चारों तरफ अंधेरा पसरा था, लेकिन हवेली की दीवारें अब खामोश नहीं थीं। खून से लिखी गई चेतावनी अब भी दीवार पर ऐसे टपक रही थी, मानो जैसे किसी के ताजे़ खून से लिखी गई हो—
 
“अब अगला नंबर तेरा है... रानी नहीं, क़ुरबानी बनेगी तू।”
 
रिया बार-बार इस लाइन को अपनी कांपती हुई आवाज में पढ़ रही थी। दूसरी ओर रेनू की उंगलियां उस पगड़ी को और कसकर पकड़ चुकी थीं, जैसे अब छोड़ना मतलब अपनी मां की आखिरी निशानी को खो देना हो। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था, जैसे कोई उससे उस पगड़ी को छीनना चाहता है।

और उसी वक़्त— एक हल्की सरसराहट, और उसके साथ तहखाने की सीढ़ियों से आती बूढ़े आदमी की धीमी पर अनजान सी हँसी सुन सभी दहल जाते है। कि तभी उस बूढ़े की आवाज सबके कानों में पड़ती है—

“इतने सालों बाद… हवेली ने फिर से खून माँगना शुरू कर दिया है।”
 
ये सुनते ही गजेन्द्र, रिया, रेनू और मुक्तेश्वर एक साथ पलटे और चीखते हुए पूछा— “कौन हो तुम?”
 
गजेन्द्र ने आगे बढ़कर दुबारा अपना सवाल दोहराया, पर वो आदमी अपनी जगह से हिला भी नहीं। ऐसा लग रहा था, मानो जैसे वो खुद उन लोगो को कुछ बताने आया हो— “नाम पूछ रहे हो?” 
 
वो धीरे से बोला, “तो नाम नहीं छोटे साहेब, काम याद रखो मेरा। मैं वो गवाह हूँ, जिसे हवेली ने दफन कर दिया था… लेकिन अब दफन राज बाहर आने को हैं, तो मैं भी बाहर आ गया…हाहाहाहा”

उस बूढे काका की हंसी किसी शैतान से कम नही थी। तभी उसने अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया, जिसमें एक ज़ंग लगी लोहे की चाबी थी, और एक पुराना पत्र था… जिस पर रिया की मां का नाम लिखा था—“कविता देवी राठौर”
 
रिया के पांव उस खत पर अपनी मां का नाम देख जैसे ज़मीन में जम गए और चेहरा सफेद पड़ गया— “ये… ये मेरी मां का नाम है… पर उन्होंने तो आत्महत्या की थी…”
 
बूढ़े आदमी की आंखों में पानी चमकने लगा। उसने कांपते होंठों से फुसफुसा कर कहा— “अगर आत्महत्या सच होती… तो मैं 20 साल तक उस तहखाने में नहीं छुपा रहता… जहां तुम्हारी मां आखिरी बार गई थीं…”
 
उस बूढ़े काका की बात सून सभी दंग रह गये। और तभी रिया ने कहा— मैंने अपनी मां की डायरी में पढ़ा था, कि वो राजघराना हवेली में नर्स का काम करती थी, लेकिन उनकी आत्महत्या की कहानी मुझे मेरे बाबा ने सुनाई थी। हालांकि बाबा की बातों में मैंने हमेशा इस हवेली के लोगों के खिलाफ नफरत की आग ही देखी है।

रिया अपनी मां की आपबीती की कहानी में आगे कुछ कहती उससे पहले ही, हवेली के दूसरे पुराने हिस्से में एक जोरदार धमाका हुआ— जैसे किसी भारी दरवाज़े को तोड़ा गया हो।

गजेन्द्र ने रेनू और रिया को अपने पीछे किया, और फिर तेज़ क़दमों से उस दिशा में दौड़ा। तीनों भागते हुए वहां पहुंचे, लेकिन जब उन्होंने वहां का नजारा देखा तो उनकी आंखे फटी की फटी रह गई।

एक पुरानी बंद दीवार, जिसे अभी-अभी ना जाने किसने तोड़ दिया था अब टूटी हुई ईंटो के साथ जमींन पर बिखरी हुई थी… और उसके अंदर एक और "कंकाल की क्रब पड़ी थी।
 
