अविनाश - "बहुत अफसोस हुआ सिमरन के बारे में सुनकर, बहुत गुस्सा भी आया और गुस्से में मैंने उस इंसान को ढूंढ निकाला जिसने सिमरन के साथ।"
अर्जुन सिंह अविनाश से कुछ नहीं कहता और उससे मुंह फेर कर चले जाता है।
अविनाश - "कोई फायदा नहीं होगा, नहीं मिलने देंगे उससे, क्लियर इंस्ट्रक्शंस है, उससे किसी को मिलने नहीं दिया जाएगा।"
तब अर्जुन सिंह पलटकर अविनाश के पास आता है।
अर्जुन - "यहां पर इंस्ट्रक्शन नहीं, दबदबा चलता है। खुद अपनी आंखों से देख ले।"
अर्जुन पलट कर वापस अंदर जाने लगता है। उसे देखकर सभी लोग खड़े होते जाते हैं और उसे सैल्यूट मारते हैं। इंस्पेक्टर विक्रम सिंह अर्जुन को देखते ही उसके सामने सर झुका कर खड़ा हो जाता है।
विक्रम - "खंभाघणी कुँवर सा। जय हिंद।"
अविनाश यह सब देखकर हैरान रह जाता है।
अर्जुन - "जय हिंद, मुझे जो मुंबई से लाया गया है उससे मिलना है, कहां है वो।"
विक्रम असमंजस में पड़ जाता है ।
विक्रम - "कुँवर सा...वो ऊपर से ऑर्डर्स है।"
अविनाश - "ऊपर से आर्डर है कि किलर से किसी को मिलने नहीं दिया जाए, जब तक उसे कोर्ट में नहीं पेश किया जाए।"
अर्जुन (गुस्से में) - "तुझे ऊपर से आर्डर लेने का बहुत शौक है ना, तो ठीक है। तेरे पास ऊपर से आर्डर आने वाला है। तभी वहां का फोन बजता है।"
विक्रम सिंह फोन उठाता है।
विक्रम - "हेलो...क्राइम ब्रांच।"
कमिश्नर गुप्ता - "विक्रम सिंह कुंवर अर्जुन सिंह आए हैं?"
विक्रम सिंह - "यस सर।"
दोनों में कुछ देर बात होती है।
विक्रम सिंह - "ओके सर।"
विक्रम फोन रखता है।
विक्रम - "सर..आप मिल सकते हैं,पर एक कांस्टेबल साथ जाएगा।"
यह सुनकर अविनाश के होश उड़ जाते हैं।
अविनाश (हैरान) - "अरे क्या कर रहे हैं आप, मुंबई से इंस्ट्रक्शन मिले की कातिल से किसी को मिलने ना दिया जाए।"
विक्रम - "इंस्पैक्टर अविनाश, आपका काम था कातिल को जयपुर हैंडोवर करना। इसके बाद केस हम संभाल लेंगे और जो भी डिसीजन लेना है वो हम ले लेंगे।"
अर्जुन अविनाश की तरफ देखता है और अविनाश को अपनी बेइज्जती महसूस होती है।
अर्जुन - "मिल गए ऊपर से ऑर्डर्स?"
