अयाना जल्दी से रेडी हुई, बैग लिया, फोन उठाया और उसमें टाईम देखते हुए घर से भागी, "पिहू हम जा रहे है......" उसकी आवाज सुन पिहू सविता जी के साथ किचन से बाहर आई तब तक अयाना घर से जा चुकी थी।

सविता जी— "इतना जल्दी जाना पड़ेगा अयाना को?"

पिहू— "जिस तरह अयू दी भागे है उसे देखकर तो यहीं लगता है मम्मी, जल्दी क्या कभी भी जाना पड़ सकता है। ये माहिर खन्ना मेरी दी की जिंदगी में मुसीबत बनकर आया है…मुसीबत।"

---  

“क्या मुसीबत है, कैसे पहुंचूंगी ऑफिस दस मिनट तो यहीं लग गए, मामा जी भी घर पर नहीं थे वो बाहर न जाते काम से तो वो पहुंचा देते अपनी बाईक से मुझे माहिर खन्ना के ऑफिस, कोई ऑटो भी तो नहीं दिख रहा। हे मातारानी कोई तो रास्ता दिखाओ, पैदल चलेगे तब भी नहीं पहुंच पाएगें इतनी जल्दी भला कौन बुलाता है। मैनैजर अनुज भी फोन नहीं उठा रहे, पक्का माहिर खन्ना ने मना किया होगा, छोड़ेगें नहीं हम तुम्हें, हमें परेशान करना बहुत भारी पड़ेगा। नाक में दम न कर दिया मैने तुम्हारे तो मेरा नाम भी अयाना मिश्रा नहीं, लिफ्ट लेते है किसी से...” अयाना सड़क किनारे चलती इधर-उधर देख रही थी, कोई रिक्शा, कोई ऑटो, कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। 

“कुछ तो हेल्प करो माता रानी, लिफ्ट भी किससे ले कोई नजर ही नहीं आ रहा।” माथे पर हथेली रख ऊपर की ओर देखते अयाना खुद से बड़बड़ाई, कि तभी एक गाड़ी के होर्न की आवाज उसके कानों में पड़ी। होठों पर मुस्कुराहट आ गयी, सामने देखा तो व्हाईट कलर की बड़ी सी गाड़ी आ रही थी।

“थैंक्यू माता रानी” अयाना खुश होते बोली और उस गाड़ी की तरफ हाथों को हिलाने लगी— "इस गाड़ी से लिफ्ट मिल जाए बस, देर से पहुंचना तो पहले से तय है बस (पास आती गाड़ी की ओर देखते हुए) रूक जाये ये गाड़ी" बोलते वो जोर-जोर से हाथों को हिलाने लगी, तभी वो गाड़ी उसके सामने आ रूकी। अयाना गाड़ी के पास आई, उस गाड़ी का शीशा नीचे हुआ, अयाना ने गाड़ी में बैठे शख्स को उम्मीद भरी नजरों से देखा, तो वो कोई और नहीं, सार्थक था—सार्थक अग्निहोत्री।  

“लिफ्ट चाहिए?” सार्थक ने हल्का सा मुस्कुराते हुए अयाना से पूछा, तो उसने हां में सिर हिलाते "जी" बोल दिया।  

फिर सार्थक अयाना को गाड़ी में बैठने को कहता है— "आओ"

ये सुन अयाना उस जगह से नहीं हिली, तो सार्थक हंस दिया— "अरे, लिफ्ट भी चाहिए और परेशान भी हो रही हो? समझ गया, डोंट वेरी, सेफ है मुझसे लिफ्ट लेना। मैं बीवी-बच्चे वाला हूं और मैने अपनी बीवी से वादा भी कर रखा है उसे छोड़ दुनिया की बाकी सारी लड़किया मेरी बहन है। सो ज्यादा मत सोचो, परेशान होने की जरूरत नहीं है। विश्वास कर सकती हो, और बड़े भाई से बेफिक्र होकर लिफ्ट ले सकती हो। जहां जाना है, मैं पहुंचा दूंगा।" 

सार्थक की ये बात सुन अयाना मुस्कुरा उठी और वो गाड़ी में बैठ गयी— "थैंक्यू सो मच, सर!"

“सर... हम्म, चले?” सार्थक ने पूछा, तो अयाना ने हामी भर दी और सार्थक उसे वहां से लेकर चल दिया। 

सार्थक— "बड़ी जल्दी आ गया यकीन तुम्हें मुझपर?"

अयाना— "बातों से ही नहीं, आखों से भी जब किसी की सच्चाई झलकती हो तो यकीन आ ही जाता है। जान गये हम, आपने जो हमसे कहा वो सच कहा है। सच-झूठ, अच्छे-बुरे की समझ हमें भी है—ज्यादा नही तो थोड़ी बहुत ही सही, पर है। और हां, आप अपनी वाईफ से बहुत प्यार करते है, इस बात में भी कोई दोहराईं नहीं, है ना!"  

