नमस्कार। मैं हूँ चक्रधर। जल्लाद चक्रधर।
अच्छा एक बात बताइए। महाभारत क्यों हुआ था? आप सबकी अपनी-अपनी वज़ह होंगी कि इसलिए हुआ था, उसलिए होता है। लेकिन अगर मैं आपसे पूछूँ कि सबसे पहले आपके दिमाग़ में क्या आता है... तो आप में से बहुत सारे कहेंगे कि जुआ। अगर पांडव जुआ ना खेलते तो महाभारत होती ही ना। सही बोला ना ये जल्लाद चक्रधर।
ऐसा ही करती है ये जुए की आदत। अच्छी-खासी शांत दुनिया में ले आती है महाभारत। बेचारा था वो। नाम था ललित। मुझे आज भी लगता है कि उसे फाँसी नहीं होनी चाहिए थी। यही कहा था मैंने उसे जब उसने खाना-खाना ही छोड़ दिया था। जीने की इच्छा ख़त्म हो गई थी उसकी। काश, उसे कोई बचा पाता।
26 साल का ललित एक अमीर घराने से था। बचपन से ही उसे किसी चीज़ की कमी नहीं हुई थी—महंगे खिलौने, अच्छे स्कूल और हर वह सुविधा जो एक अमीर परिवार का बच्चा चाहता है। उसकी ज़िंदगी आराम से चल रही थी, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसकी ज़िंदगी में बदलाव आने लगा। कॉलेज में ललित ने दोस्तों के साथ वक़्त बिताने के दौरान जुआ खेलना शुरू कर दिया। शुरुआत में तो ये सिर्फ़ मौज-मस्ती के लिए था, लेकिन धीरे-धीरे ये उसकी आदत बन गई।
ललित के दोस्तों का ग्रुप जुआ खेलने में काफ़ी माहिर था। वह लोग उसे बड़े खेलों में शामिल करने लगे, जहाँ पैसों का लेन-देन भी बड़ा होता था। पहले-पहल, ललित ने इसे सिर्फ़ एक शौक के रूप में लिया। वह कभी-कभी छोटे-मोटे दाँव लगाता था और अगर हार भी जाता तो उसे ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता। आखिरकार, उसके पास अपने घरवालों का बेहिसाब पैसा था, जो उसे किसी भी तरह की कमी महसूस नहीं होने देता था।
लेकिन धीरे-धीरे, ललित को जुए की लत लगने लगी। उसे वह दाँव की हार और जीत के बीच की टेंशन और पैसा गंवाने या पाने का जो एक अलग ही मजा-सा होता है, वह आने लग गया था।
ललित अब हर दिन जुआ खेलने लगा था। उसकी लत इतनी बढ़ गई कि वह रात-दिन जुए के बारे में ही सोचता रहता। उसका ज़्यादा समय कसीनो और ऑनलाइन जुए में बीतने लगा। उसे लगता था कि हर बार वह अगला बड़ा दाँव जीतेगा और सब कुछ कमा लेगा, लेकिन ऐसा शायद ही कभी होता। धीरे-धीरे, उसकी हार बढ़ने लगी और उसने बहुत सारे पैसे गंवा दिए।
ललित की ये लत उसके परिवार से छिपी नहीं रही। उसके माता-पिता ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उनकी बात को अनसुना कर देता। वह ये मानने को तैयार नहीं था कि जुआ उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर रहा है। उसे लगता था कि वह एक दिन बड़ा दाँव मारेगा और सब कुछ वापस पा लेगा। लेकिन जुए में ऐसा कम ही होता है।
आखिरकार, ललित ने अपने पिता के बिजनेस से भी पैसे निकालने शुरू कर दिए। वह दिन-रात बस इसी कोशिश में लगा रहता कि कैसे अपने नुक़सान को पूरा करे। लेकिन जितना ज़्यादा वह जीतने की कोशिश करता, उतना ही ज़्यादा हारता गया। उसके पास अब ख़ुद का कोई पैसा नहीं बचा था और कर्ज़ों का बोझ बढ़ता जा रहा था।
घरवाले समझाते तो वह ख़ुद को नुक़सान पहुँचाने की धमकी देने लगता।
एक दिन ललित कसीनो के कोने में बैठा हुआ था, परेशान और हताश। उस दिन हर बार उसे सिर्फ़ हार ही मिल रही थी। उसकी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे हो गए थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी ज़िंदगी को कैसे पटरी पर लाए। कर्ज़ का बोझ बढ़ता जा रहा था और परिवार की नाराज़गी भी।
तभी अचानक, एक अजनबी आदमी उसके पास आकर बैठ गया। आदमी सूट-बूट में था, उम्र करीब 40 के आसपास। उसकी चाल-ढाल से लग रहा था कि वह कोई अमीर आदमी है। ललित ने उसकी तरफ़ अनमने ढंग से देखा, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी, जो ललित को किसी बड़े खेल की ओर इशारा करती लग रही थी।
उस अजनबी ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम परेशान दिख रहे हो, ललित। मैं जानता हूँ कि तुमने काफ़ी पैसा गंवाया है। लेकिन तुम्हारी क़िस्मत बदल सकती है। मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"
ललित थोड़ा चौंका, "तुम कौन हो और तुम मेरी मदद क्यों करना चाहते हो?"