अविनाश गुस्से में कुछ कह नहीं पाता। अर्जुन सिंह किलर से मिलने के लिए अंदर जाता है। विक्रम और साथ में एक कांस्टेबल भी उसके साथ जाता है।
विक्रम - "कुंवर सा, ये आदमी लगता ही नहीं किलर है। बहुत सीधा- साधा सिंपल सा है,आम आदमी जैसा। नाम भी एकदम सीधा है।"
अर्जुन जैसे- जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा और बढ़ रहा था उसकी आंखें लाल हो रही थी। अर्जुन सिंह को एक कमरे में लाया जाता है। जहां पर एक कांच लगा होता है जिसमें से इस कमरे से दूसरे कमरे में देखा जा सकता था। कमरे से इधर की तरफ नहीं देखा जा सकता था। ये उस पर नजर रखने के लिए किया गया था। ऐसे कमरे क्राइम ब्रांच में होते हैं। अंदर एक माइक लगा हुआ था और एक स्पीकर भी था। जो इस कमरे की आवाज उस कमरे तक जा सकती थी।
अभी कमरे में कोई नहीं था। विक्रम कांस्टेबल को इंस्ट्रक्शन देता है।
विक्रम - "जाओ, उसे लेकर आओ।"
अर्जुन के सब्र का बांध टूट रहा था। उसकी आंखों में सैलाब उमड़ रहा था रह रह कर उसे सिमरन की बोली बातें याद आ रही थी।
सिमरन - "लव यू पापा,आई लव यू,मैं आपको छोड़कर कभी नहीं जाऊंगी। हमेशा आपके साथ रहूंगी,लव यू पापा ।"
सिमरन की आवाज अर्जुन के कानों में गूंज रही थी।
तभी कांस्टेबल दूसरे दरवाजे से कांच के दूसरी तरफ वाले कमरे में इंटर होता है और इशारे से उसे बुलाता है। उसके पीछे- पीछे दोनों हाथ में हथकड़ी लगे हुए सफेद शर्ट पहने हुए एक दुबला पतला सा, आंखों में चश्मा लगाए हुए एक आदमी, देखने में किसी बड़ी कंपनी का कॉर्पोरेट एम्पलाई लग रहा था वो डरते डरते कमरे के अंदर आता है।
कांस्टेबल - "कुर्सी पर बैठ जा।"
वो डरते डरते कुर्सी पर बैठ जाता है।
अर्जुन - "ये किलर है?"
विक्रम - "सर इसके खिलाफ बहुत सारे सबूत है हमारे पास,इसके सीने पर नाखूनों के निशान है। इसका ब्लड सैंपल बॉडी के ब्लड सैंपल के साथ मैच भी करता है।"
अर्जुन - "नाम क्या है इसका?"
विक्रम - "अजय कुमार।"
अर्जुन सिंह का खून खौल उठता है उसे देखकर। वो कमरे में अंदर जाने लगता है।
विक्रम - "सर प्लीज,अपने आप पर कंट्रोल रखिएगा।"
अर्जुन उसकी है बातों को अनसुना कर देता है और उस कमरे में दाखिल होता है। अर्जुन को देखकर अजय अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है डरा सहमा सा।
अर्जुन अपने पीछे खड़े कांस्टेबल को तिरछी नजरों से देखता है और जब तक कोई कुछ समझ पाता अर्जुन कांस्टेबल को धक्का देकर बाहर की तरफ फेंक देता है, और जल्दी से उस कमरे का दरवाजा अंदर से लॉक कर देता है। यह देखकर कांच के पीछे से विक्रम सिंह हैरान रह जाता है। वो अर्जुन को माइक ऑन करके इंस्ट्रक्शन देता है।
विक्रम :"क्या कर रहे हैं आप कुंवर सा,क्या कर रहे हैं आप? प्लीज ऐसा मत कीजिए। मेरी आपसे हाथ जोड़कर विनती है कुंवर सा, मेरी नौकरी का सवाल है।"
अर्जुन सिंह इस वक्त किसी की बात नहीं सुन रहा था। वो धीरे- धीरे अजय की तरफ बढ़ता है। उसकी आंखों में खून सवार था।
अंदर से शोर शराबा सुनकर बाकी कांस्टेबल, ऑफिसर और अविनाश पाटील, सभी दौड़कर अंदर की तरफ जाते हैं। वहां पर अफरातफरी मच जाती है !
