“बड़े दुख के साथ हम पूरे देश को सूचित करना चाहते हैं कि आज सुबह असेंब्ली हॉल में देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री अर्जुन मल्होत्रा का निधन हो गया है। हमें यह बताते हुए अत्यंत दुख हो रहा है कि आज हमने एक सच्चे और ईमानदार नेता को खो दिया है।” उनकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता। आज देश ने अपना सच्चा रखवाला खो दिया।”“कैसे हो सकता है कि संसद जैसे सुरक्षित स्थान पर ऐसा हादसा हुआ?” “क्या यह वास्तव में एक हादसा था, या फिर इसके पीछे कोई गहरी साजिश है?”
टेलीविज़न स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ के बड़े-बड़े अक्षर चमक रहे थे। हर चैनल पर बस यही चर्चा थी। उनके जाने की खबर ने पूरे देश को जैसे झकझोर कर रख दिया था। सड़कों पर लोग गमगीन खड़े थे। कहीं-कहीं लोग उनके चित्र पर फूल चढ़ा रहे थे, तो कहीं मोमबत्तियों से श्रद्धांजलि दी जा रही थी।
देशभर में शोक की लहर दौड़ गई थी। स्कूलों, कॉलेजों, और सरकारी कार्यालयों में झंडे आधे झुका दिए गए थे। विक्रम, जो उनके सबसे करीब था, इस वक्त हर खबर को चुपचाप देख रहा था। उसकी आंखों में एक अलग सी बेचैनी थी। वह यकीनी तौर पर जानता था कि यह हादसा नहीं था, बल्कि साजिश थी।
वहीं दूसरी ओर राजनीतिक माहौल में गर्माहट बढ़ी हुई थी। देश के प्रधानमंत्री की इस तरह असेंबली में मौत होने से सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठ रहे थे।
इसके साथ ही हर तरफ एक अनकही चर्चा का विषय यह भी था कि —"अब कौन बनेगा प्रधानमंत्री?"
देश के सबसे ऊंचे पद के लिए बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियां अपनी चालें चलने में जुट गई थीं। दिन हो या रात, हर तरफ नेताओं की गुप्त बैठकों का दौर शुरू हो चुका था। बंद दरवाजों के पीछे नई-नई योजनाएं बन रही थीं। यह कोई साधारण चुनाव नहीं था; यह देश के सबसे बड़े सिंहासन के लिए खेला जा रहा एक खतरनाक खेल था।
दूसरी ओर, डिफेंस मिनिस्टर विक्रम सिन्हा एक अलग ही युद्ध लड़ रहे थे—अपने अंदर के गहरे दुख और फैल्यर से। अर्जुन मल्होत्रा न केवल उनके प्रधानमंत्री थे, बल्कि उनके सबसे करीबी दोस्त भी। उनकी आंखें लाल थीं, और माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।
प्रधानमंत्री की मौत के बाद जो जो हुआ वह किसी फिल्म की तरह बार-बार विक्रम के दिमाग में घूम रहा था। उनका चेहरा नीला पड़ना, डॉक्टर का वह शांत लेकिन भयानक बयान—“वह हमें छोड़ चुके हैं।” विक्रम ने गुस्से में बगल की मेज पर जोर से मुक्का मारा। मेज पर रखे कागज और पेन फर्श पर गिर गए। उनकी सांसें तेज हो गईं। फिर उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया, जैसे अपने आप पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हों।
विक्रम : "मैं बेवकूफ हूँ! आखिर ऐसी गलती मुझसे कैसे हो सकती है?” "यह सब मेरी जिम्मेदारी थी। मैंने ही उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली थी।
विक्रम का दर्द गुस्से में बदल गया था। उनकी आंखों में अब वह आंसू नहीं थे, एक अलग आग थी—एक संकल्प की, एक मिशन की।
टीवी स्क्रीन पर न्यूज रिपोर्टर की गंभीर आवाज ने विक्रम का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। "नेताजी की मौत के बाद अब देश की बागडोर किसके हाथ में होगी? यह सवाल हर भारतीय के मन में है। कौन बनेगा देश का अगला प्रधानमंत्री? फिलहाल, प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे मजबूत उम्मीदवार विपक्ष के नेता श्री विपुल चोपड़ा जी माने जा रहे हैं। आइए, जानते हैं विपुल जी का इस बारे में क्या कहना है।"
स्क्रीन पर विपुल चोपड़ा का चेहरा दिखा। उनकी आंखों में एक नकली उदासी और शब्दों में एक राजनीतिक चालाकी झलक रही थी। उन्होंने गहरी सांस ली और बोले: "प्रधानमंत्री अर्जुन मल्होत्रा की मौत हमारे देश और देशवासियों के लिए एक बहुत बड़ी दुखद घटना है। मैं उसी असेंबली में था जब यह हादसा हुआ। वे मुस्कुरा रहे थे और मुझे यकीन है की वह हमेशा की तरह देश की तरक्की के बारे में ही सोच रहे होंगे। मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा कि वे हमारे बीच नहीं हैं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।"