अजनबी ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, " मेरा नाम राजेश है। मैं ऐसे लोगों की मदद करता हूँ, जो ख़ुद को बर्बादी की कगार पर पहुँच चुके होते हैं।
ललित को राजेश की बातों में थोड़ी दिलचस्पी आई, लेकिन साथ ही उसे एक अजीब-सा डर भी महसूस हो रहा था। उसने थोड़ी हैरानी से पूछा, "मुझे बताओ, तुम कैसे मदद करोगे?"
राजेश ने कहा, "लेकिन मेरी मदद मुफ्त नहीं होती। बदले में मुझे कुछ चाहिए होता है। तुम्हारे पास जितना कर्ज़ है, उसे चुकाने के लिए मैं तुम्हें पैसे दूंगा। तुम्हारे सारे कर्ज़ ख़त्म हो जाएँगे और तुम फिर से अपनी ज़िंदगी शुरू कर सकोगे। लेकिन बदले में, तुम्हें मेरे लिए एक काम करना होगा।"
ललित ने राजेश से पूछा, "क्या काम?"
राजेश ने उसकी तरफ़ झुकते हुए कहा, "तुम्हें मेरे लिए एक आदमी का काम तमाम करना होगा। वह मेरे बिज़नेस का दुश्मन है और उसे रास्ते से हटाना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है। तुम्हें सिर्फ़ एक बार ये काम करना होगा।"
ललित के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी ज़िंदगी में ऐसा मोड़ आएगा। जुए की लत ने उसे इस मुकाम पर पहुँचा दिया था, जहाँ उसे एक खतरनाक काम के लिए राजी होना पड़ रहा था। लेकिन ललित के पास अब कोई और रास्ता नहीं था। कर्ज़ बढ़ता जा रहा था और अगर उसने इसे चुकाने का इंतज़ाम नहीं किया, तो उसकी ज़िंदगी पूरी तरह से बर्बाद हो सकती थी।
कुछ देर की खामोशी के बाद, ललित ने कांपते हुए पूछा, "अगर मैं ये काम नहीं कर पाया, तो?"
राजेश ने एक ठंडी मुस्कान के साथ जवाब दिया, "और कोई चारा है तुम्हारे पास? खानदानी आदमी हो। माँ-बाप की इज़्ज़त पहले ही मिट्टी में डाल चुके हो पैसे की वज़ह से।"
ललित के पास अब कोई चारा नहीं था। उसने अपनी लाचारी के चलते राजेश की बात मान ली। उसे लगा कि ये काम करके वह अपनी ज़िंदगी को फिर से संभाल सकता है। पर उसे अंदाज़ा नहीं था कि वह किस गहरे अंधेरे में उतर रहा है।
ललित की धड़कनें और तेज़ हो गईं जब उसने सुना कि राजेश का काम कितना खतरनाक है। एक बम से किसी को उड़ाना है। जी हाँ, बम से। राजेश उसे एक ऐसे अपराध में धकेल रहा था, जिसका अंजाम बेहद भयानक हो सकता था। लेकिन ललित की हालत इतनी ख़राब हो चुकी थी कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
राजेश ने उसे समझाते हुए कहा, "देखो ललित, ये काम उतना मुश्किल नहीं है जितना तुम सोच रहे हो। तुम्हें किसी को सीधे नहीं मारना है। बस एक बैग देकर आना है। उस बैग में एक टाइमर से सेट किया हुआ बम होगा। तुम्हें सिर्फ़ ये ध्यान रखना है कि तुम सही समय पर बैग पहुँचा दो और वहाँ से निकल जाओ। वह आदमी तुम्हें एक डिलीवरी बॉय समझेगा, इसलिए शक करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। तुम पढ़े-लिखे हो, अच्छे घर से हो, अच्छे दिखते हो, इसलिए कोई भी तुम पर शक नहीं करेगा और इसलिए ही ये काम मैं तुमसे करवा रहा हूँ।"
ललित अब पूरी तरह से घबराया हुआ था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। एक तरफ़ उसका कर्ज़ और बर्बाद होती ज़िन्दगी थी, तो दूसरी तरफ़ एक ऐसा अपराध जिसे करके उसकी आत्मा कभी माफ़ नहीं कर पाएगी। लेकिन राजेश ने उसे किसी और रास्ते पर जाने का मौका नहीं दिया था।
ललित ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, "लेकिन अगर मैं पकड़ा गया तो? ये बहुत बड़ा काम है और अगर पुलिस को कुछ पता चला तो?"
