सौरभ और श्रुति के बीच काफी संजीदा बहस हो जाती है, जिसके बाद श्रुति, सौरभ को चेतावनी देती है कि वह किसी भी लड़की की भावनाओं के साथ न खेले। सौरभ, हर बार की तरह, इस बार भी श्रुति की बातों को हवा में उड़ा देता है। सौरभ अपनी फरेबी दुनिया का मालिक है, जो जब चाहे, जैसे चाहे, लड़कियों को अपने झूठे प्यार के बंधन में बांधकर, अपने इशारों पर सालों से नचाता आ रहा है।
सौरभ जैसे ही मुंबई लौटता है, वह रितिका के घर जाता है और एक बार फिर शुरू होता है उसके दिखावे का सिलसिला।
रितिका (फ़िक्र में): श्रुति कैसी है अब?
सौरभ (शालीनता से): पहले से बेहतर है।
रितिका (नर्मी से): उसे यहां क्यों नहीं ले आते? तुम्हारे साथ रहेगी तो बेहतर महसूस करेगी। उसके लिए थोड़ा बदलाव भी हो जाएगा।
सौरभ (चिढ़ते हुए): श्रुति कोलकाता में भी ठीक है। उसकी दोस्त हैं उसके साथ और वह देख लेंगी। तुम मेरी बहन की चिंता मत करो।
रितिका, सौरभ का सख्त लहज़ा सुनकर इस सोच में पड़ जाती है कि सौरभ अपनी ही बहन की बात करने से क्यों चिढ़ रहा है? सौरभ के चेहरे पर थकान देखकर, रितिका उससे ज़्यादा बहस नहीं करती लेकिन उसके दिमाग में कई सवाल घर कर जाते हैं।
रितिका के मन में एक बार को आता है कि वह किसी भी तरह श्रुति का नंबर अरेंज करे और उससे बात करे। श्रुति तक पहुँचने का कोई ज़रिया न होने के कारण, रितिका इस ख़याल पर ज़ोर नहीं देती और ऑफिस के लिए निकल जाती है।
रितिका, सौरभ के रवैये से खुद को उलझा हुआ महसूस करती है। इस उलझन में उसे ध्यान नहीं रहता कि उसने आज सुबह से कुछ नहीं खाया है और न ही अपनी दवाइयां ली हैं।
रितिका अपने ऑफिस पहुंचकर, ऑफिस कैफ़े जाती है और अपने लिए एक ब्लैक कॉफ़ी और वेज सेंडव्हिच ऑर्डर करती है | रितिका टेबल पर हाथ में हाथ रखे, सौरभ की कहीं बातों पर ध्यान देती है, जैसे ही उसके ख़याल उसकी सेहत पर आकर रुकते हैं, रितिका अपनी प्रेगनेंसी के लक्षणों पर गौर करती है, और उसे रियलाईज़ होता है कि, ना ही उसे किसी चीज़ की क्रेविंग हो रही है, ना ही थकान और ना ही मूड स्विंग्स | अपनी कश्मकश से परेशान रितिका, अपनी दोस्त मानसी को कॉल करती है और कहती है |
रितिका: “ हाय मानसी , तू फ्री है अभी? मुझको बहुत दिन से तुझसे कुछ शेयर करना था, पर हेज़िटेशन हो रही थी”
रितिका की फॉर्मेलिटी सुनकर , मानसी उसे छेड़ते हुए बोलती है, 12 सालों की दोस्ती में हेज़िटेशन कब से आ गई, “तेरे लिए हमेशा फ्री हूँ। तुझे जो बताना है बता, बिना ये सोचे की मैं क्या सोचूंगी”।
रितिका (झिझकते हुए): “मैं प्रेग्नेंट हूँ मानसी... मैं डर गई थी, पर फिर सौरभ साथ है तो सब बेटर है... इसलिए अभी तक शेयर नहीं किया।”
मानसी चौंकते हुए कहती है “What?? पहले ये बता की तुझे पता कब चला और डॉक्टर ने क्या बोला?”