“बिल्कुल! वो है ही इतनी प्यारी, प्यार तो करूंगा ही ना!” सार्थक ने कहा।  

"जी!" अयाना ने कहा और उसने फिर फोन की ओर देखा— "सात मिनट बचे है दिये गए वक्त में….ये मिस्टर खन्ना भी न, दिमाग खराब है पूरा। हमें परेशान करने के अलावा जैसे कोई और काम ही नहीं बचा हो उनकी जिंदगी में। सुबह-सुबह पीछे पड़ गये! ठीक से सुबह तो हो जाने देते, पर नहीं, चैन कहां? रात तो खराब की, अब दिन भी खराब करेगें। मेरे पीछे तो हाथ धोकर पड़ गये, और तो और, मैनैजर अनुज भी कोई जवाब ही नहीं दे रहे! सामने ना सही, इधर-उधर होकर तो वो जवाब दे सकते है न? इतना भी क्या कठपुतली बनना? वो भी ऐसे आदमी के लिए जो लायक भी नही कि उसकी बातें मानी जाए...."  

अयाना मन ही मन खुद से बड़बड़ा रही थी। सार्थक ड्राईव करते हुए बार-बार उसकी तरफ देख रहा था। अयाना के हाव-भाव बदलते देख वो हैरान भी हो रहा था और उसे हंसी भी आ रही थी। जब उससे रूका न गया, तो वो बोल पड़ा— "हेल्लो!"

अयाना ने नहीं सुना, तो सार्थक ने गाड़ी का होर्न बजाया, जिससे अयाना का ध्यान उस पर गया। 

सार्थक—"क्या हुआ?" 

अयाना—"कुछ नहीं!" 

सार्थक—"मैनें आवाज दी, सुना नहीं आपने?"  

अयाना—"वो.... मैं....." 

सार्थक—"सच बताना, गाली दे रही थी न आप किसी को? वो भी मन ही मन?"

अयाना—"हां... ना"

सार्थक—"हां या ना?"

अयाना—"ना!"

सार्थक हंस पड़ा—"जिस तरह से आपके चेहरे के एक्सप्रेशन बदल रहे थे बार-बार, ऐसा लग रहा था आप किसी को बुरा-भला सुना रही हो। अगर वो जो भी है सामने आ जाए, तो आप उसका मर्डर ही कर डालो।" 

“मन तो यही कर रहा है!” अयाना मन ही मन खुद से बुदबुदाई और हल्का सा मुस्कुराते सार्थक से बोली—"ऐसी बात नहीं है!"

सार्थक—"अच्छा! वैसे अगर ऐसा है भी तो आपसे गाली सुनने वाले की खुशनसीबी होगी, जो इतनी प्यारी लड़की से उसे गालियां मिल रही है।" 

अयाना—"खुशनसीबी-बद्दनसीबी का तो पता नहीं, पर हां, हम गालियां नहीं देते। मां ने सिखाया है गाली देना अच्छा व्यवहार नहीं है और हमारे संस्कार हमें अच्छे व्यवहार करने की ही परमिशन देते है, दुर्व्यवहार करने की नहीं!"  

सार्थक—"ओके, इट्स गुड!" 

अयाना—"जी!"

---  

मिश्रा हाऊस

प्रकाश जी घर आते ही अयाना को "खरगोश" बोलकर आवाज देते है, वहीं सविता जी आंगन में ही बैठी थी।  

“आ गये आप?” सविता जी ने हल्का सा मुस्कुराते हुए पूछा।  

“हम्म....” कहते प्रकाश जी उनके पास वाली चेयर पर बैठ गये… 

सविता जी उनके हाथ पर हाथ रखती है—"बना काम, जिस काम से गये थे?"

“नहीं, पर बन जाएगा जल्द…चिंता मत करो!” प्रकाश जी ने कहा।  

तभी वहां पिहू आ गयी—"पापा!" 

प्रकाश जी—"हां बेटा!"  

पिहू—"चाय बना दूं?" 

प्रकाश जी—"खरगोश कहां है?"  

सविता जी—"वो तो गयी!"  

प्रकाश जी—"कहां?"

पिहू—"माहिर खन्ना के ऑफिस!"

ये सुन प्रकाश जी चौंकते हुए उठ खड़े हुए—"क्या? वो चली गयी? इतनी जल्दी? मैने बोला था….सुबह अकेले मत जाना, साथ चलूंगा...." बोलते उन्होनें अयाना को फोन लगाया। 

अयाना का फोन बजा "मामा जी" कहते वो प्रकाश जी का कॉल रसीव करती है—"हां मामा जी?"  