इस कंकाल को देख रेनू और रिया ने चीखते हुए अपनी आंखे बंद कर ली। तभी गजेन्द्र उस कंकाल के करीब गया और देखा कि उस कंकाल पर एक लाल साड़ी का कपड़ा और टूटी हुई चूड़ियों के कांच के टुकड़े भी जहां-तहां पड़े है। तभी रेनू ने गौर से आखें चौड़ी की और उस कंकाल को बारिकी से देखा। कुछ एक मिनट तक देखने के बाद रेनू ज़ोर से चिल्लाई— “ये मेरी मां की नहीं… ये कोई और है!”
 
रेनू की बात सुनते ही रिया बोल पड़ी— "एक कंकाल को देखकर तुम ये कैसे बता सकती हों"

रिया के इस सवाल पर रेनू ने तुरंत कहा- "इसका जवाब मैं आपको बाद में देती हूं बाईसा, पहले यहां से निकलते है।"

"ठीक है, चलों, क्योंकि ये मेरी मां भी नहीं है... मेरी मां की लाश तो घर में ही पंखे से लटकी मिल गई थी, और मेरे पिता ने मेरी मां का अंतिम संस्कार किया था।"

दोनों की बातें सुन गजेन्द्र का चेहरा सख्त हो गया — “मतलब… सिर्फ गायत्री देवी और कविता राठौर ही नहीं, बल्कि बहुत सी औरतों के साथ जुल्म हुआ है इस राजघराना महल में…”

गजेन्द्र की बात सुन उस बूढ़े आदमी ने धीरे से कहा— “ये महल सिर्फ एक रानी की नहीं… कई बेनाम औरतों की कब्रगाह है छोटे साहेब। और अब, वक़्त आ गया है जब हर लाश अपनी कहानी खुद सुनाएगी, हाहाहाहा।”

उस रहस्यमयी बूढ़े आदमी के इन शब्दों की गूंज के साथ महल की दीवारों भी बोलने लगी, कि तभी गजेन्द्र का फोन बजा… और सभी चौक गए।
 
गजेन्द्र ने खुद को और सामने खड़ी रिया और रेनू दोनों को शांत किया और बोला— विराज का कॉल आया है, रुको…
 
गजेन्द्र ने फोन स्पीकर पर डाला— "डीएनए रिपोर्ट आ गई है…" विराज की आवाज बहुत गंभीर थी।
 
"और?" 
 
ये सुनते ही रेनू की धड़कनों ने जैसे खुद को थाम लिया।
 
"रेनू… तुम्हारा और उस लाल पगड़ी पर लगे खून का कोई रिश्ता नहीं है। वो खून तुम्हारा नहीं… और शायद तुम्हारी मां का भी नहीं।"

विराज की ये बात सुनते ही वहां सन्नाटा पसर गया और गजेन्द्र और रिया दोनों रेनू को शकभरी नजरों से देखनें लगे। तीनों के बीच ऐसी खामोशी थी, जैसे किसी ने एक साथ उन सबकी साँसें चुरा ली हों। तभी विराज की आवाज से सन्नाटा टूटा— "अगर ये सच है, तो रेनू… क्या तुम्हारी पूरी कहानी झूठी है? आखिर कौन हो तुम?"

रेनू की आंखों से एक औरत का विश्वास लुढ़कता हुआ आंसुओं में बह गया और विराज के इस सवाल के जवाब में उसकी चीख से महल गूंज उठा— "नहीं! मैंने झूठ नहीं कहा!"