अविनाश (चिल्लाते हुए) - "ये है आपका इंतज़ाम,मैंने आपसे कहा था कि इस पागल को खुला मत छोड़ो।"
विक्रम (डांटते हुए) - "आप हमारे कुंवर सा के बारे में बात कर रहे हैं, तमीज से बात कीजिए।"
अविनाश हैरान रह जाता है।
विक्रम माइक से चिल्लाता रहता है,"कुंवर सा...प्लीज कुंवर सा, कुछ मत कीजिएगा, मेरी नौकरी का सवाल है। नौकरी आपकी बदौलत मिली है मुझे कुँवर सा।"
बाकी कांस्टेबल और इंस्पेक्टर दरवाजा खोलने की कोशिश करते हैं और अंदर अर्जुन अजय की तरफ बढ़ता है और अजय डर के मारे कोने में छुप जाता है !
अजय (डरते हुए) - "देखीये...मैं नहीं जानता आप कौन है,पर आप मुझे इस तरह से घूर करके क्यों देख रहे हैं?"
अर्जुन - "मुझे नहीं पहचानता तू, मुझे नहीं पहचानता? अरे...मैं वो बदनसीब बाप हूं,जिसकी बेटी को तूने कुचल दिया है।"
अजय (रोते हुए) - "मैंने किसी को नहीं मारा।"
अर्जुन उसकी एक बात नहीं सुनता और उसकी कॉलर पकड़ के खड़ा कर देता है।
अजय - "मैं आपके हाथ जोड़ता हूं,मुझे छोड़ दीजिए ।मुझे फंसाया गया है, मैं... मैं बेकसूर हूं।"
अर्जुन उसकी एक नहीं सुनता और उसे मारने लग जाता है । अर्जुन उसे बहुत मारता है। पटक पटक कर मारता है। अजय चिल्लाता रहता है पर अर्जुन उसकी नहीं सुनता। इधर अविनाश और बाकी पुलिस वाले दरवाजे को तोड़ने की तैयारी कर चुके थे। वो बार- बार धक्का देकर दरवाजे को खोलने की कोशिश कर रहे थे। अंदर अर्जुन सिंह ने अजय को तब तक बहुत मारा था,उसके चेहरे पर चोट के निशान उभर आए थे। अर्जुन ने अजय की गर्दन जकड़ ली थी वो सांस नहीं ले पा रहा था, इतने में पुलिस वालों की कोशिश रंग लाई और विक्रम अपने कांस्टेबल के साथ दरवाजा तोड़ने में कामयाब रहा। दरवाजा तोड़ते ही अर्जुन सिंह राठौड़ को सभी कांस्टेबलों ने पकड़ा। अजय को उसके हाथ से छुड़वाया।
अर्जुन (चिल्लाते हुए) - "मैं इसकी जान ले लूंगा,इसे सजा कानून नहीं मैं खुद दूंगा।"
अजय घबरा जाता है वो डर कर एक कोने में बैठ जाता है। अविनाश अर्जुन का गुस्सा देखकर दूर खड़ा रहता है। अजय को एक कांस्टेबल दूसरे कमरे में ले जाता है।
इस घटना की खबर कमिश्नर गुप्ता तक पहुंच जाती है। 1 घंटे के बाद कमिश्नर गुप्ता क्राइम ब्रांच के ऑफिस पहुंचते हैं।
अर्जुन - "जय हिंद सर।”
कमिश्नर गुप्ता - "मुंबई से सूर्य प्रताप जी का फोन आया था और उनके कहने पर मैंने किलर से मिलने की परमिशन दी थी आपको।"
अर्जुन सिंह कुछ नहीं कहता, वो चुपचाप खड़े रहता है।
कमिश्नर गुप्ता - "मैं समझ सकता हूं कि आप पर क्या बीत रही है।”
