रितिका के सामने सौरभ का फ़रेब परत दर परत खुलता है | वो पूरी तरह मन में उठ रहे दर्द से बिखरने लगती है | इस बुरे हालात में रितिका की दोस्त मानसी उसे संभालने उसके साथ होती है. इसी बीच मानसी रितिका से कहती है की, उसे सौरभ की बहन श्रुति से बात करनी चाहिए ताकि वो सच को पहचान सके जिसके बाद, अपूर्व की मदद से श्रुति का नंबर रितिका के हाथ लगता है| यही वो पल होता है, जहाँ रितिका को सौरभ की सच्चाई स्पष्ट होती है | रितिका इस भंवर में भी खुद को डूबने नहीं देती मगर वो ख़ुद के जज़्बात तब नहीं संभाल पाती, जब रितिका की माँ उसे फ़ोन करती है और ममता भरी आवाज़ में उससे पघर की बात करती है | कॉल कट करने के बाद, रितिका खुद से कहती है.........
रितिका ( सिसकते हुए ) : मुझसे फिर वही गलती हो गई, मैं इतनी बड़ी बेवकूफ कैसे हो सकती हूँ ? क्यों नहीं रोक पाई मैं ख़ुद को उसके झूठ में फ़सने से ? मेरा कमाया पैसा, ख़ुद की नज़रों में मेरी इज्ज़त, मेरा वजूद , आज सब बर्बाद हो गया | वो भी एक ऐसे लड़के के लिए, जिसने कभी अपनी ही बहन की इज्ज़त नहीं की ... जो सिर्फ ख़ुद के ईगो को सैटिसफ़ाई करने के लिए किसी लड़की के इमोशंस को एंटरटेनमेंट की तरह इस्तेमाल करता है | क्या वाकई मर्दों का अहम् इतना छोटा है की एक औरत के आंसू से उसे ख़ुशी मिलती है? इस एक आदमी की वजह से आज मुझे अपने ही बाप और भाई से बात करने में चिढ़ हो रही है | आख़िर ऐसा क्यों किया सौरभ ने? क्यों मेरी ज़िन्दगी बर्बाद की ?
रितिका, सौरभ को लेकर अपने बचे-खुचे सारे जज़्बात, आंसुओं के साथ बहा चुकी थी | उसके पास अब सिर्फ एक ही solution था | सौरभ से मिलकर, अपने साथ हुई नाइंसाफी का जवाब माँगना | रितिका, फ़ौरन, सौरभ को मैसेज करती है, और मरीन ड्राइव पर मिलने को कहती है | सौरभ को मैसेज करने के बाद, रितिका अपनी बालकनी से आधे जगे हुए मुंबई को देखती है। एक बार फिर रितिका अपने बीते कल की सैर पर निकल जाती है|
मुंबई में उसे अपना पहला दिन याद आता है | आँखों में मासूमियत, दिल में जज़्बात और मन में हिम्मत के साथ सिलीगुड़ी से मुंबई तक का सफ़र रितिका ने अकेले तय किया था | छोटे शहर से होने की वजह से कॉलेज में सबके बीच बुली होना, अपने बंगाली एक्सेंट के चलते हंसी का पात्र बनना यहाँ तक की अपनी सिम्प्लिसिटी की वजह से सबके बीच ख़ुद को अकेला पाना ! रितिका ने अकेडमिक प्रेशर के साथ साथ, मेंटल प्रेशर भी बैलेंस किया। जहाँ से लोग हार मान जाते हैं उस मोड़ से रितिका ने ख़ुद को संभाला और परत दर परत अपना व्यक्तित्व निखारा | सॉफ्ट स्पोकन से बोल्ड एंड इंडिपेंडेंट बनने की जर्नी में रितिका ने ख़ुद को इस तरह तपाया है, जैसे मिट्टी के घड़े को तपाया जाता है | अपने हर सेमेस्टर में रितिका टॉपर रही, जो लोग उसे उसकी सिम्प्लिसिटी, उसके वैल्यूज को लेकर जज करते थे वो उससे जुड़ते चले गए |
काबिलियत अपना रास्ता बना ही लेती है, कोई ना कोई उसे ढूंढता हुआ पहुँच ही जाता है | ऐसे ही रितिका की काबिलियत को देखते हुए अपूर्व उसके पास आया था, कॉलेज प्ले में उसे साथ ले जाने। वहां से शुरू हुई रितिका और अपूर्व की दोस्ती की शुरुआत | रितिका धीरे धीरे अपने परफोर्मिंग आर्ट्स के चलते पूरे कॉलेज वालों की नज़रों में आने लगी | First semester में नाज़ुक दिखने वाली रितिका, last semester में आते आते बौसी हो चुकी थी | अपूर्व और मानसी उसे बेफ़िक्री से बातें करता देख, हैरान हुआ करते थे | रितिका बालकनी में खड़े होकर अपने ख़यालों में खोई हुई थी की उसका ध्यान मानसी के मैसेज से टूटा| रात के तीन बजे उसे मैसेज में लिखती है कि, कुछ भी हो जाए वो और अपूर्व रितिका के साथ हमेशा खड़े थे और आज भी खड़े रहेंगे |
रितिका समझ चुकी थी, ज़िन्दगी जो लड़ाई उसे लड़ने देना चाहती थी, वो उसे हर हाल में अकेले ही लड़ना होगा | ऐसे जज़्बाती लड़ाई की कल्पना, उसने अपने सपने में भी नहीं की थी. रितिका, अपने लिए अपने ही प्यार से लड़ने जा रही थी | वो अच्छे से जानती थी की, सौरभ अपनी मैनीपुलेशन स्किल्स से उसे अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश करेगा, इसलिए वो मेंटल से ज़्यादा emotionally prepared थी | अगली सुबह रितिका, सौरभ से मिलने के लिए रेडी हो ही रही थी की उसी वक़्त, उसका दोस्त अपूर्व उसे कॉल करता है और कहता है.......