रितिका (दबी आवाज़): “अभी हमने डॉक्टर से कंसल्ट नहीं किया है... मैं अकेले जाना नहीं चाहती”.
मानसी ये जवाब सुनते ही रितिका से बोलती है, “तू टेंशन मत ले, मैं आ रही हूँ, हम अभी हॉस्पिटल चल रहे हैं | मानसी से अपनी परेशानी शेयर करने के बाद, रितिका को पहले से बेहतर महसूस रहा था... वो सोच रही थी की, अगर यही काम वो पहले कर लेती, तो आज शायद इतनी बेचैन नहीं होती. रितिका, अपने बॉस से हाफ डे के लिए परमिशन लेती है, हालांकि उसने अपना काम पहले ही कर लिया होता है, इसलिए उसे लीव मिलने में कोई प्रॉब्लम नहीं जाती, लेकिन रितिका के मन में दूसरी चिंता बढ़ने लगती है |
दो महीने हो गए थे, रितिका के पास कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी बस कुछ दवाइयां थी जो वो अपने साथ रखती थी | रितिका अपनी ऑफिस बिल्डिंग के नीचे मानसी का इंतज़ार करती है , उसी वक़्त सौरभ भी उसे कॉल करता है मगर रितिका उसके कॉल का रेस्पोंस नहीं देती | सौरभ भी तीन बार कॉल करने के बाद रितिका को कॉल नहीं करता | अगले 10 मिनट में मानसी उसे लेने आती है और दोनों, हॉस्पिटल के लिए निकल जाते हैं |
मानसी, रितिका की घबराहट देखकर, उसका हाथ अपने हाथ में रख लेती है. रितिका के मन में सौरभ को लेकर तमाम ख़याल चलते रहते हैं, जो उसे और भी खोखला करते जा रहे हैं. रितिका, खामोश बैठकर अपने आसपास कि औरतों को देखती हैं, उन सभी औरतों के चेहरे पर माँ बनने की ख़ुशी साफ़ झलकती है, वहीं रितिका का चेहरा , डर और बेचैनी से घिरा हुआ रहता है |
रितिका को अपने किये पर बहुत पछतावा होता है | उसके ज़हन में बस यही बात चल रही है कि, अगर सौरभ ने उसका साथ बीच रास्ते में ही छोड़ दिया, तब वो अकेली कैसे अपने बच्चे को बड़ा करेगी ? रितिका का दिमाग और शरीर दोनों थक चुका था | आधे घंटे के इंतज़ार के बाद, रितिका और मानसी डॉक्टर के केबिन में जाते हैं जहाँ रितिका, डॉक्टर को बताती है की उसे वॉमिटिंग और नौज़िया जैसा कुछ नहीं लग रहा है, बस हल्की सी कमज़ोरी लग रही है
रितिका को सुनने के बाद, डॉक्टर उसे चेक करती है और जब रितिका को उसकी कंडीशन के बारे में बताती है, तब रितिका चौंक जाती है | डॉक्टर उससे कहती है कि, वो प्रेग्नेंट नहीं है |
यह सुनकर रितिका को धक्का लगता है | रितिका अपनी बात रखते हुए डॉक्टर से कहती है कि, उन्हें कोई ग़लतफ़हमी हुई है। डॉक्टर ने उसे जब पुराने रिपोर्ट्स दिखाने को कहा, तब रितिका के पास कुछ भी नहीं था, फिर उसने तुरंत ही अपने बैग से दवा की शीशी निकाली और डॉक्टर को दिखाई जिसे देखते ही, डॉक्टर ने कहा की जो दवा रितिका ले रही है उसे लेने से इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम हो सकती है... भविष्य में गर्भवती होने में उसे दिक्कतें पेश आ सकतीं हैं। यह सुनते ही रितिका की आँखों में आंसू आ जाते हैं, इसलिए नहीं की आगे चलकर कॉम्प्लीकेशन्स आयेंगे, बल्कि इसलिए क्योंकि सौरभ ने उसके साथ विश्वासघात किया है एक बार, फिर!
