रात 2:47 बजे – राजघराना महल, राजगढ़ 

गजेन्द्र की गिरफ्तारी से पूरे राजघराना महल में मातम पसरा हुआ था। हर किसी के चेहरे पर उदासी और गम के बादल छाये हुए थे। वहीं अपने कमरे में रेनू का हाथ पकड़े डरी-सहमी रिया भी गजेन्द्र की गिरफ्तारी से टूट गई थी। क्योंकि पिछले कुछ दिनों में ही उसने राजघराना महल का वो सच जान लिया था, जहां औरतों की जिंदगी को किसी खिलौने से ज्यादा नहीं समझा जाता। 

ऐसे में रिया के हाथ अब भी कांप रहे थे… रेनू गुमसुम थी… और प्रभा ताई खिड़की से बाहर ताक रही थीं — जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला हो...

तभी…फिर से वही चीख पूरे राजघराना महल में गूंजी। पर इस बार उस चीख को सुनने कोई नहीं भागा, सब अपने-अपने कमरे में डरे सहमें छिपे बैठे रहें। तभी महल के उसी पिछवाड़े वाले हिस्से से, जहां गजेन्द्र की गिरफ्तारी से पहले गड्ढा मिला था, वहां से एक आदमी भागते हुए आया और कांपती हुई आवाज में चिल्लाकर बोला — उसका चेहरा मिट्टी से सना था, उसकी आंखें लाल.. सुर्ख लाल थी, मानो जैसे कोई शैतान हो...।

ये बड़बड़ाता हुआ वो गिरते-पड़ते हवेली के दरवाज़े तक पहुंचा, और जोर से चिल्लाया — “बचाओ... वो वापस आ गई है... व...व..वो… तीसरी औरत!”
 
ये आवाज सुन रिया और रेनू दौड़कर उस आदमी की ओर गई और हैरान-परेशान होकर सवाल करने लगी— “कौन तीसरी औरत? कौन...? किसकी बात कर रहे हो तुम, जब हम वहां गए थे, तो वहां कोई नहीं था। जमीन पर बस एक मोबाइल फोन पड़ा था। बोलो तुम किसकी बात कर रहे हो?”
 
उस आदमी ने काँपते होंठों से फिर जो कहा उसे सुन रिया और रेनू के होश ही उड़ गए — “जिसे सबने भुला दिया था… लेकिन जो मरी नहीं थी… जिसका बच्चा हवेली में आज भी सांसें ले रहा है”
 
जहां एक तरफ राजघराना हवेली में एक अंजान जमीन से जिंदा निकल कर बाहर आई औरत के नाम पर आतंक मचा हुआ था, तो वहीं दूसरी ओर जयपुर थाने के लॉकअप में गजेन्द्र की हालत भी बहुत बुरी थी। एक तरफ उसे हवेली में अकेली पड़ी रिया की सेफ्टी की चिंता था, तो वहीं दूसरी ओर वह आखिर अपना सच दुनिया के सामने कैसे सबित करें ये समझ नहीं आ रहा था। एक-एक कर उसके खिलाफ लगातार कई ऐसे सबूत सामने आ गए थे, जो ये साबित कर रहे थे कि वो रेस मैच फिक्सिंग केस का मेन आरोपी था।
 
ये ही सब सोचते-सोचते वो रातभर सोया नहीं, जिसकी वजह से उसकी आंखे लाल हो गई। जेल की सलाखों के पीछे बैठा गजेन्द्र एकटक बस दरवाजे को निहारे जा रहा था। कि तभी उसका वकील विराज थाने पहुंच गया, जिसे देख उसकी जान में जान आई। तभी विराज गजेन्द्र के कान के करीब आया और कुछ ऐसा कहा, जिसने गजेन्द्र के होश उड़ा दिये —
 
“वो वीडियो असली है… लेकिन उसमें तुम्हारी आवाज़ AI से मॉडिफाई की गई है। किसी ने टेक्नोलॉजी से खेल खेला है, और खेल बड़ा है।”
 
गजेन्द्र फुसफुसाकर कहता है — “तो फिर मेरी बेल क्यों खारिज हुई?”

