गजेन्द्र की आंखों में आग थी, लेकिन दिल अंदर से बर्फ-की तरह जम चुका था। गजराज सिंह स्ट्रेचर पर लेटा था, मगर आंखों में मौत से पहले एक गहरा बोझ तैर रहा था। वहीं जब गजेन्द्र को अपनी मां के साथ हुए हादसे और उसमें अपने दादा साहेब गजराज के भी शामिल होने का पता चला, तो वो उन्हें अस्पताल में अकेला छोड़कर जाने लगा। ऐसे में गजराज नें अपने पोते को रोकने के लिये उसकी कलाई को कसकर पकड़ लिया और कांपती हुई आवाज से फुसफुसाते हुए कहा— “गजेन्द्र… तुझे जो पता चला, वो पूरा सच नहीं था। हां, जानकी के साथ जो हुआ, वो हादसा नहीं था… और हां... उस रात मैं भी वही था।”
अपने दादा के मुंह से ये बात सुनते ही गजेन्द्र का चेहरा सफेद हो गया और उसने पूछा, “मतलब… दादा साहब, आप… आप क्या कहना चाह रहे हैं?”
गजेन्द्र का ये सवाल सुनते ही गजराज की आंखों से आंसू बहने लगे और फिर जो उस रात का राज गजराज ने खोला उसे सुन मुक्तेश्वर के भी कान सुन्न पड़ गए।
“दरअसल उस रात तेरी मां तुझे जन्म देने वाली थी, और तेरे पापा मुक्तेश्वर रेस फिक्सिंग केस में जेल में बंद थे। ऐसे में राज राजेश्वर तेरी मां के साथ अस्पताल में था, लेकिन वो अकेला नहीं था… मैं भी वहां था। और मैंने… मैंने भी जानकी को रोकने की कोशिश नहीं की…”
रोकने की कोशिश… आखिर ऐसा क्या गलत कर रही थी मेरी मां, जो आप उन्हें रोकना चाहते थे?
दरअसल जानकी की प्रेगनेंसी का 7वां महीना चल रहा था और तेरी मां को तेरे चाचा का एक बहुत बड़ा राज़ पता चल गया, जिसके बाद उसने आधी रात महल छोड़कर जाने का फैसला कर लिया। मैं हमेशा से तेरी मां को एक बहू के तौर पर पसंद नहीं करता था, ऐसे में मैंने भी उसे जाने से नहीं रोका।
लेकिन आधी रात जैसे ही वो अपना बैग लेकर महल की सीढ़ियों से उतर रही थी, तभी उसका पैर फिसल गया। वो दर्द से चिल्लाई तो मैं भगता हुआ अपने कमरे से आया। देखा हॉल में तेरी मां औंधे मुंह गिरी पड़ी थी। आनन-फानन में हम उसे अस्पताल लेकर आये, जहां डॉक्टरों ने कहा कि जानकी की हालत बहुत खराब है, खून बहुत बह चुका है, और अब किसी एक को ही बचाया जा सकता हैं।
चुप मत होइए दादा साहेब… आगे क्या हुआ वो बताइए?
उसके बाद राज राजेश्वर ने अपने एक डॉक्टर दोस्त को बुलाया, जिसने कहा कि अगर जानकी को डिलवरी से पहले एक खास इंजेक्शन दे दिया जाये तो मां और बच्चा दोनों बच जायेंंगे। ये सुनते ही मेरे अंदर पोते का लालच जाग गया। लेकिन मुझे नहीं पता था कि वो इन्जेक्शन क्या है, मेरे पास आधे घंटे बाद सिर्फ ये खबर आई कि तेरी मां तुझे जन्म देकर हार्ट अटैक से मर गई।
गजराज की ये बातें सुन गजेन्द्र कुछ पल के लिए पत्थर बन गया… लेकिन तभी उसकी चीख के साथ वहां की खामोशी का मौन टूटा- “क्यों?”