“तुम रेडी हो रितिका”? अपूर्व ने नर्मी से कहा | मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं है अपूर्व, रितिका की आवाज़ में थकान थी | अपूर्व रितिका को भरोसा देते हुए कह कहता है, “ तुम चिंता मत करो, मैं और मानसी तुम्हारे आस पास ही रहेंगे. तुम्हारे दोस्त हर हाल में तुम्हारे साथ हैं | अपूर्व की बातें सुनकर रितिका को हिम्मत मिलती है | कॉल कट होने के बाद, रितिका पांच मिनट तक शीशे के सामने खड़े होकर ख़ुद से नज़रें मिलाती है, ख़ुद को यकीन दिलाती है की वो सौरभ से जीत सकती है |
हर बार जब भी रितिका और सौरभ कहीं मिलने जाते, तो हमेशा सौरभ उसे पिक करने आता. आदतन आज भी सौरभ ने रितिका को कॉल किया, मगर रितिका ने उसे सख्ती के साथ कह दिया की वो उसे लेने ना आए | सौरभ को आज पहली बार लग रहा था की, रितिका के हाथ कुछ तो सच्चाई लगी है, जो वो उसे बता नहीं रही है | सौरभ रास्ते भर बस यही सोचता रहा कि, अगर रितिका को कुछ पता चल गया तो वो कैसे अपने झूठ पर पर्दा डालेगा ? सौरभ रास्ते भर इसी टेंशन में था. वो जब मरीन ड्राइव पहुंचा, तब रितिका बिना पलकें गिराए बस अरब सागर की लहरों को देख रही थी. जितनी तेज़ उन लहरों की आवाज़ थी, उतना ही ज़ोर लगाकर आज रितिका चीखना चाहती थी. सौरभ, रितिका की चुप्पी देखकर समझ चुका था की आज उसकी ज़िन्दगी में तूफ़ान उठेगा. मगर फिर भी वो रितिका का हाल पूछता है.....
सौरभ (प्यार से ) : कैसी हो ऋतू ?
रितिका (प्यार से ) : ठीक हूँ, आओ मेरे पास बैठो |
सौरभ (प्यार से ) : अब कैसी तबियत है तुम्हारी ?
रितिका ( प्यार से ) : पहले से ठीक है |
सौरभ ( प्यार से ) : और हमारे बच्चे की?
रितिका ( सवाल पूछते हुए ): बच्चा, कौन सा बच्चा ?
सौरभ ( हैरानी से ) : ये कैसी बातें कर रही हो ?
रितिका ( ताना देते हुए ) : सच बोल रही हूँ |
सौरभ के आगे ये बात साफ़ हो चुकी थी कि, रितिका को सच्चाई का पता चल गया है, और रितिका अब उससे सवाल पूछे बिना नहीं मानेगी | सौरभ के पास भी रितिका को मैनिपुलेट करने के लिए कुछ नहीं था | इससे पहले की वो कुछ कह पाता, रितिका ने उससे सवाल किया, ‘’इतना बड़ा झूठ, आख़िर क्यों बोला तुमने ?''
सौरभ ( बेचारा बनकर ) : मैं घबरा गया था, तुम्हें खोने से डर गया था |
रितिका ( गुस्साकर ) : What nonsense!
सौरभ ( बेचारा बनकर ) : सच है रितिका, मुझे लगा तुम मुझसे दूर चली जाओगी |
रितिका ( चिढ़कर ) : ओह! तो तुम्हें लगता है की सच सुनने के बाद, मैं तुम्हारे पास रुकुंगी |
सौरभ ( नर्मी से ) : मेरा यकीन करो रितिका.…
रितिका ( खीजते हुए ) : क्या यकीन, कैसा यकीन सौरभ? तुमने मुझे खिलौना बनाकर रख दिया है | फ़ीज़ीकली, मेंटली, इमोशनली और फ़ाईनेंशिय्ली, हर तरह से तुमने मुझे खोखला कर दिया. मेरे भरोसे को पत्तो की तरह रौंद दिया है.
