विक्रम को अब चाहिए था एक ऐसा इंसान जो तकनीकी दिमाग का उस्ताद हो। एक ऐसा एक्सपर्ट, जिसके लिए कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी किसी खेल से कम न हो। कहते हैं, हर लड़ाई हथियारों से नहीं जीती जाती। कुछ जंग दिमाग से लड़ी जाती हैं, और विक्रम को अपनी टीम में ऐसा ही एक दिमाग चाहिए था।

कबीर खन्ना। साइबर दुनिया का वो मास्टरमाइंड, जिसने कई बार दुश्मनों को बिना कोई निशानी छोड़े हराया था। "कबीर", विक्रम ने मन ही मन सोचा, "ये लड़का हमारी टीम के लिए परफेक्ट है लेकिन..." कबीर के पास्ट ने विक्रम को थोड़ा सोचने पर मजबूर कर दिया।

कबीर खन्ना का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उसके घर में उसके माता-पिता और बड़ा भाई, भरत खन्ना थे। कबीर अपने परिवार का चहेता था, खासकर अपने बड़े भाई का। भरत कंप्यूटर साइंस का छात्र था, और उसकी पढ़ाई ने कबीर के  अंदर कंप्यूटर और तकनीक के लिए रुचि जगा दी। कबीर बचपन से ही सबसे अलग था। अगर किसी चीज में उसकी दिलचस्पी हो जाए, तो वह उसे हासिल किए बिना चैन नहीं लेता था और ऐसा ही हुआ कंप्यूटर के साथ।

जब कबीर ने बचपन में कंप्यूटर चलाना शुरू किया, तो उसके घरवालों को लगा कि यह भी बच्चों के किसी शौक जैसा होगा, जो कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा लेकिन कबीर तो जैसे कंप्यूटर का दीवाना बन गया था। छोटी उम्र में ही उसने कंप्यूटर की कई भाषाओं में महारत हासिल कर ली। जब उसके दोस्त स्कूल के बाद खेलने-कूदने में अपना वक्त बिताते थे, कबीर अपने कमरे में बैठकर नई-नई चीजें सीखने में जुटा रहता था। धीरे-धीरे उसने वो हुनर सीख लिए जो कई लोग सालों की मेहनत के बाद भी नहीं सीख पाते थे।  यहां तक कि उसने अपने बड़े भाई भरत को भी तकनीकी ज्ञान में पीछे छोड़ दिया।

कबीर की चीजों को जल्दी समझने और सीखने की काबिलियत जबरदस्त थी। वह केवल देखकर ही कोई भी तकनीकी उपकरण को समझ जाता था। बहुत जल्द, वह उस उपकरण का एक्सपर्ट बन जाता था लेकिन कबीर के अतीत में कुछ गहरे राज़ छुपे थे। ऐसी बातें, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते थे। ये राज ही वह वजह थे, जो उसे विक्रम की टीम के लिए परफेक्ट बनाते थे, लेकिन साथ ही एक जोखिम भी।

कबीर अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था, और भरत अपने प्रोजेक्ट्स के कागज देख रहा था। तभी अचानक पुलिस की गाड़ी उनके घर के सामने आकर रुकी। दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई। कबीर और भरत ने हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखा। भरत ने दरवाजा खोला, और देखा कि सामने पुलिस अफसरों का झुंड खड़ा था। अफसरों में से एक ने तुरंत पूछा, "इधर भरत खन्ना कौन है?" भरत ने चौंकते हुए कहा,"जी, मैं हूं। कहिए, क्या बात हो गई, सर?"

अफसर ने कोई जवाब नहीं दिया। उसके इशारे पर दो सिपाही आगे बढ़े और भरत के दोनों हाथ पकड़ लिए। इससे पहले कि भरत कुछ समझ पाता, एक और सिपाही ने उसके हाथों में हथकड़ियां डाल दीं। भरत गुस्से और हैरानी में चिल्लाया, "ये क्या कर रहे हो? मैंने क्या किया है?" पुलिस अधिकारी ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "तूने पूरी बैंक लूट ली, और पूछ रहा है कि क्या किया है? बहुत बड़ा साइबर हैकर निकला रे तू। ले चलो रे इसे, इस मास्टर का माइंड थाने ले जाकर खोलता हूँ !"

