रात भर रोहन और विवेक अस्पताल में थे। काव्या का भयानक एक्सीडेंट हुआ था। काव्या रोहन को सड़क पर मिली थी। वो चाहता तो वो आसानी से निकल सकता था… क्यूंकि वो काव्या को जनता था इसलिए रोहन वहीं रुक गया। अपनी मीटिंग की परवाह किए बिना रोहन उसे साथ लेकर अस्पताल आ गया… लेकिन किस्मत का खेल भी अजीब है, काव्या के बहाने एसएचओ कर्मवीर से उसका फिर से सामना होना था। एसएचओ कर्मवीर के बेतुके सवाल, शक करने की आदत और मजाकिया लहज़ा, इन सब बातों से रोहन वाक़िफ था। वो नहीं चाहता था कि उसकी मुलाकात एसएचओ कर्मवीर से हो… क्योंकि हर मुलाकात के बाद उसे एक अनजाने डर के साये में जीना पड़ता… हालांकि विवेक ने जो मीटिंग फिक्स की थी, उसका क्या हुआ??? इस बारे में रोहन ने विवेक से पूछा भी नहीं। रोहन के चेहरे पर थकान दिख रही थी। उसका चहरा उतरा-उतरा लग रहा था… विवेक को रास्ते में ड्रॉप करने के बाद सीधा वो घर पंहुचा। उसकी मां हेमलता अपने कमरे में आराम कर रही थी… बबलू बाज़ार गया था और कंचन नॉवेल पढ़ रही थी। नॉवेल पढ़ते वक्त उसे बिल्कुल पता ही नहीं चला, रोहन घर वापस आ चुका था… अचानक से रोहन को सामने देखकर वो चौंक गई…
रोहन - कोई बात नहीं, तुम नॉवेल पढ़ो… मैं बस यूं ही चेक कर रहा था सब लोग कहां हैं??
कंचन - सर बहुत देर हो गई आपको… आपका चेहरा बता रहा है कि आप परेशान हैं.…. सब ठीक है न सर???? कोई प्रॉब्लेम तो नहीं है???
रोहन - नहीं नहीं…. कोई प्रॉब्लेम नहीं है… सब ठीक है…. मां कहां हैं??? वो ठीक है न???
आंटी को मेडिसन दे दी है शायद इसलिए उन्हें नींद आ गई हो… आजकल देख रही हूं आंटी ज़्यादा सोने लगी हैं… डॉक्टर से बात करनी होगी.. इतना सोना अच्छा नहीं है…बाइ द वे कल की मीटिंग कैसी रही??
रोहन - मीटिंग हुई ही नहीं.. कही और ही फंस गया था…
कंचन - मतलब मीटिंग कैन्सल… फिर आप रात में कहां रहे??
रोहन, कंचन को रात की सारी बातें बताना चाहता था लेकिन ये सोचकर वो चुप हो गया कि... जिन बातों को आप ख़ुद नहीं समझ सकते, उसे किसी को कैसे समझाया जा सकता है। रात का ज़िक्र करके कंचन को सारी बातें बताना पड़ेगी फिर न जाने कंचन के जेहन में कितने सवाल तैरने लग जाए?? तभी कंचन ने पीछे से आवाज़ दी…
कंचन - आपको कुछ चाहिए तो बताइए मैं ला देती हूं और हां आपको भूख लगी हो तो खाना लगा दूं…
वैसे रोहन को तो भूख लग भी रही थी लेकिन कंचन उसके लिए यह सब करे, उसे ठीक नहीं लगा। कुछ बातों को समझना बड़ा मुश्किल होता है। रोहन के भी हालत कुछ ऐसे ही थे। दिल की बात को कहा भी न जाय और कहे बिना रहा भी न जाय। हर किसी को एक ऐसे शख़्स की ज़रूरत होती है जो उसकी बातों को सुने भी और समझे भी। रोहन की ज़िंदगी में ऐसे लोगों की कमी थी। ऐसा नहीं था कि वो बिल्कुल अकेला था लेकिन उसने अकेले रहने की आदत बना ली थी और उसे अपने अकेलेपन से मज़ा भी आने लगा था। उसने कंचन को जवाब दिया
रोहन - नो थैंक्स.. तुम नॉवेल पढ़ो, मैं अपने रूम में जाता हूं और हां बबलू आए तो कहना शाम 4 बजे मुझे उठा देगा..
