जब प्रधानमंत्री ने कहा कि वह आज असेंब्ली जाएंगे तो विक्रम समझ गया था कि उनके इस डिसिशन को बदला नहीं जा सकता है। विक्रम दुविधा में फंस चुका था कि अब वह क्या करे।  

  

विक्रम (बात मान ली हो जैसे): “ठीक है सर, लेकिन आपको सभी प्रोटोकॉल्स फॉलो करने होंगे! प्लीज़ मेरी यह रिक्वेस्ट मान लीजिए।  

  

विक्रम की बात सुन प्रधानमंत्री ने हामी भरी। वह समय गँवाए उन्हें सलूट करते हुए वहाँ से चले गए। बाहर आते ही उन्होनें चीफ सिक्युरिटी एड्वाइसर के साथ रूट प्लान पर डिस्कशन शुरू कर दिया।    

 

वॉर  रूम में तनाव का माहौल था । देश के सबसे पावरफ़ुल व्यक्ति को सुरक्षित रखने का ज़िम्मा अब विक्रम के हाथों में था। सुरक्षा के चार लेयर तय किए गए। सबसे बाहरी लेयर में दिल्ली पुलिस की तैनाती की गई, जो 5 किलोमीटर के दायरे में किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर नज़र रखेंगे। पार्लियामेंट के 2 किलोमीटर के दायरे में स्पेशल कमांडो और आर्मी डिप्लॉय की गई और उससे भी अंदर असेंब्ली भवन के अंदरूनी हिस्सों में एनएसजी कमांडोज़ तैनात किए गए। प्रधानमंत्री के चारों ओर स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप का कवर रहेगा। पार्लियामेंट बिल्डिंग की छत के ऊपर स्नाइपर्सतैनात खड़े थे जो 2 किलोमीटर की दूरी तक सटीक शॉट मारने में ट्रैन्ड थे 

 

प्रधानमंत्री के साथ चार डमी काफ़िले चलाए जाएंगे, ताकि असली का पता लगाना मुश्किल हो। ड्रोन सरवेलेन्स और रूट मॉनिटरिंग के जरिए पूरे रास्ते की निगरानी की जाएगी। हर मिनट की रिपोर्टिंग सीधे डिफेन्स मिनिस्टर को करने का आदेश दिया गया था।  

 

दूसरी ओर, एक गुप्त स्थान पर, अंधेरे कमरे में साज़िश रची जा रही थी। कमरे के बीचोंबीच एक बड़ी टेबल पर दिल्ली का विस्तृत नक्शा बिछा हुआ था। चार-छह चेहरों की परछाइयां हल्की रोशनी में दिखाई दे रही थीं। उनके शब्द धीमे लेकिन सुनाई दे रहे थे, जैसे हर कदम को बड़ी ही बारीकी से तय किया जा रहा हो। उन्हीं में से एक ने बोलना शुरू किया “ अर्जुन के काफिले का पूरा रूट हमें मालूम है। ड्रोन सर्विलांस और डमी काफिलों की योजना के बावजूद, असली काफिला पकड़ में आ जाएगा। हमें बस सही जगह और सही समय पर टक्कर मारनी है।” नक्शे पर एक लाल निशान उभर आया—अशोक रोड और जनपथ का चौराहा। साज़िशकर्ता ने एक छोटी ट्रक का जिक्र किया, जिसमें चार से पाँच लोग मशीन गंस के साथ बैठे होंगे। ट्रक का ड्राइवर कोई प्रोफेशनल नहीं, बल्कि ऐसा आदमी होगा जो खुद को बचाने की कोशिश भी न करे। 

 

वक्त और तरीके पर बार-बार चर्चा हुई। वहाँ मौजूद  एक और शख्स ने कहा, 'फेल होने का सवाल ही नहीं। इस प्लान में एक भी सबूत नहीं छूटना चाहिए। ट्रक के साथ ड्राइवर का भी कोई नामो-निशान नहीं मिलेगा।' 