यह सुनते ही कबीर और भरत के साथ घर के बाकी लोग भी हैरान रह गए। कबीर ने झटके से अपनी कुर्सी छोड़ी और भरत के पास आकर खड़ा हो गया। उसने गुस्से में पूछा, "आप ये क्या कह रहे हैं? मेरा भाई ऐसा कुछ नहीं कर सकता!" पुलिस अधिकारी ने जवाब दिया, "क्या नहीं कर सकता? भरत खन्ना, यू आर अन्डर अरेस्ट! चलो, थाने चलते हैं। वहीं सब कुछ साफ हो जाएगा। और हां, पैसा कहाँ छुपा रखा है अगर नहीं बताया न, तो अंजाम बहुत बुरा होगा। समझ गए?"

यह कहकर पुलिस भरत को खींचकर बाहर ले जाने लगी। कबीर गुस्से और बेबसी में चिल्ला उठा, "भरत ने कुछ नहीं किया! आप लोग गलत आदमी को गिरफ्तार कर रहे हैं। इसे छोड़ दीजिए!" लेकिन पुलिस ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।

भरत को ले जाते हुए पुलिस ने जो आरोप लगाए थे, वे पूरी तरह से झूठे नहीं थे। भरत और कबीर दोनों जानते थे कि उन्होंने कई बार नियम तोड़े थे, लेकिन वह कभी किसी बैंक को पूरी तरह लूटने जैसे काम में शामिल नहीं हुए थे। कबीर की आंखों के सामने उसका परिवार बिखरता हुआ दिखाई दिया। वह गुस्से और डर के बीच फंसा हुआ था। उसकी मासूम जिंदगी का यह एक ऐसा मोड़ था, जिसने सब कुछ बदल दिया।

पुलिसवाले ने गुस्से से अपने हवलदारों को इशारा किया, "ले जाओ इसे!" और भरत को खींचते हुए बाहर ले जाने लगे। भरत के माता-पिता रोते हुए, हाथ जोड़कर पुलिसवालों से गिड़गिड़ाने लगे, "हमारा बेटा ऐसा नहीं कर सकता! प्लीज, इसे छोड़ दीजिए! ये बेगुनाह है" लेकिन उनकी दलीलों का पुलिस पर कोई असर नहीं हुआ। भरत की मां की रो रही थी, और उसके पिता का चेहरा बेबसी में झुका हुआ था।

उधर, कबीर शॉक में अपनी जगह पर ही जम गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे हुआ। उसका दिमाग सुन्न था। कबीर जानता था कि यह सब उसके भाई का काम नहीं हो सकता। उसे अपने भाई की नीयत पर पूरा भरोसा था। भरत डरपोक था, वह इस तरह की चोरी करने का न तो हुनर रखता था और न ही हिम्मत। यह सब जानते हुए भी कबीर लाचार था। वह कुछ कर नहीं सकता था।

थोड़ी देर बाद, कबीर के दिमाग ने काम करना शुरू किया। उसने खुद से कहा, "मुझे सच का पता लगाना होगा। मैं भरत को ऐसे नहीं छोड़ सकता!"

कबीर अपने कंप्यूटर की ओर भागा। उसने चोरी के बारे में हर मुमकिन जानकारी निकालनी शुरू की। घंटों तक वह स्क्रीन पर आंखें गड़ाए रहा, कोड्स और डेटा खंगालता रहा। आखिरकार, बहुत मेहनत के बाद, कबीर को सच्चाई का पता चला। चोरी के पीछे एक खतरनाक अंतरराष्ट्रीय हैकर गैंग का हाथ था। यह गैंग ना केवल पैसों की चोरी करता था, बल्कि अपने पीछे झूठे निशान छोड़कर दूसरों को फंसाता था। इस बार उनकी चाल में भरत फंस चुका था।

कबीर को यह पता चलने के बाद राहत नहीं मिली, बल्कि उसका गुस्सा और बढ़ गया। उसने पुलिस को इस सच्चाई के बारे में बताने की कोशिश की लेकिन उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं थे। पुलिस ने उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। तब कबीर ने एक बड़ा और खतरनाक फैसला लिया। 

कबीर: “अगर कोई मेरी बात नहीं मानेगा, तो मुझे खुद इसे साबित करना होगा.. चाहे इसके लिए मुझे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।” 