कंचन ने अपना सिर हां में हिला दिया और रोहन वहां से चला गया। दो दिन के बाद ही कंचन को जाना था। हाँ उसने सबसे कहा था वो वापस लौट कर आएगी लेकिन वो खुद श्योर नहीं थी। वो जानती थी उसके लिए वापस लौट कर आना इतना आसान नहीं था। उसके दिल दिमाग ने फिर से उसे परेशान करना शुरू कर दिया था। नॉवेल पढ़ते वक्त भी उसका ध्यान नॉवेल में बिल्कुल भी नहीं था। कंचन दूसरे कमरे में गई जहां हेमलता उठ चुकी थी लेकिन बेड पर ही लेटी हुई थी। कंचन को देखकर वो मुस्कराई और रोहन के बारे में पूछा कंचन जानती थी, हेमलता उसके चले जाने की बात से चुप-चुप रहती हैं। कंचन का दिल तो उसे जाने से मना कर रहा था लेकिन दिमाग़ उससे कुछ और ही कहता। 4 बजते ही कंचन रोहन के कमरे में गई। वैसे वो जाना नहीं चाहती थी, लेकिन बबलू हेमलता के लिए दवाइयाँ लाने गया था कंचन यह बात जानती थी, अगर 4 बजे तक रोहन को उठाया नहीं गया तो वो बबलू को ज़रूर डांटेगा। साथ रहते-रहते कंचन, बबलू को छोटे भाई की तरह समझने लगी थी। घर में बबलू, कंचन से पूछे बगैर कोई भी काम नहीं करता और कंचन भी बबलू को बड़े प्यार से समझाकर काम करवाती।
रोहन के कमरे में बिल्कुल अंधेरा था जैसे रात हो गई हो..अधेरेे में रोहन उसे दिखाई भी नहीं दे रहा था… अचानक वो किसी चीज़ से टकरा गई..तेज़ आवाज़ से रोहन जग गया और उसने पूछा..
रोहन - कौन?? बबलू??
कंचन - नहीं.. मैं हूं… आपने कहा था 4 बजे उठाने को..
रोहन - वहीं रुको, मैं लाइट ऑन करता हूं..
रोहन ने लाइट ऑन कर खिड़की के परदों को एक ओर सरका दिया, जिससे कमरे में रोशनी भर गई… उस वक्त रोहन किसी मासूम बच्चे की तरह उसे दिखा.. उसने फिर से ख़ुद को झटका दिया और अपने आप को समझाया..
कंचन - क्या हो रहा है कंचन तुझे?? क्या क्या सोच रही है??
जब से कंचन यहां आई थी वो कभी भी रोहन के कमरे में नहीं गई थी। बबलू ही रोहन के कमरे की साफ़ सफ़ाई करता .. इसलिए उसे वहां जाने की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। सामान के गिरने से रोहन की मां हेमलता भी वहां आ गई। मां को कमरे में आता देख रोहन उनके पास गया और उन्हें बेड पर बिठा दिया… रोहन ने कंचन से कहा…
रोहन - सुनो.. तुम्हें पकौड़े बनाना आता है? वैसे मेरी मां से अच्छेे पकौड़े कोई बना नहीं सकता है लेकिन मां..
इससे पहले रोहन अपनी बात पूरी करता, हेमलता ने कहा..
