सुबह के चार बजने को थे, अयाना उठ गयी…बारह बजे तो सोई थी, घंटे भर करवटें बदली थोड़ा सोई और जल्दी आंख भी खुल गयी, जब मन परेशान हो तो सुख चैन नींद भी अच्छा नहीं लगता, क्या ही करें कभी कभी ऐसी स्थिति हो जाती है बस नहीं चलता है हमारा, इंसान खुद को दलदल में फंसा सा महसूस करता है जिससे वो लाख कोशिशों के बावजूद भी बच नहीं पाता है, उस दलदल से निकल नहीं पाता है। उसके अंदर धंसता ही जाता है, अयाना के हालात भी तो ऐसे ही थे ना माहिर खन्ना नाम का दलदल जिसमें वो फंस चुकी थी और साथ में उसका परिवार भी!
भले ही अपनी फैमिली की खातिर वो माहिर से लड़ने भिड़ने को, उसका सामना करने को तैयार हो गयी थी, पर फिर भी वो बैचेन थी….उसका मन बैठा सा जा रहा था। जिसको देखना नहीं चाहती थी अब उसको उसे देखना पड़ेगा, अच्छा इंसान नहीं है माहिर खन्ना, उसे झेलना बहुत मुश्किल होगा अभी इतना कर चुका है आगे पता नहीं वो क्या करेगा सोच सोचकर अयाना ने अपनी नींद चैन सब गंवा लिया!
रोज सात बजे तक उठने वाली, चाय पीकर ही अपने कमरे से बाहर निकलने वाली लड़की आज वो बिना चाय पिये अपने रूम से बाहर निकल गयी, अपने रूम से बाहर निकली तो उसकी नजर अपनी मां राजश्री जी के कमरें पर चली गयी, वो दरवाजे पर जा खड़ी हुई, आज भी अयाना को महसूस होता था जैसे उसकी मां उस कमरे में है। कहते है ना मां का अहसास उसकी चीजों में भी मौजूद रहता है, जिस भी चीज को वो छूती है वो मां सी हो जाती है!
ये अयाना का मानना था, यूं ही तो उसकी मां ह्रदय में थी पर उस कमरे की चौखट और उस कमरे में मौजूद हर चीज जो उसकी मां से जुड़ी थी उन्हें छूकर उसे अहसास होता जैसे वो अपनी मां को छू रही है, कमरे में आई और मुस्कुराते उसने हर चीज को छूकर देखा, मां को याद किया - "आई मिस यू मां आई रियली मिस यू!" मुस्कुराते आखें छलकाते वो उस कमरे से निकल पिहू के रूम में चली आई, जो बड़े ही आराम से अपने बैड पर सो रही थी। अयाना उसके पास आई, उसको अच्छे से चद्दर ओढ़ाई और उसके सिरहाने बैठ उसके बाल संवार प्यार से उसका माथा चूम मन ही मन खुद से बोली - "पिहू तुम्हारी अयू दी तुम पर कभी भी आंच नहीं आने देगी, तुम मेरी नन्नी सी प्यारी सी वो कली हो जिसे मैं कभी मुरझाने नहीं दूंगी आई प्रोमिस पिहू आई प्रोमिस!"
इतना बोलकर अयाना ने पिहू का हाथ अपने हाथों में थाम ऊपरी ओर से आहिस्ता से चूम लिया, ऐसा करने से पिहू ऊंघ सी गयी। वो उठ ना जाए इसलिए अयाना उसे थपथपाने लगी, पिहू फिर गहरी नींद में चली गयी, वहां से उठकर अयाना प्रकाश जी और सविता जी के कमरे के पास आ खड़ी हुई, दरवाजा बंद था पर वहां की एक खिड़की खुली हुई थी!
अयाना खिड़की से अ़दंर झांकती है उसके मामा जी मामी जी आराम से सो रहे थे, उनको देख वो मुस्कुरा दी और फिर वहां से टेरिस पर चली आई। अभी पूरी तरह सुबह नहीं हुई थी, थोड़ा थोड़ा रात का जाता सा अंधेरा वातावरण में छाया हुआ था, मध्यम मध्यम हवा भी चल रही थी, टेरिस पर आते ही मुडेर के पास आ खड़ी हुई और गहरी सांस ली उसने गहरी सांस भर उसने आखें खोलकर आसमां की तरफ देखा तो तारे हल्के टिमटिमाते नजर आ रहे थे, पर एक ऐसा तारा भी था वहां पर जिसका प्रकाश सब तारों से अधिक था उसको देख अयाना के मुंह से भावुकता भरा मां लफ्ज निकला वो फिर से मुस्कुराते मां बोलती है कि तभी पीछे से आवाज आई - "हां बेटा!"
