कल की रात राजघराना हवेली के लिये किसी काल से कम नहीं थी। वहीं आज की सुबह हवेली की दीवारों पर सूरज की रोशनी तो पड़ी, लेकिन घर के अंदर अब भी रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई, मोहन काका ने दरवाजा खोला तो देखा गजराज सिंह की नाजायज बेटी रेनू सुबह-सुबह कहीं से लौटी थी। वो उससे कुछ पुछते या कहते उससे पहले वो वहां से सीधे हवेली के पुराने तहखाने में चली गई।
 
ये हवेली का वो खुफिया तहखाना था, जहां सिंह खानदान के नौकर भी पांव रखते वक्त डरते थे। ऐसे में रेनू ने अपने कांपते हाथों से संदूक को खोला और फिर उस पर से भारी धूल हटा उसे खोलने लगी। ना जाने क्यों उस संदूक को खोलते हुए वो काफी डरी हुई लग रही थी, लेकिन जैसे ही उसने उसे पूरा खोला उसके डर की वजह सामने आ गई-खून से सनी एक लाल पगड़ी।
 
उस पगड़ी को हाथ में लेते ही रेनू फूट-फूट कर रोने लगी... आंखों से आंसू की धार बहने लगी, लेकिन अभी भी उसकी आवाज लोहे जैसी सख्त थी। हॉल में उस लाल पगड़ी को लिये खड़ी रेनू जोर-जोर से चिल्लाकर सबको आवाज लगाती है, जैसे ही उसकी चीख सुन सब हॉल में इकट्ठा होते है वो गुस्से से तिलमिलाते हुए कहती है— “आज मैं सबके सामने वो राज खोलूंगी, जो मेरी माँ के खून से जुड़ा है। यह सिर्फ एक पगड़ी नहीं… सिंह खानदान के झूठे गौरव की लाश है।”
 
रेनू उस खून से सनी पगड़ी को टेबल पर सबके सामने रख आगे कुछ बोलने वाली ही होती है, कि तभी वहां प्रभा ताई आ जाती है। जिनकी आंखें उस पगड़ी को देखते ही लाल और चेहरा सफेद पड़ जाता है। प्रभा ताई के चेहरे का डर और बदलते हाव-भाव साफ बता रहे थे कि वो इस कहानी में कोई गवाह नहीं… शायद एक भागीदार थीं। लेकिन सच अभी जुबान पर आना बाकी था। 
 
रेनू की आंखों का गुस्सा और टेबल पर पड़ी उस खून से सनी लाल पगड़ी ने पूरी हवेली की हवा को ही बदल दिया। ऐसा लग रहा था मानो सदी पुराना राजसी गलियारा आज फिर किसी सच के बोझ से कराहने वाला था।
 
ये क्या तमाशा है रेनू, हमने ये मान लिया है कि तुम हमारे बाप के घिनौने कामो की सजा हो, लेकिन तुम्हारी इस तरह की मनमानी हम हरगिज सहन नहीं करेंगे, समझी।

"ये मनमानी नहीं प्रभा बाईसा… ये वो सच है जिसे म्हारे नाजायज बाप ने ना बल्कि इस घराने के ही कुछ लोगों ने मिलकर अंजाम दिया था। मने आज ही पता चला कि मेरी मां की शादी तो इस हवेली के अस्तबल में काम करने वाले रणविजय राठौर से हुई थी। लेकिन एक रात गजराज सिंह का दिल मेरी मां को देख कर मचल गया और वो उसे जबरन अपने साथ अपनी उसी खूफिया कोठी में ले गए और जबरदस्ती की। इसके बाद जब मेरी मां के पति रणविजय राठौर ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, तो राज राजेश्वर ने उसका साथ दिया।"

"लेकिन जिस रात मेरी मां ने मुझे जन्म दिया उसी रात से रणविजय राठौर गायब हो गया। कहां गया, जिंदा है या मर गया… किसी को कुछ नहीं पता। और आज जो ये पगड़ी आपके सामने पड़ी है ना, ये उसी कातिल की है जिसने मेरी मां को मेरे जन्म के बाद मार डाला था। यकीन ना तो चलों म्हारे साथ...”