अर्जुन (रोते हुए) - "नहीं सर, आप नहीं समझ सकते कि मुझ पर क्या बीत रही है। आप बिल्कुल नहीं समझ सकते हैं,क्योंकि जहां तक मुझे पता है आपकी कोई बेटी नहीं आपका बेटा है। मेरा दर्द वही समझ सकता है जिसकी बेटी हो,और जिसकी बेटी के साथ... नहीं सर आप नहीं समझ सकते। जिस बाप की बेटी के साथ इतना सब कुछ हुआ होना, उसे और कुछ दिखाई नहीं देता। मेरे सामने वो आदमी था जिसने मेरी बेटी के साथ ये सब किया और आपको क्या लगता है। मैं उससे अच्छे से बात करता, मैंने झूठ बोला कि मैं उसे सिर्फ बात करने जा रहा हूं,पर उसे देखते ही मेरा खून खौल उठा। मेरी सिमरन की आवाज मेरे कानों में गूंजने लगी। मुझे पता नहीं क्या हो गया था, मैं उसे सजा देना चाहता हूं सर,मैं उसे सजा देना चाहता हूं। मैं उसे वो मौत दूंगा कि उसकी रूह भी दूसरा जन्म लेने से घबराएगी।"
कमिश्नर गुप्ता - "अर्जुन…मैं आपके इमोशनल समझता हूं, पर आप कानून के रखवाले होकर कानून तोड़ने की बात करेंगे, ऐसा मैंने सोचा नहीं था। खैर अभी मैं आप पर कोई एक्शन नहीं लेना चाहता, अभी आप उस स्थिति में नहीं है और वैसे भी आप सस्पेंड हैं। आप घर जा सकते हैं।”
अर्जुन - "थैंक यू सर,जय हिंद सर।"
अर्जुन वहां से चला जाता है। अविनाश पाटील को यह देखकर आग लग जाती है।
अविनाश - "यह क्या चल रहा है जयपुर क्राइम ब्रांच में,एक सस्पेंड ऑफिसर आपकी कस्टडी में रखे हुए आरोपी को मार कर चला जाता है,उस पर जानलेवा हमला करता है और आप कोई एक्शन नहीं लेते,यह क्या हो रहा है ? कानून नाम की कोई चीज है या नहीं ?"
विक्रम - "आप अभी तक यहीं पर नये है ! आपसे मैंने कहा ना कि आपने हैंड ओवर दे दिया है, आपकी केस में जब जरूरत होगी आपको बुला लिया जाएगा। अब आप जा सकते हैं, हमें क्या करना है और क्या नहीं ये हमें आपसे सीखने की जरूरत नहीं है।"
अविनाश गुस्से में वहां से चला जाता है।
जयपुर बस अड्डे पर एक वोल्वो बस आकर रूकती है और उसमें से सवारियां उतरती है। बस में बैठी रूपल की नींद खुलती है और वह देखती है कि वो जयपुर पहुंच चुकी है। जयपुर पहुँचते ही वो अपने चेहरे को ढकती है और स्कार्फ बांध लेती है। आंखों पर काला चश्मा लगा लेती है। सभी पैसेंजर उतरने लगते हैं। रूपल भी उतरने की तैयारी करती है अपना सामान निकाल कर जब गेट तक पहुंचती है तो उसके कदम रुक जाते हैं। वो नीचे जयपुर की धरती पर कदम रखने से पहले वापस उसे ऊपर कर लेती है और कुछ सोच में पड़ जाती है और उसके ख्यालों में कुछ ख्याल चलते रहते हैं।
जयपुर से सामान से भरा हुआ बैग लेकर बस पकड़ना, इन खयालों में रूपल खोई रहती है तभी पीछे वाले पैसेंजर रूपल से कहते हैं,"अरे बहन जी...आगे चलीये है ना। गेट पर रास्ता रोक कर क्यों खड़ी हो गई है? इतनी रात में भी काला चश्मा चढ़ा कर रखा है आंखों में।"
तब रूपल हिम्मत करके अपना कदम जयपुर की धरती पर रखती है।
अर्जुन जयपुर के पास रतनगढ़ पहुंचता है और अपने कमरे में जाने लगता है।
माया - "आ गए अपना बदला लेकर?"