मानसी और रितिका, हॉस्पिटल से निकलकर बांद्रा वेस्ट की तरफ़ बढ़ते हैं, जहाँ कॉफ़ी शॉप में बैठकर, मानसी और रितिका, आगे क्या करना है इस बारे में डिस्कस करते हैं। पहले तो मानसी, रितिका को उसके साथ हुए फ़रेब का किस्सा कहने को बोलती है. रितिका, मानसी को अपने साथ हुए फ़रेब के बारे में शुरू से लेकर अंत तक सब कुछ बताती है. मानसी उससे कहती है कि, वो सौरभ के अगेंस्ट कंप्लेन फाइल कर दे | रितिका इस बात को नकार देती है.
मानसी समझ जाती है की, रितिका इतनी जल्दी सौरभ को नहीं भुला पाएगी और ना ही उसके ख़िलाफ़ कोई ठोस क़दम उठाएगी, इसलिए बिना कुछ कहे वो रितिका कि बातें सुनते जाती है. रितिका को एक बार फिर सब कुछ याद आने लगता है | सौरभ का फ़रेब, उसकी झूठी कोशिशें और उसका झूठा प्यार | मानसी, रितिका को चुप कराते हुए उससे बोलती है, तू सबसे पहले रोना बंद कर, बस इतना याद रख की जो हो गया, उसे कोई बदल नहीं सकता. रितिका अपने आंसू पोछते हुए कहती है, पर अब आगे क्या करूँ मैं ? मानसी, रितिका से कहती है, इस मामले में तुझे एक ही इन्सान पूरा सच बता सकता है और वो है सौरभ की बहन श्रुति |
रितिका, मानसी से कहती है कि, ये आईडिया उसके दिमाग में भी आया था मगर उसके पास श्रुति का नंबर नहीं है | रितिका की परेशानी सुनने के बाद, मानसी अपूर्व को कॉल करती है और उससे श्रुति का नम्बर अरेंज करने को कहती है |
मानसी के फ़ोन करने के बाद, अपूर्व 2 घंटे में ही, रितिका को श्रुति का नंबर शेयर कर देता है | नंबर मिलने के बाद, रितिका का मन बहुत डाँवाडोल स्थिति में था, मगर वो सच्चाई जानना चाहती थी कि आख़िर सौरभ ने उसके साथ ऐसा क्यों किया ? रितिका, श्रुति को कॉल लगाती है. श्रुति जैसे ही फ़ोन उठाती है. रितिका, अपने बारे में उसे बताती है जिसके बाद, श्रुति सरासर इस बात से इनकार कर देती है की सौरभ, उसका भाई है, और ग़ुस्से से रितिका को चेतावनी देते हुए कहती है की दोबारा उसे फ़ोन ना करे | रितिका और मानसी को कुछ देर समझ नहीं आता... रितिका, मानसी से निराश होकर कहती है कि अब वो सच तक नहीं पहुँच पाएगी, उसी वक़्त रितिका के फ़ोन की घंटी बजती है |
फ़ोन कि दूसरी साइड पर श्रुति है जो उससे कहती है, ‘’मैं जानती हूँ तुम्हें..''
रितिका ( सवालिया लहज़ा): फिर उस वक़्त कुछ कहा क्यों नहीं ?
श्रुति (परेशान ) : ... क्योंकि उस फ़ोन को सौरभ चेक करता है, और मुझे कुछ भी डिलीट करने को मना किया है। अगर मैंने डिलीट किया तो, वो मुझे छोड़ेगा नहीं | मैं तुम्हे उसकी पूरी ज़िन्दगी बता सकती हूँ. बस तुम पर भरोसा करके मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ की, इसमें मेरा नाम बीच में नहीं आना चाहिए।
रितिका ( विश्वास के साथ ) : मैं तुम्हें यकीन दिलाती हूँ , तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं आएगा.