रेनू एक सांस में पूरी कहानी सुना देती है, और उसके बाद धीमे कदमों से उस वीरान कोठरी में दाखिल होती है, जिसे हवेली में "शांति सदन" कहा जाता था — पर असल में ये जगह राजघराने के पापों की कब्र थी।

इस वक्त रेनू के हाथों में एक पुराना संदूक था, जिस पर लोहे की जंग लगी थी और वों चारों तरफ से लाल पट्टियों से बंधा हुआ था। उसे देख रेनू की आंखें गीली हो गई, लेकिन हाथ उसे खोलने के लिये ऐसे रफ्तार से चल रहे थे, जैसे आज ही सारे राज खोलने का दृढ़ संक्ल्प लेकर आई है। उसने सारी लाल पट्टियो को उधेड़ धीरे से संदूक खोला, सबकी साँसें थम गईं थी।
 
गजेन्द्र, मुक्तेश्वर, रिया — सबने संदूक के अंदर देखा… वो कुछ कहते उससे पहले ही प्रभा ताई चिल्लाकर बोलीं, ये खाली है… साफ-साफ बताओगी आखिर कौन सा तमाशा चला रखा है आज तुमने…? जब से हवेली में कदम रखा है, तब से रोज नया सर्कस खोलकर बैठ जाती हो। 

आप कितनी बुरी है प्रभा बाईसा… आपको एक औरत के साथ हुई हैवानियत और उसकी दर्दनाक मौत तमाशा लग रही है— सच कहूं मुझे ऐसा लग रहा है कि आप उस लाल पगड़ी से जुड़ा कोई तो राज जानती है और यहां इस संदूक में जो सबूत था उसे भी आपने ही गायब करवाया है।
 
रेनू के रोज-रोज के तमाशे और अपनी मां के कातिल को ढूंढने का जूनून देख आज प्रभा ताई टूट गई… और चिल्लाकर बोली—

“हां… मुझे सब पता था। मैं जानती हूं कि गायत्री की मौत… कोई हादसा नहीं थी। वो इस हवेली की इज्जत ढो रही थीं… और इसी हवेली ने उसे मार दिया। जब उसने पहली बार कहा कि वो गजराज सिंह के बच्चे की मां बनने वाली हैं… तब पिता साहब ने अपनी हवस का पर्दा डालने के नाम पर पैसे देकर उसका मुंह बंद कर दिया। लेकिन इसके बाद जो गायत्री के साथ उस बंद काली कोठरी में हुआ वो पिताजी ने नहीं, बल्कि राज राजेश्वर ने किया था और ये सब मैंने अपनी आंखों से देखा था। वो नहीं चाहता था कि इस हवेली का एक और वारिस पैदा हो...।”
 
प्रभा ताई की बाते और राज राजेश्वर की हैवानियत सुन रेनू के आंखों से आंसू बहने लगे। वहीं गजेन्द्र की आंखों में फिर से अपने चाचा राज राजेश्वर के लिये नफरत की ज्वाला जल उठी। वो कुछ कहता उससे पहले रेनू रोते हुए बोलीं— “तो इसका मतलब है आप भी शामिल थीं उस साजिश में? आप भी चाहती थीं कि मेरी मां हमेशा के लिए खामोश हो जाए? ताकि ये हवेली अपने दिखावटी संस्कारों की नकली चादर ओढ़े रह सके?”
 
प्रभा ताई अब चिल्लाईं — “नहीं! मैंने तो उन्हें बचाने की कोशिश की… लेकिन जब तक मैं कुछ करती बहुत देर हो चुकी थी। उस रात गायत्री ने मरने से पहले वो पगड़ी मेरे कमरे में भेजी थी… और साथ एक खत… जिसमें लिखा था — ‘अगर मुझे कुछ हो, तो इस पगड़ी को हवेली की सबसे ऊँची जगह टांग देना, ताकि सब जान सकें, एक नौकरानी नहीं… एक रानी मारी गई थी।’ 
 
