बनारस से आए उल्टे कैलेंडर ने नारायण को जो तारीख दिखाई थी, ठीक उसी तारीख पर पूरे भारत की बिजली चली गई थी। सूरज डूबने के ठीक बाद हुए इस अंधेरे ने दस से पंद्रह मिनट के भीतर ही पूरे देश में हाहाकार मचा दिया।

उधर अपने घर में बैठे नारायण को जैसे ही इसका पता चला, उसी समय सबकुछ रुक गया। नारायण अपनी आँखों के सामने अचानक पूरी दुनिया को ठहरा हुआ देख रहा था और उसके लिए ये सब काफी डरावना अनुभव था।

"राधिका.. राधिका.. आभा.. कुछ तो बोलो बेटी। तुमलोगों को क्या हुआ।" नारायण की आँखों के सामने उसकी पत्नी और बेटी पत्थर की मूर्ती की तरह जम गए थे। उसके अगल बगल की सजीव हो या निर्जीव, हर वस्तु अपने जगह पर रुक गई थी।

ये देख नारायण जब बाहर निकला, तो उसे और भी बड़ा सदमा लगा, “हे भगवान, यहाँ तो सिर्फ मेरा परिवार ही नहीं बल्कि पूरा शहर ही रुक गया है। सबकी लाइट भी चली गई है और मेरी चॉल के लोग जिस हाल में थे, उसी हाल में रुक गए हैं। आखिर ये सब क्या हो रहा है।”

अपने चारों तरफ अंधेरे में हर किसी को रुका देख नारायण की घबराहट बढ़ते जा रही थी। उसकी निगाहें जब इधर उधर गई, तो उसे पेड़ के पत्ते और उस पर बैठी चिड़िया भी किसी निर्जीव की तरह नजर आ रही थी। सड़कों पर चल रही गाड़ियां भी अचानक से अपने जगह पर रुक गई थी और इन सब के बीच बस नारायण खुद को ही जीवित देख पा रहा था।

“ये सब क्या हो गया नारायण। आखिर सबकुछ अपनी जगह पर रुक कैसे गया। कहीं उनलोगों ने ब्रह्मांड के संतुलन को पूरी तरह से खत्म तो नहीं कर दिया?" ये सोचते हुए नारायण की घबराहट बढ़ते जा रही थी। तभी उसकी नजरें आसमान से आ रही एक तेज रौशनी की ओर गई।

उस रौशनी को देखने के लिए नारायण ने जब अपनी निगाहें ऊपर की, तो उसकी आँखें आश्चर्य से और भी चौड़ी हो गई, “ये पूरा आसमान खाली कैसे हो गया। आखिर चांद तारे सब कहां गए? और ये कैसा संदेश है, जो आसमान में इस वक्त बस एक ही ग्रह चमक रहा है?" आसमान में नारायण को इस वक्त सिर्फ एक ही ग्रह नजर आ रहा था और उसी की रौशनी ने धरती को रौशन कर रखा था।  

अपनी आंखों के सामने ये सब होते देख नारायण को इसपर यकीन नहीं हो रहा था। उसे अब ये लगने लगा था कि शायद वो ये लड़ाई लड़ने से पहले ही हार चुका है। नारायण के दिमाग में ये सारी बातें चल ही रही थी, तभी वो ग्रह अचानक से अंतरिक्ष के अंधेरे की ओर जाने लगा। अगले ही पल वो ग्रह गायब हो चुका था और आमसान में एक बार फिर से चाँद तारे अपनी रौशनी बिखेरने लगे।

ये देख नारायण की नजरें अभी अपने आसपास देखने ही वाली थी, तभी उसके कानों में अपने आसपास खड़े लोगों की आवाजें गूंजने लगी। "उफ्फ ये अचानक पता नहीं लाइट क्यों चली गई थी। अब आ गई है, तो हमें राहत मिलेगा।" अपने आस पास खड़े लोगों की इन बातों को सुनकर नारायण को ये अंदाजा हो गया कि सबकुछ सामान्य होने लगा है और उनलोगों को समय के रुकने का या आसमान में दिखे ग्रह का पता भी नहीं चला है।

