रितिका को सौरभ की सच्चाई का एक हिस्सा पता चलता है, जिसके बाद रितिका सौरभ को रंगे हाथ पकड़ लेती है। रितिका का गुस्सा इतना ज़्यादा बढ़ जाता है कि सीधा उसकी सेहत पर असर करता है, जिससे वो बेहोश हो जाती है। जैसे ही रितिका को होश आता है, सौरभ उसे बताता है कि वो माँ बनने वाली है। रितिका इस बात को सुनते ही चौंक जाती है। उसी वक़्त सौरभ उसे ये यकीन दिलाता है कि वो इस फेज़ में उसके साथ है और उनकी शादी के लिए रितिका के घरवालों से भी बात करेगा। रितिका को एक बार फिर सौरभ पर भरोसा होने लगता है।


अगली सुबह, सौरभ और रितिका मॉर्निंग वॉक के लिए पार्क जाते हैं, जहाँ सौरभ रितिका का हाथ पकड़कर चलता है। आसपास से गुज़रने वाले लोग सौरभ और रितिका की जोड़ी को कॉम्प्लिमेंट देते हैं। उन तारीफों से रितिका ब्लश करने लगती है। ये सब सौरभ के प्लान का हिस्सा ना होते हुए भी उसके प्लान को स्ट्रॉन्ग बना रहा है।

दोनों साथ ही चल रहे होते हैं कि सौरभ के रितिका के पैर के पास आकर एक बड़ी गेंद टकराती है, जिसे दौड़कर एक बच्चा लेने आता है। रितिका उस बच्चे की मासूमियत देखते हुए सौरभ से कहती है, ‘’कितनी कम्पलीट फीलिंग है, माँ बनना। थैंक यू!''


सौरभ (सवाल): ये थैंक यू किस बात के लिए?


रितिका (प्यार से): इस क्रिटिकल कंडीशन में मेरा साथ देने के लिए। एक पल के लिए मैंने कितना कुछ सोच लिया था।


सौरभ (समझाते हुए): ये मेरा हक भी है और फ़र्ज़ भी। जब तक मैं हूँ, तुम्हें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है।


रितिका (फ़िक्र में): अच्छा, मैं सोच रही थी कि आज शाम को एक बार हॉस्पिटल चलें? एटलीस्ट सारे प्रिकॉशंस अच्छे से पता रहेगा ताकि आगे कोई कॉम्प्लिकेशन्स ना हो।


सौरभ (सहमति से): मैं भी यही सोच रहा था। एक बार मेरा काम हो जाए, उसके बाद चलते हैं। मैं अपॉइंटमेंट बुक कर लूँगा। फिलहाल कुछ दिन तुम रेस्ट करो।


रितिका (सवाल): आज जाने में क्या प्रॉब्लम है?


सौरभ (गुस्से में): रितिका... , मुझे भी हमारे बच्चे की फ़िक्र है। अब पेशेंस रखो और मुझे ये सिचुएशन अपने हिसाब से हैंडल करने दो।


रितिका नहीं समझ पा रही थी कि सौरभ अचानक से ऐसा क्यों बोल रहा था, जबकि फर्स्ट ट्राइमेस्टर तो कितना इम्पोर्टेन्ट और डेलिकेट होता है। रितिका ने सवाल करना चाहा, मगर सौरभ के गुस्से को देखते ही चुप हो गई।

रितिका घर आकर ऑफिस के लिए रेडी हुई और कैब में बैठकर निकल गई। वहीं सौरभ अपनी बालकनी पर खड़े होकर ये सोच रहा था कि आज पार्क में जो उसने रितिका के साथ किया, उसके बाद रितिका का भरोसा कहीं फिर ना डगमगाने लगे।

सौरभ ने इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए रितिका को टेक्स्ट किया कि आज वो लोग बाहर डिनर पर जायेंगे। सौरभ का टेक्स्ट मिलते ही रितिका को यकीन नहीं हुआ कि ये वही सौरभ है, जिसने उससे ऊँची आवाज़ में बात की थी।

रितिका को सौरभ का केयरिंग साइड पसंद तो आ रहा था, मगर बार-बार उसके मन में हॉस्पिटल जाने का ख़याल भी आ रहा था। रितिका ये बात मानसी और अपूर्व के साथ भी शेयर करना चाहती थी, पर सौरभ के चलते उसने खुद अपने दोस्तों से दूरी बना ली थी। सौरभ ने उसे बीच मझधार पर लाकर खड़ा कर दिया था, जहाँ से रितिका को अपने आस-पास कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।

बस वो अकेली ही थी, जहाँ उसके साथ सिर्फ़ सौरभ था और उसका झूठ। रितिका अपने और सौरभ के बच्चे को लेकर खुश थी।
रितिका लंच टाइम पर, फ़ोन में अपने बच्चे के लिए बेबी केयर प्रोडक्ट्स देख रही थी। उसी वक़्त सौरभ का कॉल आया, वह फ़ोन पर काफ़ी परेशान लग रहा था। रितिका ने उसकी बेचैनी देखकर उसे लंबी साँसें लेने को कहा। सौरभ 10 मिनट बाद जब शांत हुआ, तब उसने बताया, ‘’सब ख़त्म हो गया ऋतु, सब ख़त्म हो गया...''