"मेरी मां गायत्री ही थीं… मुझे याद है उनके हाथों की चूड़ियां, उनके माथे का टीका, और… और वो लाल रंग जो हर पूजा में उनके सिर पर होता था, मेरी उसकी हर तस्वीर को बार-बार कई बार देखा है।"

तभी, वहां उन तीनों के अलावा एक और आवाज गुंजी, ये आवाज थी प्रभा ताई की— "गायत्री... हाँ, वहीं नाम था उस नौकरानी का जो रहस्यमयी ढंग से गायब हो गई थी। तब सबने कहा कि वो घर छोड़कर चली गई… लेकिन मैं जानती थी, वो कहीं नहीं गई थी, उसे मिटा दिया गया था…रेनू के जन्म के बाद उसे लेकर मां और पिताजी के बीच हर दिन लड़ाई होती थी, और फिर एक रात वो गायब हो गई…" 

ये बात प्रभा ताई ने सिसकते हुए कहीं, और तभी वहां गजराज सिंह आ गया, जो आज ही अस्पताल से डिसार्ज हुआ था। प्रभा ताई की बात सुन गजराज अचानक भड़क गया और बोला— "बस करो ये नौटंकी! ये राजघराना महल हर नौकरानी की औलाद को वारिस नहीं बनाएगा! गायत्री जैसी औरतों की कोई जगह नहीं थी हमारे खून में।"

गजराज की ये बात सुन गजेन्द्र तिलमिला उठा और उसने तमतमाकर पूछा— “तो क्या आपने ही गायत्री को…”
 
गजराज का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, लेकिन वो चुप रहा। उसने गजेन्द्र की बात का कोई जवाब नहीं दिया, और तभी…

फ़्लैशबैक — बीस साल पहले

एक रात, खून से सना कमरा… बीच में फर्श पर पड़ी गायत्री का अधमरा शरीर… और दरवाज़े पर बेसूध-बेजान गजराज सिंह खड़ा था। एकदम चुपचाप, खामोश, लेकिन आंखों में अपराध की आग और कपड़े खून से लथपथ और दायें हाथ में एक बड़ी सी पुश्तैनी तलवार और बायें हाथ में वही रहस्यमयी खून से सनी लाल पगड़ी थी…।

वहीं आज का दिन—

गजराज सिंह की आंखें गुस्सें से लाल थी, उसके पास गजेन्द्र के किसी सवाल का जवाब नहीं था। ऐसे में वो सबसे नजरे चुरा रहा था, लेकिन तभी रेनू उसकी तरफ देखती है और कुछ ऐसा कहती है जिसे सुन गजराज की अंतरआत्मा कांप जाती है— "आपकी चुप्पी ही आपकी गवाही है... और अब, इंसाफ सिर्फ मेरी मां का नहीं... हर उस औरत का होगा जो इस हवेली की हवस का शिकार बनी थी।"

रेनू की इस गुस्से से भरी इंसाफ की आवाज के साथ ही राजघराना के पिछवाड़े वाले गलियारे से एक डरावनी चीख गूंजती सुनाई देती है, जिसे सुन वो रहस्यमयी बूढ़ा भाग कर सबके सामने आता है और कहता है— लगता है कोई है जिसे ज़िंदा दफन किया गया है, और वो मरने से पहले कुछ बोलना चाहता है… या शायद कोई… जो मरा ही नहीं...?

गजेन्द्र, रिया, रेनू और प्रभा ताई तेज़ी से महल के पिछवाड़े की ओर दौड़े… लेकिन जब तक वो लोग वहां पहुंचे तब तक वो चीख हवाओं में गुम हो गई। चारों ने यहां-वहां चारों तरफ नजर दौड़ाई… और तभी जगंल की तरफ मुड़ रहे रास्ते का नजारा देख सबके कदम रुक गए।
 
...य...ये गड्ढा… और उसके पास ज़मीन पर पड़ा ये मोबाइल फोन…ये बोलते-बोलते गजेन्द्र ने उस फोन को उठाया तो देखा उसमें एक रिकॉर्डिंग ऑन थी।
 
रिया ने काँपते हाथों से गजेन्द्र से वो फोन ले लिया और जैसे ही उसने स्क्रीन पर नजर आ रही रिकॉर्डिंग को ‘Play’ किया, वो उसे देख चौक गई और झटके से फोन उसके हाथ से नीचे गिर गया। गजेन्द्र ने तुरंत फोन को जमीन से उठाया...वीडियो में कोई और नहीं गजेन्द्र खुद था। किसी होटल के कमरे में एक अनजान आदमी से बात करते हुए। वीडियो में से उसकी आवाज़ आई—
 