रिपोर्टर ने तुरंत अगला सवाल दागा, "तो विपुल जी, आपके हिसाब से अगला प्रधानमंत्री कौन होना चाहिए, क्या आप होंगे? विपुल थोड़ी देर के लिए चुप हो गए। उनका चेहरा ऐसा था जैसे वह सोच रहे हों, लेकिन असल में वह जानते थे की उन्हें क्या कहना है। वे भले ही विपक्षी थे, लेकिन मैं उनके काम और विचारो से हमेशा प्रेरित रहा। मैंने इतने सालों तक उनके नेतृत्व को करीब से देखा है। अगर मुझे मौका मिलता है, तो मैं उन्हीं की तरह जनता की सेवा करने का प्रयास करूंगा।"
स्टूडियो में बैठे विशेषज्ञ और राजनैतिक विश्लेषक विपुल की बातों पर चर्चा करने लगे। कुछ ने इसे उनकी ईमानदारी कहा, तो कुछ ने इसे एक चालाक रणनीति करार दिया।
विक्रम ने टीवी का रिमोट उठाया और उसे को बंद कर दिया। लेकिन उसकी आंखों के सामने अभी भी विपुल का चेहरा घूम रहा था। वह कुर्सी पर बैठा, और उसकी आंखें धीरे-धीरे गुस्से से लाल हो गईं। उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर माथे पर रखे और खुद से बड़बड़ाने लगा,
विक्रम: “झूठे हैं साले सब! इन्हीं लोगों की वजह से आज अर्जुन इस दुनिया में नहीं है! ये लोग देश संभालेंगे? ये तो खुद आतंकवादी हैं।”
विक्रम की आंखें अचानक नम हो गईं। लेकिन उसके आंसू उसके गुस्से को कम करने के बजाय उसे और भड़काने लगे। उसने जोर से मेज पर हाथ मारा और खुद से कहा,
विक्रम: "नहीं! मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। अगर मुझे अपनी जान भी देनी पड़ी, तो भी मैं इन जैसे लोगों को इस कुर्सी तक पहुंचने से रोकूंगा।"
इतना कहकर विक्रम ने बिना समय गंवाए अपना कोट पहना और तेज कदमों से बाहर निकला। विक्रम ने अपने मन में एक योजना बनाई थी। उसने उन नेताओं की सूची बनाई थी, जिन्हें वह प्रधानमंत्री बनने के काबिल समझता था। पिछले चार-पांच दिनों में, विक्रम दिन-रात एक कर चुका था। वह सुबह से देर रात तक हर उस नेता से मिल रहा था, जो देश की बागडोर संभालने में सक्षम हो सकता था।
जब भी वह किसी नेता से मिलता, वह सबसे पहले देश की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करता। उसकी बातें गंभीर और सीधी होतीं। लेकिन हर बार, उसे नेताओं से जो जवाब मिलता, वह उसकी उम्मीदों पर पानी फेर देता।
रूलिंग पार्टी में तो माहौल और भी खराब था। हर कोई एक-दूसरे को पछाड़ने और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की चालें बुनने में लगा था। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की एक गुप्त बैठक में विक्रम ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा:
विक्रम (सहजता से) “हम सब ने प्रधानमंत्री जी के साथ काम किया है। उनके विचारों को, उनके नेतृत्व को करीब से देखा है। यह वक्त उनके विज़न को आगे ले जाने का है , न कि उसे सत्ता की लड़ाई में नष्ट करने का। हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश की समस्याओं का हल ढूंढें।”
यह सुनते ही एक नेता ने विक्रम को देखते हुए कहा, "ठीक है, रक्षामंत्री जी। हम आपका साथ देंगे। लेकिन एक शर्त पर—आप पहले हमारा साथ दीजिए, हमें प्रधानमंत्री बनाने में। अगर हम प्रधानमंत्री बन गए, तो वादा करते हैं, हम देश की सभी समस्याओं से लड़ने में आपका साथ जरूर देंगे।"
यह सुनकर विक्रम को समझ में आ गया था कि पक्ष में हो या विपक्ष में, किसी को भी देश की समस्याओं की परवाह नहीं थी। हर किसी की नजर सिर्फ उस कुर्सी पर थी, जो अब खाली पड़ी थी।
विक्रम कमरे में बैठे, गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसके मन में अभी भी वही सवाल गूंज रहा था—"यह साजिश रचने वाला आखिर है कौन?" वह जानता था कि इस सवाल का जवाब ही हर समस्या का समाधान था। तभी उसे आयुष का फोन आया। आयुष उसका भरोसेमंद सहयोगी था, जो हमेशा उसे जरूरी जानकारी देने में सबसे आगे रहता था। विक्रम ने फोन उठाते हुए कहा.. "हां, आयुष। बोलो,"। आयुष ने जवाब दिया "सर, अभी-अभी खबर आई है," इंटेरिम प्राइम मिनिस्टर की घोषणा होने वाली है। और सर, इसमें आपका नाम भी शामिल है।" यह सुनते ही विक्रम के चेहरे पर एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। "क्या?" विक्रम लगभग चिल्लाते हुए बोला। "यह नाम किसने डाला? मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। मुझे यह कुर्सी नहीं चाहिए!"
