कालांतक मंडल के बारे में जानकारी हासिल करते हुए नारायण को ऐसी चीजों का पता चल रहा था, जो उसके होश उड़ाने के लिए काफी थे। नारायण अभी कालांतक मंडल के बारे में सोचकर बेचैन हो ही रहा था, तभी उसे अपनी खिड़की पर दिखी किसी परछाई ने और भी बेचैन कर दिया।
नारायण की निगाहें उसी परछाई पर टिकी हुई थी। "ये परछाई देखने में इतनी भयानक क्यों लग रही है नारायण। किसी इंसान की परछाई तो इतनी बड़ी और भयानक नहीं लग सकती। इसकी आँखों का भी रंग लाल नजर आ रहा है।" उस परछाई को इस तरह खतरनाक रूप में देख नारायण की साँसे और भी तेज होने लगी।
उस परछाई को देख नारायण को घबराहट तो हो रही थी, लेकिन फिर भी उसके मन में उस परछाई को देखने की उत्सुकता जन्म लेने लगी। "नारायण ये डरावना हुआ तो क्या हुआ, तुम्हें ये देखना तो चाहिए कि आखिर ये कौन है। अगर ये जंग की शुरुआत है, तो वही सही नारायण।" ये सोचकर नारायण ने अपने मन को मजबूत किया और अपनी जगह से उठकर खिड़की ओर बढ़ गया।
नारायण जैसे ही उस खिड़की की ओर जाने के लिए अपने कदम बढ़ाने लगा, वो परछाई पीछे की ओर जाने लगी। ये देख नारायण ने बेहद तेजी से आगे बढ़ते हुए अपने कमरे की खिड़की को खोल दिया। "आखिर ये कौन था, जो मुझे घूर तो रहा था, लेकिन मेरे यहाँ आते ही गायब हो गया।" ये सोच नारायण अपने घर से बाहर निकलकर इधर उधर देखने लगा, लेकिन उसे कोई भी नजर नहीं आया।
नारायण वहीं खड़ा होकर काफी देर तक उस आकृति के दुबारा दिखने का इंतजार करता रहा, लेकिन उसे कोई भी नजर नहीं आया। अंत में वो हार मानकर अपने कमरे के भीतर चला तो आया, लेकिन उसके दिमाग में अभी भी वो आकृति और डायरी में लिखी हुई बातें ही घूम रही थी।
"कहीं इस डायरी में लिखे कालांतक मंडल और अभी मेरी खिड़की पर दिखे साये के बीच कोई संबंध तो नहीं है। नहीं नहीं नारायण, इतना सोचने की जरूरत नहीं है। ये भी तो हो सकता है कि ये कोई भ्रम हो।" ये सोचते हुए नारायण की नजरें जब घड़ी के ऊपर गई, तो रात के बारह बजने वाले थे और राधिका भी सो चुकी थी। ये देख नारायण भी सोने के लिए चला गया।
नारायण बिस्तर पर लेट तो गया था, लेकिन उसका ध्यान अभी भी उस किताब और उस आकृति पर ही था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी और उसकी रात इन सबके बारे में सोती हुए ही गुजरी। सुबह के वक्त जब नारायण की बोझिल आँखों में थोड़ी नींद भी आई, तभी उसके कानों में काफी तेज बहस की आवाज सुनाई पड़ी।
वो आवाज सुनते ही कमरे से बाहर आया, तो उसने देखा कि राधिका, चिंतामणि और आभा पर अपना गुस्सा उतार रही है। "तुमदोनों ने मेरी नाक में दम कर के रख दिया है। एक को पता नहीं किस गुरु ने क्या पढा दिया है, जो दिन भर ये तंत्र मंत्र वाली किताबें पढ़ रहा है, तो दूसरी को कॉलेज जाने का भी मन नहीं कर रहा।" राधिका की तेज आवाज और आँखों से बरस रहे गुस्से को देख चिंतामणि और आभा वहीं चुपचाप खड़े थे।
