अपनी पत्नी को अचानक बेहोश होते हुए और उसकी आँखों में ब्रह्मग्रह की छवि देख नारायण के हाथ पाँव फूलने लगे थे। नारायण को अब सबकुछ अंत की ओर जाते हुए दिख रहा था और उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
"नहीं नहीं ये नहीं हो सकता। राधिका-राधिका होश में आओ राधिका, आँखें खोलो राधिका।" ये चीखते हुए नारायण ने राधिका के चेहरे पर पानी डालकर उसे जगाने की कोशिश कि लेकिन उसकी हर कोशिश व्यर्थ जा रही थी।
राधिका के चेहरे पर पानी डालने के बाद भी जब नारायण ने उसकी आंखों को खोलने की कोशिश कि तब भी उसे वही ब्रह्मग्रह दिख रहा था। राधिका की आंखों में दिख रहे ब्रह्मग्रह ने नारायण के हौसले को तोड़ कर रख दिया था।
"मैं राधिका को कुछ नहीं होने दे सकता। मुझे इसे किसी भी हाल में बचाना ही होगा। आखिर इसकी आँखों में मुझे ब्रह्मग्रह की छवि क्यूँ दिख रही है? कहीं ये अंत की शुरुआत तो नहीं है नारायण।" खुद से ही ये सवाल करते हुए नारायण की धड़कनें तेज होने लगी थी। उसके माथे से पसीनें की बूंदें लगातार निकल रही थी और उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था।
"हे त्रिकालदर्शी, मुझे कोई रास्ता दिखाओ। आखिर मैं अपनी पत्नी को कैसे बचाऊँ। मुझे बताओ त्रिकालदर्शी आखिर इस ब्रह्मग्रह की छवि मेरी पत्नी की आँखों में दिखने का क्या मतलब है?" नारायण को लग रहा था, उसके इस तरह सवाल करने पर शायद त्रिकालदर्शी आकर उसे कोई जवाब दे, लेकिन ये उसकी गलतफहमी थी।
थोड़ी देर तक नारायण को जब कोई जवाब नहीं मिला, तो उसे अब बस एक ही रास्ता दिख रहा था, “मुझे राधिका को लेकर अस्पताल जाना होगा। इसवक्त मेरी मदद सिर्फ डॉक्टर्स ही कर सकते हैं।”
ये सोच नारायण ने जब अपने अगल बगल देखा, तो उसे अपने बेटा या बेटी कोई भी वहाँ दिखाई नहीं दिया। ये देख नारायण ने अपने बेटे चिंतामणि को आवाज लगाना शुरू किया, “चिंतामणि.. चिंतामणि.. तुम कहाँ हो। जल्दी यहां आओ, हमें आई को लेकर अस्पताल जाना है।”
नारायण के चीखने पर भी वहाँ कोई नहीं आया। ये देख नारायण ने फिर से आवाज लगाई, लेकिन किसी की भी आवाज ना सुनकर वो चिंतामणि के कमरे की ओर गुस्से में चिल्लाते हुए भागा, “चिंतामणि, चिंतामणि, तुम्हें मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है क्या?”
