जयपुर के पास रतनगढ़ में राजकीय शोक घोषित कर दिया जाता है। राज परिवार में मृत्यु हुई थी। रतनगढ़ में शोक का माहौल था राजकुमारी सिमरन राठौर क्या अंतिम संस्कार पर बड़े- बड़े लोग उपस्थित हुए थे। बड़े-बड़े पद के लोग जिन्हें राज परिवार से मतलब था और जो उनका हाथ अपने सर पर रखना चाहते थे वो सब अंतिम संस्कार में उपस्थित हुए थे। मुंबई से क्रिमिनल लॉयर विवेक मंगलानी भी वहां पर पहुंच गया था। 

माया और अर्जुन का रो रो कर बुरा हाल था। माया के आंसू सूख चुके थे और अर्जुन की आंखें सूज चुकी थी। लाल आंखों के साथ अर्जुन सिंह अपनी बेटी को अंतिम विदाई देने वाला था पर उसकी यादें उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। रह-रह कर सिमरन के साथ बीती हुई यादें उसे याद आ रही थी।

सिमरन - "पापा...मैं कितने इयर्स की हूं ?"

अर्जुन - "बेटा...अभी आप सिर्फ 5 इयर्स की हो।"

सिमरन - "पापा, मैं सिर्फ 5 साल की हूं इसलिए आपकी गोद में बैठी हूं पर जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो मैं आपको अपनी गोद में बैठाऊंगी।"

अर्जुन - "हा…हा…हा, बेटा हर बाप की यही तमन्ना होती है कि वो अपने बच्चों के कंधों पर जाएं, बहुत बदनसीब बाप होते हैं वो जिनके कंधों पर बच्चे जाया करते हैं।"

यह सोचकर अर्जुन फूट- फूट कर रोने लगता है।

माया भी कुछ इसी तरह सिमरन की यादों में खोई हुई थी। उसे याद आता है कि एक दिन जब आईने के सामने माया और सिमरन बैठी हुई थी।

सिमरन - "मां...आप इतनी सुंदर हो,पर मैं तो इतनी सुंदर नहीं हूं। मैं आपके जितनी सुंदर कब होउंगी ?"

माया अपनी बेटी को गाल पर एक किस देती है।

माया - "बेटा...आप मुझसे बहुत ज्यादा सुंदर हो,किसने कह दिया कि आप सुंदर नहीं हो। आप इतनी क्यूट हो कि आपके सामने तो मैं भी कुछ नहीं हूं। जब आप बहुत बड़ी होगी ना तो मैं बूढी हो जाऊंगी,आप मुझसे ज्यादा सुंदर दिखोगी।"

सिमरन - "सच मम्मा।"

माया - "बिल्कुल सच।"

माया को सिमरन का भयानक खून से सना चेहरा याद आता है और उसके आंसू फिर निकल जाते हैं।

सिमरन की लाश को चिता पर लेटा दिया जाता है। वहां उस वक्त ऐसा कोई इंसान नहीं था जिसकी आंखों में आंसू नहीं थे। सिमरन की उम्र अभी सिर्फ 13 साल की थी और इतनी छोटी उम्र में चले जाना किसी सदमे से कम नहीं होता ।ये माया और अर्जुन के लिए बहुत बड़ा झटका था जिससे उभर पाना मुश्किल था।

कुँवर अर्जुन राठौड़ नम आंखों से सिमरन राठौर की चिता को आग देता है और वो सदा के लिए पांच तत्वों में विलीन हो जाती है।

उधर मुंबई क्राइम ब्रांच में इन्स्पेक्टरअविनाश पाटिल फोन पर कमिश्नर से बात करता है।

अविनाश - "सर...मैंने कहा था ना कि मेरी गट फीलिंग, इस केस का मुंबई से कोई ना कोई कनेक्शन जरूर होगा और देखिए किलर मुंबई से ही था।"

कमिश्नर सूर्यप्रताप - "गुड,तुमने मेरी उम्मीद से अच्छा काम किया है, अविनाश अभी तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम इसे सही सलामत जयपुर पहुँचाओ और क्राइम ब्रांच को हैंडोवर करो। तुम्हें जयपुर क्राइम ब्रांच के साथ मिलकर इस केस को सॉल्व करना होगा। जो भी मदद लगेगी वो तुम्हें करनी होगी।"

अविनाश - "डोंट वेरी सर,मैं इस केस पर अपनी जी जान लगा दूंगा।"

कमिश्नर - "अविनाश, एक बात और याद रखना, ये खबर लीक नहीं होनी चाहिए की कातिल पकड़ा गया, किसी भी कीमत पर ये खबर बाहर नहीं आनी चाहिए जब तक वह कोर्ट में पेश न हो जाए।"

अविनाश - "डोंट वरी सर ये खबर अभी ज्यादा लोगों को पता नहीं है और जयपुर पहुंचने तक मैं किसी को पता चलने भी नहीं दूंगा।"

कमिश्नर - "ओके अविनाश,गो अहेड।"

अविनाश - "यस सर,जय हिंद सर।"

अविनाश फोन काट देता है तभी उसकी नजर सामने खड़ी हुई एक लड़की पर पड़ती है उसे देखकर चौंक पड़ता है।

अविनाश - "रूपल...तुम?"

