!
काव्या फिर से आगे की तरफ़़ चलने लगी तभी वहाँ रेत का एक ज़ोरदार तूफ़ान आया जिसने काव्या को रेत के एक दूसरे टीले पर पटक दिया। जैसे ही तूफ़ान थमा, काव्या ने आँखें खोली और उसे अपने ठीक सामने एक बहुत बड़ी दीवार घड़ी दिखाई दी जो एक ऊँचे पोल पर टंगी हुई थी। उस घड़ी की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि काव्या ने अपने कानों पर हाथ रख लिए। तभी घड़ी की सुई पीछे की तरफ़़ तेज़ी से घूमी और काव्या की आँखों के सामने उसकी गुज़री हुई ज़िंदगी ऐसे फ्लैश हुई जैसे स्क्रीन पर किसी फ़िल्म को रीवाइन्ड किया जाता है।
घड़ी के रुकते ही, काव्या अपने स्कूल में थी! टीचर ने पूरी क्लास के सामने उसे ज़ोर का थप्पड़ मारा… काव्या की चेतना उस थप्पड़ की चोट से पूरी तरह गड़बड़ा गई। वह रोते हुए बोली…
काव्या: मैंने चीटिंग नहीं की मैम।
घड़ी फिर घूमी और काव्या अब कॉलेज में थी। एक सीनियर उसकी ragging कर रही थी… उसके पूरे मुँह पे मेक उप के नाम पर रंग पोता और बाकी जो भी वहाँ थे, सबने काव्या की तस्वीरें खींची। काव्या रोती रही और सीनियर उसकी तस्वीरें खींचते रहे।
घड़ी का काँटा बीच-बीच में घूमता और काव्या अपने कई बुरे यादों को, जिनको वो भुला चुकी थी या याद नहीं करना चाहती थी, उनको फिर से जी रही थी। और जब उसके सब्र का बाँध टूटा, तो काव्या ज़ोर से बोल पड़ी…
काव्या: बस करो, अब बस भी करो। क्या चाहिए तुम्हें? क्यूँ मुझे सज़ा दे रहे हो? मुझे अपने दोस्तों के पास वापस जाने दो, प्लीज़ मुझे जाने दो यहाँ से, प्लीज़।
दूसरी तरफ़़ गुफ़ा के अंदर, आदित्य और छाया मिलकर श्रीधर को ढूँढने की कोशिश कर रहे थे। छाया बार-बार आदित्य की तरफ़ देख कर मुस्कुरा रही थी। आदित्य ने पहले तो गौर नहीं किया था लेकिन जैसे ही उसने ध्यान दिया तो उसने छाया से फ़ौरन पूछ लिया कि वो इतना अजीब behave क्यूँ कर रही है? बार-बार उसे ऐसे मुस्कुराके क्यूँ देख रही है?
आदित्य जिसे काव्या समझ कर सवाल कर रहा था, वो तो दरअसल छाया थी जो कई सदियों के बाद अपनी कैद से आज़ाद हुई थी… और आदित्य उसे पहली ही नज़र में भा गया था। छाया ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि आदित्य का हाथ पकड़ लिया, और आदित्य से कहा - “आदित्य… तुम मुझे बहुत पसंद हो… और मैंने ये तय किया है कि अब तुम मेरे साथ ही रहोगे… मैं तुमसे प्रेम करती हूँ आदित्य… असीमित प्रेम… और मैं जानती हूँ कि तुम भी मुझसे प्रेम करते हो।”
आदित्य: हैव यू लॉस्ट योर माइन्ड? ये कोई नया मज़ाक है क्या तुम्हारा? वैसे ये कोई वक़्त नहीं है मज़ाक का।
