सौरभ गुस्से में आकर रितिका को एक थप्पड़ मार देता है, जिसके शौक़ से रितिका की तबियत ख़राब हो जाती है। फिर सौरभ रितिका का ख़याल रखता है जिसके बाद रितिका का भरोसा दोबारा सौरभ पर बढ़ने लगता है। एक शाम दोनों नरेमन पॉइंट पर गुज़ारते है, जहाँ सौरभ अपनी अगली चाल चलते हुए रितिका को बताता है की, उसका प्लॉट नहीं बिका है। रितिका असमंजस में पड़ने के बाद सौरभ को 3 लाख रुपये देती है, ये सोचकर की शायद ये आखरी हो. मगर, यहाँ मामला ख़तम नहीं होता. यहाँ से शुरुआत होती है असली छलावे की।
जैसे ही रितिका अपनी सेविंग्स से उसे 3 लाख रुपये निकालकर देती है, सौरभ उन्हें लेने के बाद, रितिका पर ख़ूब प्यार लुटाता है. इस बार, रितिका सौरभ का प्यार, पहले की तरह महसूस नहीं कर पाती. सौरभ ने इतनी बड़ी रकम लेने के बाद ये तय किया की, अभी कुछ दिनों तक वो रितिका को कुछ भी नहीं बोलेगा, और ना ही उससे पैसे की मांग करेगा. सौरभ ने रितिका की आँखें पढ़ ली थी. उसकी आँखों में प्यार कम और शक दिखने लगा था. इस बीच सौरभ अपनी व्यस्तता दिखाने के चक्कर में रितिका से कम मिलता था. बीच बीच में उसे अपने फेक काम की फोटोज़, वीडियोज़ भेजता था. सौरभ का झूठ यहाँ भी नहीं रुका, उसने अपने सोशल मीडिया पर समथिंग बिग इज़ कमिंग का पोस्टर भी शेयर कर दिया था. जिसे देखकर, रितिका को यकीन हो गया की, सौरभ वाकई कोई झूठा नहीं बल्कि सच्चा इंसान है. रितिका का ध्यान तब सौरभ की हरकतों पर गया, जब उसने सौरभ के गले में नयी गोल्ड की चेन देखी. रितिका के मन में कई सवाल आ रहे थे की, आखिर क्यों उसने कभी अपने दिए पैसो को नहीं माँगा. फ़ोटो में गोल्ड चेन देखने के बाद, रितिका ने ये तय किया की, वो सौरभ से इस बारे में बात करेगी. रितिका ने तुरंत सौरभ को फ़ोन किया.
रितिका (सवाल): हाय कहाँ हो तुम, और काम कैसा चल रहा है तुम्हारा?
सौरभ (नरमी से): दिल्ली आया हुआ हूँ, तुम्हें बताया तो था.
रितिका (झिझकते हुए): मुझे तुमसे कुछ अर्जेंट बात करनी है. क्या तुम फ्री हो?
सौरभ (मुस्कुराकर): तुम कब से मुझसे पूछकर बातें करने लगी, बताओ क्या बात है?
रितिका (गंभीरता से): वो आज मम्मी का कॉल आया था. सिलीगुड़ी वाले घर में, रेनोवेशन का काम शुरू होने वाला है. मुझे अपना शेयर भेजना हैं वहां. तुम दो दिन में मुझे पैसे लौटा सकते हो?
सौरभ (नर्मी से): हाँ, क्यों नहीं, बताओ कितने चाहिए?
रितिका (झिझकते हुए): माँ कह रही थी की उसे काम शुरू करने के लिए, पाँच लाख रुपयों की ज़रूरत है।
सौरभ (नरमी से): ठीक हैं, मैं परसों ही लौट रहा हूँ, तभी तुम्हें लौटाता हूँ.
रितिका (ख़ुशी से): थैंक यू सो मच!
