देश पर इस समय अंदरूनी राजनीति से लेकर बाहरी खतरों तक, हर दिशा में संकट मंडरा रहा था। सीमा पर खतरा मंडरा रहा था, और देश की सुरक्षा एक अनजान दुश्मन के सामने खड़ी थी। यह संकट किसी के लिए आपदा थी , तो किसी के लिए अवसर।  इस माहौल में डिफेंस मिनिस्टर विक्रम सिन्हा का चिंतित होना स्वाभाविक था। वह इस वक्त अपने ऑफिस में अकेले बैठे थे। कमरे में हल्की रोशनी थी, जो मेज पर बिखरी फाइलों पर पड़ रही थी। फाइलों के कवर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था—"कॉन्फिडेंशियल "।

विक्रम के हाथ में एक पेन था, और वह तेजी से कागज पर कुछ लिख रहे थे। यह कोई साधारण कागज नहीं था; यह एक योजना थी—एक ऐसी योजना, जिसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया जा रहा था। कमरे में काफ़ी भारी सन्नाटा था।  

विक्रम ने मेज पर रखी एक फाइल को खोला और उसमें रखे दस्तावेज़ों को ध्यान से पढ़ा। यह दस्तावेज़ देश की सुरक्षा से जुड़े हर उस पहलू का खाका था, जो इस समय खतरे में थे।  

उसके बाद उन्होंने मेज पर रखी गुप्त फाइलों को व्यवस्थित किया और अपनी डेस्क के ड्रॉर में लॉक कर दिया। एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने फोन उठाया और आयुष सेउसके बाद उन्होंने मेज पर रखी गुप्त फाइलों को व्यवस्थित किया और अपनी डेस्क के ड्रॉर में लॉक कर दिया। एक गहरी सांस लेते हुए उन्होंने फोन उठाया और आयुष को ऑफिस में आने को कहा।  

कॉल काटने के कुछ ही मिनटों में ऑफिसर आयुष वर्मा उनके ऑफिस में दाखिल हुआ। दरवाजे के अंदर आते ही उसने विक्रम को सलामी दी और कहा, "जय हिंद सर, ऑफिसर आयुष वर्मा रिपोर्टिंग!"

विक्रम ने सिर हिलाते हुए जवाब दिया, "जय हिंद, ऑफिसर।" उन्होंने अपने सामने रखा एन्वेलप उठाया और आयुष के हाथों में थमाते हुए शांत स्वर में कहा,

विक्रम: “आयुष, इस लेटर को अभी राष्ट्रपति जी तक पहुंचाओ। ध्यान रखना, यह सीधे उनके हाथों में ही जाना चाहिए।”

आयुष ने एन्वेलप को संभालकर लिया और सिर हिलाकर सहमति जताई। फिर  विक्रम ने मेज पर पड़ी एक लिस्ट उठाई और उसकी ओर बढ़ा दी।

विक्रम: "और इस लिस्ट में लिखे सभी व्यक्तियों की मौजूदा पोस्टिंग, उनके घर के पते, और उनसे जुड़ी हर जानकारी की फाइल शाम तक मेरी डेस्क पर चाहिए,"  

आयुष ने लिस्ट को हाथ में लिया और एक नजर दौड़ाई। लिस्ट में शामिल नाम देखकर वह कुछ पल के लिए रुक गया। यह नाम सामान्य नहीं थे। हर नाम उसके लिए चौंकाने वाला था। आयुष ने थोड़ा झिझकते हुए विक्रम की ओर देखा और धीमी आवाज में कहा, "सर, अगर आप बुरा न मानें, तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि आपको इन लोगों की जानकारी क्यों चाहिए?"

विक्रम की गंभीर निगाहें अब आयुष पर टिकी थीं। उन्होंने आयुष को कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन उनकी आंखों में ऐसा कुछ था, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि यह सवाल दोहराने की जरूरत नहीं थी।  आयुष ने आगे कुछ पूछना सही नहीं समझा और फिर एक बार सलाम करते हुए बोल उठा, ठीक है सर ! मैं अभी राष्ट्रपति भवन के लीए निकलता हूँ ! जय हिन्द !” आयुष एन्वेलप और लिस्ट लेकर जाने के लिए पलटा ही था कि विक्रम की आवाज ने उसे रोक दिया।

विक्रम:"अरे हां, आयुष, कल सुबह तैयार रहना। हम एक लंबी ट्रिप पर निकल रहे हैं।"