ये देख नारायण ने आगे आते हुए कहा, "तुम इतना टेंशन मत लो राधिका। ये दोनों भी अब समझदार हो रहे हैं। मुझे पूरा भरोसा है, दोनों कुछ गलत नहीं करेंगे।" नारायण ने ये सारी बातें चिंतामणि की ओर देखते हुए कही थी, ताकि उसे एहसास हो कि वो चिंतामणि पर कितना विश्वास करता है।
नारायण की नजरें अभी भी चिंतामणि को ही देख रही थी, तभी ये सब सुनकर राधिका और भी भड़क उठी, "आप तो बस ही करो। दिन भर न जाने आप भी कहाँ इधर उधर घूमते रहते हो। ना तो आपका ध्यान अपने काम पर है और ना ही बच्चों को देख रहे हो। अरे जब बाप ही इतना लापरवाह होगा, तो बच्चों से क्या ही उम्मीद की जा सकती है।"
राधिका की बातों को सुन नारायण उसकी ओर देखता रह गया। उधर माँ का गुस्सा पिता पर उतरते देख बच्चे भी अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए। नारायण को ये सब सुनाने के बाद राधिका भी अपने काम में लग गई, लेकिन नारायण वहीं पर किसी मूर्ति की तरह खड़ा रहा।
"मेरी बनारस यात्रा के बाद घर में जो सुख शांति आई थी, वो सब छीन गई है। हमारा परिवार जितना खुशहाल हो गया था, लगता है, सच में उसे किस की नजर लग गई। तुम ये सब ऐसे बर्बाद होते हुए नहीं देख सकते हो नारायण। तुम्हें ही सब ठीक करना होगा।" दुनिया के संतुलन को बिगड़ते देख नारायण उसे ठीक करने की कोशिश तो कर ही रहा था, लेकिन इसके साथ उसे अब अपने परिवार को भी ठीक करना था।
थोड़ी देर तक इस बारे में सोचने के बाद भी नारायण का मन शांत नहीं हो रहा था, इसलिए वो वापस से वही डायरी खोल कर बैठ गया, जिसमें उसे कालांतक मंडल के बारे में जानकारी मिली थी।
"इस डायरी के मुताबिक कालांतक मंडल कोई सीक्रेट सोसाइटी है, जिसके लोग ग्रहों की दशा बदलकर इंसानों के भाग्य पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर ये लोग ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं, तो फिर वे लोग पूरी दुनिया के इंसानों की नियति अपने हिसाब से तय कर सकते हैं।" नारायण इस बारे में जितना ज्यादा सोच रहा था, उसे ये परेशानी उतनी ही बड़ी होते हुए नजर आ रही थी।
"नारायण, कोई इंसानों के भाग्य पर कब्जा कर ले और फिर उनकी किस्मत अपने हिसाब से लिखे, इसका मतलब तो वो इंसानों को अपना गुलाम बना लेगा और इंसानों की किस्मत अपने हिसाब से लिखकर उनसे कुछ भी करा सकता है। ये तो दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार है नारायण और किसी परमाणु बम से भी खतरनाक है।" नारायण को अब समझ आ रही थी कि स्थिति कितनी गंभीर होने वाली है।
इन बातों को सोचते हुए और डायरी को पढ़ते हुए नारायण फिर से डायरी के अंत पर आ गया और वहाँ लिखी एक बात नारायण को और भी चिंता में डाल रही थी, "इसमें कालांतक मंडल के मकसद के बारे में तो बताया गया है, लेकिन ये भी लिखा हुआ है कि कालांतक मंडल नाम की सीक्रेट सोसायटी को बंद भी किया जा चुका है। अगर ये बंद हो गया है, तो फिर इंसानों की भाग्य बदलने की कोशिश कौन कर रहा है नारायण?'