सिर्फ एक लड़की की ज़िन्दगी बचाने के लिए, श्रुति अपने भाई की सच्चाई बताती जाती है. रितिका और मानसी, सौरभ का सच जानने के बाद यकीन नहीं कर पाते कि, वो अपनी बहन को डरा धमकाकर, अपने बस में रखा हुआ है. श्रुति, जैसे जैसे सौरभ के नाम से फ़रेब की चादर हटाती गई, रितिका की दिल की धड़कनें बढ़ती गई. उसे खुद से चिढ़ होने लगी। श्रुति ने पूरी सच्चाई बताने के बाद, फ़ोन काट दिया. उसी वक़्त मानसी ने रीतिका को समझाते हुए कहा कि, अगर वो यहाँ भी डगमगाई, तब शायद उसका इस भंवर से बाहर आना मुश्किल होगा . रितिका ने मानसी से कुछ भी नहीं कहा, बस अपने घर आ गई. जहाँ, सौरभ उसका इंतज़ार कर रहा था.
सौरभ (प्यार ) : कहाँ थी तुम ? मैं कब से तुम्हारा वेट कर रहा था |
रितिका ( शुन्य में ) : मैं थक गई हूँ, रेस्ट करना चाहती हूँ |
सौरभ ( फ़िक्र में ) : तुम ऐसी हालत में बाहर क्यों गई? मन था तो मुझे बुला लिया होता... मैं लेकर जाता ना | तुम्हें और बच्चे को कुछ हो जाता तो…
रितिका ( थककर ) : ख़ुद के साथ कुछ वक़्त गुज़ारना चाहती थी |
सौरभ (प्यार से ) : अच्छा ठीक है तुम आराम करो, मैं जाता हूँ.
रितिका ( सामान्य तरह से ) : आज, मम्मी आने वाली है |
सौरभ ( हैरानी से ) : मम्मी... वो क्यों आ रही है? तुमने सच बता दिया क्या ?
रितिका ( रूख़ेपन से ) : नहीं तुमने मना किया है तो कुछ भी नहीं कहा.
सौरभ ( नर्मी से ) : ठीक है, मैं जाता हूँ |
रितिका, सौरभ के चेहरे के बदलाव को देखकर पुराने सारे तार जोड़ लेती है. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कितनी सफ़ाई से सौरभ उसे झूठ पे झूठ बोले जा रहा था। दिल के ना जाने कितने टुकड़े हुए होंगे, जब रितिका ने अपने प्यार को झूठ बोलते देखा होगा. सौरभ के जाने के बाद रितिका दिल खोल कर रोने लगी. उसके इतने सालों की कमाई एक बार में पानी की तरह बह गई. रितिका को ख़ुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था.
थोड़ी देर बाद, रितिका की माँ का फ़ोन आया, जो उससे कह रही थी की, घर के काम के लिए पैसे भेज दे. रितिका, अपनी माँ की आवाज़ सुनकर भावुक हो गई, उसने जैसे तैसे अपना रोना कंट्रोल किया | रितिका ने उनसे कहा की वो वर्क फ्रॉम होम लेकर, एक हफ़्ते बाद, सिलीगुड़ी आ रही है. माँ, रितिका के आने की बात सुनकर ही खुश हो गई। रितिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था, मगर वो इतना समझ चुकी थी कि उसे सौरभ से ख़ुद ही निपटना होगा। इसके लिए वो ख़ुद को संभालना शुरू कर चुकी थी.
क्या होगा जब सौरभ को इस बात का पता चलेगा की रितिका उसका सच जान चुकी है? क्या सौरभ इस सच्चाई को बर्दाश्त कर पायेगा? क्या उसका अहम इस बार सच में चूर होगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.