आदित्य को ये मज़ाक लग रहा था। तभी छाया एकदम सीरियस होकर बोली कि मैं सच कह रही हूँ… कई सदियों के बाद मुझे किसी से इतना प्रेम हुआ है और वो भी एक ही नज़र में। हमारे यहाँ पहली दृष्टि में प्रेम को बड़ा पवित्र माना जाता है। और हाँ… मैं तुम्हें एक सच बता देना चाहते हैं… क्यूंकि हमारे यहाँ नया सम्बन्ध हृदय में छुपी हुई कोई भी एक बात बताकर करते हैं। तो बात बस इतनी सी है कि… छाया, आदित्य को ये सच बताने ही वाली थी कि कैसे काव्या ने कई सदियों से मिट्टी की मूर्ती में कैद छाया को उसके श्राप से आज़ाद किया और कैसे काव्या ने छाया की जगह ले ली और छाया ने काव्या की। छाया कुछ और कहती, उससे पहले ही संध्या और रुद्र भागते हुए वहां पर पहुँच गए। आते ही संध्या ने आदित्य को छाया का सच बता दिया कि वो काव्या नहीं है… उसका रूप धारण कर लेने वाली एक मायावी है… जिसका असली नाम है छाया। आदित्य को पहले तो यकीन ही नहीं आया फिर जब रूद्र ने बताया कि यही सच है तो आदित्य, छाया से दूर हटने लगा। आदित्य ने पूछा की संध्या और रूद्र को यह बात कैसे पता लगा, तो संध्या ने खुलासा किया की काव्या कभी “आदित्य” नहीं पुकारती, वो सिर्फ “आदि” है। इस अपमान को ना सह पाकर छाया अपने असली रूप में आ गयी… छाया को उसके असली रूप में देखते ही आदित्य का पहला सवाल था कि काव्या कहाँ है? छाया ने ये नहीं बताया और वो संध्या के करीब आकर बोली - “तुमने सब खराब कर दिया। आदित्य को अब मुझपे यकीन नहीं और इसका कारण तुम हो… तुम्हें मैं ऐसे तो नहीं छोड़ सकती… सज़ा के लिए तैयार हो जाओ।”
संध्या: तुम होती कौन हो मुझे सज़ा देने वाली… तुम्हारी वजह से मेरी दोस्त गायब है… तुमने सबसे झूठ बोला, उसका रूप लेकर, उसकी जगह लेने की कोशिश की… अरे सज़ा तो तुम्हें मिलनी चाहिए।
ये सुनकर छाया गुस्से में बोली कि बस बहुत हुआ… तुम्हें पता भी है कि तुम किसके सामने खड़ी हो… किससे बात कर रही हो? मैं छाया हूँ… आदि काल से मुझे मेरे मन का कभी नहीं मिला… हर काल में मुझे मेरे इच्छाओं से वंचित किया गया… पर अब नहीं…
इतना कहते ही छाया ने आदित्य की तरफ़ देखा और उसे बता दिया कि काव्या गुफ़ा के किस हिस्से में कैद है। फिर संध्या का हाथ पकड़ कर छाया वहां से गायब हो गयी। वो संध्या को अपने साथ ले गयी। छाया ऐसा करेगी, रुद्र को इसका अंदाज़ा भी नहीं था। वो छाया को नहीं रोक पाया। आदित्य वहीं ज़मीन पर बैठ गया, उसे लगा उसने एक ही झटके में सब खो दिया। पहले श्रीधर गायब हुआ, उसकी अभी तक कोई खबर किसी को नहीं … पता नहीं वो कहाँ है और उसे वापस लाने का रास्ता क्या है?... फिर काव्या… वो कहाँ कैद है ये पता चलते ही संध्या गायब हो गयी… छाया पता नहीं उसे कहाँ ले गयी होगी…
आदित्य: “कुछ करो रूद्र!”
आदित्य की गुहार सुन, रुद्र ने उसे हिम्मत रखने के लिए कहा फिर कुछ देर सोचने के बाद उसने एक रास्ता निकाला कि आदित्य जाकर काव्या को उसकी कैद से आज़ाद कराये और वो खुद जाकर छाया की कैद से संध्या को छुड़ा लाएगा।
आदित्य: “छाया, संध्या को कहाँ ले गयी है, ये कैसे पता चलेगा?”
