आदित्य को लगा था कि सब ठीक हो गया है, वो तालाब से सही सलामत बाहर आ गया, उसके दोस्त भी वापस आ गए हैं लेकिन तभी एक नई मुसीबत आ गयी, उन सबको एक और कश्मकश में डालने के लिए। सब दोस्त राहत की साँस लेते हुए तालाब वाली जगह से आगे बढ़े ही थे कि उनकी राहत को हृदय गुफ़ा की नज़र लग गयी। अचानक ही, इतना तेज़ भूकंप आया कि ज़मीन दो हिस्सों में बँट गयी और अगले ही पल आदित्य और उसके दोस्त, ज़मीन के अंदर जा गिरे। कुछ देर बाद, जब होश आया तो आदित्य ने देखा कि वो एक अलग जगह पर है। ये जगह भी हृदय गुफ़ा का ही हिस्सा थी लेकिन यहाँ ज़मीन बिल्कुल बंजर थी, हर जगह छोटे छोटे गड्ढे थे। यहाँ रोशनी थी लेकिन सब जगह सिर्फ़ निऑन लाइटस लगी हुई थी जिनकी रोशनी बहुत ही कम थी। आदित्य ने पहले, ज़मीन को छुआ, महसूस किया, सूंघा और धुल को अपनी जियोलॉजिस्ट वाली नज़रों से देखा; और फिर उसने अपने दोस्तों को ढूँढा। उसे कुछ दूरी पर रुद्र दिखाई दिया। वो काव्या को होश में लाने की कोशिश कर रहा था। जैसे ही काव्या को होश आया और उसने रुद्र को देखा, वो घबरा गई और फ़ौरन ही उठकर पीछे की तरफ़ हट गयी, तभी आदित्य वहाँ आ गया और उसने काव्या को संभालते हुए कहा…
आदित्य: घबराओ नहीं … इट्स ऑल राइट काव्या, ये रुद्र है, अपना रुद्र।
काव्या ने आदित्य का कहा सुना लेकिन सुनकर कुछ कहा नहीं। वो रुद्र के दायें हाथ को देखे जा रही थी। काव्या के चेहरे के भाव देखकर रुद्र समझ गया था कि कुछ तो हुआ है, तभी काव्या डरी हुई थी। काव्या ने एक नज़र रुद्र की आँखें देखी और मन ही मन खुद से कहा…
काव्या: अपना रुद्र?... कौन अपना है और कौन पराया, ये तो वक़्त आने पर ही पता चलेगा।
आदित्य ने काव्या को समझाते हुए आगे कहा...
आदित्य: हम अभी इतने ऊपर से गिरे हैं, शायद तुम अभी चीज़ों को ठीक से प्रोसेस नहीं कर पा रही हो! टेक योर टाइम … एण्ड जस्ट रीलैक्स . सब ठीक है अभी!
काव्या: सब ठीक है? तुम्हें ये सब ठीक लग रहा है? हमारे साथ जो भी हो रहा है, अगर वो सब ठीक है आदि, तो फिर ये सोचो कि यहाँ जो भी ठीक नहीं होगा, वो कितना खतरनाक होगा!
काव्या जब अपनी बात कह रही थी तब रुद्र गौर से उसकी आँखों की तरफ़ देख रहा था। वो समझ चुका था कि काव्या ने ज़रूर ऐसा कुछ देख लिया है जिसने उसे अंदर तक डरा दिया है और वो ये भी जान गया था कि काव्या ने जो भी देखा है, वो रुद्र से ही जुड़ा हुआ है। रुद्र को जानना था कि काव्या ने आख़िर क्या देखा है? ये बात पूछने के लिए रुद्र ने आगे की तरफ़ अपने कदम बढ़ाये ही थे कि तभी संध्या और श्रीधर भी वहाँ आ गए। संध्या ने रुद्र को देखा और उसके पास आकर बोली कि ऊपर से सीधा यहाँ गिरने की वजह से, सबके कपड़ों पर मिट्टी है लेकिन तुम्हारे कपड़ों पर ज़रा-सी धूल भी नहीं है। ऐसा क्यूँ?... संध्या के सवाल का जवाब देते हुए रुद्र बोला…
रुद्र: क्यूंकि मैं सबसे पहले होश में आया था और मैं अपने कपड़ों पर लगी मिट्टी, झाड़ चुका हूँ।
संध्या: फेयर ईनफ, अब ज़रा ये भी बता दो कि हम आख़िर हैं कहाँ?