सौरभ से बात करने के बाद, रितिका अपने ऑफिस के काम में लग जाती है. उसी वक़्त उसे मेल आता है कि, आने वाले हफ़्ते में सेमिनार ऑर्गनाइज़ किया जा रहा है। जिसमें कॉलेज स्टूडेंट्स शामिल होने वाले हैं, खासकर वो स्टूडेंट्स जिन्हें फाइनेंस में जाना है. अपनी कंपनी की लीडिंग एम्प्लोई होने के नाते, इस सेमीनार को रितिका लेने वाली होती है। जैसे ये मेल रीतिका पढ़ती है, उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता! रितिका का सेमिनार में बतौर स्पीकर बनने का सपना पूरा होने वाला था। रीतिका ने जैसे ही मेल देखा, उसने अपनी ज़िंदगी की सारी परेशानियों को साइड कर दिया। रीतिका जानती थी उसकी परफ़ॉर्मेंस, उसके प्रमोशन के लिए कितनी ज़रूरी है। ये सेमीनार उसके करियर ग्रोथ के लिए हुक़ुम का इक्का है। यही वजह भी थी कि, पिछले कई दिनों से रितिका का सारा फोकस अपने प्रेजेंटेशन पर ही था.
रीतिका अपने प्रेजेंटेशन में इतनी बीज़ी रहती है कि उसके दिमाग़ में ये बात कहीं नहीं आती कि उसे सौरभ से पैसे लेने है। देखते ही देखते दिन बीतते गए, और सेमिनार का दिन क़रीब आता गया। इस सेमीनार को कोलाबा के 5 स्टार होटल में कंडक्ट किया जा रहा है. धीरे धीरे banquet hall फुल होता है, कई स्टूडेंट्स इस सेमिनार को अटेंड करने दूसरे शहर से भी आते हैं, जिसमें अधिकतर लडकियां होती हैं. कुछ मिनटों के बाद, रितिका स्टेज पर आती है और अपने मोटिवेशनल वर्ड्स के साथ सेमिनार शुरू करती है.
रितिका: Good morning to the young and creative minds. I know you are here to receive knowledge and i am glad to share, evry bits and parts of being a finance expert. Before starting this seminar aai request every one to keep their phones on silent mode. So, guys pull up your socks because this is going to ve the roller coaster ride, with all ups and downs, twist and turns but yes, one is damn sure you will be at peace after this session. So without wasting the time lets get started।
रितिका ने अपने 10 सालों के एक्सपीरिएंसेज़ को महज़ 25 स्लाइड्स में बड़ी ही खुबसूरती से क्लब किया हुआ था. हॉल में बैठा हर एक स्टूडेंट रितिका को बड़े ध्यान से सुन रहा था. जैसे ही 2 घंटे बाद सेमीनार ख़त्म हुआ, सारे लोग रितिका को उसके प्रेजेंटेशन के लिए तारीफ़ कर रहे थे. स्टूडेंट्स, उसे एडमायर कर रहे थे. रितिका को अपने लिए ओवरव्हेलमिंग रिस्पोंस देखकर बहुत अच्छा फील हो रहा था. वो चाहती थी की इस मोमेंट में सौरभ भी उसके साथ रहे. रितिका, अपने मोबाईल पे सौरभ के नाम पर टैप करने वाली होती ही है कि, उसी वक़्त कुछ स्टूडेंट्स रीतिका को ग्रुप फोटो में आने के लिए इन्वाईट करते हैं. जैसे ही भीड़ छटने लगती है, रीतिका आज का दिन अपने साथ स्पेंड करना चाहती थी और इस सोलो सेलिब्रेशन के लिये वो कोलाबा के सबसे महँगे कैफ़े जाती है। आज रीतिका अपने स्ट्रगलिंग डेज़ में अपना गुज़ारा बन मस्का और चाय पीकर करती थी।
एक शाम जब वो मुंबई के सड़क किनारे खड़े वड़ा पाव खा रही थी, उसी वक़्त रीतिका के कॉलेज के कुछ दोस्तों ने उसे वड़ा पाव खाते देखा और चिल्लाकर कहा, 4 प्लेट हमारे लिए भी लेते आना, पैसे तुझे बाद में देंगे। इतना कहकर वो धूल उड़ाते चले गए। उस वक़्त रीतिका ने तय किया कि वो अपनी हैसियत इतनी बना लेगी की मुंबई के बड़े से बड़े कैफ़े में बैठकर महँगी कॉफ़ी पियेगी और आज वो कोलाबा में यही कर रही थी। आज काफी दिनों के बाद, रितिका खुद को पुराने जैसा महसूस कर रही थी, जहाँ वो सिर्फ अपने काम से प्यार करती थी.