आदित्य के सवाल का जवाब देते हुए रूद्र ने बताया कि वो छाया के बारे में जानता है… उसे मिले श्राप की कहानी बड़ी मशहूर है। ये कई सदियों पहले की बात है… छाया अपने कबीले की सबसे बड़ी जादूगरनी थी लेकिन ताकत की भूख ने उसे अंधा कर दिया था… वो अपने ही कबीले के लोगों पर जादू करके उन्हें अपना गुलाम बनाने लगी थी। कबीले में एक रोज़ एक ऋषि आये, वो बड़े सिद्ध पुरुष थे, उनके पास एक दिव्य शक्ति थी… छाया उस शक्ति को हासिल करना चाहती थी… उसने ऋषि को अपने प्रेम जाल में फँसाकर उनसे उनकी शक्ति को चुराने की कोशिश की… ऋषि को आभास हुआ तो क्रोध में आकर उन्होंने छाया को श्राप दे दिया जिसके बाद वो मिट्टी की एक मूरत में बदल गयी… ऋषि ने मिट्टी की उस मूरत को इस हृदय गुफ़ा में लाकर छुपा दिया। तब से लेकर आजतक छाया उसी में कैद थी… रूद्र ने आगे बताया कि छाया इस वक़्त एक ही जगह जा सकती है, गुफ़ा के उस हिस्से में जहाँ उन्हीं ऋषि की मूर्ती लगी है… उस मूर्ती में उनकी दिव्य शक्ति अभी भी मौजूद है… छाया उसे ही हासिल करने गयी होगी… रूद्र के बताये रास्ते को समझते ही आदित्य, काव्या को ढूँढने के लिए निकल पड़ा और रूद्र तेज़ी से दौड़ा, संध्या को बचाने।
रूद्र का कहना बिलकुल सही था… छाया, संध्या को उसी जगह लेकर आई जहाँ ऋषि की पत्थर की मूर्ति लगी हुई थी। उस मूर्ती के ठीक ऊपर एक मणि थी… एक सुनहरी मणि जो हवा में घूम रही थी। छाया ने संध्या को हुक्म दिया कि उस मणि को ले ले… संध्या, मणि लेने के लिए जैसे ही ऋषि की मूर्ती के करीब आई… उसने गौर से ऋषि का चेहरा देखा… संध्या को लगा वो ऋषि को जानती है, वो पहले भी उन्हें कहीं देख चुकी है। संध्या को लेकिन कुछ याद नहीं आया, मणि लेने से पहले संध्या ने ऋषि की मूर्ती के पैर छुए और मणि लेने की आज्ञा मांगी। अचानक ही मणि की रौशनी बढ़ने लगी… बढ़ते हुए रौशनी इतनी तेज़ हो गयी कि उस रौशनी से छाया का पूरा शरीर जलने लगा और देखते ही देखते छाया राख में तब्दील हो गयी।
उधर आदित्य, काव्या को वापस लाने के लिए… रूद्र के बताये रास्ते पर ही चल रहा था लेकिन अचानक ही गुफ़ा ने फिर से करवट बदली और आगे एक रास्ता की जगह तीन रास्ते बन गए… आदित्य जैसे ही वहां पहुंचा तो उसने तीसरा रास्ता लिया लेकिन असल में उसे पहला रास्ता लेना था… तीसरे रास्ते पे चलके आदित्य एक जंगल में जा पहुंचा… वहां एक बड़ा सा तालाब था… अचानक ही आदित्य को बहुत प्यास लगने लगी… पानी पीने के लिए, वो जैसे ही तालाब के करीब आया… उसने पानी में अपनी परछाई देखी… जो शख्स आदित्य को तालाब में दिखा वो आदित्य नहीं था, उसका evil version था… वो दुष्ट शख्स मुस्कुराया और उसने आदित्य को तालाब के अन्दर खींच लिया। पानी के अन्दर, दोनों के बीच हाथ-पाई शुरू हो गयी… ईविल आदित्य, उसे मारने की कोशिश में था… आदित्य मदद के लिए छटपटा रहा था लेकिन वहाँ कौन हो होगा उसकी मदद करने को। वहाँ कोई नहीं था… कोई भी नहीं।
कैसे बच पायेगा आदित्य?
कौन आता है उसकी मदद के लिए?
क्या है उस मणि का रहस्य? और संध्या का उस ऋषि के साथ क्या संबंध है?
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