रूपल (गुस्से में) - "अविनाश...मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम इतना नीचे गिर जाओगे।"

अविनाश - "क्या कह रही हो रूपल, मैं समझा नहीं।"

रूपल - "मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी तो तुमने इस तरह बदल लिया, उस मासूम को अरेस्ट करके।"

अविनाश - "वो मासूम नहीं है, एक बच्ची का कातिल है और सबूत है मेरे पास उसके खिलाफ।"

रूपल - "कातिल कोर्ट में प्रूव होते हैं इंस्पैक्टर अविनाश, पुलिस स्टेशन या क्राइम ब्रांच में नहीं ।"

अविनाश - "रूपल...मैं अविनाश पाटिल हूँ, अर्जुन राठौड़ नहीं, एनकाउंटर नहीं करूँगा उसका, मैं भी उसे कोर्ट में ही ले जाना वाला हूँ, जयपुर कोर्ट में चार दिनों में उसकी पेशी है। केस फास्ट्रेक पर चलेगा, क्योंकि बहुत बड़ा केस है। आखिरकार राज परिवार के सदस्य की मृत्यु हुई है।"

रूपल - "पता है,मुझे लगता था कि तुमने जब अपने दिल की बात मुझसे कही थी ना, तो मुझे अफसोस होता था कि काश मैं तुम्हारी बात मान सकती पर अब मुझे कोई अफसोस नहीं है। तुम जैसे खुदगर्ज के लिए मेरे दिल में ना ही कोई जगह पहले थी ना आगे कभी होगी...आई हेट यू अविनाश आई हेट यू।"

रूपल रोते- रोते वहां से चली जाती है।

अविनाश (बढ़ बढ़ाते हुए) - "रूपल...काश तुम मुझे समझ सकती।"

इधर जयपुर में पोस्टमार्टम करने वाला डॉक्टर राज परिवार के मैनेजर राणा को फोन करता है।  राणा अंतिम संस्कार में था।

राणा - "डॉक्टर साहब,बोलिए क्या बात है?"

डॉक्टर - "राणा सा,राज परिवार के बहुत अहसान है मुझ पर। आज मैं जो कुछ भी हूं, जहां भी हूं, राज परिवार की वजह से हूं और कुंवर सा ने मुझसे कहा था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस से पहले उन्हें पता चलना चाहिए और मैंने पूरी ईमानदारी से पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाई है।"

राणा - "क्या मिला रिपोर्ट में ?"

डॉक्टर फोन पर राणा को कुछ कहता है और उसकी आंखें चौड़ी हो जाती है। उसकी आंखों में गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था।

राणा - "इस हालत में कुंवर सा को ये बात कैसे बताऊं, पर बात बतानी तो पड़ेगी, जल्दी से जल्दी।"

अंतिम संस्कार विधि पूर्ण होने के बाद सभी अपने- अपने घर के लिए रवाना हो जाते हैं। अर्जुन शमशान में चीता की आप ठंडी होने तक रुकता है उसके साथ राणा भी रहता है।

राणा हिम्मत करके अर्जुन के पास जाता है।

राणा - "कुंवर सा...एक बहुत जरूरी बात थी।"

अर्जुन कुछ कहता नहीं बस राणा की तरफ देखने लगता है।

राणा - "पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर का फोन आया था।"

अर्जुन की आंखें उत्सुकता से भर जाती है।

राणा - "उसने...उसने कहा कि…।"

घर पर सभी मेहमान राज परिवार के लोगों से हाथ जोड़ते हुए वापस अपने घर की तरफ जा रहे थे।

विवेक मंगलानी - "माया...बहुत जरूरी बात करनी है, क्या 5 मिनट मिल सकते हैं। सिमरन से रिलेटेड है।"

माया सिमरन का नाम सुनते ही हैरान हो जाती है वह विवेक के साथ भीड़ से अलग जाकर खड़ी होती है।

विवेक - "माया...मुझे बहुत अफसोस है, ये नहीं होना था पर अब जो हो चुका है उसे हम बदल तो नहीं सकते पर जो हमारे हाथ में वह हम कर सकते हैं।"

माया विवेक की तरफ देखती है।

विवेक - "माया...मैं सिमरन का केस लड़ना चाहता हूं।"

माया हैरान हो जाती है।

विवेक - "क्या हुआ माया।"

माया - "विवेक सर,आप सिमरन का केस लड़ेंगे?"