राजेश ने एक हल्की हंसी के साथ कहा, "तुम्हें पकड़े जाने का कोई डर नहीं है। मैं सारे इंतज़ाम कर चुका हूँ। तुम एक सिंपल डिलीवरी करने वाले आदमी की तरह जाओगे और वहाँ से निकल आओगे। इसके बाद मैं तुम्हारा सारा कर्ज़ चुका दूंगा और तुम्हारी ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आ जाएगी। बस एक बार ये काम करना है और फिर तुम आज़ाद हो जाओगे।"
आखिरकार, ललित ने भारी मन से राजेश की बात मान ली। उसके पास अब कोई और रास्ता नहीं था। वह जानता था कि यह ग़लत है, लेकिन जुए की लत और कर्ज़ के दबाव ने उसे इतना कमजोर कर दिया था कि उसने अपराध का रास्ता चुन लिया।
राजेश ने ललित को बैग दिया, जिसमें बम छुपा हुआ था। उसने उसे साफ-साफ बता दिया कि किसे और कहाँ बैग देना है। ललित अब एक डिलीवरी बॉय की तरह दिखने लगा—साधारण कपड़े और चेहरे पर नकली मुस्कान।
ललित ने बम से भरे बैग को थामे हुए, थरथराते कदमों से उस जगह की ओर बढ़ना शुरू किया। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, हाथ-पैर कांप रहे थे और उसकी सांसें भारी हो रही थीं। उसने ख़ुद को कई बार रोकने की कोशिश की, लेकिन हर बार राजेश की धमकी और अपनी बेबस हालत याद आ जाती।
ललित ने बैग पहुँचाया और आदमी ने बिना शक किए बैग ले लिया। उसे कुछ भी पता नहीं था कि उसके हाथों में क्या है। ललित वहाँ से जल्दी निकलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसके दिल में एक भयानक डर बैठ चुका था। ललित अभी थोड़ी ही दूर निकला था कि अचानक एक जोरदार धमाका हुआ। उसकी सांसें रुक गईं और वह घबरा कर रुक गया। धमाके की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उसके कान बजने लगे और कुछ पलों के लिए उसे कुछ सुनाई देना बंद हो गया। उसने पीछे मुड़कर देखा—धुआं और आग की लपटें उस जगह से उठ रही थीं, जहाँ उसने अभी-अभी बैग दिया था।
उसके दिमाग़ में एक भयानक खामोशी छा गई। वह पूरी तरह से सन्न रह गया। उसकी आत्मा चीख-चीखकर उसे दोषी ठहरा रही थी, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। धमाके के तुरंत बाद आसपास अफरा-तफरी मच गई। लोग चीखने-चिल्लाने लगे और पुलिस और एंबुलेंस की आवाज़ें दूर से सुनाई देने लगीं। ललित को एहसास हो गया कि उसे अब वहाँ से तुरंत भागना होगा, वरना वह पकड़ा जा सकता है। पर उसके पैर जैसे ज़मीन में गड़े हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह ख़ुद को कैसे संभाले।
जैसे ही वह अपने घर पहुँचा, उसके शरीर पसीने में नहाया हुआ था। वह बुरी तरह से घबराया हुआ था और अब उसे राजेश के फ़ोन कॉल का इंतज़ार था। उसने जैसे ही दरवाज़ा बंद किया, उसका फ़ोन बजा।
दूसरी तरफ़ से राजेश की आवाज़ आई, "अच्छा काम किया, ललित। अब तुम्हारा कर्ज़ चुकता हो गया। लेकिन याद रखना, अब तुम मेरे काबू में हो। अगर तुमने कुछ भी उल्टा-सीधा करने की कोशिश की, तो तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद हो जाएगी।"
