अपनी पत्नी के साथ ऑटो में बैठा नारायण इस वक्त उसी सिग्नल पर रुका था, जहाँ उसे वो भिखारी दिखा था। नारायण की बेचैन निगाहें इस वक्त उसी भिखारी को खोज रही थी, लेकिन उसे वो नहीं दिख रहा था।
"आखिर वो कहाँ चले गए? क्या सचमुच वो कोई भिखारी ही थे या फिर वो कोई और थे? अगर वे एक बार और मिल जाते, तो मैं उनसे जरूर पूछता कि जब कोई मुझे मारेगा, तो फिर कोई दूसरा कैसे मरेगा।" इन बातों को सोचते हुए नारायण बार बार ऑटो से बाहर देखने की कोशिश करता, लेकिन उसे वो शख्स नहीं दिखा।
नारायण को यूँ बेचैन होकर बाहर देखते देख राधिका से भी रहा नहीं गया और उसने नारायण के हाथों को पकड़ते हुए कहा, "क्या हुआ जी, आप किसे खोज रहे हैं? मैं कबसे देख रही हूँ, इस सिग्नल पर रुकने के बाद से ही आपकी निगाहें किसी को ढूंढ रही हैं।"
राधिका की बातों को सुन नारायण ने अपने चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाते हुए कहा, "वो अस्पताल जाते हुए जब ऑटो यहां रुका था, तो एक भिखारी पैसे माँग रहा था, लेकिन मैं नहीं दे पाया था। इसलिए उसे ही खोज रहा हूँ, ताकि कुछ पैसे दे सकूँ।"
नारायण का जवाब सुनकर राधिका ने उससे आगे कुछ भी नहीं कहा। थोड़े ही देर में वे लोग वापस अपने चॉल पहुँच चुके थे। चॉल की सीढ़ियों पर राधिका का हाथ पकड़कर चढ़ते हुए नारायण ने उससे कहा, "हम जल्द ही ये चॉल छोड़कर कहीं और रहने चलेंगे। यहाँ अब कुछ भी अपना सा नहीं लगता।"
राधिका की जब तबियत खराब थी, उस वक्त किसी ने भी नारायण की मदद नहीं की और इस बात ने उसका दिल तोड़ दिया था। सिर्फ एक झगड़े से लोग इतना बदल जाएंगे, नारायण को इसपर भी यकीन नहीं हो रहा था। नारायण की इन बातों को सुनकर राधिका बस मुस्कुरा रही थी।
अपने घर के भीतर पहुँचकर नारायण ने जब इधर उधर नजरें डाली, तो आभा अपना काम कर रही थी और चिंतामणि भी घर में ही मौजूद था। ये देख नारायण ने राधिका से कहा, "तुमने अभी दवा खाया है राधिका और डॉक्टर ने भी तुम्हें आराम करने बोला है। जाओ तुम आराम करो।"
नारायण की बातों को सुनकर राधिका भी चुपचाप अपने कमरे में सोने चली गई। राधिका को भेजने के साथ ही नारायण ने आभा और चिंतामणि को एक साथ बुलाया और चिंतामणि की ओर देखते हुए कहा, "मैं तुम्हें कब से कॉल कर रहा था, तुमने मेरा फोन क्यों नहीं उठाया?"
अपने पिता की बातों को सुन चिंतामणि ने सीधा उसकी आँखों में आंखें डालते हुए कहा, "मैं अपना फोन घर पर ही भूल गया था और किसी जरूरी काम से बाहर गया था।"
चिंतामणि का जवाब सुनकर नारायण को कुछ गड़बड़ तो जरूर लग रहा था, लेकिन उसके पास अभी कहने के लिए कुछ भी नहीं था, इसलिए उसने चिंतामणि को जाने दिया। नारायण की निगाहें अब आभा के ऊपर टिकी हुई थी, लेकिन आभा की आँखों में भी उसे कोई अफसोस नहीं नजर आ रहा था।
ये देख नारायण ने आभा से कहा, "तुम्हें जब मैंने मदद के लिए कहा, तो तुमने साफ मना कर दिया। आखिर तुमने ऐसा क्यों किया आभा और क्या तुम्हें हमारी जान की जरा भी फिक्र नहीं है? अगर मैं और आई मर जायेंगे, तो तुम्हें कोई भी फर्क नहीं पड़ेगा क्या आभा?"
