डिफेंस मिनिस्टर विक्रम सिन्हा की टीम के चार जांबाज लीडर तैयार थे। ये चारों अपने-अपने क्षेत्र के एक्सपर्ट थे, लेकिन उनकी इस ताकत के पीछे थी उनकी कहानियाँ। इसी कहानी का पहला नाम था—आर्मी ऑफिसर सहदेव भाटिया।
वह एक ऐसा योद्धा था, जिसने अपनी जिंदगी चुनौतियों से लड़ते हुए बिताई थी। लेकिन उसके दिल में एक ऐसा घाव था, जिसने उसकी ताकत को एक नई दिशा दी।
सहदेव का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके पिता एक पुलिस अधिकारी थे। बचपन से ही उसे पुलिस या आर्मी में शामिल होने का जुनून था। उसे सामान्य जिंदगी नहीं, कुछ खास करना था। वह अपने सपने के पीछे जी रहा था, लेकिन फिर एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया।
उसके पिता, जो एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर थे, एक हमले में मारे गए। जब सहदेव ने अपने पिता की लाश देखी, तो वह नजारा उसकी आत्मा पर गहरा असर छोड़ गया। उसके पिता के सीने में छह गोलियां लगी थीं।
सहदेव ने अपने इस दर्द को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उसने खुद से एक वादा किया—
सहदेव: “मैं इस माफिया को अपने हाथों से खत्म करूंगा। मैं अपने पिता की मौत का बदला लूंगा। मेरे नाम से माफ़िया थर-थर काँपेगा।”
यह वादा उसके जीवन का मकसद बन गया। सहदेव ने खुद को मजबूत बनाने के लिए कड़ी ट्रेनिंग शुरू की। उसने दिन-रात एक कर दिए, ताकि वह अपने लक्ष्य तक पहुँच सके। आखिरकार, वह सेना में भर्ती हो गया। सहदेव का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ। उसके लिए सिर्फ आर्मी में शामिल होना काफी नहीं था। वह जानता था कि उसे इतना ताकतवर बनना होगा कि वह न केवल अपने पिता का बदला ले सके, बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बन सके।
आर्मी में रहते हुए, उसने असंभव को संभव कर दिखाया। यही कारण था कि उसे सेना के सबसे कठिन और खतरनाक ऑपरेशनों के लिए चुना जाने लगा। सहदेव भाटिया के दिल में एक आग थी। यह वही आग थी, जिसने उसे विक्रम सिन्हा के मिशन का उम्मीदवार बना दिया। विक्रम को पता था कि सहदेव के अतीत का दर्द और उसकी ताकत उसे इस टीम का एक अमूल्य हिस्सा बनाएंगे।
देश के सबसे खतरनाक मिशनों को अंजाम देने के लिए बनाई गई टीम का चीफ जल्द ही, सहदेव को बना दिया गया। इस टीम में शामिल होना हर सैनिक का सपना होता था, लेकिन सहदेव के लिए यह शुरुआत भर थी। सहदेव ने इस टीम के साथ अनगिनत मिशनों को अंजाम दिया। उसका मिशन सक्सेस रेट 100% था—एक ऐसा रिकॉर्ड जिसे हासिल करना हर सैनिक का सपना होता है। वह हमेशा अपने साथियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता, हर कदम सावधानी से उठाता, और हर मिशन को सही तरीके से अंजाम देता।
सहदेव इन उपलब्धियों से कभी संतुष्ट नहीं हुआ क्योंकि कहीं ना कहीं उसे एक दायरे में रहकर काम करना पड़ता था। हर मिशन के बाद जब उसे शाबाशी मिलती तो वह हमेशा अगले मिशन की बातें करता था और उसका यह जवाब उसके साथियों को सोचने पर मजबूर कर देता था कि "आखिर इसे और क्या चाहिए? इसने तो वो सब हासिल कर लिया है, जो हम सोच भी नहीं सकते!"