नारायण ने इतना कह जब दरवाजा खोला, तो उसे कोई भी वहाँ नहीं दिखा। ये देख नारायण को लगा, जैसे चिंतामणि कहीं बाहर चला गया है। इसलिए वो अब आभा को आवाज लगाने लगा, “आभा.. चलो हमें आई को लेकर अस्पताल जाना है आभा।”
नारायण की इन बातों का आभा ने भी कोई जवाब नहीं दिया। ये देख नारायण उसके कमरे की ओर बढ़ा। नारायण ने जब उसके कमरे का दरवाजा खोला, तो आभा खिड़की के पास खड़ी थी। ये देख नारायण ने उससे एक बार फिर से कहा, “तुम यहाँ क्या कर रही हो आभा। चलो हमें आई को लेकर तुरंत अस्पताल जाना है।”
नारायण की बातों को सुन आभा ने उसकी ओर देखा, लेकिन उसने नारायण को कोई भी जवाब नहीं दिया। ये देख नारायण ने एक बार फिर से गुस्से में चिल्लाते हुए कहा, “तुम्हें सुनाई क्यों नहीं दे रहा है आभा। चलो हमें आई को लेकर तुरंत अस्पताल जाना होगा।”
नारायण की बातों को सुन आभा ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "मैं अभी कहीं नहीं जा सकती।" आभा ने बिल्कुल नारायण की आँखों में आंखें डालते हुए ये सब कह दिया था।
ये देख नारायण भी अंदर तक काँप गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बेटी अचानक इस तरह का व्यवहार क्यों करने लगी। लेकिन, मन में राधिका का ख्याल आते ही वो आभा को छोड़कर तुरंत राधिका की ओर भागा, जहाँ राधिका अभी भी बेहोश पड़ी थी।
इस मुसीबत में किसी का भी साथ ना मिलता देख नारायण ने घबराहट में किसी तरह राधिका को अपने कंधे पर उठाया और अपने घर से बाहर निकलने लगा। आज नारायण को अपने कंधे पर राधिका का बोझ कुछ भी नहीं लग रहा था, लेकिन ये सब उसकी वजह से हो रहा है, ये सोच उसका दिल बैठे जा रहा था।
राधिका को अपने कंधों पर डालकर डगमगाते कदमों से नारायण अभी अपने घर से बाहर निकला ही था, तभी उसके पड़ोसियों की नजर उसके ऊपर पड़ी। नारायण को लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ते हुए देखने के बाद भी उनमें से कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था।
"अरे अभी इनकी मदद करोगे और ठीक होने के बाद फिर यही तुमसे झगड़ा करेंगे। अभी इनलोगों ने कितना मचमच किया था और सबसे उलझ गए थे।" उस चॉल के एक आदमी की बातों को सुन दूसरे शख्स ने उससे कहा, “ठीक कहते हो भाऊ, ये अपना समझ लेंगे। वैसे मीडिया में आने के बाद से तो ये हमसे बात भी नहीं करते थे, तो बुला ले अपने उन्हीं चाहने वालों को।”
उनलोगों की ये बातें नारायण के कानों में भी जा रही थी, इसलिए उसने भी किसी से मदद माँगने की कोशिश नहीं की। लड़खड़ाते कदमों और माथे से टपक रही पसीने की बूंदों को संभालते हुए वो किसी तरह राधिका को लेकर नीचे उतरा।
"राधिका.. राधिका.. आँखें तो खोलो राधिका। आखिर तुम्हें क्या हो गया है। हौसला मत हारना राधिका, हम तुरंत हॉस्पिटल पहुँच जाएंगे।"राधिका को जमीन पर बैठाते हुए नारायण ने उससे इतना कहा और तुरंत जाकर दौड़ते हुए ऑटो लेकर आया।
राधिका को ऑटो में बैठाने के बाद नारायण ने तुरंत ऑटो हॉस्पिटल की ओर लेकर चलने के लिए कहा। मुंबई की ट्रैफिक को चीरते हुए वो ऑटो भी आगे की ओर बढ़ने लगा, लेकिन नारायण के दिमाग में अभी भी पुरानी बातें ही चल रही थी, “मेरे परिवार के साथ ये सब हो रहा है, तो इसकी वजह सिर्फ मैं हूँ। मैं अगर ज्योतिष छोड़कर कोई दूसरा काम करता, तो शायद त्रिकालदर्शी मुझे ग्रहों का संतुलन बहाल करने के लिए नहीं खोजता और ना ही आज राधिका का ये हाल होता।”