रुद्र ने बताया कि वो सब हृदय गुफ़ा के और भी गहरे हिस्से में आ चुके हैं। वो सब इस वक़्त एक ख़ास जगह पर हैं, एक बहुत ही ख़ास जगह पर। इस जगह का अपना एक नाम है - प्रेत गली!... यहाँ वो लोग रहते हैं या यूँ कहिये कि प्रेत गली में उन लोगों की आत्मा भटकती है जो हृदय गुफ़ा को खोजने और उसके रहस्यों को जानने के लिए यहाँ तक आ तो गए थे लेकिन यहाँ से कभी बाहर नहीं जा पाए। प्रेत गली में जितने भी प्रेत भटक रहे हैं, वो सब ख़ुद को ज़िंदा मानते हैं। वो आज भी बाहर निकलने का रास्ता खोज रहे हैं, लेकिन उन्हें एक नहीं दो रास्ते खोजने हैं। पहला रास्ता वो जिसपे चलकर वो अपनी बुरी यादों से बाहर आ पाएँ और फिर दूसरा रास्ता वो, जिसपे चलकर वो हृदय गुफ़ा से बाहर निकल सकें। रुद्र ने उंगलियों पर कुछ कैलकुलेट करते हुए आगे बताया कि अभी तक एक भी प्रेत अपने लिए पहला रास्ता नहीं खोज पाया है। यहाँ सब के सब, अपनी बुरी यादों के जाल में फँसे हुए हैं और इस प्रेत गली में ख़तरा है, तो यहाँ से जितनी जल्दी बाहर निकल लिया जाए उतना ठीक है और सबसे ज़रूरी बात जो रुद्र ने कही वो ये थी कि आगे जाते हुए कोई भी, किसी भी सूरत में पीछे मुड़कर नहीं देखेगा।
आदित्य और उसके दोस्त, उस प्रेत गली से बाहर निकलने का रास्ता ढूँढते हुए आगे की तरफ़ जा रहे थे। रुद्र सबसे आगे चल रहा था और बाकी सब उसके पीछे चल रहे थे। अभी तक जितना भी रास्ता तय हुआ था… उस पूरे रास्ते में किसी को एक भी प्रेत नहीं दिखा था। रूद्र भी हैरान था कि सारे प्रेत चले कहाँ गए? तभी वो कहावत सच हो गयी कि नाम लिया और शैतान हाज़िर। श्रीधर को एक आदमी दिखा, उसने कोट-पेंट पहना हुआ था… गले में टाई भी थी। वो श्रीधर के सामने आकर खड़ा हो गया… श्रीधर रुक गया। उस आदमी का चेहरा काफ़ी डरावना था, पर श्रीधर, बिना डरे आगे बढ़ गया। और अब वो आदमी, रोने लगा। किसी ने भी मुड़कर उसकी तरफ़ नहीं देखा। थोड़ा आगे और चलने पर, सब कुछ बड़ा शांत लग रहा था… एक ठंडी हवा का झोंका आया और बहुत सारी नियोन लाइट्स बंद हो गयी… आदित्य ने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया… ये एक लड़की का हाथ था… वो धीरे से आदित्य के कान में बोली - “तुम्हें क्या लगता है?... तुम यहाँ से निकल जाओगे… नहीं… ये बस, एक ग़लतफ़हमी है तुम्हारी… कोई नहीं निकला… ना मुझसे पहले कोई, ना मेरे बाद… सब मर गए… और उन सब की तरह… तुम भी… मर जाओगे।”
आदित्य: तुम जो भी हो, मेरी फ़िक्र मत करो… मैं नहीं मरने वाला।
आदित्य का कॉन्फिडेंस देखकर वो लड़की चिड़ते हुए बोली कि तुम्हारा मरना और जीना… तुम नहीं, ये गुफ़ा तय करेगी… कल किसने देखा है… कुछ भी हो सकता है… ये भी हो सकता है कि इस गुफ़ा के अन्दर तुम दर-दर भटको और भीख माँगो… अपनी मौत के लिए… जैसे मैंने माँगी थी… और तब वो आया… वो जो पहले कभी नहीं आया था, लेकिन हमेशा से यहीं था… छुपा हुआ, इस गुफ़ा में ही कहीं… वो आया और उसने मुझे मृत्यु का वरदान दिया… और बोला… कैद मुबारक।
आदित्य के कंधे से उस लड़की का हाथ जा चुका था लेकिन उसके कहे शब्द आदित्य के मन में अपनी जगह बनाकर बैठ गए थे। वो सोच में पड़ गया कि ऐसा भी क्या हुआ होगा जो वो लड़की ख़ुद के लिए इस गुफ़ा से मौत माँग रही थी और उसे मौत देने वाला, वो कौन था? क्या, यमराज?