आयुष ने आदेश को समझते हुए सिर हिलाया, "जी सर," कहा, और कमरे से निकल गया। वहीं, विक्रम सिन्हा अब अपने ऑफिस की खिड़की के पास खड़े हो गए। उसी वक्त उनकी नजर अचानक टीवी स्क्रीन पर पड़ी। एक प्रोग्राम चल रहा था, जिसमें अलग-अलग  शक्तियों से लैस लोग अपनी एक टीम बनाते हैं और देश पर आने वाले खतरों का सामना करते हैं। विक्रम ने प्रोग्राम को गौर से देखा। उनकी आंखों में धीरे-धीरे एक नई चमक उभरने लगी। उनके दिमाग में एक विचार आया और उन्होंने खुद से कहा, 
 

विक्रम: "क्यों न एक टीम बनाई जाए जो देश के लिए किसी भी बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहे? ऐसी टीम, जिसके बारे में किसी को पता ना हो।  

अगली सुबह तक, उनकी डेस्क पर उन सभी लोगों की पूरी जानकारी थी जो उन्होंने आयुष से मांगी थी। विक्रम सिन्हा और आयुष वर्मा अपने मिशन पर निकल पड़े। उनका लक्ष्य स्पष्ट था—देश के जांबाज सैनिकों की एक टास्क फ़ोर्स बनाई जाए जो  किसी साधारण दस्ते से अलग हो। एक ऐलीट फ़ोर्स जो कहीं भी, कभी भी, देश कि रक्षा के लिए प्रस्तुत रहें! इसके लिए उन्हें ऐसे सैनिकों की तलाश थी, जो एक्स्ट्रा ऑर्डनेरी टैलेंट और साहस से लैस हो।

उनकी पहली मंजिल थी उत्तरी सरहदें, जहां के जवान अपनी वीरता और साहस के लिए जाने जाते थे। यह वह इलाका था, जो हमेशा दुश्मनों की निगाह में रहता था। विक्रम और आयुष वहां के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से मिलने पहुंचे, जो सालों से सरहदों पर दुश्मनों के खिलाफ ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे।

यह अधिकारी साधारण लोग नहीं थे। कुछ ने अपनी पहचान छुपाकर दुश्मन देशों में जासूस की तरह सालों तक काम किया था। कुछ ने दुश्मनों के ठिकानों पर अकेले ही हमला करके असंभव दिखने वाले मिशन को पूरा किया था, हालांकि, एक समस्या जल्द ही सामने आ गई। इन लोगों के पास अनुभव की कोई कमी नहीं थी, लेकिन  शारीरिक तौर पर अभी उतना मजबूत नहीं थे जितना विक्रम अपनी टीम के लिए चाहते थे।  

विक्रम: “ये लोग देश के असली नायक हैं। इनके अनुभव हमें इस मिशन में मदद करेंगे, लेकिन हमें ऐसे जवान चाहिए, जो बैटल्फील्ड में उतर सके, नई सोच के साथ।”

आयुष ने सहमति में सिर हिलाया। दोनों ने इस इलाके के कुछ और जवानों से मुलाकात शुरू की। ये जवान विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों में प्रशिक्षित थे—ठंडी बर्फ़ीली वादियों में गश्त लगाना, कठिन चढ़ाई वाले इलाकों में ऑपरेशन, और दुश्मन की नजर से बचते हुए अपने मिशन को पूरा करना।

हर मुलाकात के साथ विक्रम और आयुष को एहसास हो रहा था कि उन्हें ऐसे सैनिक चाहिए थे, जो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत हों।  

पूर्वी राज्यों में पुलिस और सेना के अफसरों से मुलाकात करने के बाद, विक्रम और आयुष दक्षिण भारत के सफर पर निकल पड़े। यहां उन्होंने माफिया के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने वाले अफसरों और जवानों से मुलाकात की। हर जगह, हर बातचीत में, विक्रम के सवाल ‘टू द पॉइंट’ थे। वह हर व्यक्ति को, उनकी क्षमता को समझने की कोशिश कर रहे थे।

दक्षिण भारत के सफर के दौरान, गाड़ी के भीतर का माहौल कुछ देर के लिए शांत था। आयुष खिड़की से बाहर रास्ते को देख रहा था, लेकिन उसके मन में सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे। आयुष ने हिम्मत कर के विक्रम से पूछा "सर, बुरा न मानें तो एक बात पूछूं?" विक्रम, जो अब तक अपनी फाइलों में डूबे हुए थे, बिना उसकी ओर देखे, धीमी आवाज में कहा "पूछो।"

आयुष ने कुछ पल रुककर कहा, "सर, पिछले कई दिनों से हम इतनी जगह घूम चुके हैं। हमने न जाने कितने ही सेना अधिकारियों और काबिल जवानों से मुलाकात की है। आप उनसे कुछ सवाल पूछते हैं और फिर बिना कोई फैसला सुनाए वहाँ से चले आते हैं। क्या मैं जान सकता हूं कि आखिर आपको कैसे लोगों की तलाश है?"