गजेन्द्र की आवाज में कांपते हुए तूफान की आहट थी।
गजराज कांपते हुए बोले— “क्योंकि जानकी राजघराना के बड़े राज जान चुकी थी, ऐसे में वो राजगद्दी को त्यागना चाहती थी। उसने कहा था कि वो ये सत्ता, ये महल, और ये साजिशों से भरा परिवार छोड़ना चाहती है… और तुम्हें भी इस जहरीली विरासत से दूर ले जाना चाहती थी। मैं डरा हुआ था… कि मेरा पोता मेरी आँखों के सामने इस खानदान से हमेशा के लिए दूर चला जाता। उस समय मैंने चुप रहना बेहतर समझा… लेकिन उस खामोशी की कीमत जानकी ने अपनी जान देकर चुकाई, क्योंकि उस इंजेक्शन का पूरा सच मेरे सामने तेरी मां की मौत के बाद आया।”
गजेन्द्र के हाथ धीरे-धीरे कांपने लगे। उसने एक झटके में अपने दादा का हाथ झटका और गुस्से में दूर फेंक दिया और चिल्लाकर बोला— “आज से मेरा और आपका रिश्ता खत्म दादा साहेब… लेकिन हां मैं अब उस राजगद्दी और सिंह खानदान के सारे हक अपने चाचा राज राजेश्वर से छीन कर रहूंगा। जिस तरह उन्होंने मेरी मां से उनकी सांसे छीनी, मैं उनसे उनकी हर प्यारी चीज छीन लूंगा।”
इतना कह गजेन्द्र वहा से चला गया। गजराज चीखता रहा…लेकिन उसने मुड़कर भी नहीं देखा। वहीं बगल में खड़ा मुक्तेश्वर भी कुछ नहीं बोला और गजराज अपने पोते को जाता देख चिल्लाता रहा— “गजेन्द्र… बेटा… मत जा… मैं तेरी मां का कातिल नहीं हूं, मैं तो मजबूर था…और उसने मुझे भी धोखे में रखा था।”
लेकिन गजेन्द्र नहीं रुकता और सीधे राजघराना महल पहुंच जाता है, जहां जाते के साथ वो अपनी मां के कमरे में जाकर पूरे पूजा-निष्ठान के साथ अपनी मां की आत्मा को अंतिम विदाई देता है। पूजा के बाद वो महल के हर उस कोने को बंद कर देता है, जहां से उसकी मां की आखरी दर्दभरी यादें जुड़ी थी।
तभी गजेन्द्र का फोन बजता है, जिसकी रिंगटोन सुन गजेन्द्र अपनी मां की यादों से बाहर आता है।
कहां हो, जल्दी मेरे घर पहुंचों… हमे आज के आज जयगढ़ के लिये निकलना है।
ये फोन कॉल गजेन्द्र के वकील और उसके सबसे खास दोस्त विराज प्रताप राठौर का था। विराज गजेन्द्र को उसके मैच फिक्सिंग केस से निकालने के लिये किसी से मिलवाने जयगढ़ ले जाना चाहता था, लेकिन गजेन्द्र साथ जाने से मना कर देता है।
सॉरी दोस्त मैं आज कहीं नहीं जाना चाहता, प्लीज मुझे बस आज रात के लिये अकेला छोड़ दो।
गजेन्द्र इतना कह फोन कांट देता है, जिसके बाद विराज तुरंत उसकी गर्लफरैंड रिया को फोन लगाता है। रिया उसे आज महल में जो कुछ तमाशा हुआ उसके बारे में बताती है, जिसे सुन विराज समझ जाता है कि गजेन्द्र इस वक्त अपने आपे से बाहर होगा और ऐसे वक्त में उसे जयगढ़ ले जाना सही नहीं होगा।
विराज रिया से बात करने के बाद तुरंत गजेन्द्र के पापा मुक्तेश्वर को फोन लगाता है, जो अपने बेटे को इस केस से निकालने के लिये जयगढ़ जाने के लिए मान जाते हैं।
कुछ दो घंटे कार के सफर के बाद मुक्तेश्वर विराज के साथ बड़ी-बड़ी राजनीतिक हवेलियों के बीच बने एक पुराने बंगले में दाखिल होता है, जहां एक आदमी पहले से उसका इंतज़ार कर रहा था। ये आदमी कोई मामूली हस्ती नहीं था, इसका नाम था— विक्रम दामोदर, जिसे जयगढ़ का कुख्यात राजनीतिक दलाल भी कहा जाता था।
विराज मुक्तेश्वर को धीरे से कान में कहता है— अंकल ये ही है जो गजेन्द्र को इस केस से हमेशा के लिये बाहर निकाल सकते है। मेरे पापा के साथ इसके कनेक्शन बहुत अच्छें है, तो मैंने ही पापा से गजेन्द्र के लिये इनसे मदद मांगने को कहा। जानते है इनके पास वो जादुई ताकत थी — जो चाहे, तो बड़े से बड़े केस को चुटकी बजाते ही रफा-दफा कर दे।
विराज की बात सुन मुक्तेश्वर ने तुरंत उसकी आंखों की तरफ देखा और पूछा— “अच्छा, ऐसी कौन सी ताकत है इनके पास… क्या ये कानून से भी बड़े है?”
