मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों! 

हमारे गाँव बखेड़ा में हमें हमेशा यही सिखाया गया था कि मुसीबत पड़ने पर कभी भी भागो मत। हमेशा डट के उस मुसीबत का सामना करो, अगर मुसीबतों से भागते रहोगे तो जिंदगी की रेस में हार जाओगे और ओलंपिक्स में भी मुसीबतों से भागने का कोई कॉम्पिटिशन नहीं होता। इसलिए मर्द बनो और मुसीबतों का सामना करो। जब हम शहर आये तो हमें पता चला कि इंसान के पास "आई क्विट" का भी ऑप्शन होता है अगर आपको नौकरी में बॉस परेशान कर रहा है तो रिज़ाइन मार दो। आपको कॉलेज की पढ़ाई पल्ले नहीं पड़ रही तो ड्रॉपआउट बनके स्टार्टअप खोल लो, अगर आपका अपनी बीवी से रोज झगड़ा हो रहा है तो बीवी से डिवोर्स लेकर उसे हर महीने ऐलिमनी भरते रहो, पर महाराज हमारे जैसे गरीब के पास ना तो ऐलिमनी भरने के पैसे हैं और ना ही स्टार्टअप का कोई आइडिया जिसपर व्हेल टैंक वाले पैसे लगाए.. इसलिए मैं तो आज भी अपने बॉस की गालियाँ खा-खा कर कॉर्पोरेट में मजदूरी किये जा रहा हूँ क्योंकि क्विट करने का ऑप्शन भी किसी किस्मत वाले के पास ही होता है। जैसे इस समय शौर्य बेला भौजी के साथ शादी के रिश्ते से quit करना चाहता है पर उसकी किस्मत भी मेरी तरह खराब है। हरिश दद्दा ने उससे क्विट करने का ऑप्शन छीन लिया है। इसलिए उसने ऐसा एक तिगड़म लड़ाया जिससे कि बेला भौजी ही इस शादी के रिश्ते से क्विट मार जाएं। उसने बेला भौजी के चलते व्लॉग में उनके कान में कुछ ऐसा फुसफुसाया जिसे सुनते ही बेला भौजी शॉक्ड हो गईं और चलते व्लॉग में चक्कर खाकर बेहोश हो गईं। बेला भौजी को बेहोश होते देख हरिश दद्दा और बब्बन चाचा समेत पूरा दूसरा गाँव उनकी ओर दौड़ा। गाँववालों ने बेला भौजी के मुँह पर पानी मारा.. उन्हें बदबूदार मोजा भी सुंघाया पर उन्हें होश नहीं आया। ये देखकर हरिश दद्दा बहुत टेंशन में आ गए।

हरीश: बुड़बक, ऐसा तुम का बोल दिए बेचारी लड़की के कान मा जो वो बेहोश ही हुई गई? और अब होश मा ही नहीं आ रही है।

शौर्य चुपचाप खड़ा रहा क्योंकि अपने दादाजी को सच बताने की हिम्मत उसमें नहीं थी।

हरीश: मारेंगे लप्पड़, जीभ लपलपाती चलती हुई बुलेट ट्रेन को पीछे छोड़ देई। जल्दी फूटो, मुँह से का बकवास किये हो तुम बेला के कान मा!
शौर्य: दादा जी, मैंने तो बस बेला को इतना ही बताया था कि मैं शहर छोड़कर गाँव क्यों आया। मुझे क्या पता था कि ये सुनके वो बेहोश हो जाएगी!
हरीश: बेला को होश ना आया ना तो हम तुम्हें कोमा मा भेज देब।

हरिश दद्दा की वार्निंग सुनकर शौर्य घबराया और वो बेला भौजी को होश में लाने के तरीके सोचने लगा। शौर्य को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे जिससे बेला भौजी होश में आ जाएं क्योंकि दूसरे गाँव वाले ऑलरेडी सारे नुस्खे लगा चुके थे। तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया और उसने बेला भौजी का कैमरा उठाया और कहा…
शौर्य: बेला अगर तुम होश में नहीं आई तो मैं तुम्हारा कैमरा तोड़ दूँगा!

शौर्य की बात सुनते ही बेला भौजी के अंदर की इन्फ्लुएंसर तुरंत होश में आ गई, “खबरदार जो मेरे कैमरे को हाथ भी लगाया तो!” 
बेला भौजी को होश में देखकर हरिश दद्दा और दूसरे गाँववालों ने चैन की साँस ली पर सबसे बड़ी साँस खींची शौर्य ने क्योंकि अगर बेला भौजी होश में नहीं आती तो हरिश दद्दा उसे वेंटिलेटर पर पहुँचा देते। तभी बब्बन चाचा बोल पड़े, “बेला बिटिया आखिर तुम्हें हो क्या गया था?” 
बेला ने शौर्य की ओर देखा और फिर सभी गाँववालों को देखा। उसने इतनी भीड़ के सामने बात करना सही नहीं समझा और बब्बन चचा को लेकर दूसरे कमरे में चली गई। हरिश दद्दा और सब दूसरे गाँव वाले क्यूरियोसिटी के मारे कमरे के बाहर कान टिकाके खड़े हो गए पर किसी को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। फिर कमरे से बब्बन चाचा की चीखने की आवाज़ आई। कमरे का दरवाजा खुला और बब्बन चाचा गुस्से में बाहर आए और हरिश दद्दा से बोले… “हरिश जी ये शादी नहीं हो सकती!”
हरीश: देखिए हम जानत हैं कि हमरे पोता से गलती हुई है पर हम आपका गारंटी देत हैं कि उ शादी के बाद सुधर जाई।