विवेक - "हां माया, अगर तुम चाहो तो? मैं यह केस लड़ना चाहता हूं। मैं सिमरन के कातिल को फांसी की सजा दिलवाना चाहता हूं।"

माया (नम आंखों से) - "अभी कातिल पकड़ा नहीं गया है।"

विवेक - "पकड़ा जाएगा बहुत जल्दी, बस तुम अर्जुन को संभाल लेना। जहां तक मुझे पता है उसे कानून पर कोई खास भरोसा है नहीं।"

माया - "मैं भी एक लॉयर हूं सर, और मैं अपनी बेटी के कातिल को कानून के हिसाब से ही सजा दिलवाऊंगी।"

उधर शमशान में डॉक्टर से फोन पर बात करने के बाद अर्जुन की आंखों में खून उतर आता है ।वो जलती चिता पर हाथ रखते हुए कसम खाता है।

अर्जुन - "मैं कसम खाता हूं, तेरे कातिल को मैं खुद अपने हाथों से मारूंगा। कानून सजा नहीं देगा...मैं खुद उसे सजा दूंगा।"

घर पहुंच कर अर्जुन की आंखों में नींद नहीं थी। रो रो कर उसकी आंखें सूज गई थी। वो अपनी बेटी को याद कर करके आंसू बहा रहा था। तभी अर्जुन का फोन बचता है। अर्जुन फोन पर ध्यान नहीं देता दो- तीन बार बजने के बाद जब चौथी बार फोन लगातार बज रहा था तब अर्जुन गुस्से में फोन उठाता है।

अर्जुन - "कौन बोल रहा है?"

उधर से आवाज आती है,"सर...सर फोन मत रखिएगा। सर मैं सब इंस्पेक्टर संदीप बोल रहा हूं।"

अर्जुन - "संदीप...क्या हुआ?"

संदीप (रोते हुए) - "सर...मुझे बहुत दुख हुआ सिमरन बेबी का सुनकर, पर मैंने आपको एक खबर देने के लिए फोन किया है।"

अर्जुन - "क्या खबर है?"

संदीप - "सर...सिमी बेबी का कातिल पकड़ा गया।"

यह सुनकर अर्जुन के होश उड़ जाते हैं।

अर्जुन - "क्या कह रहे हो?"

संदीप - "मैं सच कह रहा हूं सर,अभी ये खबर डिपार्टमेंट से बाहर नहीं गई है। इंस्पेक्टर अविनाश ने खुद उसे पकड़ा है मुंबई में।"

अर्जुन (हैरान होकर) - "अविनाश ने?"

संदीप - "यस सर,और ये अंदर की खबर है। क्राइम ब्रांच मुंबई और जयपुर साथ मिलकर काम कर रहे हैं और इंस्पेक्टरअविनाश खुद कातिल को लेकर कल रात को जयपुर पहुंचेंगे। उसे कहां रखा जाएगा अभी यह इनफॉरमेशन मेरे पास नहीं है। कल रात को जयपुर पहुंच जाएगा और कुछ पता लगेगा तो मैं आपको बताऊंगा।"

अर्जुन - "थैंक यू, थैंक यू वेरी मच संदीप।"

संदीप - "आपका बहुत एहसान है मुझ पर, सिमरन बेबी मेरी भी बेटी जैसी ही थी। उसे छोड़ना मत सर, उसे छोड़ना मत।"

फोन काटने के बाद अर्जुन की आंखों में खून उतर आता है। वो गुस्से के मारे लाल हो जाता है।

अर्जुन के पास उसके कमिश्नर सूर्य प्रताप सिंह का कॉल आता है।

सूर्य प्रताप सिंह - "आई एम सॉरी अर्जुन, सुनकर बहुत दुख हुआ सिमरन के बारे में, सॉरी मैं तुम्हें कॉल नहीं कर पाया क्योंकि मैं उसके कातिल को पकड़ने में बहुत बिजी था।"

अर्जुन - "इट्स ओके सर, जो होना था हो गया है, वो हमारे हाथ में नहीं है पर जो आगे होने वाला है वो हमारे हाथ में है।"

कमिश्नर :"क्या मतलब?"