प्रकाश—"अयाना बेटा, तुम अकेली क्यों चली गयी? मैनें कहा था न, मैं साथ चलूंगा, अकेले मत जाना….मैं जल्दी घर भी आया, तुम पहले ही निकल गयी!"  

अयाना—"निकलना पड़ा मामा जी, इंतजार नहीं कर सकते थे। उधर से जो आने का वक्त दिया गया, उसके अकोर्डिग हम आपका वेट नहीं कर पाए। जल्दी आने को कहा गया है… रूकते तो और देर हो जाती, तो आप ही बताइए, क्या करते हम? इसलिए हम निकल गए अकेले ही।" 

प्रकाश जी—"आठ भी नहीं बजे बेटा! और जितना मुझे पता है, उनके ऑफिस का टाईम इतना जल्दी तो नहीं होता।"  

अयाना—"पता तो हमें भी है मामा जी! देरी से वक्त भी बताया गया है, और जानबूझकर जल्दी आने को कहा गया है। सब पता है हमें! आठ बजे ही मोस्टली सबका टाईम होता है, नौ बजे तक ऑफिस शुरू होता है। फिर भी उन्होनें मुझे अलग टाईम दिया है। कौन सा पहाड़ खुदवाना है उनको हमसे जल्दी बुलवाकर? वहीं पर जाकर पता चलेगा, और हम जा रहे है।"  

प्रकाश जी चिंता भरे स्वर में—"खरगोश!" 

अयाना—"मामा जी, आप टेंशन मत लीजिए! हम ध्यान रखेगें अपना। अच्छा करते है, आपसे बाद में बात….ओके?" इतना कह अयाना ने कॉल कट कर दिया और आखों को मूंदकर गहरी सांस भरी।

सार्थक—"कोई परेशानी?" 

अयाना ने उसकी ओर देखा—"नहीं!"  

सार्थक—"चाहो तो बता सकती हो। बहन जैसी हो मेरी….क्या पता, कुछ मैं आपकी मदद कर पाऊं? काफी परेशान दिख रही हो?"  

अयाना—"एक्चुअली, मुझे कहीं जल्दी पहुंचना है और मैं ऑलरेडी लेट हूं। मदद तो आप कर रही रहे है—ऑटो….वगैरह कुछ नहीं मिल रहा था, आपने गाड़ी रोकी मेरे लिए। थैंक्यू! बस, आप थोड़ा सा गाड़ी तेज चलाएगें ताकी मुझे और देर न हो। प्लीज!"

सार्थक—"ओके-ओके! कहां जाना है? एडरेस बताओ, वो अभी तक तुमनें बताया नहीं न?"  

अयाना—"खन्ना इंडस्ट्रीज" 

ये सुनते ही सार्थक ने गाड़ी के ब्रेक लगा दिए।

---  

खन्ना विला

“ये सार्थक कहां रह गया? मुझे कहा था—'आ रहा हूं, बस थोड़ी देर में' उस थोड़ी देर को कितनी देर हो गयी? अब तक नहीं आया....” अपने रूम से बाहर आती साक्षी मुंह बनाते बोली।  

तभी रियान ने उसे आवाज दी—"मॉम" 

साक्षी रियान की ओर देखती है, जो ऊपर सिढियो के पास खड़ा अपने बालों में हाथ घुमा रहा था।  

साक्षी मुस्कुरा उठी—"बिल्कुल अपने मामा की कॉपी है! सही बोलता है सार्थक..." बोलते वो तेजी से चलते उसके पास चली आई—"क्या हुआ?" 

“मेरी नोटबुक कहां है?” रियान कमर से हाथ टिकाते बोला।  

साक्षी—"नोटबुक?"

रियान—"यस, नोटबुक! EVS की!"

साक्षी—"वो.…वो टेबल ड्रोर में है!" 

रियान—"नहीं है!"

साक्षी—"है.... मैनैं ही रखी थी…चलो, देती हूं!" बोलते वो रियान के साथ उसके कमरे की ओर जाने लगी, जो ऊपर माहिर के रूम के साथ ही था..…कि तभी माहिर अपने रूम से बाहर निकल आया। 

साक्षी उसकी ओर हैरानी से देखती है, क्योकि वो जल्दी में दिखाई पड़ रहा था—"माही...."  

माहिर कोट के बटन लगाते—"हां दी?"

साक्षी—"आज इतनी जल्दी रेडी भी हो गये?"  

माहिर—"हम्म!"  

साक्षी—"ऑफिस जा रहे हो?"

“हां, बाय दी!”(साक्षी की बाहं पर हाथ रख) “बाय!” (रियान का सिर सहलाते हुए) “चैंप.....” साक्षी कुछ कह पाती, माहिर भागते वहां से चला गया। उसे जाते देख रियान साक्षी की ओर देखते फट से बोला—"मॉम, मामू इतनी जल्दी तो ऑफिस कभी नहीं जाते"

साक्षी—"या.…बिना ब्रेकफास्ट किए भी नहीं जाता" 

रियान—"फिर आज क्या हुआ मॉम?"