इनबातों को सोचते हुए नारायण को काफी गुस्सा आ रहा था और उसने गुस्से में ही चिंतामणि को भी कॉल करने की कोशिश की, लेकिन चिंतामणि ने नारायण के फोन का कोई जवाब नहीं दिया, “चिंतामणि से मैंने वो किताब छीनकर फेंक तो दिया था, फिर ये आज कहाँ गायब हो गया। मुझे चिंतामणि से बात कर उसे भी सही रास्ते पर लाना ही होगा, लेकिन उससे पहले राधिका को बचाना बहुत जरूरी है।”
इनबातों को सोचते हुए नारायण की आँखें राधिका पर ही टिकी हुई थी। तभी वो ऑटो एक जगह आकर रुक गया। "क्या हुआ भइया, आपने ऑटो क्यों रोक दिया। आप जल्दी हॉस्पिटल चलिए।" ऑटो वाले से ये कहते हुए नारायण का गला भर्रा रहा था।
नारायण की बातों को सुन ऑटो वाले ने आगे की ओर इशारा करते हुए कहा, “आपको जल्दी है मैं समझता हूं साहब, लेकिन आप मुंबई के ट्रैफिक को जानते ही हैं, अभी सिग्नल हरा होगा, तो मैं आगे बढ़ता हूँ।”
ऑटो वाले की बातों को सुन नारायण की बेचैनी और भी बढ़ने लगी और वो इधर उधर घबराते हुए देखने लगा। नारायण ट्रैफिक सिग्नल के ग्रीन होने का इंतजार कर ही रहा था, तभी अचानक एक फटा पुराना कपड़ा पहना हुआ भिखारी उसके ऑटो के पास आकर खड़ा हो गया।
वो भिखारी नारायण को देखकर हँस रहा था। ये देख ऑटो वाले ने भिखारी से कहा, “अरे ये खुद परेशान हैं। जा तू आगे बढ़।”
ऑटो वाले की बातों को सुन वो भिखारी जोर जोर से हँसने लगा। ये देख नारायण को थोड़ा अजीब लगा, फिर भी उसने भिखारी पर ध्यान नहीं दिया। ये देख वो भिखारी नारायण के चेहरे के और पास आ गया।
ये देख नारायण ने घबराते हुए उसकी ओर देखा और नारायण से नजरें टकराते ही उस भिखारी ने अचानक ही बेहद गंभीर होते हुए नारायण से कहा, “वो तुझे मारेंगे, वो तुझे जरूर मारेंगे, लेकिन याद रखना इससे तू नहीं मरेगा, बल्कि मरेगा कोई और। वो तुझे मारेंगे, लेकिन मरेगा कोई और रे बदनसीब।”
भिखारी की इन बातों को सुन नारायण हक्का बक्का रह गया। तभी सिग्नल क्लियर होते ही ऑटो वाले ने ऑटो की स्पीड बढ़ा दी। ऑटों के आगे बढ़ते ही नारायण ने तुरंत घबराते हुए कहा, “रुको रुको।”
नारायण से इतना सुन ऑटो वाले ने कहा, “क्या साहब, अभी तो आपको लेट हो रहा था, अब सिग्नल पर रुकने बोल रहे हो। वैसे भी ऑटो रुका तो अब वो पीछे वाले तुरंत गाड़ी ठोक देंगे।”
ऑटो वाले की बातों को सुन नारायण ने घबराते हुए ऑटो से ही सर निकालकर उस भिखारी को फिर से देखना चाहा, लेकिन उसे इस बार सिग्नल पर कोई भी नहीं दिखा। ये देख नारायण की घबराहट और भी बढ़ गई, “आखिर ये कौन था और ये ऐसी बातें क्यों कर रहा था। तुम्हें इसे भी खोजकर इससे मिलना होगा नारायण, ये कुछ न कुछ तो जरूर जानता है।”
नारायण ये सोच ही रहा था, तबतक उसका ऑटो हॉस्पिटल के बाहर आकर खड़ा हो गया। ऑटों रुकते ही वो तुरंत ऑटों से उतरा और वार्ड बॉय को बुलाकर उसने राधिका को स्ट्रेचर पर लिटाया और अंदर जाने लगा।