अर्जुन - "सर...अगर आप सिमरन को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो बस एक बार मुझे उसका किलर से मिलने दीजिए।"

सूर्य प्रताप सिंह - "किलर से कैसे मिलने दूँ,अभी कहाँ पकड़ा है।"

अर्जुन - "सर, मुझसे कोई बात छुपी नहीं रह सकती, आप जानते हैं डिपार्टमेंट में अभी इतना बदनाम नहीं हुआ हूं, कुछ चाहने वाले भी हैं मेरे।"

सूर्य प्रताप सिंह - "अच्छा,तो तुम्हें पता चल ही गया।"

अर्जुन - "वो तो चलना ही था सर।"

सूर्य प्रताप सिंह - "अर्जुन, तुम जानते हो ये नहीं कर सकता हूं मैं।"

अर्जुन - "आप सब कुछ कर सकते हैं, अगर करने की इच्छा हो तो।"

सूर्य प्रताप सिंह - "अर्जुन, मैंने पहले भी तुम्हें कई बार समझाया था कि तुम अपने गुस्से पर कंट्रोल रखो, पर आखिर में क्या हुआ। मुझे खुद अपने बेस्ट ऑफिसर को सस्पेंड करना पड़ा। डिपार्टमेंट का बहुत प्रेशर था।"

अर्जुन - "उस बात के लिए मुझे कोई मलाल नहीं है सर, पर ये killer मेरे हाथ से छूट गया तो मुझे जिंदगी भर मलाल रहेगा।"

कमिश्नर - "अर्जुन, तुम अभी नहीं बदले, तुम उसी रास्ते पर चल रहे हो। अपने गुस्से को अपनी ताकत बनाओ, अपनी कमजोरी नहीं। कितनी बार समझाया तुम्हें।"

अर्जुन - "मेरा गुस्सा मेरा ताकत ही है सर। बस आप तो मुझे ये बताइए कि आप मेरी रिक्वेस्ट सुन सकते हैं या नहीं।"

कमिश्नर - "अर्जुन...तुम मुझे धर्म संकट में डाल रहे हो।"

अर्जुन - "अब आप कुछ भी समझे।"

सूर्य प्रताप सिंह - "तुम क्या करोगे उससे मिलकर?"

अर्जुन - "मैं उससे मिलकर पूछूंगा कि क्या गलती थी सिमरन की,और ऐसा क्यों किया?"

कमिश्नर - "वो अदालत में खुद- ब- खुद बोल देगा।"

अर्जुन - "सर...आप मुझे मिलने देंगे या नहीं,बस ये बता दीजिए।"

कमिश्नर असमंजस में पड़ जाता है।

कमिश्नर (लम्बी सांस लेने के बाद) - "ओके...ठीक है,पर सिर्फ 5 मिनट।"

अर्जुन - "ठीक है सर,इतना टाइम काफी है।"

कमिश्नर - "अर्जुन...पर याद रखना अपने गुस्से पर कंट्रोल रखना,और तुम अकेले उससे मिलने नहीं जाओगे। तुम्हारे साथ एक कांस्टेबल जाएगा।"

अर्जुन - "ठीक है सर,मुझे मंजूर है।"

कमिश्नर फोन रख देता है।

अगले दिन जब खबर मिलती है अर्जुन को, की कातिल को जयपुर क्राइम ब्रांच में लाया गया है तो अर्जुन सिंह राठौड़ वहाँ जाने के लिए अपनी गाड़ी से निकल जाता है। अर्जुन की आंखों में गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था।

क्राइम ब्रांच में इंस्पैक्टर अविनाश पाटील जयपुर क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर विक्रम सिंह से मिलता है।

अविनाश - "इंस्पेक्टर विक्रम,ये केस आपका है,मुंबई क्राइम ब्रांच सिर्फ आपके सपोर्ट के लिए है,पर मेरी मानिए,तो अभी इससे किसी को मिलने मत दीजिएगा,इससे आपका केस कमजोर हो सकता है।"

विक्रम - "ठीक है इंस्पैक्टर अविनाश,मैं ध्यान रखूंगा।"

अविनाश - "केस की सुनवाई होने तक कुछ दिन मैं जयपुर में हूं। अगर मेरी जरूरत पड़े तो आप मुझे कॉल कीजिएगा।"

विक्रम सिंह - "ठीक है।"

अविनाश वहां से जाने लगता है तभी गेट पर अर्जुन सिंह राठौर की गाड़ी आकर रूकती है। अर्जुन सिंह को देखते से ही वहां पर सारे लोग अपनी जगह से उठकर खड़े हो जाते हैं और सर झुका लेते हैं। अर्जुन सिंह का दबदबा देख अविनाश हैरान हो जाता है। अर्जुन सिंह गाड़ी से बाहर निकलता है और सामने अविनाश से उसका सामना होता है। अविनाश हैरान रहता है कि अर्जुन को कैसे पता चला। अर्जुन और अविनाश आमने- सामने एक दूसरे को घूर कर देखने लगते हैं।

 

आगे क्या होगा….?

क्या अर्जुन को क़ातिल से मिलने दिया जाएगा? क्या है अविनाश और अर्जुन के बीच का मनमुटाव का राज़? कौन है वो क़ातिल? जानने के लिए पढिये कहानी का अगला भाग। 

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