सौरभ के पास पहली बार कहने को कुछ भी नहीं था | वो बस रितिका को कहते हुए सुनते जा रहा था | रितिका पिछले 8 महीने की कसर को परत दर परत खोलती जा रही थी | रितिका का ग़ुस्सा देखकर आज पहली बार सौरभ की आँखों में डर और झिझक थी और सौरभ को ये बात मंज़ूर नहीं थी, उसका खोखला अहम, उसके बीच आ रहा था | उसने रितिका को बोलने दिया। जब रितिका ने उससे कहा की पूरी ज़िन्दगी वो किसी भी औरत का एहसान नहीं चुका सकेगा, तब सौरभ का गुस्सा, उसके सिर में सवार हो गया |
सौरभ ( गुस्से में दांत पिसते हुए ) : Enough रितिका!!! औरत हो, अपनी हद में रहो! क्या समझती हो खुद को? So-called financial expert, जिसे अपनी इज्ज़त तक प्यारी नहीं | अच्छा है तुम्हें मेरी सच्चाई पता चल गई, वरना मैं खुद तुम्हें बता देता कि मैं कैसा इंसान हूँ। कितनी इरिटेटिंग, कितनी toxic हो... हर बार तुम्हें pamper करना पड़ता है... और वो जो तुमने पैसे दिए है, वो तुम्हें tolerate करने की fees समझ लो... तुम्हें tolerate करने के लिए अलग ही क्षमता चाहिए।
तुम्हारे प्यार, तुम्हारी लॉयल्टी से घुटन होने लगी थी मुझे, इसलिए प्रेगनेंसी का नाटक किया, ताकि जब तुम सच जानो तो ख़ुद ही मुझसे दूर हो जाओ! आज तुमसे ज़्यादा मुझे आज़ादी महसूस हो रही है |
सौरभ के मुंह से अपने ख़िलाफ़ ऐसी बातें सुनकर, रितिका की आँखों में आंसू आ गए | रितिका को खरी खोटी सुनाने के बाद सौरभ का मेल ईगो सैटिस्फाइ हो गया | सौरभ को रितिका की आँखों में आंसू उसकी जीत लग रही थी जिसे वो पूरे मरीन ड्राइव पर चीख चीख कर बताना चाह रहा था. सौरभ, समझ चुका था रितिका के इमोशंस, इसलिए उसने उसके इमोशंस को ही ट्रिगर किया | सौरभ, चाहता था की रितिका उसके पांव पर गिरकर उससे माफ़ी मांगे मगर इस बार रितिका ने भी झुकना सही नहीं समझा |
सौरभ की बातों ने तीर की तरह उसके मन को भेदा था, मगर अपनी बातों में कहीं पैसे लौटाने का ज़िक्र तक नहीं किया | ये पॉइंट एक बार फिर रितिका, इग्नोर कर देती है और सौरभ की बातों में सच्चाई ढूँढने की कोशिश करती है | सौरभ, अपने आप को सही दिखाने के लिए वहां से चले जाता है और रितिका मरीन ड्राइव पर बैठकर, रोने लगती है.
जैसे ही रितिका, मरीन ड्राइव से निकलने वाली होती है, उसे मानसी का फ़ोन आता है | मानसी उससे सौरभ के बिहेवियर के बारे में पूछती है. रितिका उससे झूठ बोलती है कि, आज दोनों में कोई बात नहीं हो पाई, सौरभ जल्द ही चला गया | मानसी, उसे समझाने की कोशिश करती है मगर रितिका के कान में सिर्फ सौरभ के शब्द गूंज रहे थे| रितिका, उन शब्दों को लेकर घर जाती है और बिना कुछ खाए पिए अपने बिस्तर पर लेट जाती है | जैसे ही वो आँखें बंद करती है, उसको कभी सौरभ के साथ अपने अच्छे लम्हें याद आते, तो कभी उसका फ़रेब | इसी याद के साथ उसकी आँखें धीरे धीरे बंद होने लगती है |
उसी वक़्त, उसे सौरभ का कॉल आता है | रितिका उसके सारे कॉल्स अवॉइड करती है | कॉल्स रिजेक्ट होने के बाद, सौरभ ने रितिका को टेक्स्ट किया | उसने रितिका को एक बड़ा सा अपोलोजी नोट भेजा, रितिका ने एक एक शब्द गौर से पढ़ा, मगर उसे किसी भी शब्द से प्यार महसूस नहीं हुआ | रितिका का दिमाग उसे रोक रहा था, मगर दिल एक बार और उससे मिलना चाह रहा था, इसलिए उसने तय किया की, वो अगले दिन सौरभ से लोअर परेल कैफ़े में मिलेगी और उससे फुल एंड फाइनल बात करेगी | ये रात रितिका के लिए किसी अमावस भरी रात में से एक थी, जहाँ दूर दूर तक उसे कोई रोशनी नज़र नहीं आ रही थी |
रितिका दिमाग से पूरी तरह से थक रही थी, मगर उसका दिल अब भी बदलाव के एक मौके को तलाश रहा था | सच उसकी आँखों के सामने था, मगर झूठी उम्मीद ने उसकी आँखों पर एक बार फिर से पर्दा डाल दिया | क्या रितिका समझ पाएगी खुद का अस्तित्व? क्या वह बचा पाएगी अपनी पूंजी ? या लुटा देगी अपनी इज्ज़त के साथ अपनी कमाई को?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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