प्रभा ताई के खुलने के साथ सिर्फ उस तहखाने की खामोशी ही नहीं टूटी, बल्कि साथ ही हवेली की नींव भी हिल गई। तभी गजेन्द्र ने धीरे से रेनू के हाथ से उस पगड़ी को अपने हाथ में लिया और बोला— “मैं वादा करता हूं बुआ सा, मैं आपकी मां को भी इंसाफ दिला कर रहूंगा, और उनके असली मुजरिम को इस हवाली के बाहर चौराहे पर टांग कर सजा दूंगा। इस हवेली ने बहुत औरतों के साथ नाइंसाफी का खेल खेल लिया, अब और नहीं।”

दूसरी ओर—

जयगढ़ की एक अंधेरी कोठरी में राज राजेश्वर अब भी खून से लथपथ चेहरा लिए एक दीवार पर कुछ नक्शा बना रहा था। उस तस्वीर को देख ऐसा लग रहा था, मानों जैसे सिंह खानदान के हर शख्स का नाम उस पर लिखा था। इतना ही नहीं वो दीवार पर लिखे उन नामों को लाल रंग के पेन से एक-एक कर काटते हुए बड़बड़ा रहा था—
 
गजेन्द्र...रिया...रेनू...प्रभा ताई...मुक्तेश्वर…और गजराज एक-एक कर सबको मौत के घाट उतारुंगा।

वो जैसे ही अपने आखिरी नाम पर पहुंचता है, वैसे ही उसकी आंखों में खून तैर जाता है और वो खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है— “अब नहीं बचेगा कोई… न पुराना वफादार, न नया वारिस। हवेली अब सिर्फ मेरी होगी… और अंतिम पूजन के दिन, जब सब भावुक होंगे… मैं खेल खत्म करूंगा। आज मैं इन सबका अंतिम संस्कार जीते जी कर रहा हूं, और कल मरने के बाद करुंगा…हाहाहाहा।”

राज राजेश्वर सत्ता की कुर्सी के लालच और राजघराना को पाने की होड़ में पागल हो चुका था। उसके पागलपल की हद उस तक बढ़ गई थी, कि वो एक-एक कर अपने परिवार के हर सदस्य को मार देना चाहता था। 

राज राजेश्वर अपने इसी पागलपन में खोया हुआ था, कि तभी उसका फोन बजा। उसने फोन की स्क्रीन की तरफ देखा तो अचानक से चेहरे पर एक प्यारी सी मासूम सी मुस्कान दौड़ गई, लेकिन जैसे ही उसने फोन उठाया… सामने वाले की आवाज सुन उसकी वहीं मासूम मुस्कान गुस्से में बदल गई।

"तुमने अब तक तलाक के पेपर साइन कर उन्हें वापस क्यों नहीं भेजा?”

"क्या तुम सच में मुझसे तलाक चाहती हो छोटी रानी सा...?”
 
“खबरदार जो दुबारा मुझे इस नाम से बुलाया। गाली लगता है ये नाम मुझे तुम जैसे नामर्द के मुंह से… भूल गए वो दिन जब अपनी सच्चाई छिपाने के लिये तुम मुझे अपने पिता के सामने बांज होने का ताना देते थे। इतना ही नहीं एक बार तो तुमने सबके सामने हाथ तक उठा दिया था मुझपर!”
 
"ल...ल...लेकिन अब मैं बदल गया हूं। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं।"

"क्या कहा मुझसे प्यार…? देखों मुंह मत खुलवाओं मेरा, क्योकि दीवारों के भी कान होते हैं, कहीं मैंने वो राज खोल दिया, तो हवेली के कुत्तें भी तुम्हारे आगे दुम हिलाना छोड़ अपनी इज्जत बचायेंगे, समझे। तलाक दो और मेरा पीछा छोड़ों"

इतना कह जहां एक तरफ राज राजेश्वर की पत्नी ने फोन काट दिया, तो वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र अपनी गर्लफ्रैंड और पिता मुक्तेश्वर के साथ मिलकर राज राजेश्वर के खिलाफ कानूनी जंग लड़ने की तैयारी कर रहा था।