मुक्तेश्वर की ये बात सुन जहां विराज का मुंह बन गया, तो वहीं उनके पीछे खड़ा उन दोनों की बातें सुन रहा विक्रम दामोदर मुस्कुराकर बोला — “कानून की किताबों से नहीं, जेबों से फैसले निकलवाता हूं मैं मुक्तेश्वर साहब। चार करोड़… और केस खत्म। मुझे आपके बेटे के केस के बारे में कल ही विराज राठौर ने सब बता दिया था।
"अच्छा, क्या बताया वैसे विराज ने आपको…? और कैसे सॉल्व करेंगे आप मेरे बेटे का केस...?”
लगता है आपको मेरी पहुंच और पहचान पर शक है, तो बता दूं मैंने कल ही आपके बेटे के केस में गवाही देने वाले गवाह को विदेश भेज दिया। साथ ही आज सुबह ही सारे रिकॉर्ड्स भी गायब करवा दिये। अब बस आप चार करोड़ हाथ में रखिये, फिर होगा जज का ट्रांसफर… और केस खत्म।”
विक्रम दामोदर की बात सुन जहां विराज खुशी से भारी सांस लेता है, तो वहीं मुक्तेश्वर गुस्से भरी नजरों से उसे घूरता है और कहता है— “तुम जानते भी हो मैं कौन हूं… और तुम किसके केस को इस तरह रिश्वत लेकर रफा-दफा कर रहे हों।”
मुक्तेशर के तेवर और गुस्सा देख विक्रम दामोदर भड़क गया और चिल्लाकर बोला- "अगर इतने ही बड़ी हस्ती हो, तो क्यों कोर्ट के धक्के खा रहे हो… और क्या करने मेरे दरवाजे पर नाक रगड़ने आये हो। या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि जेब में चार करोड़ नहीं है और मुफ्त में मुझसे भीख मांगने आ गए हो।"
विक्रम दामोदर बोले जा रहा था, विराज ने उसे कई बार रोकने की कोशिश की लेकिन वो तो जैसे अपने पैसे और अपनी पहुंच के घमंड में चूर-चूर था। कि तभी वहां शहर के डीआईजी की एंट्री हुई, जिसने आते ही विक्रम से हाथ मिलाया। लेकिन तभी उसकी नजर विक्रम के सामने खड़े मुक्तेश्वर पर पड़ी और डीआईजी ने तुरंत उसे सलाम ठोका और जयगढ़ आने की वजह के बारे में पूछा।
छोटे सरकार आप… आप यहां कैसे?
गलती से डीआईजी साहब…आप मीलिये द पॉलिटिशयन किंग विक्रम दामोदर से…मैं चलता हूं।
इतना कह जहां मुक्तेश्वर वहां से जाने लगा, तो वहीं डीआईजी ने धीरे से विक्रम के कानों में कहा— यहीं खड़े रहोगे क्या…? छोटे सरकार को बाहर तक छोड़ने चलो…
दुबारा छोटे सरकार सुनते ही विक्रम भड़क गया और डीआईजी पर चिल्लाते हुए बोला— कौन है ये छोटे सरकार.. और क्या तुम इस बूढ़े के पीछे दुम हिलाये फिर रहे हो?
विक्रम की ये बात सुनते ही डीआईजी पलटता है और उसके हाथ को दूर झटकते हुए कहता है— द राजगढ़ किंग मुक्तेश्वर सिंह सन ऑफ गजराज सिंह।
डीआईजी की बातें विक्रम के कानों में तीर की तरह जाकर चुभती है और वो भागता हुआ मुक्तेश्वर की कार के पास जाता है और हाथ जोड़कर बैठ जाता है- माफी चाहता हूं छोटे सरकार, जो मैंने आपको पहचाना नहीं, प्लीज मुझे माफ कर दीजिये।
विक्रम दामोदर मुक्तेश्वर की कार के आगे अपने घुटनों पर बैठा माफी मांगता रहता है, लेकिन वो उससे कुछ कहे बिना विराज से कार चलाने को कहता है और चुपचाप वहां से चला जाता है।
दूसरी ओर रिया गजेन्द्र को बीती बातों से बाहर निकलने के लिये समझा रही होती है। साथ ही वो उससे ये भी कहती है कि वो उसके और उसके चाचा राज राजेश्वर की लड़ाई के बीच कभी नहीं आयेगी। पर रही बात उसके दादा की, तो उनसे गलती अंजानें में हुई और गजेन्द्र को उन्हें माफ कर देना चाहिए। तभी कमरे के दरवाजे पर किसी के दस्तक देने की आवाज आती है।
"आओ विराज, बताओं क्या हुआ केस का और कैसी रही उस पॉलिटिशियन से मुलाकात?”