आदित्य ने काव्या को बताया, अभी जो भी उसके साथ हुआ और जो भी उस लड़की के भूत ने उससे कहा। काव्या का ध्यान, अभी भी भविष्य की उस तस्वीर पर अटका हुआ था… जो उसने रेगिस्तान में देखी थी। काव्या ने ठीक से आदित्य की बात नहीं सुनी और ये बोलकर आगे बढ़ गयी कि वो ज़्यादा सोच रहा है… और अगर मारने वाला कभी आया भी तो इससे पहले कि वो हमें मारेगा… हम उसकी जान ले लेंगे… और चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाये… एक माँ अपने बच्चे को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। अपनी बात कहकर काव्या तो आगे चली गयी लेकिन आदित्य वहीँ रुक गया… उसे काव्या की कही आख़िरी बात पल्ले नहीं पड़ी… आदित्य ने ख़ुद ही से सवाल किया…
आदित्य: माँ और बच्चा? एक माँ अपने बच्चे को बचाने के लिए किसी भी हद जा सकती है। ये काव्या ने ऐसा क्यूँ कहा? माँ के कॉन्टेक्स्ट में तो बात चल ही नहीं रही थी…
आदित्य दौड़ते हुए काव्या के पास पहुँचा… उसने पूछा कि काव्या ने अभी जो बोला वो क्यूँ बोला… इसपर काव्या ने बात घुमाते हुए कोई और बात कह दी और आदित्य ने उसकी अध-पकी की बात का यकीन भी कर लिया। तभी, सबसे आगे चल रहे रुद्र ने सबको बताया कि वे लोग अब प्रेत गली के सबसे ख़तरनाक हिस्से में आ गए हैं… अब कोई किसी से बात नहीं करेगा, कोई आवाज़ नहीं करेगा और पीछे मुड़कर देखने का तो सवाल ही नहीं है। रूद्र की बात सुनकर, सबलोग थोड़े एक्स्ट्रा केयरफुलl हो गए… अब कहीं कोई आवाज़ नहीं थी, सिवाए उनके फुट स्टेप्स के… सबकी आँखें सामने थी, सबका ध्यान सिर्फ़ रास्ते पर था… तभी, सबसे पीछे चल रही संध्या को उसके पिता की आवाज़ आई। संध्या के कदम डगमगाए, मन विचलित हुआ, लेकिन उसने ख़ुद को फ़ौरन ही संभाला और आगे की तरफ़ चलती रही। संध्या को अपने पिता की आवाज़ फिर से आई… वो संध्या का नाम पुकारते रहे लेकिन वो पीछे नहीं मुड़ी। संध्या के दिल की धड़कने अब तेज़ होने लगी थी… वो कुछ कहना चाह रही थी लेकिन चुप ही रही… संध्या 9 साल की थी जब उसके पेरेंट्स का कार एक्सीडेंट हुआ था… उस दिन संध्या की माँ को मेंटल असाइलम से एक दिन की छुट्टी मिली थी। संध्या की माँ ने कार ड्राइव करने की ज़िद की और संध्या के पिता मना नहीं कर पाए। जब एक्सीडेंट हुआ, तब कार में 9 साल की संध्या भी थी… एक्सीडेंट में बस संध्या ही बच पाई थी क्योंकि वो कार car के बैक सीट पे बैठी थी … संध्या के पिता ने फिर से आवाज़ लगाई… लेकिन इस बार उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि संध्या ने पलट कर पीछे देख ही लिया… उसके पिता ने कहा - “संध्या! क्या हुआ संध्या, तू मुड़कर मेरी तरफ़ देख नहीं रही… मेरा चेहरा देखने में शर्म आ रही है?... या डर लग रहा है कि मेरी आँखों में तुझे वो सच ना दिख जाए… जिसे तूने दुनिया से अब तक छुपा के रखा है… तुझे याद है ना वो दिन… उस दिन जब एक्सीडेंट हुआ था… उसकी ज़िम्मेदार तेरी माँ नहीं थी… उस एक्सीडेंट की ज़िम्मेदार तू थी… वो तेरी वजह से हुआ था… तूने मारा है हम दोनों को… तूने”
संध्या: मैंने? मैंने मारा था? मैं 9 साल की छोटी बच्ची थिस, बाबा! मेरी कोई गलती नहीं थी। माँ ने ख़ुद मुझसे चोकलेट माँगी थी… एक बाइट लेने के लिए वो जैसे ही पीछे मुड़ी, ट्रक वाले ने हॉर्न बजाया था… हॉर्न की आवाज़ से वो घबरा गयीं और कार उनके कंट्रोल से बाहर… इसमें मेरी क्या गलती है बाबा? गलती तो माँ की भी नहीं थी… किसी की कोई गलती नहीं थी बाबा…
अपनी बात कहते हुए ही संध्या रो पड़ी… संध्या की आवाज़ सुनकर उसके सारे दोस्त पीछे मुड़ गए और भागते हुए उसके पास आ गए। तभी संध्या ने देखा कि उसके पिता वहाँ नहीं थे… लेकिन प्रेत गली के सारे भूत वहाँ आ चुके थे… उन सबके चेहरे पर गुस्सा था… तभी रूद्र ने, धीरे से, भागने के लिए कहा… रुद्र और बाकी सभी एक साथ वहाँ से भागे… और उन्हें भागते हुए देखकर… वे सारे प्रेत, एक साथ चीखते हुए उनका पीछा करने लगे।
आगे क्या होगा आदित्य और उसके दोस्तों के साथ?
इतने प्रेतों से वो कैसे बचेंगे?
और क्या उस प्रेत गली से बाहर… निकल पाएंगे वो सभी?
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