बब्बन चाचा अब कहाँ सुनने वाले थे, वो बोले, “हरिश जी ऐसे लोग कभी नहीं सुधार सकते और ये कोई गलती नहीं है। हम फिल्मों में देखे हैं ये सब तो टोटल स्वभाविक होता है और जब स्वभाव ही ऐसा हो तो उसमें सुधारने का कोई स्कोप ही नहीं रहता।”
हरीश: कैसा बात कर रहे हो बब्बन! शादी के बाद तो अच्छे अच्छे सुधार जाते हैं। हमरा पोता भी सुधर जाई। हमपे नहीं तो अपनी बिटिया पे ट्रस्ट रखो।

बब्बन चाचा ने कहा, “हरिश जी हमारी बिटिया तो बस प्यार दे सकती थी आपके पोते को पर आपका पोता तो हमारी बिटिया का प्यार एक्सेप्ट ही नहीं कर सकता। ये कार्ड इस मशीन में स्वाइप नहीं हो पाएगा!”
हरीश: बब्बन ये तुम क्या बात कर रहे हो? हमरे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा भाई!

बब्बन चाचा हरीश दादा से बोले, “हरीश जी आप अपने पोते की तलवार के लिए मायान ढूंढ़ रहे हैं पर आपका पोता तो तलवार से तलवार लड़ाना चाहता है!”
हरीश: बब्बन ई तलवार.. मायान? ई सब का लगा रखा है.. साफ साफ शब्दों में कहो कि दिक्कत का है?

इतनी देर घुमाने के बाद बब्बन चाचा ने वो कहा जो बेला भौजी ने उनसे कमरे में बताया, “दिक्कत ई है हरीश जी की आपका पोता पोता नहीं है! उसे लड़कियां नहीं लड़के पसंद हैं।”
हरीश: का बकवास कर रहे हो बब्बन! हमरा पोता पोता नहीं है? ई का बक रहे हो तुम?? कौन बोला तुमको ये बकवास?

बब्बन चाचा ने जवाब दिया, “आपका पोता खुद बोला है हमरी बिटिया को कि उसका शहर में किसी लड़के के साथ इलू इलू था और वो दोनों होटल में पकड़े गए जिसके बाद उसे शहर छोड़के गांव आना पड़ा आपके पास।”
ये सुनके हरीश दादा भौचक्के रह गए।
हरीश: शौर्य ई सब का बकवास है? तुम अगर हमरे पोता नहीं हो तो तुम्हरी शहर वाली गर्लफ्रेंड जोया.. वो का भ्रम थी?
शौर्य: दादा जी वो तो मैंने डैडी से अपना सच छुपाने के लिए झूठ बोला था। वो ज़ोया असल में ज़फर था!

ये सुनके सब दूसरे गांव वाले आपस में गॉसिप करने लगे। हरीश दादा जानते थे कि उनका पोता झूठ बोल रहा है पर अब उनकी सबके सामने थू-थू हो चुकी थी। इसलिये उन्होंने वहाँ और देर रुकना सही नहीं समझा और बब्बन और उसके परिवार से माफी मांगके दूसरे गांव से निकल गए। शौर्य का प्लान काम कर गया और वो शादी से बच गया। शौर्य बहुत खुश था पर इतनी बेइज्जती के बाद उसके दादा जी का सर शर्म से झुक गया था। उन्होंने पूरे रास्ते शौर्य से बात नहीं की। वो चुपचाप भूनड के अंदर बैठे रहे और शौर्य भूनड की छत पर मस्त कैरम खेलता हुआ वापस मेरे गांव बेख़ेडा पहुँचा। गांव पहुँचते ही हरीश दादा सीधा घर की ओर निकल गए और शौर्य ललिता दीदी की दुकान की ओर निकल गया क्योंकि इतने टेंशन भरे दिन के बाद एक चिल्ड बीयर तो बनती है पर रास्ते में उसे उसके डैड का फोन आया।
शौर्य: डैड, आई ऍम सो ग्लैड आपने कॉल किया। जानते हैं आज दादा जी ने मेरे साथ क्या क्रेज़ी  करने की कोशिश की?

नितिन चचा ने कहा, “जानता हूँ शौर्य! और तुमने पिताजी के साथ जो बदतमीज़ी की है वो भी जानता हूँ। शर्म आनी चाहिए तुम्हे!”
शौर्य: डैड आप मुझपे क्यों गुस्सा कर रहे हैं? ये तो वो बात हो गई.. उल्टा चोर डीएसपी को डांटे!