“हां, वही करो जो मैंने कहा है… कप्तान को चोट लगनी चाहिए, लेकिन दिखना चाहिए एक्सीडेंट है। बाकी पैसे फाइनल मैच के बाद मिलेंगे… इंडिया को हराना है, तो उसे हटाकर मुझे मैच का हिस्सा बनना होगा। तुम बस उतना करो, जितना मैं कह रहा हूं।”
 
रिया का चेहरा सफेद पड़ गया…
 
गजेन्द्र फटी आंखों से वीडियो को देख रहा था — "ये… ये मैंने कभी नहीं कहा… ये एडिटेड है…मैं सच कहता हूं रिया ये मैं नहीं हूं!"

गजेन्द्र अपनी सफाई में आगे कुछ कहता उससे पहले वहां पुलिस की जीप के सायरन की आवाज गूंजने लगी, जिसे सुन सभी लोग राजघरना के हॉल में आ गए, तो देखा डीआईजी चौहान हवेली के गेट पर खड़ा था और गजेन्द्र की गिरफ्तारी का वारंट उसके हाथ में था।
 
"गजेन्द्र सिंह, आप पर मैच फिक्सिंग के पुराने मामले में नए डिजिटल सबूत सामने आए हैं। कोर्ट ने आपकी बेल रद्द कर दी है….आपको अभी के अभी हिरासत में लिया जा रहा है।"

डीआईजी की बात सुन गजेन्द्र को पुलिस की मार से लेकर जबरन गवाहनामे पर साइन कराने वाले सारे दिन याद आ जाते है। जिससे उसका पूरा बदन कांपने लगता है। और यहीं सब सोच वो एक बार फिर सबके अपनी बेगुनाही पर यकीन दिलाते हुए चिल्लाता है— “ये किसी की चाल है… ये कोई फंसाने की साज़िश है!”
 
लेकिन पुलिस ने गजेन्द्र की एक नहीं सुनी और जबरन उसे चारों तरफ से घेर उसके हाथों में हथकड़ियाँ पहना दीं। ये नजारा देख जहां प्रभा ताई, रेनू और रिया हक्की-बक्की खड़ी थीं… तो वहीं मुक्तेश्वर और गजराज का चेहरा घबराहट से सफेद पड़ गया था, वो जानते थे कि इस बार ये चाल उनकी दुश्मनों की है, क्योकि हवेली के राज़ सिर्फ हवेली की ही बर्बादी का हिस्सा नहीं थे, इसके पीछे और भी कई बड़े नाम छिपे थे।

जहां एक तरफ गजेन्द्र गिरफ्तारी के बाद जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया था, तो वहीं दूसरी ओर, एक अंधेरे कमरे में एक बड़ी सी टीवी स्क्रीन पर वही वीडियो फिर से चल रहा था… और उसके सामने बैठा एक शख्स जिसका चेहरा, आधा अंधेरे में डूबा हुआ था… और वो उस वीडियो को देख धीमी आवाज़ में हँसते हुए बड़बड़ा रहा था—

"राज राजेश्वर सिर्फ मोहरा था… असली खेल तो अब शुरू हुआ है। अब हवेली का वो वारिस बर्बाद होगा, जो सच के सबसे करीब पहुंच चुका था। राजेश्वर का कंधा और गजेन्द्र निशाना...हाहाहाहा।"

इतना बोलते के साथ उस शख्स ने एक फाइल खोली, जिस पर लिखा था — “ऑपरेशन: वारिस विनाश”

इसके साथ ही उस फाइल में तीन नाम लिखे थे—

गजेन्द्र सिंह

रिया ठाकुर

रेनू देवी
 

आखिर कौन है ये शख्स… और अब क्या करने वाला है वो गजराज के परिवार के साथ? 

इन सबके बीच क्यों है रिया का नाम सिंह खानदान के वारिसों की लिस्ट में? 

वो डरावनी चीख — क्या किसी ज़िंदा लाश का इशारा थी या फिर महल में बैठा कोई अपना ही रच रहा था गहरी साजिश? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

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