रितिका के दोस्त, मानसी और अपूर्व, रितिका के सामने सौरभ की करतूत उजागर करते हैं, लेकिन प्यार में डूबी रितिका को उनकी बातों का कोई असर नहीं होता। रितिका बस सौरभ का बचाव करती है। जैसे ही रितिका अपने घर पहुँचती है, उसे मानसी और अपूर्व की बातें याद आने लगती हैं, मगर रितिका यह तय कर चुकी होती है कि वह सौरभ का ही साथ देगी। प्यार में पड़ी लड़कियों को पहले दिन से ही खुद को पत्नी मानने की आदत हो जाती है, और रितिका ने भी यही गलती की।

जब से रितिका ने अपने दोस्तों से सौरभ के बारे में नकारात्मक बातें सुनी थीं, वह उनसे दूरी बनाने लगी थी। रितिका और उसके दोस्तों के बीच बढ़ती दूरी सौरभ के लिए एक बड़ा हथियार बन रही थी। अब सौरभ रितिका को भावनात्मक रूप से नियंत्रित कर सकता था। कोलकाता से लौटने के बाद जब सौरभ और रितिका मिले, तो सौरभ कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। वह रितिका पर चिढ़ने, उसे नज़रअंदाज़ करने और कॉल्स अवॉयड करने लगा।

इसका मकसद सिर्फ यह देखना था कि रितिका को उससे बात करने की कितनी तलब है। जितनी ज्यादा रितिका परेशान रहती, उतनी ही खुशी सौरभ को होती। एक दिन सौरभ ने हद पार कर दी। वह और रितिका उसके घर पर थे। रितिका लैपटॉप पर ऑफिस का काम कर रही थी, और सौरभ अपनी अगली चाल के बारे में सोच रहा था। तभी उसके फोन में एक मैसेज आया।

सौरभ उस मैसेज को देखकर मुस्कुराने लगा। रितिका ने पहले इसे नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब यही चीज़ बार-बार हुई, तो रितिका ने आखिरकार पूछा, ‘’कौन है, जिसके मैसेज पर तुम इतनी मुस्कुरा रहे हो?''

सौरभ (बेख़्याली से): एक फीमेल फ्रेंड है।


रितिका (सवालिया लहज़ा): अब तक तो ज्यादा दोस्त नहीं थे तुम्हारे। ये अचानक तुम्हारी फीमेल फ्रेंड कहाँ से आ गई?


सौरभ (गुस्से में): तुम बीवी बनने की कोशिश मत करो। मैंने तुम्हें इतना हक नहीं दिया है। वैसे भी मैं किसी से भी बात करूँ, इससे तुम्हें क्या?

रितिका (भारी आवाज़ में): ठीक है, बीवी न सही, लेकिन गर्लफ्रेंड तो हूँ। इस हैसियत से मैं जानना चाहती हूँ कि अचानक तुम्हारे व्यवहार में इतना बदलाव क्यों आया है?

सौरभ (खीजकर): रितिका, अपनी ज़िद पर मत अड़ो और मेरी बात समझो। जिस लड़की से मैं बात कर रहा हूँ, वह सिर्फ़ मेरी दोस्त है।

रितिका (झल्लाकर): किस दोस्त की बात सुनकर कोई ब्लश करता है? अगर यही हरकत मैं करती—तुम्हारे सामने किसी लड़के का मैसेज देखकर मुस्कुराती, किसी लड़के का हाथ पकड़ती, या उसे गले लगाती—तब?

रितिका की बातों ने सौरभ को उसके अतीत की गहराइयों में धकेल दिया। उसने अपनी माँ को किसी और मर्द के लिए अपने पिता को छोड़ते हुए देखा था। इसी दर्द ने सौरभ को इतना क्रोधित कर दिया कि उसने सोचे-समझे बिना रितिका के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया।

कुछ पल के लिए रितिका स्तब्ध रह गई। उसके होठों से टपका खून उसके बाएँ हाथ पर गिरा। वह बुत बनकर अपनी जगह बैठी रही। सौरभ उसे देखता रहा और जैसे ही उसने अपने किए का एहसास हुआ, वह तुरंत रितिका के पैरों में गिर पड़ा।