नारायण अभी ये सोच ही रहा था, तभी राधिका ने उसे आवाज लगाते हुए कहा, "आप नीचे क्यों चले गए? आइए ऊपर आइए।" पत्नी की बातों को सुन अपने ख्यालों में डूबा नारायण तुरंत अपने घर की ओर जाने लगा।

ऊपर पहुँचकर नारायण ने अपने घर में कदम रखा ही था, तभी उसकी पत्नी राधिका ने उससे कहा, “पता नहीं अचानक बिजली कैसे चली गई थी। वैसे आप चिंतामणि को जरा समझाइए। उसकी हरकतें अजीब होते जा रही हैं और अभी उसके कमरे से कुछ आवाजें भी आ रही थी।"

नारायण को लगा था कि चिंतामणि कुछ समय बाद उस किताब को छोड़ देगा और सही रास्ते पर आ जाएगा, लेकिन उसे इस तरह का व्यवहार करते देख नारायण से भी रहा नहीं गया और वो तुरंत चिंतामणि के कमरे का दरवाजा खोलकर उसके अंदर चला गया।

“तुम ये सब क्या कर रहे हो चिंतामणि? तुम्हें पता भी है ये तंत्र मंत्र वाली किताब तुम्हारे ऊपर कैसा प्रभाव डाल रही है? लाओ ये किताब मुझे दो।" नारायण ने बेहद ही सख्ती के साथ अपने बेटे से ये सब कह दिया।

उसकी बातों को सुनकर चिंतामणि ने तंत्र मंत्र वाली किताब को अपने पीछे छिपा लिया और नारायण से बोला, “बाबा, आप इनसब चीजों में मत पड़िए। आप भी तो ज्योतिष की किताब पढ़ते हैं और पिछले कई दिनों से न जाने किस चीज में लगे हैं। फिर आपको मुझसे क्या परेशानी है?"

चिंतामणि की बातों को सुन अब नारायण का गुस्सा बढ़ने लगा था और उसने तेज आवाज में कहा, “मुझे आज कोई बकवास नहीं सुननी है चिंतामणि। वैसे ज्योतिष में सबकुछ प्राचीन विज्ञान है, लेकिन तंत्र मंत्र जादू टोना पर आधारित है। वो कभी भी तुम्हारा भला नहीं करेगा चिंतामणि, इसलिए वो किताब मुझे दो और इनसब चीजों से बाहर निकलो।"

नारायण की सख्ती बढ़ती जा रही थी, लेकिन चिंतामणि भी इतनी जल्दी झुकने वाला नहीं था। “बाबा, हर किसी को अपना काम ऐसे ही अच्छा लगता है। वैसे सच कहूँ तो आपका ज्योतिष बेकार है, जो अभी तक आप अपना घर भी नहीं चला पा रहे थे। लेकिन आप देखना मेरा तंत्र मंत्र कैसे हमलोगों की जिंदगी बदल देगा।" चिंतामणि ने भी अपनी बातें नारायण के सामने रख दी।

ये सुनकर नारायण ने चिंतामणि के हाथ से उसकी तंत्र मंत्र वाली किताब को छीनते हुए उससे कहा, “हर जगह बात सिर्फ पैसों की नहीं होती है चिंतामणि, जीवन में सही और गलत नाम की चीज भी होती है। ये सब जो तुम कर रहे हो, इनके प्रभाव में आकर ही तुम्हारा दिमाग खराब हो रहा है। लेकिन, अब मैं इसकी जड़ को ही समाप्त कर दूँगा।"

चिंतामणि से इतना कहकर नारायण उसकी किताब को लेकर बाहर चला गया। ये देख चिंतामणि ने जोर से अपना दरवाजा बंद किया। अभी तक उसके चेहरे पर गुस्सा था, लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे का गुस्सा मुस्कान में बदल गया और उसने हँसते हुए अपने बैग से एक और किताब निकाल ली, “ये किताब मुझे भेजने वाला जानता था कि आप ऐसा करोगे, तभी तो उसने मुझे ऐसी दो किताबें भेजी थी। आप चाहे कुछ भी कर लो, लेकिन मुझे नहीं रोक पाओगे बाबा।"

ये सोचते हुए चिंतामणि एक बार फिर से उस किताब के पन्ने पलटने लगा। उधर चिंतामणि की किताब लेकर नारायण ने उसे अपने ही घर में कहीं छिपा दिया। किताब छिपाने के बाद भी नारायण के मन में अपने बेटे और परिवार को लेकर काफी द्वंद चल रहा था।