विराज की आँखों में डर और परेशानी दोनों एक साथ नजर आने लगी और वो बोला — “क्योंकि अब केस सिर्फ तुम्हारे खिलाफ नहीं रहा… अब ये देशद्रोह की शक्ल ले रहा है, किसी ने चाहा है कि तुम जेल से बाहर ना आ सको — ताकि वो हवेली में अपने खेल को अंजाम तक पहुंचा सके। उसका मकसद राजघराना के हर वारिस को मौत की नींद सुलाना है।”

विराज की ये बात सुनते ही गजेन्द्र को वो चिट्ठी याद आई, जिसमें भी कुछ ऐसा ही लिखा था, लेकिन उस वक्त उसे लगा था कि ये खेल उसके चाचा राज राजेश्वर ने खेला है। वहीं अब उसे एक-एक कर सारा मामला समझ आने लगा। 
 
उसी वक्त महल का नजारा और भी डरावना हो गया, जब रिया, रेनू और प्रभा ताई उस गड्ढे को देखने वापस दिन के उजाले में वहां गई, जहां अब तक ज़मीन फिर से खुदी हुई दिख रही थी। इस बार उन्होंने जैसे ही मिट्टी हटाई तो देखा…एक पुराना काठ का संदूक वहां पड़ा था। वो भरा नहीं बल्कि खाली था, उसमें एक औरत की फटी हुई साड़ी… एक टूटी चूड़ी… और एक बच्चे की पुरानी रेशमी टोपी पड़ी हुई थी, जिस पर खून के धब्बे थे।
 
प्रभा ताई ये नजारा देख कांपने लगीं और फुसफुसाते हुए बोलीं— “ये… ये तो शारदा की चीजें हैं। हवेली की तीसरी नौकरानी… गायत्री से पहले… ये भी गायत्री की तरह ही एक रात अचानक गायब हो गई थी…”
 
रेनू चौंककर बोली — “शारदा? मेरी माँ ने उसका नाम आखिरी बार लिया था… उसने कहा था कि ‘शारदा लौटेगी… और वहीं इस हवेली में बेआबरू होकर मरी सारी औरतों की मौत का सच उजागर करेगी।’”
 
राजघराना महल के इस वारिस की पहचान और सच की लड़ाई में एक नये ही शख्स की एंट्री हो गई थी, जो इस वक्त एक महंगे होटल के सुइट में मुंह पर नकाबपोश पहने एक लैपटॉप के सामने बैठा एक टक कुछ निहारे जा रहा था। इसी दौरान वह उस लैपटॉप पर एक फोल्डर खोलता है —

 “The Real Heir – Phase 2”

जिसके अंदर एक फाइल होती है, उसका नाम था असली DNA रिपोर्ट — उस रिपोर्ट को देख वो शख्स जोर-जोर से हंसने लगता है और खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है— "रेनू देवी is not the biological daughter of Gayatri... but of Sharda. Hahahahah! "

वो आदमी ये लाइन पढ़ते के साथ और जोर-जोर से हंसने लगता है, लेकिन इस बार वो अपने इरादों को अपनी बातों में जाहिर कर देता है — “अब रेनू खुद नहीं जानती, कि वो किस औरत की औलाद है… और किस राज की वारिस।”

ये ही बड़बड़ाते हुए वो फिर से लैपटॉप पर कुछ देखने लगता है। दिन से शाम और शाम से रात हो जाती है… जिसके बाद वो अपना फोन निकाल किसी को ऑर्डर देता है— आगले वार के लिये तैयार हो जाओ….
 
इतना कह जहां एक तरफ वो फोन कांटता है, तो वहीं उसी के आधे घंटे बाद हवेली की दीवार पर फिर एक नया खून से लिखा मैसेज मिलता है, जिसका ऐलान वो ढोल बजाने के साथ कर वहां से सेंकेड भर में फरार हो जाता है।
 
ढोल की आवाज सुन सब दौड़कर नीचे हॉल में आते हैं, जहां छत्त की सफेद दीवार से लाल-लाल खून की बूंदे टपक कर पहले रिया और फिर एक-एक कर उस दायरे में खड़े बाकी लोगों के ऊपर गिरती है, जिसके बाद सब सर उठाकर छत्त पर लिखे उस खूनी खत को पढ़ते है और सबकी सांसे उनके गले में अटक जाती है।

“हवेली में अब सिर्फ एक वारिस बचेगा… या फिर कोई नहीं। और ये खेल आज रात से ही शुरु होगा... मौत के तांडव का खेल…इन वारिसों में पहली मौत मंदिर के सामने होगी।”
 
ये पढ़ते ही रिया काँपने लगती है, क्योंकि मंदिर वो जगह थी, जहां वो गजेन्द्र को शादी के लिए प्रपोज़ करने वाली थी। 

लेकिन गजेन्द्र की अचानक हुई गिरफ्तारी से उसका प्रपोज करने का प्लान फेल हो जाता है। उस पर अब ये नया रहस्य और नया तमाशा… ये देख रिया खुद से बातें करने लगती है…आखिर कौन है ये औरत और क्या चाहती है, इसे मिट्टी में किसने गाड़ा था? 

