मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।
आज जेल में हलचल थोड़ी ज़्यादा थी। एक औरत ने आना था। औरत क्या, कहिए एक बुढ़िया ने। वैसे तो 62 साल की मैडम को बुढ़िया नहीं कह सकते आजकल पर सरकार तो 60 के बाद आपको बूढ़ा कर ही देती है।
तो आंटी जी आईं और आते ही रोने लग गईं। उसे देखकर लग रहा था कि इसने ज़िंदगी में कभी मुश्किलों का सामना नहीं किया। जेल का तो मतलब ही होता है मुश्किलें। उसका केस क्या था, मुझे पता लग गया था। लालच में अंधी हो चुकी औरत थी वो। औलाद के मोह ने उसे अजगर की तरह पकड़ रखा था।
मैंने आते-जाते उससे दुआ-सलाम करने की कोशिश की। लेकिन कुछ फायदा नहीं। मैं जानना चाहता था कि लालच से बनाए हुए पैसे का उसने इस उम्र में क्या करना था। जवानी में कोई पैसे के पीछे भागे, तो फिर भी समझ आता है।
फिर एक दिन मैंने देखा कि वह बच्चों की तरह रो रही है। मैं पानी का ग्लास लेकर उसके पास गया। काफ़ी देर खड़ा रहा। कुछ न बोला। थोड़ी देर में उसने ही मेरे हाथ से ग्लास लिया और बोली "वो बहू की याद आ गई थी"। मैंने कहा "यादों को हल्का कर लीजिए बाँट कर"। उसने कहा "हाँ, वही सही रहेगा"।
और उस दिन सुषमा ने पूरे 2 घंटे तक मुझे बताया कि कैसे उसके लालच ने सब कुछ बर्बाद कर दिया था।
सुषमा 62 साल की एक हाउसवाइफ थी। वह एक मिडिल क्लास परिवार में रहती थी, अपने पति राजेश और बेटे आकाश के साथ। सुषमा का स्वभाव थोड़ा रूखा था, इसलिए मोहल्ले में उसे लोग खड़ूस कहकर बुलाते थे। उसके चेहरे पर हमेशा एक गंभीर-सी शक्ल बनी रहती थी और उसकी बातें अक्सर मिर्ची जैसी तीखी होती थीं।
सुषमा की ज़िंदगी में अब बस एक ही मकसद बचा था—अपने बेटे आकाश की शादी अपनी पसंद की लड़की से करवाना। आकाश 30 साल का हो चुका था और अब तक उसकी शादी नहीं हुई थी। सुषमा की नज़र में शादी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी हिस्सा होता है और वह चाहती थी कि आकाश की शादी एक ऐसी लड़की से हो जो आकाश की पत्नी नहीं, सुषमा की बहू बनकर रहे।
आकाश अपने काम में बिज़ी रहता था और उसे शादी की उतनी जल्दी नहीं थी। वह अपनी ज़िंदगी को थोड़ा अलग नज़रिये से देखता था। लेकिन सुषमा को लगता था कि अब समय आ गया है कि उसका बेटा घर बसा ले। सुषमा दिन-रात आकाश पर शादी के लिए दबाव डालती रहती थी। हर बार बात वही आकर रुकती–"तुम्हारी उम्र निकलती जा रही है और जितनी जल्दी तुम शादी करोगे, उतना अच्छा होगा। मुझे तो बस अब तुम्हारी शादी देखकर सुकून मिलेगा।" आकाश हर बार मुस्कुराते हुए कहता, "माँ, अभी थोड़ी और देर कर लो। सही समय पर सब हो जाएगा।"
लेकिन सुषमा को इंतज़ार नहीं था। वह अपने जान-पहचान वालों और रिश्तेदारों से लड़कियों के बारे में पूछताछ करती रहती थी और जब भी उसे कोई लड़की पसंद आती, तुरंत आकाश के सामने उसका ज़िक्र छेड़ देती।
एक दिन सुषमा ने आकाश से कहा, "तुम्हारे लिए मैंने एक लड़की देखी है। वह हमारी जात की है, पढ़ी-लिखी है और परिवार भी बहुत अच्छा है। तुम एक बार मिल लो, फिर देखो तुम्हें कैसी लगती है।"
आकाश ने हंसते हुए कहा, "माँ, मैंने तुमसे पहले भी कहा है कि मुझे इन सब में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं अपनी शादी तब करूंगा, जब मुझे सही लड़की मिलेगी।"
सुषमा उदास-सी हो गई। "तुम्हारी ये बात समझ नहीं आती। तुम्हारे पापा और मैंने भी अरेंज्ड मैरिज की थी और देखो, हमारी ज़िंदगी कितनी अच्छी चल रही है। तुम भी अरेंज्ड मैरिज कर लो, सब ठीक हो जाएगा। प्यार शादी के बाद भी हो सकता है।"