अयाना पीछे मुड़ी तो देखा उसके मामा प्रकाश जी खड़े थे, अयाना उनकी ओर देखते - "मामा जी आप यहां?"
प्रकाश जी मुस्कुराते - "हां मैं यहां अभी तुमने ही तो बुलाया मुझे...मा...मा दो बार बोला ना तुमने तो देखो मामा आ गये.....ये सुन अयाना मुस्कुरा दी और झट से उनके सीने से लग गयी - "दो बार मां को बुलाती हूं मामा चले आते है!"
"और अपने खरगोश को सीने से लगा लेते है" आगे की लाईन प्रकाश जी बोलते अयाना को बड़े स्नेह से अपने सीने से लगा लेते है!
अयाना कुछ देर उनके सीने से लगी रही फिर वो दूर होते बोली - "आप हमेशा से ऐसे ही है मामा जी, पहले थे वैसे आज हो, बिल्कुल नहीं बदले….जब मैं छोटी थी, मां मां कहती थी तो आप मुझे आकर अपनी गोद में उठा लेते है, मां बोलती मेरी अयू ने मुझे बुलाया तुझे नहीं, तब आप कहते मुझे ही बुलाया है मा मा कहा है खरगोश ने मम्मी नहीं!"
प्रकाश जी - "और फिर जीजी कहती ये कभी नहीं सुधर सकता!"
अयाना - "हां तो सही कहती थी मां, कहां सुधरे हो आप…वही सेम हरकत नो चेंज!"
प्रकाश जी - "तुम कहो तो हो जाता हूं चेंज, मैं सुधर जाऊं.....कि उसी पल अयाना ने उनके मुंह पर हाथ रख दिया - "नहीं नहीं मामा जी इस मामले में कभी नहीं सुधरना कभी मत बदलना, जब मैं मां - मां कहूं चले आना, चले आना...." बोलते अयाना का गला भर आया और वो फिर प्रकाश जी के सीने से लग गयी, बिलखकर रो पड़ी। प्रकाश जी ने उसे संभाला पर रोने से नही रोका ब्लकि ये कहा - "रो ले बेटा मन हल्का हो जाऐगा, तू ना कहे किसी से कुछ भी पर तेरे मन की पीड़ा तेरा मामा समझता है, कर ले मन हल्का!"
अयाना को रोता देख प्रकाश जी की भी आखें भर आई, उन्होनें आसमां में उस तेज टिमटिमाते तारे को देखा और मन ही मन बोले - "जीजी एक मां की तरह जैसे आपने मुझे पाला-संभाला वैसे तो मैं शायद ही अयाना को संभाल पाऊंगा, आप जो नहीं हूं मैं पर कोशिश पूरी करूंगा जीजी मैं कोशिश पूरी करूंगा जब जब इसे जरूरत होगी आपकी मैं रहूंगा इसके साथ…आपकी जगह कोई नहीं ले सकता और ना ही मैं आपकी कमी पूरी कर सकता पर कभी अकेला नहीं छूडूंगा हमारी बच्ची को, वादा है मेरा, आपसे वादा है!"
तभी अयाना उनसे अलग हुई और अपने आंसू पौंछ नोर्मल होते बोली - "आपको कैसे पता चला मैं यहां हूं!"
प्रकाश जी आखों के किन्नारे साफ करते - "जब तुम हमारे कमरे की खिड़की से हमें देखकर जा रही थी तभी आंख खुल गयी थी मेरी, तुम्हें जाते देखा तो मैं उठकर बाहर चला आया फिर पीछे पीछे ऊपर आ गया!"
"अच्छा, तो आप सो नही रहे थे?" अयाना ने सवाल किया तो प्रकाश जी मुस्कुरा दिये - "कभी सोया कभी जागा, रातभर ये सिलसिला चलता रहा, खैर तुम मेरा छोड़ो अपना बताओ…तुम यहां पर क्या कर रही हो वो भी इस वक्त!"