सौरभ (पछतावे से): मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। मैं माफ़ी के काबिल भी नहीं हूँ। मुझे अपना गुस्सा काबू में रखना चाहिए था। मैं कोई नहीं हूँ, जो तुम पर या किसी और लड़की पर हाथ उठाए।

रितिका (थकी हुई आवाज़ में): आज का दिन मेरे लिए बहुत भारी रहा है। मुझमें अब कुछ कहने की ताकत नहीं है। मैं सोना चाहती हूँ और थोड़ी देर अकेले रहना चाहती हूँ।

रितिका यह कहकर सोने चली गई। दूसरी ओर, सौरभ रातभर इस उलझन में डूबा रहा कि वह रितिका का भरोसा और प्यार कैसे वापस जीत सकता है। उसे एहसास हो चुका था कि माफ़ी मिलना असंभव था।

सौरभ रितिका के कमरे में ही था, जब उसे एहसास हुआ कि उसने अपने बीते कल का बोझ रितिका पर डाल दिया है। अपनी माँ के किए की सज़ा उसने रितिका को दी है। सौरभ पूरी रात रितिका के बिस्तर पर बैठा रहा। आज पहली बार सौरभ के चेहरे पर किसी लड़की के लिए इज़्ज़त नज़र आ रही थी।

रात धीरे-धीरे गहराने लगी। दर्द के कारण रितिका की नींद टूट गई। जैसे ही उसने अपनी आँखें खोलीं, उसने देखा कि सौरभ उसके पाँव पकड़कर सो रहा है। एक पल के लिए सौरभ को सोते देख रितिका को उस पर बहुत प्यार आया। मगर अगले ही पल उसने उस प्यार को पीछे छोड़ते हुए, अपना ध्यान उस थप्पड़ की ओर केंद्रित कर लिया।

सुबह के नौ बज चुके थे। रितिका अब भी सो रही थी। सौरभ जब उसके पास गया, तो उसने देखा कि रितिका के चेहरे पर उसके हाथ के निशान हैं और होठों पर हल्के खून के दाग हैं।

सौरभ ने इतने सालों में किसी के साथ इस तरह का सलूक नहीं किया था। उसने जैसे ही रितिका को उठाने के लिए उसका माथा छुआ, तो महसूस किया कि उसका शरीर बुखार से तप रहा था।

सौरभ ने बड़े प्यार से रितिका को जगाया। रितिका का बुखार इतना तेज़ था कि वह उठ भी नहीं पा रही थी, फिर भी उसने हिम्मत करके अपने बिस्तर से उठते ही सबसे पहले ऑफिस से छुट्टी ली।

रितिका की हालत देखते हुए, सौरभ ने उसके साथ रहने का फैसला किया। यह सौरभ के लिए एक अच्छा मौका था, जहाँ वह अपनी चालें आसानी से चल सकता था। उसने वही किया।

वह रोज़ रितिका को खुद ही उठाता, उसके लिए नाश्ता और कॉफी तैयार करता। दिन-रात उसकी पट्टियाँ बदलता और जब रितिका को उल्टियाँ होतीं, तो उन्हें भी साफ करता।

सौरभ की इन कोशिशों को देखकर, रितिका का दिल फिर से सौरभ की ओर झुकने लगा। उसने धीरे-धीरे सौरभ को माफ करना शुरू कर दिया। यहीं से सौरभ ने अपनी अगली चाल की योजना बनानी शुरू की।

सुबह का समय था। रितिका अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रही थी। उसी वक्त सौरभ उसके पास आया और उसके पास बैठते हुए बोला, ‘’लीजिए मोहतरमा, आपका चिकन सूप तैयार है।''

रितिका (मुस्कुराकर): थैंक्यू श्रवण, मेरा इतना ध्यान रखने के लिए। और सॉरी भी, मुझे खुद समझना चाहिए था।


सौरभ (प्यार से): तुम्हें सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है। मैं वादा करता हूँ, आगे ऐसा कभी नहीं होगा।


रितिका (प्यार से): मैं जानती हूँ। अच्छा, आज कहीं घूमने चलते हैं। कल से मेरा ऑफिस शुरू हो जाएगा और मैं बिज़ी हो जाऊँगी।