आकाश ने धीरे से जवाब दिया, "माँ, आपकी और पापा की शादी अलग थी। मैं चाहता हूँ कि मुझे अपने जीवनसाथी के साथ एक गहराई महसूस हो। सिर्फ़ शादी के लिए शादी नहीं करनी चाहिए।"
अब सुषमा के मन में एक ही बात घूम रही थी–चाहे जो भी हो जाए, उसे आकाश की शादी अपनी पसंद की लड़की से करवानी है।
सुषमा हर दिन किसी ना किसी से मिलने या फ़ोन पर बातचीत करने में लगी रहती थी। उसकी निगाहें सिर्फ़ लड़की के संस्कार, घर-परिवार और सुंदरता पर ही नहीं थीं, बल्कि एक और ज़रूरी बात उसके दिमाग़ में थी—दहेज।
हालांकि सुषमा ने कभी खुलकर ये नहीं कहा कि उसे दहेज चाहिए, लेकिन बड़ी चालाकी से वह बातचीत के दौरान लड़के वालों से ये बात पूछ ही लेती थी।
जब भी वह किसी रिश्तेदार या जान-पहचान वाले से आकाश के लिए लड़की का रिश्ता पूछती, तो बड़ी मासूमियत से कहती, "अरे, लड़की का परिवार बहुत अच्छा होना चाहिए और वैसे, वह लोग अपनी बेटी की शादी में क्या-क्या करेंगे?" यह एक इशारा होता था कि वह ये जानने की कोशिश कर रही है कि लड़की का परिवार शादी में कितना ख़र्च करेगा।
एक दिन, उसकी एक पुरानी सहेली मीना ने उसे एक लड़की के बारे में बताया। लड़की का नाम रश्मि था और उसका परिवार भी अच्छा था।
रश्मि के माता-पिता जब सुषमा के घर मिलने आए, तो बातचीत शुरू हुई। सुषमा ने उनकी बेटी की खूबियों की तारीफ सुनी, लेकिन उसकी असली दिलचस्पी कहीं और थी। कुछ देर की बातचीत के बाद, सुषमा ने बड़ी सावधानी से पूछा, "तो आप लोग अपनी बेटी की शादी में क्या तैयारी कर रहे हैं? मतलब, आजकल तो लोग बहुत कुछ करते हैं, शादी में, सगाई में...और बेटी के भविष्य के लिए भी थोड़ा बहुत सोचते हैं।"
रश्मि के माता-पिता थोड़े चौंके, लेकिन उन्होंने अपनी बात को रखते हुए कहा, "जी, हम अपनी हैसियत के हिसाब से सबकुछ करेंगे। शादी तो वैसे भी बड़ा मौका होता है और हम भी चाहते हैं कि रश्मि की शादी धूमधाम से हो।"
सुषमा ने उनकी बात ध्यान से सुनी और फिर मुस्कुराते हुए कहा, "बिलकुल, शादी तो ऐसे ही होनी चाहिए और वैसे, आप लोग आकाश के लिए क्या सोच रहे हैं? मतलब, हमारी तरफ़ से तो हम पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन लड़के के लिए कुछ ख़ास तैयारी भी तो करनी चाहिए, है ना?"
रश्मि के माता-पिता अब समझ गए कि सुषमा इशारों में दहेज की बात कर रही है। वह थोड़े परेशान हो गए, लेकिन उन्होंने सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा। उन्होंने धीरे से जवाब दिया, "जी, हम अपनी बेटी की शादी में जो भी बन पड़ेगा, वह सब करेंगे। बस, हम चाहते हैं कि लड़की-लड़का एक-दूसरे को पसंद करें और खुशी-खुशी ये रिश्ता आगे बढ़े।"
सुषमा को उनकी बातें तो ठीक लगीं, लेकिन उसके मन में कहीं ना कहीं ये खयाल था कि दहेज भी एक ज़रूरी मुद्दा है। उसे उम्मीद थी कि आकाश की शादी में उसे एक अच्छा-खासा दहेज मिलेगा।
आकाश को जब ये बात पता चली कि उसकी माँ रिश्तों में दहेज की बात कर रही है, तो वह नाराज़ हो गया। उसने सुषमा से कहा, "माँ, हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और तुम दहेज जैसी बातें कर रही हो? मुझे किसी के पैसे नहीं चाहिए। मैं अपनी मेहनत से जो कमा रहा हूँ, वही मेरे लिए काफ़ी है। शादी प्यार और भरोसे से होनी चाहिए, ना कि पैसों से।"
सुषमा ने थोड़ी देर आकाश की बात सुनी, लेकिन उसके चेहरे पर कोई ख़ास बदलाव नहीं आया।
सुषमा को एक दिन उसके रिश्तेदार का फ़ोन आया। फ़ोन की दूसरी तरफ़ से उसकी मौसी की आवाज़ आई, "सुषमा, तुमने जो रश्मि के परिवार से दहेज की बात छेड़ी, वह ठीक नहीं था। वह लोग अच्छे पैसे वाले हैं और अपनी हैसियत के हिसाब से शादी में अच्छा ही करेंगे और सबसे बढ़कर, रश्मि बहुत ही अच्छी लड़की है। तुम्हें ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए थीं।"