नारायण की बातों को सुन आभा थोड़ी देर तक चुप रही और फिर उसने बिना किसी हिचकिचाहट के नारायण से कहा, "अगर किसी को मरना ही होगा, तो उसे मैं रोक तो नहीं सकती।"
अपनी बेटी को ऐसी बातें करते देख नारायण का गुस्सा भड़क उठा, "आखिर तुम ये कैसी बातें कर रही हो आभा? क्या तुम भी चिंतामणि वाली फालतू तंत्र मंत्र वाली किताब पढ़ने लगी हो? आखिर तुम्हारे दिमाग में ऐसी बातें आ कहाँ से रही हैं आभा?"
नारायण का गुस्सा देखने के बाद भी आभा के चेहरे पर शिकन का नामोंनिशान तक नहीं था। उसके चेहरे पर एक अजीब सा उन्माद छाया हुआ था और ये उन्माद नारायण को ही डरा रहा था। नारायण की बातों को सुनने के बाद भी आभा ने उसका कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप अपने कमरे की ओर जाने लगी।
ये देख नारायण भी उसकी ओर बढ़ा, लेकिन अगले ही पल आभा के कमरे के भीतर से उसके रोने की आवाज सुनाई पड़ने लगी। ये देख नारायण के कदम उसके कमरे के बाहर ही ठिठक गए, "लगता है आभा को अपनी हरकत का अफसोस हो रहा है, तभी वो रो रही है। उसे अब तुम कुछ मत बोलो नारायण, वरना कहीं वो कुछ गलत कदम ना उठा ले।"
ये सोच नारायण जैसे ही वापस जाने के लिए मुड़ा, उसके कानों में किसी के हँसने की आवाज सुनाई पड़ी। "ये तो आभा और चिंतामणि के हँसने की आवाज है। ये दोनों आखिर अपने अपने कमरों में हँस क्यों रहे हैं और आभा तो अभी रो रही थी, फिर वो कैसे हँसने लगी?"
उनदोनों के कमरों के बीच खड़ा नारायण ये सोचकर बेहद परेशान था, तभी उसके कानों में फिर से आभा के रोने की आवाज सुनाई पड़ने लगी। ये सुनकर उसने राहत की साँस ली, "हो सकता है चिंतामणि ही हँस रहा हो और आभा रो रही थी। जरूर मुझे कोई गलतफहमी हुई होगी।"
मन में इस शंका को रखते हुए नारायण खुद को समझाते हुए वहाँ से जाने तो लगा, लेकिन उसे अपने बच्चों का ये बदला हुआ व्यवहार बहुत सता रहा था, "ये सब कहीं न कहीं तेरी वजह से ही हो रहा है नारायण, ऐसा लगता है कि तुम्हारे ग्रहों की बदली हुई दशा अब तुम्हारे बच्चों को भी प्रभावित करने लगी है या फिर कोई जानबूझकर इन सब के बीच तुम्हारे परिवार को ला रहा है। वजह चाहे जो भी हो, तुम्हें ये सब ठीक करना ही होगा नारायण।"
ये सोचकर नारायण एक बार फिर से अपने पुराणों की किताबों में खो गया। अपने परिवार के बदले हुए माहौल और बढ़ते हुए तनाव को वो साफ महसूस कर सकता था, इसलिए उसे जल्द से जल्द इसका जवाब चाहिए था।
"नारायण तूम्हारी जिंदगी में जो हो रहा है, उसका जवाब तो इन किताबों में नहीं है, फिर तुम्हें ये कैसे बता पायेगा कि आखिर तुम्हारे परिवार के साथ ये सब क्यों हो रहा है। तुम्हें कोई और रास्ता खोजना होगा नारायण।" ये सोचते हुए नारायण की निगाहें बार बार बनारस के उसी घाट पर जाकर ठहर जा रही थी, जहाँ उसे त्रिकालदर्शी मिला था।