"मुलाकात की तो पूछो ही मत दोस्त, तुम्हारे पापा ने उस बेचारे को अपने घुटनों पर बैठ माफी मांगने से मजबूर कर दिया था। लेकिन वो कहानी मैं तुम्हें बाद में बताउंगा… पहले तुम ये जान लो कि विक्रम को पैसे देकर हम वो केस खत्म कर सकते थे.. सच में मेरा यकीन करो।"
विराज की पैसों के लेन-देन की बात सुन कमरे में सन्नाटा छा गया और गजेन्द्र अपना सर पकड़ कर बैठ गया। तभी विराज ने गजेन्द्र की ओर देखा और बोला— “क्या करना है? कुछ तो बोलो”
गजेन्द्र कुछ कहने ही वाला था कि मुक्तेश्वर वहां आ गया और दरवाजे पर जोरदार घूसा मारा और चिल्लाकर बोला— “नहीं!”
सब चौंक गए… गजेन्द्र और रिया दोनों घबराकर खड़े हो गए। ये देख विराज के चेहरे पर भी पसीना आ गया।
मुक्तेश्वर की आंखों में एक आग थी जो वर्षों की सच्चाई के बोझ से जल रही थी— “अगर हम जीतते हैं… तो ये सिर्फ एक मुकदमा नहीं, हमारी आत्मा का इंसाफ होगा। ये वो केस है जो साबित करेगा कि खानदान के झूठ के खिलाफ भी कोई खड़ा हो सकता है। नहीं चाहिए हमें वो जीत जो बिकती हो। अगर झूठ से जीतना था, तो मैंने दो दशक का अकेलापन क्या झेला… और क्यों मेरे बेटे ने इतने महीने जेल की सलाखों के पीछे काटें विराज? मैं भी सिंह खानदान के नाम पर अपने बेटे को एक झटके में इस केस से आजाद करा सकता हूं।”
मुक्तेश्वर की ये बात सुन विराज और गजेन्द्र ने गर्दन झुका ली। तभी गजेन्द्र अपने पापा के गले लगते हुए बोला— “पापा… आपने आज फिर सिखाया कि ताकत कुर्सी से नहीं, इंसाफ से आती है।”
रिया ने मुक्तेश्वर की तरफ देखा, मुस्कराई और बोलीं—
“अब ये कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं… एक आंदोलन बन चुकी है। एक तरफ हम तुम्हें इंसाफ दिलायेंगे और दूसरी ओर तुम्हारे दादा की नाजायज बेटी रेनू को भी उसके सारे जायज हक दिलायेंगे और खत्म करेंगे सिंह खानदान की सत्ता का ये गंदा-घिनौना खेल।”
एक तरफ यहां गजेन्द्र ने रिया का हाथ थाम अपने दादा गजराज और अपने चाचा राज राजेश्वर के खिलाफ जंग का आगाज कर दिया था, तो वहीं दूसरी ओर जयगढ़ के एक अंधेरी काली कोठरी में बैठा राज राजेश्वर वापस राजघराना आने की नई साजिश रच रहा था।
वो अपने नए साथियों के साथ बैठा था। उसका चेहरा अब भी घायल था, मगर निगाहें तेज़ सर्ख लाल… तभी उसने अपने आदमियों को अपने मोबाइल पर एक फोटो दिखाई — और बोला खत्म कर दो इसको, जहां मिले जिस हालत में मिले… बस मार डालना।
राज राजेश्वर के हाथ में उस फोटो को देख सारे लोग चौंके। राज राजेश्वर की आंखों का पागलपन अब उसके फैसलों में झलकने लगा था— “अब खेल सिर्फ कुर्सी का नहीं, खून का होगा… और मैं इसका आखिरी पन्ना खुद लिखूंगा, वो भी उन सबके अंतिम संस्कार की पूजा के दिन….हाहाहाहा”
आखिर क्या करने वाला है राज राजेश्वर?
उसने गुंडो को सबसे पहले किसे मारने की सुपारी दी है?
और आखिर कैसे गजेन्द्र निकलेगा मैच फिक्सिंग के केस से बाहर और कैसे बचायेगा पूरे सिंह परिवार को?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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