साक्षी हैरान(परेशान होती)—"पता नहीं रियू! कुछ तो हुआ है जो आजतक नहीं हुआ, और क्या हुआ है? ये तो माहिर खन्ना ही जाने...!"  

---  

माहिर जल्दी से अपनी गाड़ी में आकर बैठता है और ड्राईवर से “चलो जल्दी!” कहकर अपनी हैंडवॉच पर नजर डालता है। होठो पर तिरछी मुस्कान ने आकर कब्जा जमा लिया। 

"अयाना मिश्रा, दिये गये वक्त पर तो तुम पहुंच नहीं पाओगी….तब क्या होगा, सोचा है तुमनें? तुमनें नहीं सोचा होगा, पर मैने सोच लिया। माहिर खन्ना से टकराने का अंजाम आज तुम देखोगी। जो भी होगा तुम्हारे साथ, तुम्हारे पैरों तले जमीन खिसक जाएगी।

अभी तो शुरूआत हुई है….देखती जाओ, बीतता हर पल तुम्हारे लिए कितना मुश्किल भरा होने वाला है। माहिर खन्ना से उलझने की सजा अब तुम्हें हर पल मिलेगी। चाहे दिन हो चाहे रात….सोओगी तो चैन नहीं मिलेगा, जागोगी तो सुकून नसीब नहीं होगा। माहिर खन्ना (एटीट्यूड और गुस्से भरे लहजे में) अब तुम्हारी जिंदगी नरक बना देगा—नरक!"

---  

“क्या हुआ? आपने गाड़ी क्यों रोक दी? मैनें जल्दी चलने को कहा था, आप तो रूक ही गये। मुझे जल्दी पहुंचना है खन्ना इंडस्ट्रीज….देर तो पहले ही हो गयी, और देर हुई तो वहां बैठा राक्षस-रूपी इंसान मेरे लिए मुश्किलें बढ़ा देगा। कसर तो पहले ही नहीं छोड़ी उसने, और मुश्किलें खड़ी कर दी तो पल भर सांस लेना दुर्लभ हो जाएगा!” अयाना परेशान होते हुए एक ही सांस में बोली।  

सार्थक हैरान होते—"किसकी बात कर रही हो?"  

अयाना—"किसकी? क्या, माहिर खन्ना की बात कर रहे है—खन्ना इंडस्ट्रीज के कर्ताधर्ता। जिसके कदम मेरी जिंदगी में क्या पड़े, जिंदगी में उथल-पुथल ही मच गयी….न जाने कौन सी वो अशुभ घड़ी थी जिसमें मेरा उससे मिलना हुआ। अब तो अपने ही किए हुए अच्छे कर्मों पर शक होने लगा है, कहते है—'अच्छे कर्म करो, तो अच्छा होता है।' पर जो बुरा हो रहा है हमारे साथ, उसका क्या? वो भी उस माहिर खन्ना की वजह से!"  

“माहिर खन्ना की वजह से?” सार्थक चौंकते हुए बोला।  

“हां! और तो और, पता भी नहीं, जाने-अनजाने में हमनें कौन से ऐसे बुरे कर्म कर दिए जो हमें भी नहीं पता, पर उनकी सजा हमें मिल रही है। खैर, आप हमें पहुंचा दीजिए न? प्लीज, जल्दी से खन्ना इंडस्ट्रीज के ऑफिस….वहां जाकर पता तो चले, वो आफत खोर मेरे लिए और कौन सी आफत खड़ी करने के फिराक में है? (हाथ जोड़ते) प्लीज, चलिए न!”  

सार्थक ने हां में सिर हिलाया—"जी!" और अयाना को लेकर वहां से चल दिया। अयाना सिर पकड़े गाड़ी से बाहर देखने लगी। 

सार्थक एक नजर उसे देख मन ही मन बोला—"कौन है ये लड़की? माहिर से इसका क्या लेना-देना? क्या किया माहिर ने इसके साथ? जिस तरह ये बोल रही है, रियेक्ट कर है, उस हिसाब से तो लगता है माही और इस लड़की के बीच का मामला तगड़ा है। पर क्या है मामला?" 

 

क्या सार्थक जान पाएगा माहिर और अयाना के बीच का मामला?

क्या अयाना खन्ना इंडस्ट्रीज के ऑफिस आसानी से पहुंच पाएगी? 

या फिर रास्ते में और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा उसको?

और क्या करेगा माहिर खन्ना अयाना मिश्रा के साथ?

Continue to next

No reviews available for this chapter.