सुषमा को अपनी गलती का थोड़ा अहसास हुआ, लेकिन उसने झट से जवाब दिया, "अरे, मैं तो बस जानने के लिए पूछ रही थी। आखिरकार, शादी-ब्याह में लोग क्या कर रहे हैं, ये जानना ज़रूरी होता है और वैसे भी, मैं अपने बेटे के लिए सब कुछ अच्छा चाहती हूँ।"
मौसी ने गंभीर स्वर में कहा, "तुम्हें सिर्फ़ लड़के-लड़की की खुशियों पर ध्यान देना चाहिए। आजकल ज़माना बदल गया है और ऐसी बातों से रिश्ते टूट सकते हैं। ध्यान रखना कि तुम आगे से ऐसी बातें ना करो। लड़के-लड़की को मिलने दो, अगर उन्हें एक-दूसरे से प्यार हो जाता है, तो वह सबसे बड़ी बात है।"
सुषमा ने थोड़ी देर सोचा और फिर हामी भर दी। उसे महसूस हुआ कि मौसी की बात में दम है। आकाश का भला ही उसका मकसद था और अगर वह इस दहेज वाली बात पर ज़्यादा ज़ोर देगी, तो हो सकता है कि अच्छा रिश्ता हाथ से निकल जाए।
कुछ दिनों बाद, सुषमा ने आकाश और रश्मि की मुलाकात करवाने का फ़ैसला किया। उसने आकाश से कहा, "बेटा, मैंने तुम्हारे लिए एक लड़की देखी है, उसका नाम रश्मि है। वह बहुत समझदार है, तुम्हें एक बार उससे मिल लेना चाहिए। कोई दबाव नहीं है, अगर तुम्हें पसंद आएगी तभी बात आगे बढ़ेगी।"
आकाश ने भी सोचा कि एक बार मिल लेने में कोई नुक़सान नहीं है। मुलाकात की जगह एक कॉफी शॉप में तय की गई, जहाँ आकाश और रश्मि पहली बार आमने-सामने मिले। रश्मि शांत स्वभाव की लड़की थी और उसे सुषमा के सवालों का अंदाज़ा था, लेकिन उसने इन बातों को नज़रअंदाज़ किया। वह आकाश से मिलकर खुश थी, क्योंकि बातें करके उसे पता चला कि आकाश एक मेहनती और ज़िम्मेदार लड़का है।
मुलाकात के बाद, जब आकाश घर लौटा, तो सुषमा ने पूछा, "कैसी लगी रश्मि? क्या तुम्हें वह पसंद आई?"
आकाश ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "माँ, लड़की ठीक है। मुझे उसकी बातों में सादगी और समझदारी दिखी।"
और आखिरकार, आकाश और रश्मि की शादी हो गई। शादी बड़े धूमधाम से हुई और रश्मि के घरवालों ने अपनी हैसियत के मुताबिक दहेज भी दिया। उन्होंने गाड़ी, सोने के गहने और कुछ नकद भी ससुराल वालों को दिए, ताकि उनकी बेटी की शादी में कोई कमी न रह जाए। रश्मि खुश थी और आकाश के साथ उसकी नई ज़िंदगी की शुरुआत भी अच्छी हुई।
लेकिन सुषमा अंदर से तो थी एक नंबर की लालची औरत। जितना भी दहेज मिला, उसे कम ही लगा था। सुषमा को लगता था कि और भी कुछ मिलना चाहिए था। सुषमा ने धीरे-धीरे रश्मि के लिए अपने बर्ताव में बदलाव लाना शुरू कर दिया।
कुछ दिन बाद ही सुषमा ने रश्मि को ताने मारने शुरू कर दिए। कभी कहती, "तुम्हारे घरवालों ने शादी में बस नाम के लिए गाड़ी दी है और वह भी ऐसी जो अब पुरानी हो गई है।" कभी कहती, "इतने बड़े घर से आई हो, लेकिन कोई ख़ास तोहफा नहीं दिया। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने बस ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया हो।"
रश्मि ने शुरुआत में इन बातों को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की, क्योंकि वह घर के माहौल को खराब नहीं करना चाहती थी। उसे लगा कि सुषमा का स्वभाव ऐसा ही है और वह समय के साथ शायद बदल जाएगी। लेकिन सुषमा के तानों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था। धीरे-धीरे ये ताने और भी तीखे होते गए। सुषमा उससे छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करने लगी।