कबीर अपने भाई को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाएगा और इसी चक्कर में, वह अंडरग्राउंड हो जाता है। उसने डार्क वेब की दुनिया में कदम रखा। यह वह जगह थी जहां हैकर्स बिना किसी कानून के डर के, अपनी मर्जी से काम करते थे। वह जानता था कि यह रास्ता खतरनाक है लेकिन भरत को बचाने के लिए कबीर कुछ भी करने को तैयार था।

कबीर ने गैर-कानूनी तरीकों से उन जरूरी सबूतों को हासिल किया, जो पुलिस के सामने सच्चाई साबित कर सकें। वह डेटा, ट्रेसिंग लॉग्स, और गैंग की गतिविधियों को उजागर करने वाले दस्तावेज़ इकट्ठा करता गया।

आखिरकार, कबीर ने वो सबूत पुलिस तक पहुंचा दिए। उसने हर चीज को इस तरह प्लान किया कि सबूत सीधा सही अधिकारियों तक पहुंचे। किस्मत से उसका यह प्लान काम कर गया। पुलिस ने सबूतों के आधार पर भारत को छोड़ दिया लेकिन इस पूरे प्रोसेस में कबीर ने अपनी खुद की पहचान खो दी। वह अब कानून की नजरों में वांटेड था। उसने अपने भाई को बचाने के लिए खुद को एक मुजरिम बना लिया था।  

अपने भाई के स्वभाव तो देख कबीर को एहसास हुआ कि दुनिया में भरत की तरह बहुत से सीधे-सादे लोग होंगे, और ऐसे कितने ही निर्दोष होंगे, जो सिस्टम की चपेट में या बुरे लोगों की साजिश का शिकार हुए होंगे।  

कबीर: “अगर सिस्टम बेगुनाहों को न्याय नहीं दे सकता, तो मैं दूंगा। चाहे इसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो!”

यह कबीर के जीवन का नया मोड़ था। इस वादे के बाद कबीर ने अपने मिशन को नया रंग दिया। उसके तरीके कानून के खिलाफ थे, लेकिन उसकी इच्छा हमेशा सही थी। उसने सिस्टम के कमजोर हिस्सों को एक्सपोज़  किया, बुरे लोगों को बेनक़ाब किया, और कई बार उन बेगुनाहों को न्याय दिलाया, जो अपनी आवाज खुद नहीं उठा सकते थे। कबीर का हर कदम पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था। आए दिन उसके कारनामे पुलिस विभाग को हैरान कर देते थे। हर बार, वह अपने निशान इतनी सफ़ाई से मिटा देता था कि पुलिस उसे पकड़ने में नाकाम रहती। पुलिस डिपार्टमेंट ने कबीर को पकड़ने वाले के लिए इनाम तक घोषित कर दिया था। कहीं न कहीं सबके मन में यह बात थी कि कबीर जो कर रहा है, वह गैरकानूनी जरूर है, लेकिन गलत नहीं।

एक दिन, पुलिस हेडक्वार्टर पर एक बड़ा सायबर अटैक हुआ। यह हमला इतना खतरनाक था कि पुलिस डिपार्टमेंट के खुफिया जानकारी लीक होने का खतरा बन गया। गलत हाथों में यह जानकारी देश के लिए एक बड़ा संकट खड़ा कर सकती थी। सरकार ने देश के बड़े-बड़े सायबर एक्सपर्ट्स और आर्मी हैकर्स की मदद ली। सभी ने अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन सायबर अटैक को रोकने में कोई सफलता नहीं मिली।

तब, एक अधिकारी ने सुझाव दिया, "हमें कबीर खन्ना की मदद लेनी चाहिए। अगर कोई इस हमले को रोक सकता है, तो वह कबीर है।"

इस विचार को मानते हुए, पुलिस ने किसी तरह कबीर से संपर्क किया। कबीर से बात करना आसान नहीं था, लेकिन जैसे तैसे उन्होंने उसे कॉन्टैक्ट किया गया और एक ऐसा प्रस्ताव रखा जिसने उसकी जिंदगी बदल दी।

पुलिस ने उससे कहा, "कबीर खन्ना, यह सायबर अटैक देश के लिए बड़ा खतरा है। हमें पता है कि तुम इसे रोकने की काबिलियत रखते हो इसलिए हम तुम्हें एक ऑफर दे रहे हैं। अगर तुम इस अटैक को रोक देते हो, तो सरकार तुम्हारे खिलाफ सभी आरोप माफ कर देगी। तुम्हें दोबारा आजादी से जीने का हक मिलेगा। अगर तुम चाहो, तो हम तुम्हें इसके लिए पैसे भी देने को तैयार हैं।"

कबीर इस प्रस्ताव को सुनकर कुछ पल के लिए चुप हो गया। यह न केवल उसकी स्वतंत्रता पाने का मौका था, बल्कि उसके हुनर को सही दिशा में इस्तेमाल करने का भी। अब सवाल यह था कि क्या वह यह ऑफर स्वीकार करेगा?  