अपना मी टाइम एन्जॉय करते हुए, रितिका खिड़की के बाहर, लोगो को आते जाते देख रही थी. उसी वक़्त उसकी नज़र एक चेहरे पर पड़ी, दूर होने के कारण पहले धुंधलापन था, मगर जैसे ही नज़दीकियाँ बढ़ी, उसने देखा की सौरभ, कैफ़े के सामने से हाथ में कोल्ड कॉफ़ी लिए मुस्कुराता गुज़र रहा था। अगले ही पल, रितिका उसे कॉल करती है, ‘’कहाँ हो श्रवण?''
सौरभ (नर्मी से): बताया तो था दिल्ली में हूँ? बताओ क्या लाऊं तुम्हारे लिए?
रितिका (परेशान होकर): नही! कुछ नहीं चाहिए... वो पैसों का क्या हुआ, मैं भी काम के दौरान तुमसे इस बारे में बात नहीं कर पाई. आई होप यू अंडरस्टैंड माय कंसर्न।
सौरभ (नर्मी से): हाँ ऋतु, मुझे याद है, मेरा अभी मुंबई आना हुआ ही नहीं है, मैं दो दिन में ही आ रहा हूँ. तब तुम्हें लौटाता हूँ.
रितिका ये तो समझ गई थी की, सौरभ झूठ बोल रहा है, मगर क्यों, ये नहीं जानती थी. वो कैफ़े में बैठकर ही, सौरभ के बारे में पता करने की कोशिश करती है. जिसके लिए वो अपने साइबर एक्सपर्ट फ्रेंड, अपूर्व को कॉल करती है और उससे सौरभ की हिस्ट्री निकालने को कहती है. अपूर्व, उसे एक घंटे में ही सौरभ के बारे में सब सच बता देता है. जिसे देखकर, रितिका के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है जब उसे ये पता चला की उसके पार्टनर का नाम श्रवण घोष नहीं, बल्कि, सौरभ राय है! ये कोई psychologist नहीं, बल्कि एक बेरोज़गार शख्स है.
अब रितिका की बेचैनी और बढ़ती जा रही थी, इतने महीनों में आज, रितिका के सब्र का बाँध टूट चुका था. रितिका ने फ़ौरन सौरभ को “हाय सौरभ राय” टेक्स्ट किया. सौरभ ने जैसे ही रितिका का मैसेज देखा वो दंग रह गया की, आख़िर ये सब हुआ कैसे? रितिका को उसके नाम का सच, कैसे पता चला. सौरभ, लगातार रितिका को फ़ोन करता रहा, मगर उसने फ़ोन नहीं उठाया. सौरभ के हाथ से उसका खेल एक बार निकल चुका था. उसी वक़्त, रितिका ने मैसेज किया की वो उससे बात करने, उसके घर आ रही है.
रितिका (ग़ुस्सा): ये क्या भद्दा मज़ाक है, श्रव...., सौरभ? तुमने झूठ क्यों बोला.?
सौरभ (मासूमियत से): पहले शांत हो जाओ ऋतु...
रितिका: Stop calling me ऋतु। तुम मुझे इस वक़्त शांत होने को कह रहे हो? इतना बड़ा धोखा एक्स्पेक्ट नहीं किया था. क्या मजबूरी थी तुम्हारी? या ये कोई तमाशा है?
सौरभ (गिड़गिड़ाता हुआ): प्लीज़ मुझे बताने का मौका तो दो.