आकाश इस सबको देखकर परेशान था, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि माँ को कैसे समझाए। वह एक तरफ़ अपनी पत्नी रश्मि के साथ खड़ा रहना चाहता था, लेकिन दूसरी ओर वह अपनी माँ के खिलाफ खुलकर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। घर का माहौल खराब होता जा रहा था।
एक दिन सुबह-सुबह के वक़्त जब रश्मि रसोई में काम कर रही थी, तो किसी छोटी-सी बात पर सुषमा ने रश्मि को डांटना शुरू कर दिया। रश्मि ने भी पहली बार हिम्मत दिखाते हुए जवाब दे दिया, "माँ, मैंने कभी कुछ ग़लत नहीं किया। आपने जितनी उम्मीदें रखी थीं, मेरे परिवार ने वह सब पूरा करने की कोशिश की। लेकिन आपकी बातों का कोई अंत ही नहीं है।"
सुषमा को ये जवाब सुनते ही जैसे आग लग गई। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया और उसने चिल्लाते हुए कहा, "तुम्हारे घरवालों ने हमें धोखा दिया है! तुम्हें मेरे घर में लाकर मैंने बड़ी गलती की है।" और फिर अचानक गुस्से में उसने पास रखा गरम तवा उठाया और रश्मि के सिर पर दे मारा।
रश्मि को एक पल के लिए समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ। तवा उसके सिर पर लगते ही खून बहने लगा और वह वहीं ज़मीन पर गिर गई। आकाश दौड़ता हुआ रसोई में आया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रश्मि की आँखें बंद हो चुकी थीं और उसका शरीर निढाल पड़ा था। खून चारों तरफ़ फैल गया था और उसकी सांसें थम चुकी थीं।
आकाश के लिए ये सब किसी बुरे सपने जैसा था। उसकी प्यारी पत्नी अब इस दुनिया में नहीं थी, और इसका जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि उसकी अपनी माँ थी। सुषमा के हाथ में अब भी तवा था और आँखों में डर और पछतावा।
आस-पड़ोस के लोग और पुलिस आ गए। सुषमा को गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत में जब मामला पहुंचा, तो सुषमा पर हत्या का आरोप साबित हुआ और उसे फांसी की सजा सुनाई गई। जब फैसला सुनाया गया, तो सुषमा के चेहरे पर जैसे एक पल के लिए सब कुछ ठहर सा गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसका लालच और गुस्सा उसे इस अंजाम तक ले आएगा। उसकी आँखों में पछतावे के आंसू थे, लेकिन अब कुछ भी बदलना मुमकिन नहीं था।
पछतावे के वो आँसू अब भी सुषमा की आँखों में थे जब वो मुझे ये सब बता रही थी।
"मुझे भी फांसी देंगे?" सुषमा ने मुझसे बड़ी मासूमियत से पूछा।
मैंने कहा, "कानून की नज़र में सब बराबर हैं।"
फांसी की तारीख नज़दीक आ रही थी। सुषमा अपनी आख़िरी इच्छा के मुताबिक अपने परिवार से मिल चुकी थी। अपने पति और बेटे से कई बार माफ़ी मांग चुकी थी। रश्मि की आत्मा से हर पल माफ़ी मांगती। रश्मि के माँ-बाप से तो वो नज़र ही नहीं मिला पाई थी कभी।
जैसे ही फांसी का फंदा उसके गले में पड़ा, उसने एक गहरी सांस ली। मैंने उसके कान में आहिस्ता से कहा, "हे राम," और झटके से लीवर खींच दिया।
मरने वाले का नाम: सुषमा
उम्र: 62 साल
मरने का समय: सुबह 4 बजकर 24 मिनट
पता नहीं इंसान क्यों रिश्तों से ज़्यादा पैसों और चीज़ों की इज़्ज़त करने लग जाता है। अरे भाई, कार छोटी हो या बड़ी... उसमें बैठने वाले खुश नहीं हैं तो उससे बढ़िया पैदल चल लो। दहेज और लालच जैसी बुराइयाँ केवल दुख और बर्बादी ही लाती हैं। आकाश की ज़िंदगी भी हमेशा के लिए बदल चुकी थी, और सुषमा के इस अंजाम ने उसे और समाज को ये सिखाया कि रिश्तों में प्यार, सम्मान और समझदारी की जगह कभी लालच नहीं ले सकती।
जितना मरज़ी ज़ोर लगा लो, जीतेगी तो इंसानियत ही।
मिलूंगा एक और अपराधी की कहानी के साथ अगले एपिसोड में.
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