किसी ने सच ही कहा है अपना सोचा कहां होता है, और ऐसा ही कुछ हो रहा था रोहन के साथ। रोहन को कहाँ मालूम था कि पार्टी के लिए निकला वो काव्या से टकरा जाएगा वो भी इस तरह एक एक्सीडेंट में। ये वही काव्या थी,  जिसने एयरपोर्ट ले जाने की बात पर रोहन से बहुत लड़ाई की थी। यहां तक कि उसने कसम भी खा ली थी कि रोहन से दुबारा कभी नहीं मिलेगी। रोहन काव्या को नहीं जानता था वो तो उसे पार्टी में मिली थी,  जिसमे उसने काफी ड्रिंक की थी और किसी बात को लेकर परेशान थी। नशे की हालत में वो बार-बार रोहन से उस बात का ज़िक्र कर रही थी, जिससे रोहन का कोई लेना देना नहीं था। रोहन उससे पीछा छुड़ाने की कोशिश करता रहा लेकिन काव्या नहीं मानी। रोहन जहां जाता, काव्या उसके पीछे-पीछे चली आती। काव्या से रोहन उस रात बहुत परेशान हो गया था। उसे बार-बार यही लगता वो कहां फंस गया है??? जैसे ही काव्या का ध्यान भटका, रोहन पार्टी से निकल गया… उसने अपनी कार स्टार्ट की….

तो देखा काव्या सामने खड़ी थी वो अचानक वो गिर गई… रोहन भागता हुआ उसके पास गया और उसे अपनी कार में बिठा कर अपने घर ले आया था। रोहन और विवेक की पूरी रात अस्पताल  में गुज़र चुकी थी… काव्या को होश में आने के बाद दोनों घर के लिए रवाना हुए लेकिन यहां भी किस्मत ने अपनी चाल चली वही चाल जब रोहन पार्टी में जाने के लिए घर से निकला था… उसे कहां मालूम था, वो काव्या की ज़िंदगी बचाने के लिए घर से निकल रहा है।  

इधर कंचन भी रोहन के बारे में सोच रही थी कि आखिर क्या काम करता है रोहन और क्यूँ इतना खिचा-खिचा रहता है? क्यूँ किसी से खुल कर बात नहीं करता ? रोहन को कभी किसी से ही खुल कर बात करने की आदत ही नहीं थी… और यही शिकायत तो माया भी उससे करती… एक दिन माया ने उससे कहा भी था…

माया  - क्या बात है रोहन?? मैं देख रही हूं तुम मेरे पास होकर भी मेरे साथ नहीं होते… कुछ भी पूछती हूं तो सिर्फ़ हां या ना में जवाब देते हो… कुछ बताना चाहते हो तो कहो मुझे प्लीज़! यूं चुप रहना मुझे अच्छा नहीं लगता… समझ रहे हो रोहन मैं क्या कह रही हूं…

रोहन - क्या कहूं!! कुछ भी तो ऐसा नहीं है जिसे बताना ज़रूरी हो.. तुम बेकार में परेशान हो… सब नॉर्मल है माया, आई स्वेर..

 

कभी-कभी कोई अपना लाख़ कोशिश कर ले बात छुपाने की, लेकिन जिसका रिश्ता दिल से जुड़ा होता है उसे ख़ामोशी को पढ़ना भी आता है.. रोहन का चेहरा साफ़ साफ़ बता रहा था, वो परेशान है… कुछ तो ऐसा है जिसे वो कहना तो चाहता था लेकिन किसी डर ने उसकी ज़ुबान को कसकर जकड़ लिया था… माया और रोहन के बीच अब दूरी वक्त के साथ लगातार बढ़ती जा रही थी जिसका दोनों को एहसास था…  लेकिन दोनों ही बेबस और लाचार थे… माया को समझ में नहीं आया, उसका भोला-भाला रोहन ऐसे रास्ते की तरफ़ भागे जा रहा था जहां से लौट के आना शायद उसके लिए मुमकिन नहीं था… ऐसी कैसी मजबूरी थी?? रोहन और विवेक पुलिस स्टेशन  की तरफ़ जा रहे थे तभी विवेक ने कहा..