आयुष की आवाज में उत्सुकता और हल्की झिझक थी। उसने सवालभरी नजरों से कभी विक्रम को देखा, तो कभी रास्ते को। विक्रम ने एक पल के लिए अपनी फाइल बंद की, और आयुष की ओर मुड़े।

विक्रम: “आयुष, तुमने सही कहा। हमने लगभग पूरा भारत घूम लिया है। न जाने कितने काबिल और जांबाज जवानों से मिले हैं। हर जगह मुझे उनकी काबिलियत पर गर्व हुआ है। वे सभी अपने-अपने क्षेत्रों में बेहतरीन हैं लेकिन जब मैं उनसे सवाल पूछता हूं, तो मुझे पता चलता है कि कहीं न कहीं वे इस मिशन के लिए सही नहीं हैं। यह मिशन एक साधारण टीम का नहीं है। यह उस तरह के लोगों की टीम है, जो हर चुनौती से ऊपर उठकर सोच सकें, जिनके लिए देश पहले हो, और बाकी सब बाद में। वे केवल काबिल नहीं, बल्कि भरोसेमंद भी होने चाहिए, इसलिए  मैं बातों को वहीं छोड़ देता हूँ, ताकि वह अपनी जगह पर बेहतर तरीके से अपना कर्तव्य निभा सके। वैसे, जहां भी हम गए, वहाँ से कुछ नये चेहरे जरूर चुने हैं लेकिन अब तक मुझे ऐसी कोई टीम नहीं मिली, जिस पर मैं पूरी तरह से आंख बंद करके भरोसा कर सकूं..  जैसे मैं तुम पर करता हूं।”

आयुष ने विक्रम के शब्द सुने, और उसके चेहरे पर गर्व साफ दिखाई देने लगा। वह जानता था कि विक्रम का यह मिशन आसान नहीं था।  जैसे-जैसे सफर आगे बढ़ा, चुनौतियां विक्रम और आयुष के लिए और भी बढ़ती गईं। पूरे भारत में सैकड़ों सैनिकों से मिलने के बावजूद, विक्रम को वह नहीं मिला जिसकी उन्हें तलाश थी।

आखिरकार, सफर के अंत तक उनकी यह तलाश पूरी हो गई। पूरे भारत से, उन्होंने चार ऐसे सैनिकों को चुना, जो उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह से खरे उतरे।  

पहला सैनिक: जासूसी में माहिर। यह व्यक्ति जानकारी जुटाने और छिपे दुश्मनों का पता लगाने में सबसे काबिल था।

दूसरा सैनिक: टेक्नोलॉजी और साइबर इंटेलीजेंस का विशेषज्ञ। उसने कई साइबर हमलों को नाकाम किया था और दुश्मन के डिजिटल नेटवर्क में सेंध लगाने में महारत हासिल थी।

तीसरा सैनिक: युद्ध के मैदान में उसे टैन्क कहा जाता है । उसने अपने साहस और लीडरशिप स्किल्स से कई मिशनों को सफल बनाया था।

चौथा सैनिक: मनोवैज्ञानिक खेल का माहिर। वह दुश्मनों की सोच और रणनीतियों को समझने और उनके चक्रव्यूह को तोड़ने में माहिर था।

इन चारों को पूरे भारत के बेहतरीन सैनिकों में से चुना गया। जब विक्रम और आयुष अपने सफ़र से लौटे, तो आयुष ने उन चार सैनिकों की विस्तृत रिपोर्ट विक्रम को दी।  


विक्रम: “अब ये चार योद्धा ही देश को सुरक्षित रखने में मेरी मदद करेंगे।”

असली सवाल यह था कि क्या ये चार सैनिक विक्रम की उम्मीदों और अपनी काबिलियत पर खरे उतरेंगे?  

और सबसे ज़रूरी सवाल - ये चार, खास लोग आखिर कौन थे? वह कैसे देश की सुरक्षा की सबसे मजबूत ढाल बनेंगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए

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