कोई नहीं जानता था कि सहदेव के दिल में एक अधूरा मकसद छिपा था। यह मकसद उसकी हर जीत के बावजूद उसे बेचैन रखता था। उसके पिता के कातिल को सज़ा दिलाना उसकी जिंदगी का असली लक्ष्य था। अंततः वह दिन भी आया जब सहदेव को अपना बदला लेने का मौका मिला। उसकी टीम को एक खतरनाक माफिया डॉन "विक्टर" को खत्म करने का मिशन दिया गया। डॉन का नाम सुनते ही सहदेव का दिल तेजी से धड़कने लगा।
मिशन की शुरुआत में, जब सहदेव के हाथ में विक्टर की फाइल आई, तो उसने देखा कि यह वही गुंडा था जिसने उसके पिता की जान ली थी। उस फाइल के हर पन्ने ने सहदेव के अंदर दबी आग को और भड़का दिया। अब यह मिशन केवल एक जिम्मेदारी नहीं रहा, यह सहदेव के लिए व्यक्तिगत बदले की लड़ाई बन चुका था। उसकी आंखों में केवल अपने पिता के कातिल को खत्म करने का जुनून था।
इस जुनून ने उसे संतुलन खोने पर मजबूर कर दिया क्योंकि वह भावुक हो चुका था। जहां बाकी साथी मिशन को सावधानी और रणनीति के सहारे अंजाम देने पर ध्यान दे रहे थे, वहीं सहदेव केवल अपने जज़्बात और गुस्से से काम ले रहा था। वह हर कदम पर जल्दबाजी कर रहा था, हर काम में अपना दर्द निकालने की कोशिश कर रहा था।
यह मिशन अब सहदेव के लिए सिर्फ एक काम नहीं था। यह उसकी जिंदगी के सबसे बड़े अधूरे मकसद को पूरा करने का मौका था लेकिन सवाल यह था कि क्या सहदेव अपने होश और जज्बात के बीच संतुलन बनाए रख पाएगा? और क्या वह अपने पिता के कातिल को खत्म करके अपनी आत्मा को शांति दे पाएगा?
जब सहदेव भाटिया, विक्टर को खत्म करने के लिए उसके ठिकाने पर पहुंचा, तो उसका गुस्सा और बदला लेने का जुनून पागलपन में बदल चुका था। वह बिना किसी देरी के फायरिंग करने लगा। गोलियों की आवाज़ से उस जगह का सन्नाटा टूटा, लेकिन सहदेव को यह पता नहीं था कि उस ठिकाने पर विक्टर ने एक मासूम और बेगुनाह परिवार को बंधक बना रखा था। गोलीबारी के बीच उस परिवार के लोग फंस गए। हालांकि उनकी जान बच गई, लेकिन परिवार का एक सदस्य गंभीर रूप से घायल हो गया और उसे हमेशा के लिए अस्पताल का सहारा लेना पड़ा।
मिशन पूरा होने के बाद जब सहदेव को इस सच्चाई का एहसास हुआ, तो वह अंदर से टूट गया। उसका जुनून, उसका गुस्सा, और उसका बदला—सब व्यर्थ लगने लगा। उसने जो हासिल किया, उसकी कीमत एक निर्दोष परिवार ने चुकाई।
उस रात सहदेव ने खुद से एक बड़ा वादा किया।
सहदेव: "मेरा मकसद केवल माफिया को खत्म करना नहीं है। मेरा मकसद इस देश को ऐसा बनाना है, जहां बेगुनाहों की जान को कभी खतरा न हो।
यह फैसला भी किसी पागलपन से कम नहीं था। एक ऐसी दुनिया जहां निर्दोष सुरक्षित हों, खून-खराबा खत्म हो—यह सिर्फ एक सपना लग सकता था। इसे हकीकत में बदलना लगभग नामुमकिन था लेकिन सहदेव ने इस असंभव सपने को ही अपना मकसद बना लिया। यही मकसद उसे बाकी सैनिकों से अलग बनाता था। उसकी यह सोच और उसका पागलपन उसे देश के लिए एक ऐसा योद्धा बनाता था, जिसे विक्रम सिन्हा की टीम में होना चाहिए था।