सौरभ (खुशी से): अगर तुम चाहती हो, तो नरीमन पॉइंट चलते हैं।


रितिका (हामी भरते हुए): हाँ, क्यों नहीं। वह भी अच्छा रहेगा।

अपने झूठे रिश्ते को संभालने के बाद, सौरभ, रितिका के साथ नरीमन पॉइंट आता है। यहाँ आना भले ही रितिका का प्लान था, मगर ये सौरभ के लिए एक बहुत अच्छी ऑपोर्च्युनिटी थी, रितिका पर जज़्बाती वार करके, जज़्बातों का व्यापार करने की। सौरभ का तीर इस बार सीधे निशाने पर लगा था।

रितिका और सौरभ साथ बैठे, अपने आज और आने वाले कल की बातें कर रहे थे। उसी वक़्त, बात करते-करते सौरभ शांत हो गया। रितिका ने जब उसकी खामोशी देखी तो उससे पूछने लगी...

रितिका (सवालिया लहज़ा): क्या हुआ सौरभ, अचानक चुप क्यों हो गए?


सौरभ (थका हुआ): मैं आज अपनी फाइनेंशियल क्राइसिस बैलेंस करते-करते थक गया हूँ ऋतु।


रितिका (फ़िक्र में): क्या हुआ, प्लॉट तो बिक गया है ना?


सौरभ (उदास): नहीं, बायर ने लास्ट मोमेंट पर अपना डिसिशन बदल दिया ये कहकर कि उसे अभी नहीं चाहिए।


रितिका (सवालिया लहज़ा): फिर अब?


सौरभ (उदास होकर): एक बार फिर से अपने सपनों की कुर्बानी देनी पड़ेगी।

सौरभ की बातें सुनकर कुछ वक़्त के लिए रितिका भी खामोश हो जाती है। इस बीच उसे अपने दोस्त अपूर्व और मानसी की बातें याद आने लगती हैं। रितिका के मन में सौरभ को लेकर एक बार फिर शक पनपने लगता है, मगर फिर रितिका, सौरभ के एफर्ट्स के बारे में सोचने लगती है। उसे सौरभ की, की हुई हर एक चीज़ याद आने लगती है।

एक बार फिर रितिका का प्यार उस पर हावी होना शुरू होता है। एक तरफ दोस्तों की बताई सच्चाई, दूसरी तरफ सौरभ के लिए उसका प्यार। रितिका एक बार फिर उस सिचुएशन में आ गई, जहाँ उसने न चाहते हुए भी सौरभ का साथ देना चुना और उससे पूछा, ‘’तुम्हें कितने रुपयों की ज़रूरत है?


सौरभ (सीधा जवाब): 3 लाख। वक़्त निकला जा रहा है, अब सारे अरैन्ज्मेन्ट्स शुरू करने पड़ेंगे।


रितिका (नरमी से): ठीक है, मैं तुम्हें अपनी सेविंग्स से निकालकर देती हूँ।


सौरभ (नरमी से): नहीं, मैं पहले ही तुमसे पैसे ले चुका हूँ।


रितिका (नरमी से): एक साथ लौटा देना।


सौरभ (नरमी से): तुम्हारा ये एहसान मैं ज़िंदगी भर नहीं भूलूँगा।

रितिका ने सौरभ की मदद करने का फैसला कर तो लिया था। मगर उसे अभी भी कुछ गड़बड़ लग रही थी। सौरभ ने जिस तरह से खुद को उसके आगे ज़ाहिर किया था, अब उसमें ऐसा कुछ भी नहीं रहा है। मगर रितिका भी नहीं समझ पाती कि उसे सौरभ के किरदार से और किसी की नहीं, बल्कि फरेब की बू आ रही है।

रितिका एक बार सोचती है कि अब वह सोच-समझकर ही सौरभ को पैसे देगी। पर उसका ये सोचना गलत था। सौरभ ने अपने मन में आगे की प्लानिंग कर रखी थी, जिसे वह वक़्त देखकर एक्सज़िक्यूट करने का वेट कर रहा था।

 

क्या होगी उसकी अगली चाल?
क्या इस बार रितिका को पता चलेगा उसका असली सच?
क्या होगा सौरभ फिर से बेनकाब?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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