रितिका (परेशान होकर): क्या हुआ? इतने परेशान क्यों हो?


सौरभ (अटककर): वो... वो श्रुति... उसके साथ...


रितिका (परेशान होकर): हाँ, श्रुति के साथ क्या?


सौरभ (फ़िक्र में): उसके साथ पड़ोसियों ने बदतमीज़ी की है, घर पर पत्थर फेंका है, उसे हॉस्पिटल ले गए हैं।


रितिका (फ़िक्र में): तो तुम जाओ, यहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हारा वहाँ रहना ज़्यादा ज़रूरी है।


सौरभ (हड़बड़ाहट में): पैसे... ऋतु, मेरा अकाउंट काम नहीं कर रहा है।


रितिका (खीजकर): फिर से??


सौरभ (लड़खड़ाती जुबान): हाँ, मेरे बैंक से मेरे दो दोस्तों का EMI कटता है। पिछले 6 महीनों से मेरे लाख कहने के बाद भी दोनों ने ट्रांसफ़र नहीं किया... और मेरे पास पैसे होते हुए भी नहीं हैं।


एक बार फिर, रितिका के सामने ऐसी नौबत आ गई थी, जहाँ दोनों तरफ़ खाई ही थी, वो भी गहरी, मगर जब रितिका ने सौरभ की बेबसी, उसकी आवाज़ में बेचैनी देखी, तब एक बार फिर उसने ख़ुद की कमाई, सौरभ पर न्योछावर कर दी।

सौरभ ने पहले तो पैसे लेने से साफ़ इनकार कर दिया। जब रितिका ने बहुत ज़ोर दिया, तब उसने 1 लाख रुपये रख लिए। सौरभ को एक लाख रुपये देने के बाद, रितिका की सेविंग्स अब धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही थी। वहीं सौरभ, अपने मक़सद के क़रीब जाता जा रहा था।


सौरभ के पास जैसे ही पैसे आए, वह एक बार फिर कोलकाता के लिए निकल गया। सौरभ जैसे ही अपने घर पहुँचा, श्रुति भी उसे देखकर हैरान हो गई। दोनों ने एक-दूसरे से कुछ नहीं कहा। सौरभ सीधे अपने कमरे की तरफ़ आगे बढ़ा, और श्रुति उसे बिना पलक झपकाए देखती रही।

श्रुति, सौरभ की बेसब्री देखकर समझ गई थी कि उसके मन में कुछ तो गड़बड़ है। मगर उसने सौरभ से तुरंत कुछ नहीं कहा।

जब अगली सुबह सौरभ सैर पर निकला, तब श्रुति उसके कमरे की तलाशी लेने गई।

श्रुति ने जैसे ही सौरभ के कमरे में क़दम रखा, उसके सामने उसकी बचपन की यादें ताज़ा हो गईं। जितना श्रुति ने नहीं सहेजा था, उतना सौरभ ने उसकी और अपनी यादों को सहेज रखा था। चाहे वो उनकी ब्लैक एंड वाइट तस्वीर हो, या फिर साथ स्कूल जाने वाली फ़ोटो, कुछ फटी पुरानी चुटकुलों की किताबें और कुछ श्रुति के टूटे खिलौने। इन्हें देखकर श्रुति की आँखें नम हो गईं।

धीरे-धीरे उन सभी सामानों को टटोलते हुए, अपने बचपन की यादों से आँख मिचोली खेलती श्रुति, सौरभ के कमरे को बारीकी से देख रही थी। उसी वक़्त उसके पैर से एक सूटकेस टकराया। उसने बिना ध्यान दिए अपने क़दम आगे किए, तो उसमें कुछ पैसे दिख रहे थे।

श्रुति ने जब नीचे झुककर देखा और सूटकेस पूरा खोला, उस सूटकेस में पैसे भरे हुए थे। उसका शक, यक़ीन में बदल गया कि सौरभ के यहाँ आने का मक़सद कुछ और नहीं, बल्कि ये पैसे हैं। इतने सारे पैसे देखकर वो इस सोच में पड़ गई कि आख़िर ये पैसे हैं किसके?

उसका ध्यान सौरभ की रखी चीज़ों पर गया। श्रुति को याद आया कि वह सौरभ के कमरे में है। उसी वक़्त किसी के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आती है।

कदम दरवाज़े तक आकर रुक जाते हैं। ये आहट सौरभ के कदमों की थी। सौरभ, श्रुति को अपने कमरे में देखने के बाद भी कुछ नहीं बोलता, मगर श्रुति उससे कह देती है, ‘’आप नहीं सुधर सकते, दादा। दौलत का नशा आपको बर्बाद कर देगा।''


सौरभ (सख्ती से): दुनिया पैसों के आगे झुकती है और इससे ज़्यादा मैं तुझसे कुछ नहीं कहूँगा।


श्रुति (ताना कसते हुए): तुम्हारे पास कहने को वैसे भी कुछ नहीं है।


सौरभ (सख्ती से): बहन हो, इसलिए ख़ुद को रोके रखा हूँ। वरना इस घर से अभी बाहर होती तुम।


श्रुति (ग़ुस्से के साथ रोते हुए): और कर भी क्या सकते हो तुम? कमज़ोरों पर दादागिरी करने के अलावा। ख़ैर, रुक जाओ। वरना कहीं के नहीं रहोगे। तुम्हारा झूठ तुम्हें बर्बाद कर देगा...