अर्जुन हैरान रह जाता है,माया की तरफ देखता है।
माया - "तुम्हें क्या लगा था...मुझे पता नहीं चलेगा,अर्जुन तुम्हें अगर लगता है कि तुम अपनी बेटी के कातिल से उसका बदला लोगे तो यह तुम्हारी गलतफहमी है,क्योंकि मैं तुम्हें ऐसा करने दूंगी नहीं ।"
अर्जुन हैरान रह जाता है।
माया - "मेरी सिमरन के कातिल को सजा जरूर मिलेगी। सजा कोर्ट देगा,तुम नहीं।"
अर्जुन (गुस्से में) - "मैंने अपनी सिमी की चिता पर कसम खाई है कि उसके कातिल को मैं खुद सजा दूंगा मेरे तरीके से, कानून की सजा देखी है मैंने, और कानून के कितने दावपेज होते हैं ना वह भी पता है मुझे। फांसी के डर से अगर क्राइम कम होता ना तो आज हिंदुस्तान में एक भी कोर्ट नहीं होती । क्राइम खत्म हो चुका होता।"
माया - "आंख के बदले आंख से सारी दुनिया एक दिन अंधी हो जाएगी अर्जुन,खून का बदला खून नहीं होता है।"
अर्जुन - "मुझे तुम्हारे लेक्चरर की नहीं,साथ की जरूरत है माया। वो हमारी बेटी थी इस बात को याद रखना तुम।"
माया - "मुझे याद है कि वो मेरी बेटी थी और इसलिए मैं उसे इंसाफ दिलाने में कोई कसर नहीं छोडूंगी।"
अर्जुन - "इंसाफ उसे तभी मिलेगा जब उसे मैं सज़ा दूंगा।"
माया - "तुम्हें अपने गुस्से पर कंट्रोल क्यों नहीं है,इसी गुस्से के कारण आज तुम्हारी यह हालत है। सस्पेंडेड ऑफिसर हो तुम।"
अर्जुन - "कोई फिक्र नहीं है मुझे अपने सस्पेंड रहने में। क्रिमिनल को देखकर खून ख़ोल उठता है मेरा।"
माया - "गांधी जी ने कहा था पाप को मारो, पापी को नहीं। पापी के अंदर छुपे हुए पाप को मारो।"
अर्जुन - "तुम चलो गांधी जी के नक्शे कदम पर, मैं सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के नक्शे कदम पर चलता हूं। मैं चांटा खाने के बाद दूसरा गाल आगे नहीं कर सकता। मैं उसे ऐसा थप्पड़ मार सकता हूं की दूसरी बार चांटा करने की सोच भी ना सके।"
माया - "मैं तुम्हारे गुस्से की आग में अपनी बेटी के इंसाफ को नहीं जला सकती। मैं उसे इंसाफ दिला कर रहूंगी।"
अर्जुन - "मैं अपनी कसम पूरी करके रहूंगा।"
माया (चिल्लाती) - "अगर इतनी ही फिक्र थी तो अपनी बेटी की तो उस दिन अकेला छोड़ा? जबकि मैंने मना किया था तुम्हें, क्यों छोड़ा तुमने उसे अकेला ? तुम्हारी वजह से मेरी बेटी इस दुनिया में नहीं है, कहीं ना कहीं तुम भी जिम्मेदार हो।"
यह कहते हुए माया फूट फूट कर रोने लगती है। अर्जुन को माया की बात सुनकर झटका लगता है,उसे माया की बात सच लगती है।
अर्जुन (बड़बड़ाने) - "नहीं...नहीं मुझे नहीं उसे उस दिन अकेले नहीं छोड़ना था, पर मेरी वजह से नहीं...मेरी वजह से नहीं...कहीं मेरी बेटी...मैं अपनी बेटी से बहुत प्यार करता हूँ…।"
अर्जुन उस दिन को याद करता है जब वह अपनी बेटी से आखरी बार मिला था।
14 फरवरी 2022, रतनगढ़ महल, रतनगढ़
आगे क्या होगा?
क्या हुआ था उस दिन? किसकी गलती से ये हुआ? आखिर अर्जुन को इतना अफसोस क्यों है?
जानने के लिए पढिये कहानी का अगला भाग।
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