कबीर खन्ना के पास इस काम को ना कहने की कोई वजह नहीं थी। पुलिस हेडक्वार्टर पर सायबर अटैक करने वाला वही गैंग था जिसने कभी उसके भाई भरत को फंसाया था। भले ही कबीर ने अपने भाई को बेगुनाह साबित कर दिया था, लेकिन उस गैंग को पकड़ने की कबीर की प्रतिज्ञा अब भी अधूरी थी। कबीर ने बि बेझिझक पुलिस का ऑफर एक्सेप्ट कर लिया।

उसने अपने लैपटॉप पर काम शुरू कर दिया। उसकी उंगलियां कीबोर्ड पर इतनी तेज़ी  से चल रही थीं जैसे ज़ाकिर हुसैन की उँगलियाँ तबले पर चलतीं थीं। 2 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद, उसने उस अंतरराष्ट्रीय हैकर गैंग का पता लगा लिया। गैंग ने जो वायरस इस्तेमाल किया था, कबीर ने उसी को उनके खिलाफ मोड़ दिया। उसने न केवल उनका नेटवर्क ध्वस्त कर दिया, बल्कि उनके सारे डाटा को डिलीट कर दिया।

पुलिस हेडक्वार्टर में खुशी की लहर दौड़ गई। हर कोई कबीर की काबिलियत को देखकर हैरान था। उसकी इस सफलता ने न केवल अटैक को नाकाम किया, बल्कि दुश्मनों को ऐसा सबक सिखाया, जो वे कभी भूल नहीं सकते थे। कबीर की इस कामयाबी के बाद, एक आर्मी कमांडर ने उससे संपर्क किया। उन्होंने कबीर को आर्मी की स्पेशल सायबर सेल का हिस्सा बनने का प्रस्ताव दिया। "कबीर, हमें तुम्हारी जरूरत है। तुम्हारे जैसे लोग देश की सुरक्षा के लिए बेहद अहम हैं। हमारी टीम में शामिल हो जाओ"..  कबीर ने बिना कोई देरी किए यह प्रस्ताव भी स्वीकार कर लिया। आर्मी में शामिल होने के बाद, कबीर ने अपनी काबिलियत हर कदम पर दिखाई। उसने कई खतरनाक सायबर हमलों को नाकाम किया और कई बड़े मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया लेकिन मज़े की बात यह थी कि आर्मी में शामिल होने के बावजूद, बहुत ही कम लोगों ने कबीर का चेहरा देखा था। वह हमेशा परदे के पीछे से काम करता था। उसकी इस अनदेखी मौजूदगी की वजह से आर्मी ने उसे एक नया नाम दिया—"शैडो सोल्जर।" एक ऐसा योद्धा, जिसे देखा नहीं जा सकता था, लेकिन जिसकी परछाई भी दुश्मनों को मात देने के लिए काफ़ी थी।

जब विक्रम ने कबीर की फाइल पढ़ी और उसके कारनामों के बारे में सुना, तो वह कबीर में अलग ही दिलचस्पी लेने लगे। कबीर केवल एक साइबर जीनियस नहीं था,  वह हैकिंग, साइबर सुरक्षा, क्रिप्टोग्राफी, और डाटा मॉनिटरिंग में भी माहिर था। उसने न केवल भारत में, बल्कि कई अंतरराष्ट्रीय साइबर हमलों को नाकाम किया था। विक्रम ने सोचा,

विक्रम: “यह आदमी छाया की तरह है। इसे कोई देख नहीं सकता, लेकिन इसका असर हर जगह महसूस किया जा सकता है।” 

कबीर की असली पहचान किसी को पता नहीं थी। वह अंधेरे में रहकर काम करता था, लेकिन उसका हर काम रोशनी की तरह चमकता था। विक्रम को पता था कि अगर उनकी टीम को एक मजबूत तकनीकी दिमाग चाहिए, तो कबीर खन्ना से बेहतर कोई और नहीं हो सकता।  