“वो......वो मैं आपका वेट कर रही थी और देखिए आप यहां आ गये, चलिए अब वापस चलते है यहां से हम और चलकर नीचे चाय पीते है!” बोलते अयाना प्रकाश जी की कलाई पकड़ उनको अपने साथ टेरिस से नीचे की ओर लेकर चल दी!
प्रकाश जी सिढियां उतरते - "बोल तो ऐसे रही हो जैसे मुझे कुछ मालूम ही नहीं, नहीं बताओगी तो मुझे पता नहीं चलेगा!"
अयाना मुस्कुरा दी - "जब पता है तो पूछते क्यों है सब तो जानते है आप, जानकर भी अंजान बनने की कोई जरूरत नहीं है और जिस सवाल का जवाब मुझसे चाहते हो आप….उसका जवाब पहले से आपको पता है फिर भी सवाल करना, ये तो गलत बात है ना मामा जी!"
"ओह तो अब ये बात है!"
"बिल्कुल!"
"तुम भी ना खरगोश, बहुत होशियार बनती हो!"
"बनती हो, मैं होशियार हूं, आपकी खरगोश पैदा ही होशियार हुई थी मामा जी!"
"हां ये तो है, बहुत स्मार्ट हो तुम….तभी तो बड़े बड़ो के छक्के छुड़ा दिए है तुमने, अपनी स्मार्टनेस के चलते, अब तो देखना बाकि है उस माहिर खन्ना का क्या ही हाल होता है जिसने मेरी खरगोश से पंगा लिया है!"
“हाल तो बेहाल ही होने वाला है मामा जी!” अयाना ने माहिर के बारे में सोचते मन ही मन खुद से कहा और फिर प्रकाश जी से बोली - "आप उस माहिर खन्ना को छोड़िए, अभी मुझे उसके बारे में कोई बात नहीं करनी….आप चलकर बैठिऐ मैं हम दोनों के लिए अभी अच्छी सी चाय बनाकर लाती हूं!"
दोनों नीचे पहुंच गये थे, प्रकाश जी को चाय का बोल अयाना किचन की ओर जाने लगी कि प्रकाश जी साथ साथ चल दिये - "आज साथ साथ चाय बनाएगें और साथ साथ पिएगें!"
ये सुन अयाना खुश हो गयी - "गुड आईडिया!" और दोनों मामा भांजी किचन में चले गये!!
सविता जी अपने कमरे कि चौखट पर खड़ी अयाना और प्रकाश जी को हंसते मुस्कुराते एक साथ किचन में जाते देख मुस्कुरा दी, हालाकिं उनकी आखें छलक उठी थी। वो आखें साफ करते हुए राजश्री जी को याद करती है - "जीजी आपको अयाना की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, ये है ना संभाल लेगें….मामा और मां दोनों का बखूबी फर्ज निभा लेगें, आपको विश्वास है ना जीजी आपके भाई पर, मुझे तो है जीजी जैसी मेरे लिए मेरी पिहू है वैसी अयाना है, शायद इस बात को कोई और भले ही ना समझे पर आप तो हमेशा से समझती आई है ना, हम हमारी बच्चियों के साथ हमेशा रहेगें हमेशा!"
जरूरी नहीं होता जिस इंसान का लहजा कड़वा हो तो वो इंसान भी बुरा होता है, कभी कभी किसी एक को कड़वा होना बनता है, सब मीठे हो जाए तो मजा थोड़ी आता है जिंदगी का, संतुलन भी तो जरूरी होता है ताकि जिंदगी-परिवार सुचारू रूप से चलते रहे। कभी प्यार काम करता तो कभी किसी का डर, प्यार करने के साथ कोई फटकार लगाने वाला भी तो होना चाहिऐ, अपनों के भले के लिए किसी एक को कठोर होना पड़ता है तो बस सविता जी भी ऐसी है, बाहर से कठोर अंदर से कोमल….जिनकी कोमलता हर किसी को दिखाई नहीं देती पर वो भी मां सा कोमल ह्रदय रखती है इस बात में कोई दोहराई नहीं थी!