"चिंतामणि आखिर इनसब चक्करों में कैसे फस गया नारायण, ये भी सोचने वाली बात है। कहीं ये सब तुम्हारे दुश्मनों ने तो नहीं किया है?" अपने दुश्मनों के बारे में सोचते ही नारायण के दिमाग में कालांतक मंडल वालों का नाम चलने लगा।

“उस डायरी में कालांतक मंडल नाम की सीक्रेट सोसाइटी के खत्म होने के बारे में लिखा तो है, लेकिन मुझे पूरा यकीन है, वही लोग इन सबके पीछे हैं। तुम्हें इनके बारे में और पता लगाना होगा नारायण, तभी तुम इस साजिश की जड़ तक पहुँच पाओगे।" अपने दुश्मनों का ख्याल आते ही नारायण ने अपने दोस्तों के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया।

“अगर कालांतक मंडल तुम्हारा दुश्मन है नारायण, तो दोस्त अभी सिर्फ त्रिकालदर्शी है। तुम्हें तुम्हारे मकसद को हासिल करने में सिर्फ यही मदद कर सकता है नारायण। लेकिन, ये भी पता नहीं कहाँ मिलेगा।" नारायण ने अब अपने दोस्तों और दुश्मनों को पहचानना शुरू कर दिया था। एक ज्योतिष होने के नाते वो इस बात को अच्छे तरीके से जानता था कि अगर किसी के भाग्य को कोई इंसान लिखने लगे, तो वो उसकी जिंदगी बदल सकता है और यहाँ तो बात पूरी दुनिया के किस्मत की थी।

नारायण इन बातों में खोया ही हुआ था, तभी उसे थोड़ी देर पहले हुई घटना का ध्यान आया। समय का रुक जाना और उस तारे का दिखना कोई सामान्य घटना नहीं थी। “आखिर पूरे देश की बिजली चले जाना और फिर सबकुछ थमने के बाद उस तारे का दिखना, ये सब सामान्य बात तो नहीं थी नारायण। जरूर वो तारा कोई संदेश था और अब तुम्हें ही इसका पता लगाना होगा।"

ये सोचकर नारायण ने एक बार फिर से अपने कमरे में जाकर सारे ग्रंथ और पुराण निकाल दिए। वो उनमें ऐसी किसी मिलती जुलती घटना को खोज रहा था और उसकी ये खोज पूरी रात चलती रही।

पिछले कई रातों से नारायण ठीक से सोया नहीं था और उसकी आँखों के नीचे बने गड्ढे भी इसकी कहानी बयां कर रहे थे, लेकिन इसके बाद भी वो पूरी रात अपने खोज में डूबा रहा। नारायण ने अब तक कई किताबें और ग्रंथ पलटकर रख दिये थे, लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिल रहा था।

बाहर रात का अंधेरा खत्म होकर सूरज एक बार फिर से निकलने वाला था। ये देख नारायण ने एक बार फिर से भगवान का नाम लिया और इसबार वो दूसरे ग्रंथों को पलटने लगा। तभी उसे ज्योतिष की एक बेहद पुरानी किताब में ऐसी ही एक घटना का जिक्र देखने को मिला।

“समय का रुकना और आसमान में एक नए ग्रह की परछाई दिखना, तो इस ब्रह्मग्रह के उदय से जुड़ा हुआ है। इस किताब के मुताबिक तो ब्रह्मग्रह एक छुपा हुआ ग्रह है और जिसके उभरने से पहले ऐसी ही घटनाएं होती हैं, जो कल शाम को हो रही थी। इस ब्रह्मग्रह के निकलने का क्या मतलब है नारायण?" खुद से ही ये सवाल करते हुए नारायण ने जब उस किताब को आगे पढ़ना शुरू किया, तो उसके होश उड़ गए।

"ब्रह्मग्रह की उपस्थिति कोई साधारण घटना नहीं है। क्योंकि जब जब ये निकलता है, इसकी उपस्थिति से मनुष्य की चेतना और ग्रहों की दिशा बदल सकती है। ये सब कहीं उसी ओर इशारा तो नहीं कर रहा है नारायण, क्योंकि कालांतक मंडल वालों का भी लक्ष्य मनुष्य के भाग्य पर कब्जा करना है और इसके लिए उन्हें ग्रहों की दिशा भी बदलनी होगी।" ये सोच नारायण और भी चिंतित होते जा रहा था।