आयुष ने घबराते हुए कहा, "सर, यह पार्टी चीफ का फैसला है। उन्होंने यह नाम फाइनल लिस्ट में भेजा है।" विक्रम ने तुरंत फोन रखा और सीधे पार्टी चीफ को कॉल लगाया।
विक्रम: "विजयवर्गीय जी, मेरा नाम इस लिस्ट से हटा दें प्लीज़।" इस वक्त मुझे कुर्सी की नहीं, बल्कि उस आदमी का पता लगाने की जरूरत है, जिसने प्राइम मिनिस्टर की जान ली।
विक्रम ने फोन रख दिया और गहरी सांस ली। उसके दिमाग में अब पूरी तरह स्पष्ट था कि उसे क्या करना है।
विक्रम: “अगर मैं इस साजिश के पीछे के चेहरे को बेनकाब नहीं कर सका, तो अर्जुन की मौत व्यर्थ हो जाएगी। यह वक्त राजनीति करने का नहीं, बल्कि स्ट्रैटिजी बनाने का है।”
विक्रम ने फाइलें और डॉक्यूमेंट्स खोलकर हर उस कड़ी को जोड़ना शुरू किया, जो इस साजिश का हिस्सा हो सकती थी। उसने अर्जुन की मौत के दिन के घटनाक्रम को बारीकी से दोबारा खंगालना शुरू किया—कौन-कौन असेंबली में मौजूद था, किसने क्या कहा, और सबसे महत्वपूर्ण, सुरक्षा व्यवस्था में कहां कमी हुई। लेकिन उसे पता था कि सिर्फ कागजों और रिपोर्ट्स से जवाब नहीं मिलेगा। उसे मैदान में उतरना होगा। उसे अपने ही तरीके से इस साजिश के जाल को खोलना होगा। विक्रम ने अपने कुछ भरोसेमंद सहयोगियों को बुलाया। उसने एक गुप्त मीटिंग की योजना बनाई, जहां वह अपनी रणनीति साझा करेगा। उसकी योजना सीधी थी, लेकिन खतरनाक। उसे उन नेताओं, अधिकारियों, और mविक्रम ने फाइलें और डॉक्यूमेंट्स खोलकर हर उस कड़ी को जोड़ना शुरू किया, जो इस साजिश का हिस्सा हो सकती थी। उसने अर्जुन की मौत के दिन के घटनाक्रम को बारीकी से दोबारा खंगालना शुरू किया—कौन-कौन असेंबली में मौजूद था, किसने क्या कहा, और सबसे महत्वपूर्ण, सुरक्षा व्यवस्था में कहां कमी हुई। लेकिन उसे पता था कि सिर्फ कागजों और रिपोर्ट्स से जवाब नहीं मिलेगा। उसे मैदान में उतरना होगा। उसे अपने ही तरीके से इस साजिश के जाल को खोलना होगा। विक्रम ने अपने कुछ भरोसेमंद सहयोगियों को बुलाया। उसने एक गुप्त मीटिंग की योजना बनाई, जहां वह अपनी रणनीति साझा करेगा। उसकी योजना सीधी थी, लेकिन खतरनाक। उसे उन नेताओं, अधिकारियों, और मास्टरमाइंड तक पहुंचना था, जो इस साजिश का हिस्सा हो सकते थे। और इसके लिए वह तैयार था, चाहे इसकी कीमत कुछ भी हो।
अपने इसी जोश के साथ विक्रम अपनी कार में बैठे और एक नए सफर के लिए आगे निकल गए। अब देखना यह था कि क्या विक्रम सिन्हा सच में इतने बड़े जिम्मे को अकेले उठा पाएंगे! क्या प्लान है उनका? जानने के लिए पढ़ते रहिए
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