सभी ने सहमति जताई। हर मिनट, हर सेकंड का हिसाब रखा गया। बाहर से देखने पर यह सिर्फ एक ट्रक दुर्घटना लगेगी, लेकिन यह हादसा नहीं, एक सोची-समझी हत्या होगी। 

 

इधर टीम को ब्रीफ़ करने के बाद विक्रम ने यह प्लान प्रधानमंत्री जी को सुनाया। मगर उनके दिमाग में एक प्लान ऑलरेडी बन चुका था। उन्होंने विक्रम को अपने साथ चलने को कहा और चलते-चलते एक ऐसी जगह आए जिसके बारे में विक्रम को पता भी नहीं था। सामने एक बड़ी-सी लाइब्रेरी थी जिसमें से कुछ किताबों को जैसे ही प्रधानमंत्री ने सरकाया तो बीच में एक आय स्कैनर निकला। प्रधानमंत्री की आँखों को स्कैन करने के बाद वहाँ एक दरवाजा खुला जहां से नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ थी ।  विक्रम, एस.पी.जी और प्रधानमंत्री जब आगे बढ़ने लगे तो उन्होनें कहाँ..         

  

अर्जुन: यह रास्ता दो जगह जाता है विक्रम। एक स्टेट हैंगर और दूसरा पार्लियामेंट। जिस ब्रिटिश आर्किटेक्ट ने प्रधानमंत्री आवास बनाया था उसने ही यहाँ यह सुरंग भी बनाई थी ताकि ईमर्जन्सी के समय इस रूट के ज़रिए बाहर निकला जा सके।  

 

सभी लोग जब नीचे पहुंचे तो वहाँ गाड़ियों का काफिला तैयार था। दूसरी ओर, असेंब्ली में सभी नेता जमा हो चुके थे। उन सभी के चेहरों पर एक अजीब-सा डर साफ़ दिख रहा था। विपुल चोपड़ा सबसे आगे बैठे हुए थे, उनकी नजरें बार-बार अपनी घड़ी पर जा रही थी।। उनके चेहरे पर चिंता साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं। विपुल की नजरें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर थी। उसे आज की सबसे बड़ी खबर का बेसब्री से इंतज़ार था।  

 

दूसरी ओर प्लान के मुताबिक 4 कॉन्वॉय प्रधानमंत्री आवास से  
अलग-अलग दिशा में निकले। जल्द ही खबर मिली की जो काफिला अकबर रोड से होता हुआ जा रहा था वहाँ एक ट्रक ने सिक्युरिटी ब्रीच कर उसे रोकने की कोशिश की। वहाँ फ़ाइरिंग भी हुई जिसमें ट्रक ड्राइवर समेत 3 लोग मारे गए।  

 

असेंब्ली हॉल तक यह खबर आते देर नहीं लगी और सभी लोग खुसर फुसर करने लगे। विपुल चोपड़ा के चेहरे पर हल्की-सी खुशी दिखने लगी। श्रीमान स्पीकर अपनी जगह पर आए और सभी ने खड़े होकर उन्हें ग्रीट किया। प्रधानमंत्री के अलावा सभी लोग असेंब्ली में उपस्थित थे। स्पीकर साहब ने माइक चेक करते हुए बोलना शुरू किया, आज की चर्चा शुरू की जाए।  

 

अर्जुन (वज़नदारी से): जी स्पीकर महोदय ! जरूर शुरू की जाने चाहिए।   

  

जिस आवाज को दोबारा न सुन पाने की साज़िश रची गई थी, उसे सुनते ही वहाँ कई नेताओं के चेहरे सफेद पड़ गए। विपुल, प्रधानमंत्री को ज़िंदा देखकर हैरान था। उधर विक्रम सिन्हा एक बार सिचुऐशन  समझने के लिए हॉल से बाहर आए और चीफ़ सिक्युरिटी ऑफिसर से बोले।  

 

विक्रम (सोचते हुए): कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जिस काफिले को टारगेट किया गया उस रूट से तो प्रधानमंत्री कभी जाते भी नहीं है। क्या वाकई यह एक फ़ॉल्स थ्रेट था? क्या हम कुछ मिस कर रहे है?  