जहां रिया इन सवालों को बड़बड़ाते हुए खुद से पूछ रही होती है, तो वहीं अगले ही सेकेंड महल की सारी बत्तियां अपने आप बंद हो जाती है। रेनू, रिया, प्रभा ताई और गजराज सब डर के मारे एक-दूसरे का हाथ थामें एक साथ खड़े हो जाते है। 

और तभी गजराज अपनी बूढ़ी कांपती हुई आवाज में चिल्लाता है— आखिर कौन है तू, और क्या चाहती है… क्यों मेरे खानदान के नामों-निशान को मिटा देना चाहती है तू, बोल….कुछ तो बोल, मेरी बूढ़ी सांसे तेरे ये तमाशा अब और नहीं देख सकती।
 
महल में मचे इस तमाशे से बिल्कुल अंजान मुक्तेश्वर सुबह से ही अपने बेटे की रिहाई को लेकर यहां-वहां हर जगह धक्के खाकर थक चुका था। आखिरकार देर रात वो थक कर एक बार अपने बेटे से जेल की सलाखों में मिल वापस महल लौटने का मन बनाता है।

सर्द लोहे की सलाखों के पार गजेन्द्र की आंखों में अभी भी नींद का नाम तक नहीं था। उस पर आज सुबह जो कुछ विराज उसे बता कर गया उसके बाद तो वो बुरी तरह टूट गया था और एक टक सलाखों की काली डंडियों को निहारे जा रहा था। तभी उसके सामने उसके पिता, मुक्तेश्वर सिंह आकर खड़े हो गए। दोनों के बीच खामोशी इतनी भारी थी कि दीवारों पर रेंग रहे कीड़ों की आवाज भी साफ सुनाई दे रही थी। इसी बीच मुक्तेश्वर ने पहले बोलते हुए उस खामोशी के मंजर को तोड़ा— 

(धीरे से कुर्सी खींचते हुए) “बोल बेटा… किससे हार गया तू?”
 
पिता की ये बात सुनते ही गजेन्द्र अपनी नजरे झुका लेता है और कुछ नहीं कहता, सिर्फ एक गहरी सांस लेता है…और फिर धीमे-धीमे बोलने लगता है।
“आप जानते हैं, पापा…मैं यहां इसलिए नहीं टूटा हूं कि मैं जेल में हूं…मैं इसलिए टूटा हूं, क्योंकि मैं अपने दादा गजराज सिंह जैसा बनता जा रहा हूं। मेरे अंदर अब सिर्फ बदले की आग जल रही है।”
 
"क्या मतलब?"

गजेन्द्र - "मुझे नफ़रत थी उनसे… उनकी वो अकड़, वो हिंसा, वो अपमानित करने की आदत…वो औरतों को अपनी रातों की कठपुतली समझना। पर अब मैं खुद को देखता हूं तो लगता है… मैं भी ठीक वैसा ही हो गया हूं। मैं अब किसी को माफ़ नहीं करता, सबको जवाब देता हूं और इस बदले की आग में जलते-जलते…अब मेरा चेहरा भी डरावना लगने लगा है मुझे।"

अपने बेटे की ये बाते सुन जहां मुक्तेश्वर की आंखें भीग जाती हैं, तो वहीं वो अपना सीना चौड़ा करते हुए कहता है— नहीं तुम मेरे घमंडी, अन्यायी पिता गजराज जैसे बिल्कुल नहीं हो बेटा…दीवार पर टंगे उस टूटे आइने में देखो खुद को.. तुम्हें तुम्हारी गलतियों का एहसास है… और तुम उस बात का पछतावा क्यों कर रहे हो, जो मेरे पिता ने की। 