_________
अयाना आयने के सामने खड़ी बाल बना रही थी कि तभी उसका फोन बीप किया, जो उसके सामने ड्रेसिंग पर ही रखा था….उसने फोन उठाकर देखा तो उसकी आखें फैल गयी!!
अयाना के फोन पर मैनैजर अनुज का मैसेज आया था जिसमें उसने अयाना को 7.30 बजे तक ऑफिस आने को कहा था, साथ में देर नहीं करना वरना बॉस गुस्सा करेगें का नोट भी डाला था,और 7.30 होने में अभी 25 मिनट ही बाकि थे,और घर से माहिर खन्ना के ऑफिस तक जाने में लगने वाला समय 40 मिनट से ज्यादा था, अनुज का मैसेज देख अयाना की भोहें
सिकुड़ गयी - “मैं इतनी जल्दी ऑफिस कैसे पंहुचुगी? ऑफिस इतना दूर, मैं अभी तक घर पर हूं, ऐसा थोड़ी होता है….ऑफिस का तो समय आठ बजे के बाद का होता है फिर ये समय क्यों बोला है मैनैजर अनुज ने” पूछती हूं कहते उसने अनुज को मैसेजस कॉल्स सब कर डाले पर उसकी तरफ से कोई रिस्पांस न आया।
अयाना ने अपना सिर पकड़ लिया और पैर जमीन पर पटकते बोली - "अब क्या करूं मैं, जो टाइम दिया है उस तक तो नहीं पहुंच पाऊंगी, मेरे पास तो साधन भी नहीं है कोई, स्कूटी भी खराब है….दिये गये वक्त पर नहीं पहुंची तो वो माहिर खन्ना गुस्सा क्या करेगा कोई नयी मुसीबत खड़ी कर देगा। हे माता रानी कोई रास्ता दिखाओ या फिर उस माहिर खन्ना को धरती से उठा लो, ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी....गुस्से में बड़बड़ाते वो जल्दी जल्दी रेडी होने लगी!
इधर अयाना को माहिर पर गुस्सा आ रहा था उधर माहिर हाईवे पर अपनी गाड़ी से सटकर खड़ा अयाना के बारे में सोचते मुस्कुरा रहा था और साथ साथ हाथ में मौजूद अनुज के फोन को वो गेंद की तरह उछाल रहा था, अनुज जो उसके सामने खड़ा एकटक उसको देख रहा था!
माहिर ने अनुज की ओर देखा - "फोन चाहिऐ?"
"फोन तो रखो तुम अपने पास पर माहिर ये क्या कर रहे हो तुम?"
"माहिर?"
"हां माहिर क्योकि ना तो मैं अभी ऑफिस में हूं और ना ही तुम्हारा मैनेजर, पहले ही अयाना की मुश्किलें तुम बढ़ा चुके हो अब और क्यों बढ़ा रहे हो?"
"मजा आ रहा है पता तो चले आखिर खिलाड़ी में कितना दम है!"
"खिलाड़ी में तो दम बहुत है, कोई खेल खेल रहे हो ना तो सही रूल के साथ खेलो!"
"खेल भी मेरा रूल भी मेरे!"
“माहिर ये गलत है, ऑफिस में आने का समय साढ़े आठ के बाद का है और तुम उसे इतनी जल्दी बुला रहे हो पहले तो तुमनें कहा आज सुबह उसे मैं टाइम बताऊं और अब देखो क्या किया है तुमनें, इतनी जल्दी वो कैसे जाएगी.….”
माहिर ने उसका फोन उसकी तरफ फैंक दिया - "ये उसकी सिर दर्दी और हां उसकी हेल्प की तो नया दोस्त नया बॉस ढूंढ लेना इतना कह माहिर गाड़ी में बैठ वहां से चला गया!
अनुज उसे आवाज देता रह गया, उसके जाने के बाद अनुज ने अपने फोन को देखा - "एम सॉरी और ऊपर की ओर देख बोला - “मैं तो नहीं कर सकता पर आप उस लड़की की मदद जरूर करना, दिये वक्त पर तो वो नहीं आ पाएगी, बस माहिर को झेलने की हिम्मत उसे दे देना….वैसे कम तो वो लड़की भी नहीं है नहले पे दहला वाला काम होगा……”
No reviews available for this chapter.