  

 

इतना कहते ही विक्रम बिना कुछ कहे असेंब्ली हॉल के अंदर लौटते हैं। वह शांत लेकिन सतर्क नज़र से पूरे माहौल का जायज़ा लेते हुए प्रधानमंत्री के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ जाते हैं। अंदर का माहौल चिल्लम-चिल्ली और हंगामे से भरा हुआ था। चर्चा अपने अंतिम चरण में थी। हर नज़र उस बिल पर टिकी थी, जिसके लिए अर्जुन मल्होत्रा ने इतनी बड़ी चुनौती का सामना किया था। वोटिंग प्रक्रिया पूरी हुई, और जैसे ही नतीजे घोषित हुए, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। बिल पास हो चुका था। 

 
यह सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं थी; यह लोकतंत्र और नेतृत्व की एक बड़ी मिसाल थी। अर्जुन मल्होत्रा ने एक बार फिर यह साबित कर दिया था कि क्यों उन्हें जनता का चहेता नेता कहा जाता है। उनके चेहरे पर थकान की रेखाएं थीं, लेकिन उनकी आंखों में सुकून झलक रहा था। सभा खत्म होने पर, नेता और मंत्रीगण अर्जुन से हाथ मिलाने और उन्हें बधाई देने के लिए कतार में खड़े हो गए। धीरे-धीरे असेंब्ली हॉल खाली होने लगा। 

अब कमरे में सिर्फ दो लोग रह गए थे—अर्जुन मल्होत्रा और विक्रम। कुछ पल के लिए दोनों के बीच सन्नाटा छा गया। अर्जुन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, 

अर्जुन : "विक्रम, सत्ता की राह में सबसे बड़ा खतरा वो नहीं होता जो सामने दिखता है। असली दुश्मन वो है, जो अंधेरों में छिपकर वार करता है। आज तुमने जो किया, वो सिर्फ मेरा नहीं, इस देश का भरोसा बचाने जैसा था। तुमने साबित कर दिया कि क्यों मैं तुम्हें अपनी सबसे बड़ी ताकत मानता हूं।" 

 

विक्रम ने थोड़ी झुकी नज़रों से जवाब दिया, 

 
विक्रम : "सर, आप हमेशा कहते हैं कि यह कुर्सी सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी है। मैंने वही किया जो मेरी ज़िम्मेदारी थी। अगर आज आपने यह जीत हासिल की है, तो वह देश के हर उस नागरिक की जीत है, जो इस लोकतंत्र में विश्वास रखता है।" 

असेंब्ली के गलियारों में गूंजती हुई तालियों की आवाज़ अब शांत हो चुकी थी, लेकिन उस कमरे में लोकतंत्र की नई गाथा लिखी जा रही थी। प्रधानमंत्री और विक्रम धीरे-धीरे एग्जिट की ओर बढ़ते हैं। दोनों दरवाजे के करीब पहुंचने ही वाले थे कि अचानक प्रधानमंत्री रुक गए। 

अर्जुन : "अरे, मेरा चश्मा! मैंने चश्मा वहीं टेबल पर छोड़ दिया।” 

 

वह टेबल की ओर तेज कदमों से बढ़े। विक्रम ने एक पल के लिए हॉल का जायजा लिया और फिर प्रधानमंत्री की ओर देखा। जैसे ही प्रधानमंत्री ने चश्मा उठाया, टेबल पर लगे माइक के अंदर से एक धीमी "फुस्स" की आवाज़ आई। अचानक, उनके चेहरे पर हल्का हिचकिचाहट दिखी। उन्हें अहसास हुआ कि माइक से कुछ अजीब-सी गैस निकल रही थी। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते, ज़हरीली गैस उनके चेहरे पर आई। प्रधानमंत्री ने अपने गले को कसकर पकड़ लिया, जैसे उनकी सांस रुकने लगी हो। कुछ ही सेकंड्स में वह गिर पड़े। उनके हाथ से चश्मा छूटकर जमीन पर गिर कर टूट गया।  