दरअसल हवेली में रिया, गजेन्द्र और मुक्तेश्वर मिलकर गायत्री देवी की हत्या का मामला राजगढ़ पुलिस स्टेशन में ना सिर्फ दर्ज कराते है, बल्कि साथ ही पुलिस अफसर को गायत्री देवी के खून से सनी वो पगड़ी भी दी, जिस पर शायद कातिल के निशान हो सकते थे।

दूसरी ओर गजेन्द्र के वकील दोस्त विराज ने पहले ही उस पगड़ी से डीएनए टेस्ट करवाने की सिफारिश करते हुए रेनू का सैंपल भी अस्पताल में जांच के लिये भेज दिया था। और मुक्तेश्वर सिंह इस केस को लेकर मीडिया में बात कर, इसे लोगों की नजरों में फिर से लाना चाहता था। 

20 साल की चुप्पी अब क्रांति में बदलने जा रही थी और रेनू की मृत मां को इंसाफ मिलने की उम्मीद फिर से जाग उठी थी। तभी आधे घंटे बाद वकील विराज उस पगड़ी और डीएनए रिपोर्ट के बारे में फोन कर गजेन्द्र को बता रहा था, कि तभी रिया के फोन पर एक अज्ञात नंबर से कॉल आया। रिया ने कॉल उठाया— "हेलो?"

फोन के दूसरी ओर से एक धीमी, सिहराने वाली आवाज आई — “अगर अपनी मां जैसी मौत नहीं चाहिए, तो उस पगड़ी को वहीं छोड़ दो जहां से लाई थी… वरना अगला खून तुम्हारा होगा। और हां, याद रखना इस बार सिर्फ एक लाल पगड़ी नहीं, पूरी हवेली खून में रंगी होगी हाहाहाहा।”
 
उस हैवानियत से भरी हंसी के साथ फोन कट गया।
 
रिया का चेहरा सफेद पड़ गया। अपनी गर्लफ्ररैंड रिया को घबराता देख गजेन्द्र भागकर उसके करीब आया और उसे गले से लगाकर पूछा— "क…कौन था?" 

गजेन्द्र की आवाज में घबराहट थी, क्योंकि वो रिया से अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था। लेकिन वो अपनी मां जानकी, रेनू की मां और रिया की मां तीनों के कातिल को भी हर हाल में सजा दिलाना चाहता था। 

तभी डरी-सहमी रिया कुछ बोलने ही वाली थी कि अचानक महल की बत्ती गुल हो गई। चारों तरफ अंधेरे की चादर फैल गई। इसी बीच अचानक से किसी की तेज़ कदमों की आहट सुनाई दी।

फिर अचानक, महल के ऊपरी हिस्से से एक चीज़ ज़ोर से नीचे गिरी। सब भागकर उसे देखने पहुंचे तो फोन की लाइट जलाकर देखा कि वो गायत्री देवी की एक पुरानी तस्वीर थी, जिसकी आँखों पर लाल स्याही से "X" बना हुआ था।
 
रेनू ने झट से फोन की लाइट को महल की दीवारों के चारो तरफ घुमाया। तो उसने देखा कि एक दीवार पर किसी ने ताज़ा-ताज़ा खून से लिखा था—

“अब अगला नंबर तेरा है... रानी नहीं, क़ुर्बानी बनेगी तू।”

ये पढ़ते ही सभी लोग सन्न रह गए, रेनू ने कांपते होंठों से फुसफुसाते हुए कहा— “ये राज राजेश्वर नहीं है… ये कोई और है… कोई ऐसा, जो इस हवेली से भी ज़्यादा इसके पापों को जानता है। वो हमारी नजरों के सामने है और हम उसे पहचान नहीं पा रहें।”
 
तभी सबको दूर कहीं एक परछाई दिखी, चारों भागते हुए उस दिशा में गए। तो देखा एक बुज़ुर्ग आदमी, जो हवेली के तहखाने के पास खड़ा मुस्कुरा रहा था।

 

आखिर कौन है ये बूढ़ा आदमी

क्या कनेक्शन है इसका हवेली में मरने वाली औरतों से

क्या होगा गजेन्द्र की इस इंसाफ की लड़ाई में… कहीं वो दूसरी औरतों को इंसाफ दिलाने में खो तो नहीं बैठेगा अपना पहला सच्चा प्यार? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।

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