सौरभ, श्रुति की बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देता। वह अपनी अगली चाल की तरफ़ बढ़ता है। उसी वक़्त उसे एक कॉल आता है। जिस पर बात करते हुए सौरभ कह रहा था कि उसका काम ख़त्म होने वाला है। उसके बाद वह एक लंबी छुट्टी के लिए पुणे निकल जाएगा।


जहाँ सौरभ कोलकाता में आराम से था, वहीं रितिका बेचैन हो रही थी, ख़ासकर इस बात को लेकर कि सौरभ के घर पर सब ठीक है या नहीं।

इस बीच सौरभ और रितिका सिर्फ टेक्स्ट मैसेजेस पर ही बातें कर रहे थे। रितिका की लगाम अब पूरी तरह से सौरभ के हाथ में आ चुकी थी। रितिका अब सौरभ के कुछ भी बोलने पर उससे सवाल-जवाब नहीं करती थी। उसके चुप रहने की सिर्फ़ एक वजह थी—उसका बच्चा। रितिका का कुछ न कहना उसे मन ही मन खोखला कर रहा था। उसने कई बार सोचा कि अपनी प्रेगनेंसी के बारे में कम से कम मानसी को बता दे, पर सौरभ के डर ने उसकी जुबान पर ताला लगा दिया था।


एक तरफ रितिका की दिमागी कशमकश थी, दूसरी तरफ श्रुति की सौरभ को लेकर चिंता। श्रुति लाख कोशिश कर ले, मगर वो अपने भाई की चिंता करना नहीं छोड़ सकती थी। जिस रोज़ श्रुति और सौरभ की बहस हुई, उस रोज़ श्रुति बहुत रोई थी। वो भी यह सोचकर कि अगर सौरभ अब नहीं बदला, तो उसे बहुत बड़े ख़तरे का सामना करना पड़ सकता है।

एक शाम, जब वह चाय बना रही थी, रितिका ने सौरभ को फ़ोन किया। सौरभ का ध्यान इस बात पर नहीं था कि उसने फ़ोन स्पीकर पर रखा है और उसके बड़े से खाली घर में आवाज़ बहुत गूंज सकती है।

रितिका ने बात-बात पर सौरभ से श्रुति की तबियत पूछी। सौरभ ने जो जवाब दिया, वो श्रुति के पल्ले ही नहीं पड़ा। सौरभ ने कहा कि “उसकी बहन के हाथ की हड्डी टूट गई है, उसे कुछ दिन वहीं कोलकाता में रहना पड़ेगा।”

श्रुति यह बात सुनते ही सौरभ के रूम के सामने जाकर खड़ी हो गई। सौरभ, श्रुति को देखकर चौंक गया। आज पहली बार, श्रुति की आँखों में सौरभ के लिए बचा-खुचा स्नेह भी ख़त्म हो गया। श्रुति ने सौरभ से ज़्यादा कुछ तो नहीं कहा, बस इतना ज़रूर बोला कि वह जब भी घर आए, श्रुति को अपनी शक्ल न दिखाए।

सौरभ अपने मतलब के लिए इतना गिर चुका था कि अपनी बहन तक को ज़ख़्मी कर चुका था, और यह सब सिर्फ़ पैसों के लिए। हालांकि सौरभ को इस बात से कोई फ़र्क भी नहीं पड़ता कि श्रुति उसके बारे में क्या सोचती है और क्या नहीं। वह बस यह सोचकर खुश है कि उसके पास लाखों रुपये हैं, जिनसे वह कोलकाता में फ्लैट खरीदेगा।

सौरभ को अपने लालच की दुनिया इतनी अच्छी लगने लगी थी कि उसने यह तक तय कर लिया कि रितिका के बाद उसे किस तरह की लड़की को अपने प्यार में फँसाना है। जितनी तेजी से सौरभ आगे बढ़ रहा था, वह जान चुका था कि उसे जो चाहिए, वो उसे लेकर रहेगा। और अगर नहीं मिला, तो छीन लेगा।

काश यह ज़िद उसने अपने अच्छे कामों के लिए दिखाई होती, अपने रिश्तों के लिए दिखाई होती, तो आज उसे छुप-छुपकर अपनी ज़िंदगी नहीं बितानी पड़ती। मगर वह इसमें भी खुश था—इन्फैक्ट, ज़्यादा खुश था।

कैसे लगेगी रोक सौरभ की अति में? क्या वह वक़्त रहते खुद का किया समझ पाएगा? या बस ज़िंदगियाँ बर्बाद करता चला जाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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