विक्रम ने कबीर की गुप्त पहचान का पूरा सम्मान करते हुए उससे गुप्त रूप से मिलने का फैसला किया। वह जानता था कि अगर उनकी मुलाकात सार्वजनिक होती, तो कबीर की छवि और सुरक्षा दोनों खतरे में पड़ सकती थीं। विक्रम ने कबीर के बारे में जितना सुना था, उससे वह काफ़ी इम्प्रेस्ड थे लेकिन अब वह उसे सामने देख रहे थे, तो वह उनकी उम्मीदों से बिल्कुल अलग निकला।  

विक्रम ने सोचा था कि कबीर शायद कोई कुर्सी पर बैठा मोटा और साधारण आदमी होगा, जो सिर्फ कंप्यूटर स्क्रीन के पीछे से कमाल करता है यह तो 27-28 साल का नौजवान निकल, और वह भी लंबा, गोरा, और बेहद हैन्सम। उसके भूरे बाल और नीली चमकीली आंखें किसी को भी आकर्षित कर सकती थीं। वह जितना स्मार्ट था, उतना ही आत्मविश्वास से भरा दिखता था। कबीर ने विक्रम को देखकर हल्की मुस्कान दी। उसके चेहरे पर ऐसा भाव था, जैसे वह सब कुछ पहले से ही जानता हो।

विक्रम ने कबीर को सारी जानकारी दी, कबीर ने उनकी ओर देखते हुए हल्के से मुसकुराते हुए कहा,

कबीर: “सर, आप जो मेरी इनफॉर्मेशन मुझे दे रहे हो, वो मैंने ही आपके डेटाबेस में रखी है। आप सिर्फ उतना जानते हो, जितना मैं आपको बताना चाहता हूँ। मैं आपके बारे में सब कुछ जानता हूँ। आपके प्लान के बारे में, आपकी आज तक की सभी पोस्टिंग्स के बारे में, आपकी इस टास्क फोर्स के बारे में और यहाँ तक कि आपकी टीम में अब तक सिलेक्ट की गई लिस्ट के बारे में भी, डिफेंस मिनिस्टर सर।”

विक्रम कुछ पल के लिए चुप रह गए। एरोगन्स और आत्मविश्वास के बीच में धागे-भर का फ़र्क होता है और कबीर, धागे के उस ओर था - मुँहफट और एरोगेंट।   उनके सामने खड़ा यह नौजवान न केवल एरोगेंट था, बल्कि अपनी काबिलियत और आत्मविश्वास से भरपूर था। थोड़ी देर तक कबीर की बात सुनने के बाद, विक्रम ने बिना समय गंवाए सीधे मुद्दे पर आते हुए कहा, 
 

विक्रम: “सही कहा तुमने। मैं एक टीम बना रहा हूँ। यह टीम देश की सुरक्षा के लिए है, जिसे बड़े से बड़े खतरे का सामना करना पड़ेगा। इस बड़ी जिम्मेदारी को निभाने के लिए मुझे एक साइबर एक्सपर्ट की जरूरत है। और मैं जानता हूँ, तुम इस फील्ड में सबसे बेहतरीन हो।”

दूसरे ही पल, उसके भीतर की देशभक्ति और जुनून ने उसकी सोच बदल दी। उसने एक जोश भरे स्वर में जवाब दिया, "जी सर, मैं तैयार हूँ!"

कबीर के इस जवाब को सुनते ही विक्रम ने कुछ सोचते हुए उससे पूछा,

विक्रम: "जान सकता हूँ, तुमने यह फैसला क्यों लिया?"

कबीर: "सर, मेरे देश को मेरी जरूरत है, मना कैसे कर सकता हूँ? मैं जो भी करता हूँ, वह देश की रक्षा के लिए ही करता हूँ। रही बात यहाँ से करने की या आपके साथ रहकर तो मेरा कैलक्युलेशन  यह कहता है कि आपके साथ काम करने में फ़्रीडम थोड़ी ज्यादा रहेगी!  

विक्रम के चेहरे पर हल्की मुस्कान उभरी। उन्होंने कबीर की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा,  वेलकम ऑन बोर्ड शैडो सोल्जर
 

कौन होगा विक्रम की टीम का अगला मेम्बर? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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