जब डिफेंस मिनिस्टर विक्रम सिन्हा जवानों की प्रोफाइल देख रहे थे, तो उनकी नजर सहदेव की प्रोफाइल पर पड़ी। शुरू में उन्हें इसमें कुछ खास नजर नहीं आया। सहदेव की प्रोफाइल में उसकी उपलब्धियां और मिशन का ब्योरा था, जो किसी भी आम सैनिक के जैसा ही था।
जैसे-जैसे उन्होंने गहराई से प्रोफाइल पढ़ना शुरू किया, उन्हें सहदेव की कहानी और उसके अनुभवों ने आकर्षित करना शुरू कर दिया। इसके बाद, विक्रम ने सहदेव के सीनियर ऑफिसर से मुलाकात की। सीनियर ने सहदेव की तारीफ करते हुए कहा, सर, सहदेव निडर और साहसी है। वह किसी भी मिशन को पूरा करने में नंबर वन चॉइस है... पर सर, वह थोड़ा बेबाक और जुनूनी भी है। कभी-कभी उसके फैसले पागलपन की हद तक जाते हैं।"
यह सुनकर विक्रम के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई।
विक्रम: “मुझे भी ऐसा ही आदमी चाहिए।”
विक्रम को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बात थी सहदेव का मकसद। आखिरकार, विक्रम ने सहदेव को अपनी टीम में शामिल करने का फैसला किया। वह जानता था कि सहदेव का पागलपन और उसका मकसद ही उसे इस मिशन के लिए परफेक्ट उम्मीदवार बनाते हैं।
सहदेव का लड़ने का अंदाज उसे बाकी सैनिकों से अलग बनाता था। उसकी सबसे बड़ी ताकत थी उसका निशाना और वह कम्बैट बैटल में किसी भी गन को चला सकता था! उसके सीखने के जुनून ने उसे टैंक से लेकर फाइटर जेट्स तक सभी को चलाना सिख दिया था। सहदेव का निशाना इतना सटीक था कि वह एक किलोमीटर की दूरी से चलती हुई गाड़ी के अंदर बैठे व्यक्ति को बिना चूके मार सकता था। कई सैनिकों ने उसकी बराबरी करने की कोशिश की, लेकिन सहदेव का हुनर बेमिसाल था।
सेना में उसे एक "लिविंग लेजेंड" के तौर पर देखा जाता था। सहदेव सिर्फ अपने कौशल से नहीं, बल्कि अपने शांत स्वभाव के लिए भी जाना जाता था। न सिर्फ़ सहदेव एक योद्धा था बल्कि एक ऐसा रणनीतिकार था, जो अपनी योजनाओं से दुश्मन के चारों खाने चित कर देता था। उसकी योजनाएँ इतनी सटीक और गहरी होती थीं कि दुश्मन को यह तब तक समझ नहीं आता था कि वह फंस चुका है और तब तक बचने का कोई रास्ता बाकी नहीं रहता था।
युद्ध के पारंपरिक तरीकों से परे, सहदेव ने साइबर मिशनों में भी अपनी काबियलीयत कई बार साबित की है। उसने कई हाई-लेवल गुप्त मिशनों को सफलता के साथ अंजाम दिया, जिनमें दुश्मन के साइबर नेटवर्क को तोड़ना, खुफिया जानकारी इकट्ठा करना, और दुश्मन के कम्युनिकेशन को बाधित करना शामिल था।
उसकी बहुमुखी प्रतिभा ने उसे हर मोर्चे पर स्टार बना दिया था। चाहे मिशन कितना भी जोखिम भरा हो, सहदेव के लिए हर मिशन नई चुनौती होती थी, जिसे वह अपनी अनोखी रणनीतियों और साहस के साथ हल कर जाता था।
उसकी यह विशेषताएँ उसे डिफेंस मिनिस्टर विक्रम सिन्हा की टीम के लिए परफेक्ट बनाती थीं लेकिन सहदेव के जीवन का एक पहलू ऐसा था, जिसने विक्रम को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसके अतीत के कुछ फैसले, खासकर विक्टर वाले मिशन में, उसके लिए एक दाग की तरह थे। विक्रम यह समझना चाहते थे कि सहदेव अपनी पुरानी गलतियों से कुछ सीखा है या नहीं!