वो गजेन्द्र का हाथ थामते हैं, लेकिन आगे कुछ कह नहीं पाते और उनकी ख़ामोशी में उनकी आंखों से टपके आंसू ये बयां कर देते है कि उन्हें अपनी परवरिश पर गर्व है। 
 
पिता के आंसुओं की बूंद हाथों पर गिरते ही गजेन्द्र अपने नजरे हाथों की तरफ झुका लेता है और कहता है— "काश मैंने आपकी बात मान ली होती, और राजघराना का वारिस होने के लालच में आकर इस खूनी हवेली में कदम ना रखा होता… यहां हर कोई दुश्मन बनता जा रहा है…मेरा पहला प्यार रिया भी मुझसे दूर जा रही है और ये केस… ये हवेली… ये राज… मुझे बर्बाद करने पर तुले हैं… पापा।"

जहां एक तरफ गजेन्द्र अपने अतीत से जुड़े आज को कोस रहा था, तो वहीं दूसरी ओर हवेली में प्रभा ताई मंदिर में बैठी पूजा कर रही थी। आज बरसों बाद राजघराना के मंदिर में दीपक जलाने कोई राजघराना के खून से जुड़ा शख्स बैठा था, जिससे साफ था कि डर अब सबके जहन में घर करने लगा था, कि तभी अचानक तेज़ हवा से दीपक बुझ जाता है।

घबराई प्रभा ताई यहां-वहां चारों तरफ देखती है और तभी दीवार पर फिर से वही डरावना खून से लिखा संदेश नजर आता है…

“आज वो नाम जरूर मिटेगा… अगर तेरे बाप ने अपनों कर्मों की कहानी अपनी खुद की जुबानी इस दुनिया को ना सुनाई तो... मंदिर के सामने मिलेगी इस खानदान के पहले वारिस की लाश।”
 
लेकिन इस बार… नीचे एक नया नाम लिखा होता है —

“मुक्तेश्वर सिंह।”
 
नाम पढ़ते ही प्रभा ताई के हाथ से आरती की थाली नीचे गिर जाती है और वो भागती हुई रिया के पास जाती है और कांपती हुई आवाज में कहती है, ज...ज...जल्दी से मुक्तेश्वर को फोन करो और पूछो वो कहां है… उसे अभी इसी वक्त राजघराना महल लौटने को कहो— अभी के अभी।
 
दूसरी ओर जेल में गजेन्द्र और मुक्तेश्वर की मुलाकात ख़त्म हो जाती है, जैसे ही मुक्तेश्वर बाहर जाने को मुड़ते हैं, एक कॉन्सटेबल दौड़ता हुआ आता है — “सर! आपको जल्दी बाहर चलना होगा, आपकी कार को किसी ने जला दिया है… और ड्राइवर लापता है।”
 
गजेन्द्र उस कॉन्सटेबल की बात सुनकर चौक जाता है और चिल्लाकर पूछता है— “क्या कहा? कौन…?”
 
कॉन्सटेबल हांफते हुए अपनी टूटती सांसो में कहता है — “पता नहीं, लेकिन उस जली कार के बोनट पर खून से लिखा था —
 ‘अब बाप मरेगा… फिर बेटा… फिर हवेली बचेगी अकेली।’

राजघराना का एक-एक सदस्य इस खूनी खत के डर से भरी जिंदगी झेल रहा होता है। और दूसरी ओर उसी होटल के बंद कमरे में वही नकाबपोश शख्स बैठा खुद से बातें कर रहा होता है। इस समय उसके हाथों में दो फोटो रखी हैं — मुक्तेश्वर सिंह और रिया।

वो धीमे से कहता है — “अब राजा की चाल चलने का वक़्त आ गया है…पहले बाप जाएगा, फिर बहू…और फिर एक-एक कर सब.… तभी बनूंगा मैं ‘हवेली का आख़िरी वारिस’..हाहाहाहा”

वो दोनों फोटो पर लाल स्याही से X का निशान बना कर उसे एक पिन के सहारे दीवार पर टांग देता है। इसी दौरान ये नजर आता है कि उस आदमी के हाथ में सिर्फ चार उंगलिया थी, अंगुठा नहीं था। 
 

आखिर कौन है ये शख्स? क्या है इसकी राजघराना के लोगों से दुश्मनी? 

कौन है वो जमीन से निकली औरत, जो चाहती है कि गजराज खुद दुनिया के सामने कुबूल करें अपने सारे गुनाह

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

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