वो ऐसे दोराहे पर आ गया था जहाँ उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था और फिर ललित ने सोचा कि उसकी वज़ह से उसके परिवार वालों की भी ऐसी-तैसी हो जाएगी। उसने फ़ैसला कर लिया कि वह पुलिस को सब कुछ बता देगा और आत्मसमर्पण कर देगा।
उसने बहुत हिम्मत करके सबसे पहले अपने घरवालों को बताया। उसके पिता जी ने तो उसकी पिटाई कर दी। माँ बिलख-बिलख के रोने लग गईं।
ललित ने पुलिस को फ़ोन कर दिया। पुलिस आई और उसने सब सच-सच बता दिया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने ललित की गवाही के आधार पर राजेश और उसके पूरे गैंग को भी पकड़ लिया।
ललित पर कोर्ट में केस शुरू हो गया। तारीख पर तारीखें हुईं और जब फ़ैसला आया तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि ऐसा फ़ैसला आएगा। ललित के वकील को, पुलिस को, समाज को सभी को लगा कि ललित को ज़्यादा से ज़्यादा उम्र क़ैद होगी लेकिन उसे हुई फाँसी। जज साहब ने कहा, "मैं जानता हूँ अपराधी ने आगे आकर अपना जुर्म क़बूल किया, ख़ुद पुलिस को फ़ोन किया, आत्मसमर्पण भी किया, राजेश के गैंग को भी पकड़वाया...ये भागा नहीं और इस काम के लिए मैं इसकी तारीफ करूँगा। लेकिन यह भी सच है कि इसने एक आदमी को बम से उड़ाया है। मैं उसके परिवार को क्या कहूँ? उन्हें भी तो न्याय मिलना चाहिए। कोर्ट सिर्फ़ एक तरफ़ की चीज़ें नहीं देख सकता।"
और इस तरह ललित मेरी जेल में आ गया। रोता रहता दिन भर। खाना-पीना छोड़ दिया था। बड़ी मुश्किल से मुझसे बात की उसने। बोला, "मैं मरना नहीं चाहता, वापस से सब शुरू करना चाहता हूँ।"
दिन बीत रहे थे, मैंने उससे पूछा, "क्या करना है जाने से पहले?"
वो परिवार से मिलना चाहता था। वह आए मिलने। ललित की माँ ने कहा कि "मुझे गर्व है कि मेरा बेटा इतना बहादुर है।"
बस वह काला दिन भी आ ही गया। ललित के चेहरे पर खामोशी थी और बाकी सबकी आँखों में आँसू। मैंने उसे फाँसी के फंदे की तरफ बढ़ाया, सफेद कपड़ा डाला और अपना काम कर दिया।
मरने वाले का नाम - ललित
उम्र - 26 साल
मरने का समय - सुबह 6 बजकर 11 मिनट
उसकी बॉडी को पूरी इज़्ज़त के साथ उसके घर तक पहुँचाया गया। मैं भी गया था उसकी अंतिम यात्रा में। पहली बार गया था किसी क़ैदी की यात्रा में। दिल से चाहता था कि वो बच जाए। हम खुद ही अपने आस-पास बुराई खड़ी करते हैं और खुद ही रोते हैं। मेरा बस चले तो सारे कसीनों, जुए के अड्डों को बंद करवा दूँ। काश ललित के घरवाले उसे सँभाल लेते। वो बेचारा दिल से सुधरना चाहता था और हम सभी को उसे एक मौका देना चाहिए था। समाज को चाहिए कि सरकार से कहे कि जुए के अड्डे बंद करे। अरे, कमाई के और बहुत साधन हैं। यार दूध महँगा कर दो थोड़ा सा पर जुआ बंद कर दो। न जाने कितने ललितों को ये मार चुका है और आगे भी मारेगा।
फिर मिलूँगा, किसी और अपराध और अपराधी की कहानी के साथ अगले एपिसोड में।
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