विक्रम, सहदेव से मिलने पहुंचे। सहदेव ने जैसे ही विक्रम को आते देखा, वह तुरंत खड़ा हुआ और सलामी दी।
सहदेव: “जय हिंद सर,”
विक्रम ने जवाब में सिर हिलाया और गंभीरता से बोले,
विक्रम: “आराम से बैठो, सहदेव। मैं यहां तुम्हारे साथ एक जरूरी बात करने आया हूं। प्रधानमंत्री अर्जुन मल्होत्रा की मौत के बारे में तुम्हें तो पता होगा। देश इस वक्त एक गंभीर संकट से गुजर रहा है। मैं एक स्पेशल टीम बना रहा हूं, जो अंदरूनी और बाहरी खतरों का सामना कर सके और देश को सुरक्षित रख सके। इस टीम का मकसद है—हर उस ताकत का खात्मा, जो हमारे देश की शांति और स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती है।”
सहदेव ने ध्यान से विक्रम की बात सुनी। उसने विक्रम के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। वह जानता था कि विक्रम अपने जमाने में आर्मी के "शेर" के नाम से जाने जाते थे। विक्रम ने अपनी बहादुरी और नेतृत्व से कई मिशनों को अंजाम दिया था। थोड़ी देर की बातचीत के बाद, विक्रम ने सीधा सवाल पूछा,
विक्रम: “सहदेव भाटिया, क्या तुम मेरी इस स्पेशल टीम का हिस्सा बनना चाहोगे?”
यह सुनकर सहदेव चौंक गया। इससे पहले कि वह जवाब दे पाता, विक्रम ने दूसरा सवाल पूछा,
विक्रम: “इससे पहले,यह बताओ कि क्या तुम इस टीम के काबिल हो?”
सहदेव इस सवाल पर चौंक गया। उसके दिल में गुस्से की भावना उभरने लगी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि विक्रम ने पहले टीम में शामिल होने की बात कि तो फिर उसकी काबिलियत पर सवाल क्यों उठा रहे हैं? उसे ऐसा लगा जैसे विक्रम उसकी बेइज्जती कर रहे हों। तभी विक्रम ने सहदेव की तरफ गंभीर नजरों से देखा और एक और सवाल पूछा,
विक्रम: "क्या तुम्हें अब भी अपनी उस गलती का पछतावा होता है?"
यह सुनते ही सहदेव को जैसे एक झटका लगा। उसके दिमाग में तुरंत विक्टर वाले मिशन की याद ताजा हो गई। वह मासूम परिवार, उसकी लापरवाही ने उन्हें चोट पहुंचाई थी। वह याद, वह दर्द—सब कुछ सहदेव के चेहरे पर साफ झलकने लगा। विक्रम ने सहदेव की खामोशी को भांपते हुए कहा..
विक्रम: "मैं तुम्हें इसलिए चुन रहा हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि तुम में वो क्षमता है जो इस मिशन के लिए जरूरी है लेकिन मैं यह भी देखना चाहता हूं कि तुम अपनी गलतियों से कितना सीख चुके हो। यह टीम किसी बदले की भावना से प्रेरित नहीं है। यह देश की रक्षा करने के लिए है। यह प्रधानमंत्री के विज़न को आगे बढ़ाने के लिए है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम अपने अतीत को पीछे छोड़ सकते हो और अपने जोश से ज्यादा, होश से काम ले सकते हो, तो इस टीम में तुम्हारा स्वागत है।"
सहदेव: “सर, मैंने अपनी गलतियों से सीखा है। मेरे अतीत का दर्द मुझे कभी पीछे नहीं खींचेगा। मैं इस टीम के लिए खुद को साबित करूंगा।”
उस दिन, सहदेव ने महसूस किया कि विक्रम सिर्फ एक लीडर नहीं थे। वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जो हर सैनिक के अंदर की ताकत और कमजोरियों को समझते थे और यही वजह थी कि वह सहदेव को इस मिशन के लिए तैयार देखना चाहते थे।
सहदेव से बातचीत खत्म होते ही विक्रम खड़े हुए। सहदेव ने एक सवाल पूछा कि "सर, मिशन चालू कब से है?" विक्रम कुछ पल रुके, फिर हल्की मुस्कान के साथ पीछे मुड़कर बोले,
विक्रम: “तुम्हें जल्द ही डिटेल्स मिल जाएंगी। बस इतना समझ लो, अब तुम्हारा हर दिन मिशन का हिस्सा है। तैयार रहो।”
बाहर निकालकर विक्रम ने गहरी सांस ली। सहदेव जैसे सिपाही को चुनना उनकी टीम के लिए एक बड़ा कदम था, लेकिन उन्हें अब भी आगे बढ़ना था। उनकी नजरें अब अपने अगले योद्धा की तलाश पर टिकी थीं। क्या होगा आगे? जानने के लिए पढ़ते रहिए
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