इस बारे में काफी देर तक सोचने के बाद भी जब नारायण को कोई जानकारी नहीं मिली, तो उसने कालांतक मंडल के बारे में ही जानकारी हासिल करनी शुरू दी। नारायण जानता था कि उसके पास मौजूद किसी भी किताब में कालांतक मंडल के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी, इसलिए उसने इंटरनेट पर ही कालांतक मंडल के बारे में जानकारी हासिल करने का फैसला किया।
नारायण ने कालांतक मंडल के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए इंटरनेट पर इस बारे में सर्च तो किया, लेकिन उसे इससे जुड़ा कुछ भी नहीं मिल रहा था। नारायण की ये खोज काफी देर तक जारी रही, लेकिन उसे दुनिया के किसी भी वेबसाइट पर कालांतक मंडल के बारे में कुछ भी नहीं मिला।
काफी देर तक इस बारे में खोजने के बाद नारायण ने आखिरकार थक कर ये खोज बंद कर दी। तभी उसकी पत्नी राधिका ने घर में आते हुए उससे कहा, "ये आपने बनारस से क्या मंगाया है? अभी मैं बाहर गई, तो कुरियर वाले ने मुझे ये पार्सल देते हुए कहा कि आपके लिए बनारस से आया है।"
पत्नी की बातों को सुन नारायण ने उस पैकेट को देखा, तो उसपर उसका ही नाम लिखा हुआ था। बिल्कुल सफेद रंग के पैकेट पर काले शब्दों में लिखा अपना नाम देख नारायण ने तुरंत उस पैकेट को अपने हाथों में ले लिया। "पता नहीं इस पैकेट में क्या होगा। इसे मुझे अकेले में ही खोलना चाहिए।" ये सोच नारायण उस पैकेट को लेकर अपने कमरे में चला गया।
उस पैकेट को देख नारायण को थोड़ा अजीब तो लग रहा था कि आखिर उसे बनारस से ऐसा पैकेट कौन भेज सकता है। इसलिए उसने तुरंत उस पैकेट को खोल दिया। "हे भगवान ये मुझे ऐसा पंचांग किसने भेजा है।" उस पैकेट को खोलते ही नारायण के मुँह से सबसे पहले यही शब्द निकले।
दरअसल नारायण को उस पैकेट से एक कैलेंडर मिला था, लेकिन वो साधारण कैलेंडर की तरह नहीं था। उस कैलेंडर के ऊपर बिल्कुल काले रंग के बड़े शब्दों में "मैं वो हूँ, जो क्या नहीं होगा, ये बताता हूँ" लिखा हुआ था।
ये देख नारायण ने काफी घबराते हुए जब उस कैलेंडर के पन्नो को पलटा, तो उसे उसमें सबकुछ उल्टा दिखाई पड़ा। "ये कैलेंडर तो बिल्कुल ही उल्टा है। इसका पहला दिन तो साल के आखिरी दिन से शुरू हुआ है और महीनों तथा सप्ताह का भी यही हाल है। आखिर इस उल्टे कैलेंडर का मतलब क्या है?" ये सोचते हुए नारायण के भीतर एक अजीब सी सिहरन पैदा होने लगी।
उस डार्क पंचाग यानी उल्टा कैलेंडर को देख नारायण को अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। हाल फिलहाल में उसने अपने साथ इतनी अजीब घटनाएं होते हुए देख ली थी कि उसे ये ज्यादा आश्चर्यजनक तो नहीं लग रहा था, लेकिन फिर भी उसे इस बारे में सोचकर चिंता तो जरूर हो रही थी।
"ये कैलेंडर पूरी तरह से उल्टा है और आम कैलेंडर के बिल्कुल विपरीत है और उसके ऊपर भी लिखा हुआ है कि ये वो है, जो क्या नहीं होगा, ये बताता है। जबकि आम कैलेंडर ये बताते हैं कि आगे क्या तारीख होगी और कौन सा पर्व त्योहार होगा। फिर इस कैलेंडर का मतलब क्या है?" नारायण थोड़ी देर तक ये सोच ही रहा था, तभी उसके दिमाग में एक और बात आई।