हॉस्पिटल के अंदर काफी भीड़ थी और सारे डॉक्टर इधर उधर लगे हुए थे। ये देख नारायण तुरंत दौड़ते हुए काउंटर पर गया और उसने अपनी परेशानी बताई। नारायण की बातों को सुन उन्होंने तुरंत राधिका के लिए एक डॉक्टर बुलाया और डॉक्टर वहाँ आकर राधिका को जाँचने लगा।
नारायण भी इस वक्त वहीं डॉक्टर के सामने हाथ जोड़कर खड़ा था और घबराते हुए सबकुछ बता रहा था, “अभी थोड़ी देर पहले तक ये बिल्कुल सही थी डॉक्टर साहब। अचानक मेरी बेटी ने आकर बताया कि ये बेहोश हो गई है। ये ठीक तो हो जाएगी न डॉक्टर साहब।”
पहले राधिका की नब्जों को जाँचने के बाद अब वो डॉक्टर राधिका के शरीर का ऑक्सीजन लेवल जाँच रहा था और उसने नारायण की ओर सबकुछ ठीक होने का इशारा किया। नारायण ने जानबूझकर ब्रह्मग्रह के आँखों में दिखने की बात छिपा ली थी। तभी डॉक्टर ने राधिका की आंखों को खोलने के लिए अपने हाथ बढ़ाये।
ये देख नारायण की भी धड़कनें तेज होने लगी। उसका कलेजा उसके मुँह में आने ही वाला था, तभी डॉक्टर ने राधिका की पुतलियों को देख नारायण से कहा, “सबकुछ ठीक लग रहा है। लगता है, ब्लड प्रेशर लो होने की वजह से ये बेहोश हो गई हैं। मैं दवाइयां लिख देता हूँ, थोड़ी देर में ही ये ठीक हो जाएंगी।”
डॉक्टर की बातों को सुन नारायण ने राहत की सांस ली। राधिका के चेहरे को ध्यान से देखते हुए वो उसके पास गया ही था, तभी उसे राधिका की धड़कनों में एक अजीब सी आवाज सुनाई दी। ये आवाज किसी धुन की तरह थी और ये सुन नारायण ने तुरंत घबराते हुए कहा, “डॉक्टर डॉक्टर, ऊपर से तो सबकुछ सही लग रहा है, लेकिन इनकी धड़कनों की लय कुछ अजीब लग रही है। ऐसा लगता है, जैसे कोई संगीत की धुन बह रही है।”
नारायण की बातों को सुन डॉक्टर ने एक बार फिर से राधिका की धड़कनों की लय जांची, लेकिन उसे सबकुछ ठीक लगा। “आप भी कैसी बातें करते हैं, मुझे तो सबकुछ ठीक लग रहा है।”
डॉक्टर की बातों को सुन नारायण आगे कुछ भी बोल नहीं पाया। इसी बीच राधिका ने अपनी आंखें खोलते हुए नारायण से कहा, “हमलोग कहाँ हैं?”
राधिका की आवाज सुनकर नारायण सबकुछ भूल गया और उसने तुरंत राधिका का हाथ पकड़कर हँसते हुए कहा, “भगवान का शुक्र है, सबकुछ ठीक है।”
राधिका से इतना कहते हुए नारायण ने उससे सबकुछ बता दिया। इन बातों को सुनकर राधिका के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें उभर आई। ये देख नारायण ने उससे कहा, “चिंता मत करो राधिका, सबकुछ ठीक है। डॉक्टर ने बोला है, हम घर जा सकते हैं।”
राधिका से इतना कहकर नारायण ने हॉस्पिटल का बिल चुकाया और वो लोग वापस घर की ओर जाने लगे। ऑटो में बैठे हुए नारायण ने राधिका के हाथों को पकड़ रखा था, लेकिन उसके दिमाग में अब कुछ और ही चल रहा था, “चिंतामणि गायब है और आभा का भी व्यवहार बदल गया है। इधर राधिका की भी हालत ठीक नहीं लग रही है। आखिर ये सब क्या है नारायण.?”
नारायण इतना सोच ही रहा था, तभी उसका ऑटो फिर से उसी सिग्नल पर आकर रुका, जहाँ उसे भिखारी दिखा था।
क्या नारायण से फिर मिलेगा वो भिखारी? क्या हुआ है चिंतामणि और आभा के साथ? आखिर अपने परिवार को कैसे बचाएगा नारायण.?
जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।
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