"सर!" विक्रम चिल्लाते हुए उनकी ओर भागा। जब तक वह प्रधानमंत्री तक पहुंचा, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के कमांडोज़ ने पहले ही सुरक्षा घेरा बना लिया था। वायरलेस पर तत्काल सूचना दी गई। हर दिशा से आवाजें आने लगीं, "कोड रेड! मेडिकल टीम को तुरंत बुलाया जाए।" प्रधानमंत्री अर्जुन मल्होत्रा का चेहरा अब पूरी तरह से नीला पड़ चुका था। विक्रम ने उनकी कलाई पकड़ने की कोशिश की, नब्ज गायब थी। उनकी सांसें थम चुकी थीं। कुछ ही मिनटों में मेडिकल टीम वहाँ पहुंची। प्रधानमंत्री को तुरंत एक स्ट्रेचर पर रखा गया और तेजी से पार्लियामेंट के अंदर बने क्रिटिकल केयर यूनिट में ले जाया गया। 

मेडिकल टीम ने उनकी हालत का आकलन किया। डॉक्टरों के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। एक सीनियर डॉक्टर ने पल्स चेक की, उनकी आँखें देखी, और फिर धीरे से अपनी टीम की ओर सिर हिलाया। कमरे में मौजूद हर कोई जानता था कि इसका मतलब क्या है। डॉक्टर ने गहरी सांस ली और विक्रम की ओर मुड़ते हुए कहा, "वह हमें छोड़ चुके हैं। गैस इतनी जहरीली थी कि उसने कुछ ही सेकंड्स में उनके पूरे शरीर पर असर कर दिया।" 

पार्लियामेंट के गलियारों में सन्नाटा छा गया था। जहां कुछ घंटे पहले जश्न मनाया जा रहा था, वह अब शोक और साज़िश का मैदान बन गया था। प्रधानमंत्री का निधन सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं थी; यह पूरे देश के लोकतंत्र पर किया गया एक भयानक हमला था। 

एस.पी.जी. ने घटनास्थल को पूरी तरह सील कर दिया। गैस के स्रोत और माइक की जांच शुरू हो चुकी थी। पर हर कोई जानता था कि इस साज़िश के तार कहीं और जुड़ते हैं। 

यह खबर आग की तरह चारों ओर फैल गई। संसद भवन के बाहर पत्रकारों और कैमरों की भीड़ लगने लगी। हर कोई जानना चाहता था कि अंदर क्या हुआ है। चारों तरफ सुरक्षा बलों ने घेरा डाल दिया। पूरे इलाके को सील कर दिया गया। विक्रम अब भी वहीं खड़ा था। प्रधानमंत्री अर्जुन मल्होत्रा की मौत ने जैसे समय को रोक दिया था।  

देश का शेर, जिसने पंद्रह साल तक इस देश को संभाला, अब वह नहीं रहा। पार्लियामेंट के बाहर से भीड़ की आवाजें अंदर तक सुनाई दे रही थीं। देश सदमे में आ चुका था। लोग सड़कों पर आ गए थे। हर कोई जानता था कि यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी; यह पूरे देश पर हमला था। 

विक्रम ने नम आंखों से प्रधानमंत्री के शरीर की ओर देखा। उसकी सांसें भारी हो रही थीं।  "इसके पीछे जो भी है, मैं उसे बेनकाब करके रहूंगा," विक्रम ने खुद से कहा। 

क्या होगा विक्रम का अगला कदम? कैसे होगा इस साज़िश का पर्दाफाश? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

Continue to next

No reviews available for this chapter.