"मुझे बनारस से ये कैलेंडर आखिर कौन भेज सकता है। कहीं ये उस कॉल की तरह त्रिकालदर्शी का तो काम नहीं है न? क्या त्रिकालदर्शी मुझे इन छोटे छोटे संदेशों के जरिए कुछ बताना चाह रहा है?" त्रिकालदर्शी के बारे में सोचते हुए नारायण ने उस कुरियर के ऊपर भेजने वाले का नाम देखना चाहा, लेकिन उसे वहाँ कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा।
उस डार्क कैलेंडर को भेजने वाले के बारे में नारायण को कोई भी जानकारी नहीं मिली और उसकी चिंता बढ़ते गई। वो काफी देर तक उस कैलेंडर को ही पलटता रहा और आखिरकार उसे छोड़ अपने काम में लग गया।
नारायण ने एक बार फिर से बम ब्लास्ट के बाद मिली प्रसिद्धि का फायदा उठाकर अपनी ज्योतिष की दुकान को चलाना चाहा, लेकिन उसके सितारे एक बार फिर से गलत भविष्य बता रहे थे और इस वजह से नारायण को ये काम करने में भी मन नहीं लग रहा था।
उधर उसके परिवार में भी कलह बढ़ते जा था था और उसे कालांतक मंडल या त्रिकालदर्शी की कोई भी जानकारी नहीं मिल रही थी। नारायण को अपनी जिंदगी त्रिकालदर्शी और कालांतक मंडल के बीच किसी धागे ओर लटकी हुई नजर आ रही थी। उसे ये तो समझ आ रहा था कि ये दोनों उसकी जिंदगी के दो छोर बन गए हैं, लेकिन वो उनके पास कैसे जाए, उसे ये समझ नहीं आ रहा था।
नारायण के दिन यही सब सोचते हुए गुजर रहे थे और वो एक जगह अटका हुआ महसूस कर रहा था। इसीबीच जब वो एक दिन उस उल्टे कैलेंडर को देख रहा था, तभी उसका ध्यान उस महीने की दस तारीख पर जाकर रुक जाता है। "इस कैलेंडर में सारे दिन तो उल्टे लिखे हैं, लेकिन ये तारीख सीधी कैसे हो गई। आज तो नौ तारीख है, कहीं कल कुछ बड़ा तो नहीं होने वाला।"
यही सोचते हुए नारायण अब कल का इंतजार करने लगा और अगले सुबह जब उसकी आँखें खुली, तो उसे सबकुछ सामान्य से ही नजर आ रहा था। उसका दिन भी सामान्य तरीके से ही गुजर रहा था और अब शाम होने वाली थी। तभी अचानक ही उसके घर की लाइट चली गई।
नारायण को ये सामान्य तो लग रहा था, लेकिन तभी फोन चलाती हुई आभा ने उसके पास आते हुए कहा, "बाबा, हमारे घर की ही नहीं, बल्कि पूरे इंडिया की लाइट चली गई है। पूरे भारत में न जाने क्यों अंधेरा हो गया है।"
आभा से ये सुनते ही नारायण भीतर तक सिहर गया। वो तुरंत अपनी जगह से खड़ा हुआ, लेकिन तभी उसे एक और अजीब एहसास हुआ। नारायण को ये लगने लगा था, जैसे उसके सामने चल रही हर चीजें रुक गई हैं और वक्त थम सा गया है।
आखिर नारायण को क्यों हो रहा है वक्त थमने का एहसास.?
क्यों चली गई है पूरे इंडिया की लाइट और इसके पीछे क्या है कारण.?
किसने नारायण को भेजा था उल्टा कैलेंडर और इसका उसकी जिंदगी पर पड़ेगा कैसा असर.?
जानने के लिए पढ़ते रहें Stars of Fate..
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