नारायण के दिमाग में ये सब तो चल ही रहा था, साथ ही वो उस किताब को आगे भी पढ़ रहा था। तभी उसे एक और आश्चर्यचकित करने वाली बात दिखाई पड़ी, “ये ग्रंथ कहता है कि जो समय और भाग्य का ज्ञानी है तथा जो समय और भाग्य पर कब्जा करना चाहता है, इस ग्रह की जानकारी सिर्फ उनके पास है।”

उस किताब में लिखी इस लाइन को जब नारायण ने डिकोड करने की कोशिश की, तो उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, “इस ब्रह्मग्रह ग्रह की जानकारी तो सिर्फ समय और भाग्य के ज्ञानी या उसपर कब्जा करने की सोच रखने वालों के पास है। ऐसा आखिर कौन है नारायण?"

नारायण ने जब खुद से ये सवाल किया तो अगले ही पल उसके दिमाग में ऐसे शख्स की तस्वीर साफ होने लगी, “जो समय और भाग्य का ज्ञानी हो यानी त्रिकालदर्शी और जो भाग्य पर कब्जा करना चाहता हो, यानी कालांतक मंडल। यानी इस ग्रह की जानकारी मुझे या तो त्रिकालदर्शी के पास या कालांतक मंडल के लोगों के पास मिलेगी।"

नारायण ने इस पहेली को सुलझा तो लिया था लेकिन उसे पता था, अब इसके आगे इससे भी बड़ी पहेली आने वाली है। इनबातों को सोचते हुए उसके चेहरे पर डर था और भविष्य की चिंता उसे खाये जा रही थी।

नारायण अब जान गया था कि उसे इस नए ब्रह्मग्रह के बारे में त्रिकालदर्शी ही बता सकता है। “इस ग्रह के बारे में ज्यादा जानने के लिए मुझे त्रिकालदर्शी से मिलना होगा, लेकिन त्रिकालदर्शी मुझसे तभी मिलेगा, जब उसका मन होगा। मैं अब आगे क्या करूँगा, मुझे ये तो नहीं पता है लेकिन इतना जरूर जानता हूँ, जल्द ही वो मुझे कोई न कोई संदेश जरूर देगा।”

नारायण ने उस ब्रह्मग्रह के बारे में जानकारी हासिल करते हुए और उसके बारे में पता लगाते हुए सुबह कर दी थी और एक बार फिर से बिना अपनी नींद पूरी किये वो अपने कामों में लग गया। 

नारायण तैयार होकर अपने काम पर जाने के लिए निकल ही रहा था, तभी उसकी बेटी ने चीखते हुए कहा, “बाबा.. बाबा.. आई बेहोश हो गई है।”

अचानक अपनी बेटी को यूँ चीखते देख और पत्नी के बेहोश होने की बात सुनकर नारायण तुरंत घर के भीतर की ओर भागा, तो उसे राधिका फर्श पर पड़ी हुई दिखी। ये देख नारायण ने तुरंत बेटी को पानी लाने कहा और राधिका का सर उठाकर अपनी गोद में रख लिया।

“राधिका.. राधिका.. तुम्हें क्या हुआ राधिका.." इतना कह नारायण ने जब राधिका की आँखों को खोलने की कोशिश की, तो उसके होश उड़ गए, “हे भगवान.. राधिका की आँखों में मुझे वही ब्रह्मग्रह क्यों दिख रहा है?"

नारायण ने जब राधिका की आँखों को खोला, तो उसकी पुतलियां गायब थी और उसे वहाँ सिर्फ वही ब्रह्मग्रह दिख रहा था।

 

आखिर राधिका की आंखों में क्यों दिख रहा है वो ब्रह्मग्रह.?

अपने परिवार को इस मुसीबत से कैसे बचाएगा नारायण.?

क्या त्रिकालदर्शी एक बार फिर से नारायण को दर्शन देकर उसे देगा ब्रह्मग्रह की पूरी जानकारी?

जानने के लिए पढ़ते रहें “स्टार्स ऑफ फेट।”

 

 

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