रितिका (चिढ़कर): और कितना समय सौरभ, तुम कितने महीनों से मुझसे झूठ कह रहे हो, और मैं तुम्हारे साथ शादी के सपने देख रही हूँ।
सौरभ (रोते हुए): मैं मजबूर था और तुम्हें बताने ही वाला था की, ये सब हो गया.
रितिका (सवालिया लहज़ा): क्या बताने वाले थे सौरभ और कब?
सौरभ की सच्चाई का पहला झूठ पकड़ने के बाद, रितिका अपना आपा खो बैठती है. रितिका को गुस्से में देख, सौरभ उससे कुछ कहने की जुर्रत नहीं कर पाता है. सौरभ को अब इस बात का अंदाजा लग चुका होता है की, अब उसका प्लान बर्बाद होने वाला है. एक तरफ रितिका का गुस्सा बढ़ता चला जा रहा था, वो सौरभ की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी. रितिका गुस्से में अपने पसीने से तर हो गई और एक मोड़ ऐसा आया की वो बेहोश होकर गिर गई. सौरभ ने तुरंत, डॉक्टर को बुलाया. डॉक्टर ने सब कुछ चेक किया, सब नॉर्मल था. थोड़ी देर बाद जब रितिका को होश आया, तो सौरभ ने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘’ तुम माँ बनने वाली हो!!!''
रितिका (डरते हुए): क्या?
सौरभ (फ़िक्र में): आई अम सो हैप्पी रितिका।
रितिका (सवाल): एक मिनट रुको, तुम ये बच्चा रखना चाहते हो?
सौरभ (प्यार से): इसमें, नहीं रखने जैसा क्या है रितिका, ये मेरी रेस्पोंसिबिलिटी है।
रितिका (घबराकर): मैं क्या बोलूंगी अपने घरवालों को? (angry ) और ये जो तुम्हारा अधूरा सच है उसका क्या ?
सौरभ (विश्वास से): तुम क्यों बोलोगी कुछ, मैं बोलूँगा, मैं समझाऊँगा उन्हें। रही बात सच की तो जो तुम्हें पता चल है वो झूठ है, तुम भी किसी की भी बातों में या जाती हो । अभी टेंशन मत लो, बेबी पर इसका असर पड़ेगा।
रितिका (चौंककर): आर यू आउट ऑफ़ योर माइंड?
सौरभ (विश्वास से): आई एम इन माय सेंसेस, तुम्हारे मेरे बीच जो भी डिफ़रेंसेंस हैं, उसका असर हमारे होने वाले बच्चे पर नहीं पड़ेगा।
रितिका, सौरभ के इस जेस्चर से एक बार उसकी तरफ आकर्षित होने लगती है. और एक बार फिर सौरभ की सच्चाई, उसके सामने आते आते ही छुप जाती है. रितिका उस शाम सौरभ के घर पर रुकती है जहाँ वो लोग एक साथ, फिर से क्वालिटी टाइम स्पेंड करते है. सौरभ उस पर अपना चार्म चलाता है और रितिका सौरभ पर अपना प्यार लुटाती है. इंडिपेंडेंट लड़कियां कितनी ही स्ट्रॉंग बनने की कोशिश क्यों न कर लें, उन्हें प्यार से जीता जा सकता है और फरेबी प्यार से उससे भी जल्दी। आज रितिका जिस प्रॉब्लम में फांसी थी उसको सौरभ के सच का पता लगाने से ज़्यादा, अपने बच्चे के लिए इस रिश्ते को बचाना था। वो जानती थी उसके दोस्त सौरभ की पूरी सच्चाई सामने ला सकते है, पर उससे अजन्में बच्चे का क्या भविष्य होगा। बस यह सोचकर उसने अभी चुप रहना ठीक समझा।
क्या वो जान पाएगी सौरभ के अंदर छुपे हैवान को, या इतना सब होने के बाद भी कर लेगी खुद को बर्बाद, सौरभ के प्यार में.
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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