नारायण इस बात से भली भांति वाकिफ था कि उसके सारे सवालों का जवाब त्रिकालदर्शी ही दे सकता है, लेकिन वो ये भी जानता था कि त्रिकालदर्शी उससे मिलेगा, ये इतना आसान नहीं होने वाला है।
"त्रिकालदर्शी अब मेरी जीवन की डोर मेरे हाथों से फिसलने लगी है और वे लोग हमारे ऊपर हावी होने लगे हैं, जिनसे मुझे लड़ना है। अगर वे ऐसे ही मेरे परिवार को निशाना बनाते रहे तो फिर मैं टूट जाऊँगा और उनसे किसी भी हाल में नहीं लड़ पाऊंगा। इसलिए तुम्हें अब जल्द से जल्द मुझसे मिलना होगा त्रिकालदर्शी।" खुद से ही बातें करके त्रिकालदर्शी को बुला रहे नारायण को इच्छा हो रही थी कि वो अभी तुरंत बनारस के लिए निकल जाए, लेकिन वो जानता था कि अगर वो अभी बनारस गया, तो उसका परिवार बिखर जाएगा। इसलिए एक बार फिर से वो अपने किताबों में ही अपना जवाब खोजने की कोशिश करने लगा।
इसी तनाव के बीच और राधिका का ख्याल रखते हुए नारायण का दिन कैसे बीत गया, इसका उसे पता भी नहीं चला। रात होने को आई थी और उसके घर में अभी भी एक अजीब सा तनाव पसरा हुआ था।
अपने पति को कबसे यूं किताबों में खोया देख राधिका ने उससे कहा, "बहुत रात हो गई है जी। दिन भर आप अस्पताल में भागते रहे और आने के बाद से इन किताबों में खोए हुए हैं। अब इस कल पढियेगा, आइए सो जाइये।"
राधिका की बातों को सुनकर नारायण ने घड़ी की ओर देखा, तो रात के बारह बजने वाले थे। "चलो नारायण आज सो जाते हैं, वैसे भी इन किताबों में तुझे कोई जवाब नहीं मिलने वाला है। हो सकता है, कल की सुबह तेरे लिए कोई नया उजाला लेकर आये आये और तुझे तेरे सवालों का जवाब मिल जाये।" मन में उम्मीद की एक नई किरण जगाते हुए नारायण भी सोने के लिए चला गया।
बिस्तर पर लेटे हुए नारायण की आँखों से नींद काफी दूर थी और वो इधर उधर करवटें बदल ही रहा था, तभी अचानक उसके कानो में किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी। इस आवाज को सुनकर नारायण बिस्तर से उठकर बैठ गया। उसके बगल में लेटी राधिका भी जग गई और उसने तुरंत नारायण से कहा, "ये तो आभा की आवाज थी, मेरी बेटी को क्या हो गया।"
नारायण से इतना कहकर आभा तुरंत अपने बिस्तर से ऊठकर आभा के कमरे की ओर दौड़ते हुए गई। ये देख नारायण भी उसके पीछे पीछे भागा। अगले ही पल जब राधिका, आभा के कमरे का दरवाजा खोलकर उसके भीतर गई, तो वो घबराते हुए अपने बिस्तर पर बैठी थी और उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था।
आभा की आँखों से आंसुओं की बूंदे भी निकल रही थी और ये देख राधिका ने आभा को पकड़ते हुए उससे कहा, "क्या हुआ बेटी, तुम चीख क्यों रही थी और तूम्हारी आँखों में आँसू क्यों है?"
राधिका की बातों को सुनकर आभा भी उससे लिपट गई और फुट फुटकर रोने लगी। ये देख नारायण की घबराहट और भी बढ़ने लगी और उसने आभा से कहा, "हुआ क्या है बेटी, ये तो बताओ? आखिर तुम रो क्यों रही हो?"