नितिन चचा ने पलटकर कहा, “डीएसपी नहीं कोतवाल होता है। मुहावरा तो ढंग से बोलना सीख लो।”
शौर्य: याह डैड व्हाटएवर.. डीएसपी.. कोतवाल.. सिंघम सब पुलिस की यूनिफॉर्म ही तो पहनते हैं ना! ओहदे से क्या फर्क पड़ता है! माय पॉइंट इज़ कि दादा जी ने मेरी जबरदस्ती शादी करवाने की कोशिश की वो भी बिना मेरी परमिशन के। डैड ये टोटली अनएक्सेप्टेबल है। यू हैव टू गेट मी आउट ऑफ दिस गांव!

नितिन चचा गुस्सा हो गए और कहने लगे, “शौर्य यू नो तुम्हारी प्रॉब्लम ही यही है। तुम खुद अपना भला कर नहीं सकते और कोई दूसरा तुम्हारा भला करने जाए तो तुम उसी का बुरा कर बैठते हो! तुम्हारे दादा जी ने तुम्हारे लिए इतनी अच्छी लड़की ढूंढी थी। मुझे भी वो बेला बहुत पसंद थी।”
शौर्य: ... बट डैड मेरी चॉइस का क्या? मेरी लाइफ में मेरा कोई से नहीं है क्या?

शौर्य की बकलोली सुनते सुनते नितिन चाचा अब थक चुके थे, “शौर्य अभी तक तुम्हारी लाइफ में तुम्हारा ही से चल रहा था इसलिये तुम्हें शहर से फरार होकर गांव जाना पड़ा और वो ज़ोया भी तुम्हारी ही चॉइस थी ना जिसने तुम्हें तुम्हारे ही बेस्ट फ्रेंड के साथ मिलकर ड्रग्स के केस में फंसा दिया। अब तो मुझे भी डाउट हो रहा है कि वो ज़ोया थी या ज़फर!”
शौर्य: कम ऑन डैड, आप ज़ोया से मिले हो। यू नो आई वज़ जोकिंग। 

नितिन चचा का गुस्सा फिर चढ़ गया, “तुम्हारे इस जोक ने पूरे ज़िले में तुम्हारे दादा जी का मजाक बना कर रख दिया है,एंड शौर्य लेट मी रिमाइंड यू कि मुझे अपने पिताजी की इज्जत अपने बेटे की आयाशी से ज्यादा प्यारी है। इसलिये मैंने डिसाइड किया है कि जब तक तुम सुधर नहीं जाते तुम गांव में पिताजी के साथ ही रहोगे। चाहे तुम्हें अपनी सारी जिंदगी ही गांव में क्यों न काटनी पड़े!”
इतना कहकर नितिन चाचा फोन काट दिए। अपने डैड की कही बात सुनकर शौर्य की आँखों के सामने अंधेरा छा गया क्योंकि रात हो चुकी थी और जैसा कि आपको पता है हमारे गांव बेख़ेडा में कोई स्ट्रीट लाइट नहीं है। शौर्य की ये बात सोचकर ही हवा टाइट हो गई कि वो इस गांव में अपनी सारी जिंदगी कैसे काटेगा? अगर वो अपने दादा जी के पास गया तो वो लप्पड़ मार मार कर उसका बुरा हाल कर देंगे। शौर्य के पास अब बस एक ही रास्ता बचा था कि वो गांव से भाग जाए। वो गांव से भागकर कहाँ जाएगा? किसके पास रहेगा? पुलिस और मीडिया से कैसे बचेगा? ये सब इंपॉर्टन्ट सवालों के बारे में सोचना शौर्य ने जरूरी नहीं समझा और गांव से भागने का रास्ता ढूंढने लगा क्योंकि गांव के चप्पे-चप्पे पर गांव वाले घूमते रहते थे और अगर किसी ने उसको भागते हुए देख लिया तो उसके दादा जी को पता चल जाता और फिर हरीश दादा उसका क्या हाल करते ये तो आप इमेजिन भी नहीं कर सकते। शौर्य अंधेरे में गांव से भागने का रास्ता ढूंढ रहा था। वो चलता चलता गांव के दूसरे कोने में पहुँच गया। अंधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था तभी उसकी नजर लालटेन लेकर घूम रहे एक आदमी पर पड़ी। ये हमारे गांव का मोची भीम सिंह है। शौर्य ने भीम सिंह से गांव से बाहर निकलने का रास्ता पूछा। भीम सिंह ने शौर्य को कोई जवाब नहीं दिया और बहुत देर तक घूरता रहा। फिर एक दम से भीम सिंह ने पत्थर उठाकर शौर्य को मारना शुरू कर दिया। 

शौर्य पर पत्थरों की बौछार हो रही थी, पर शौर्य को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर भीम सिंह उसे पत्थर क्यों मार रहा है? 

क्या शौर्य गांव से भाग पाएगा? 

क्या होगा जब दादा जी को शौर्य के गांव से भागने के बारे में पता चलेगा? क्या सच में जोया ज़फर है? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गांववालों के अगले चैप्टर में!

 

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