हेमलता - …लेकिन क्या? मेरे बच्चे ने.. इतने दिनों के बाद अपनी मां से कुछ मांगा है.. मैं इतना भी नहीं कर सकती.. मैं बिल्कुल ठीक हूं..
हेमलता में जैसे जान वापस आ गई थी। बुझे दिल में एक उम्मीद ने फिर से जन्म लिया था। रोहन की पुरानी आदतों को याद कर हेमलता मुस्कुरा दी। वो जानती थी उसके हाथ के बने पकौड़े रोहन बड़े चाव से खाता है.. और उसे खाता देख योगेश मज़ाक में उससे कहते थे... “बस तुम्हारा प्यार अपने बेटे के लिए है… शायद तुम भूल गई हो पत्नी जी, प्यार करना मैंने आपको सिखाया है”
हेमलता ने प्याज़ के पकौड़े बनाए जो रोहन ने बड़े चाव से खाए। मां को खुश देखकर रोहन को अच्छा लग रहा था तभी कंचन के पास जाकर रोहन ने कहा…
रोहन - तुम वापस जा सकती हो.. मैं मां का ख्याल रख लूंगा.. अगर तुम वापस आना चाहो तो मोस्ट वेलकम ..
कंचन ने हाँ में अपना सिर हिल दिया। रोहन कंचन से बात ही कर रहा था तभी सिटी अस्पताल से कॉल आया। रोहन ने कॉल रिसीव किया। उसे अस्पताल जाना था… शायद वहां उसकी ज़रूरत थी। उसे लगा एसएचओ कर्मवीर ने फिर से तो कोई बखेड़ा तो नहीं खड़ा कर दिया,रोहन सिटी अस्पताल के लिए निकल ही रहा था तभी कंचन ने उसे पुकारा…
कंचन - रोहन सर... रुकिए! क्या मैं आपके साथ चल सकती हूं??? दरअसल कुछ शॉपिंग बची है.. आप मुझे मार्केट में ड्रॉप कर देना… मैं ख़ुद से वापस आ जाऊंगी…
रोहन को सिटी अस्पताल जाने की जल्दी थी… पता नहीं वहां क्या हुआ और फिर से उसे क्यूं बुलाया है, ये तमाम सवाल उसके दिमाग़ में चल रहे थे। उसने कंचन को ड्रॉप करने के लिए हामी भर दी थी
रोहन - ठीक है बैठ जाओ.. वैसे इतनी शॉपिंग किसके लिए कर रही हो???
तब तक रोहन की कार स्टार्ट हो चुकी थी… कार मेन रोड पर आ चुकी थी… मजाकिया अंदाज में रोहन ने कहा…
रोहन - तुम लड़कियों की शॉपिंग की आदत भी अजीब है… कितनी भी कर लो, दिल नहीं भरता…
यह सुनकर कंचन मुस्कुरा दी…. थोड़ी देर दोनों चुप रहे… जैसे ही रोहन ने कार मोड़ी कंचन ने कहा…
कंचन - यहीं ड्रॉप कर दीजिए…
रोहन - यहां.. इस जगह पर.. यहां कौन सी दुकान है जहां तुम शॉपिंग करोगी???
रोहन को समझ नहीं आया, मार्केट से दूर एक सुनसान सड़क पर कंचन क्यूं उतरना चाहती थी…
कंचन - आप मुझे यहां उतार दीजिए… मार्केट मैं ख़ुद चली जाऊंगी…
रोहन - वैसे यहां क्या काम है??
कंचन - कुछ काम है, फिर कभी बता दूंगी..
रोहन वहां कंचन को ड्रॉप करना नहीं चाहता था लेकिन कंचन की ज़िद की वजह से ड्रॉप कर चला गया…जैसे ही रोहन की कार वहां से निकली कंचन ने ऑटो लिया और वहां से निकल गई….रोहन रास्ते भर ये सोचता रहा कि आखिर इतनी सुनसान जगह पर कंचन को क्या काम आ गया और किससे ?
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