नारायण की बातों को सुन आभा ने उसकी ओर देखते हुए कहा, "बाबा, वो उस जगह हजारों लोग उल्टे लटके हुए थे। उस जंगल के बीचोंबीच उन सूखे पेड़ो से वे लोग लटक रहे थे। उनकी चीखों से आसमान का भी कलेजा फट रहा था बाबा, लेकिन उन्हें लटकाने वालों का दिल नहीं पसीज रहा था।"
आभा की बातों को सुनकर नारायण हैरानी भरी निगाहों से उसका चेहरा देखने लगा। उसे इस वक्त बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो आभा के सवालों का क्या जवाब दे। नारायण को यूँ दुविधा में देख राधिका ने आभा से कहा, "अरे बेटी तुमने कोई बुरा सपना देखा होगा। पगली कोई सपना देखकर भी इतना डरता है क्या? तूने तो हमारी जान ही निकाल दी थी।"
राधिका को ये सब सपना लग रहा था, लेकिन नारायण जानता था कि ये आभा के सपनों से कहीं ज्यादा है। उसे अंदाजा होने लगा था कि जरूर ये सब उसी के लिए कोई संदेश है, लेकिन वो अपने परिवार की टेंशन बढाना नहीं चाहता था, इसलिए उसने कुछ भी नहीं कहा।
नारायण चुप होकर ये सब कुछ सुन ही रहा था, तभी आभा ने उससे कहा, "बाबा, आप तो जानते हैं न, ये सपने कहीं न कहीं सच से ही जुड़े हुए हैं। आपको तो मेरी बातों पर यकीन है न बाबा।"
आभा की बातों को सुनकर नारायण उसका चेहरा देखने लगा, तभी आभा ने उससे आगे कहा, "बाबा आप मेरी बातों को समझ रहे हैं न। वैसे भी मेरे सपने अब भविष्य और झूठी कल्पनायें नहीं, बल्कि छेड़े गए वर्तमान को दिखाते हैं। मैं सच कह रहीं हूँ बाबा, मेरे सपने अब यही दिखाते हैं कि आखिर वर्तमान के साथ कहाँ छेड़छाड़ हो रहा है। ये लटके हुए लोग भी जरूर इसी से जुड़े हुए हैं बाबा।"
अपनी बेटी की बातों को सुनकर नारायण के हाथ पांव फूलने लगे। वर्तमान और भविष्य के जिस जाल में वो फसा हुआ था, उसी जाल में अपने परिवार को भी फसते देख उसके माथे से भी पसीने की बूंदे टपकने लगी।
नारायण को अब यकीन होने लगा था कि कोई जान बूझकर उसके परिवार के साथ ये सबकुछ कर रहा है। नारायण इनबातों को समझ तो रहा था, लेकिन वो अपने परिवार को टेंशन में नहीं डालना चाहता था, इसलिए उसने आभा को समझाते हुए कहा, "अरे ऐसा कुछ नहीं है बेटा, ये सब जरूर तुम्हारा भ्रम होगा। अब ये सब छोड़ो और सो जाओ, कल तुम्हें कॉलेज भी तो जाना है।"
अपनी बेटी को इतना समझाकर नारायण वहाँ से उठकर जाने लगा, तभी आभा ने उसका हाथ पकड़ लिया। ये देख नारायण पीछे मुड़ा, तो डर के मारे आभा का पूरा बदन कांप रहा था और उसने नारायण से डरते हुए ही कहा, "आप मेरी बात को नहीं समझ रहे हैं बाबा। अब सबकुछ बदल गया है और मैं त्रिकालदर्शी को भी मरते हुए देख चुकी हूँ।"
आखिर आभा को कैसे पता चला त्रिकालदर्शी के बारे में और क्या सचमुच हो चुकी है त्रिकालदर्शी की मौत.?
आभा के सपनों और राधिका की आँखों में दिखे ब्रह्मग्रह का नारायण से क्या है नाता.?
अपने परिवार को इस मुसीबत से कैसे बचाएगा नारायण.?
जानने के लिए पढ़ते रहें STARS OF FATE..
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