 

विवेक  - सर! कहां जा रहे हैं आप? पुलिस स्टेशन  तो पीछे रह गया…

 

रोहन माया के खयालों से वापस आया तो उसे लगा सच में पुलिस स्टेशन  पीछे रह गया था… यू - टर्न लेकर रोहन पुलिस स्टेशन  की तरफ़ बढ़ा। कुछ ही देर के बाद रोहन और विवेक पुलिस स्टेशन  में थे…कहते हैं अस्पताल  और पुलिस स्टेशन  दोनों जगह लोग न मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता.. अन्दर जाकर रोहन ने बताया कि वो पुलिस स्टेशन  क्यूं आया है… एसएचओ कर्मवीर थाने में नहीं थे…. वो थोड़ी देर पहले ही सिटी हॉस्पिटल के लिए निकलते थे काव्या का स्टैट्मेंट लेने। अब एसएचओ कर्मवीर के लौटने का उसे इंतज़ार करना था या वो चाहे यहां दुबारा भी आ सकता था… दोनों ऑप्शन उसके पास थे। विवेक ने रोहन को इस बारे में कोई बात नहीं की क्यूंकि वो जानता था रोहन करेगा वही जो उसे ठीक लगेगा… इस मामले में विवेक रोहन को बड़ी अच्छी तरह जानता था…कई बार रोहन इम्पॉर्टन्ट मीटिंग कैन्सल करवा चुका था। रीज़न  जानकर विवेक को हर बार हैरानी होती, इसलिए उसकी आदत थी मीटिंग फिक्स करने के बाद भी लोकेशन पर वो ख़ुद चेक करता रोहन आया है या नहीं। एक बार रास्ते में उन दोनों को अजय मेहरा मिल गए। एक बिचारे बूढ़े बुज़ुर्ग। घर से तो उनके बेटे और बहू ने कब का निकाल दिया था। अजय मेहरा ओल्ड ऐज होम  में रहते थे।  अजय मेहरा को रास्ते पर परेशान देखकर रोहन उन्हें शहर से दूर ओल्ड ऐज होम  छोड़ने चला गया।  मदद करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन रोहन ने तो हद ही कर दी…वो दिन भर अजय मेहरा के साथ रहा और ओल्ड ऐज होम  का पूरा इतिहास निकाल कर लाया… और आज ही की तरह विवेक को उस दिन भी रोहन पर बहुत गुस्सा आया था.. तभी रोहन ने कहा..

रोहन  - थोड़ी देर वेट कर लेते हैं.. इतनी दूर आए हैं…फिर दुबारा आना मेरे लिए पॉसिबल नहीं होगा…

 

विवेक  - रोहन सर, आपके लिए कुछ भी इम्पॉसिबल नहीं है.. आप इंसान नहीं हो, सुपरमैन  हो सुपरमैन.. जो कहीं भी, कभी भी, किसी की मदद कर सकता है बस एक छोटी-सी प्रॉब्लेम है... ये जो सुपरमैन है उसकी आदत है, वो हर प्रॉब्लेम में एक विवेक नाम के प्राणी को फंसा देना…

 

विवेक की बातें सुनकर रोहन को बिल्कुल गुस्सा नहीं आया.. बल्कि वह मुस्कुरा रहा था… उस वक्त विवेक ने रोहन को फिर से कहा…

 

विवेक  - सॉरी, सॉरी, आप सिर्फ़ सुपरमैन ही नहीं बल्कि बहुत बड़े तपस्वी महात्मा हो जो रात भर जगने के बाद पुलिस स्टेशन  में बैठकर आराम से मुस्कुरा सकता है…

 

रोहन - जिसके पास तुम जैसा ईडियट हो उसे हंसी तो आएगी ही… एक काम कर..

 

इससे पहले रोहन कुछ कहता, उसकी बात विवेक ने काट दी…

 

विवेक  -  कितना ओवर टाइम करवाओगे सर..

 

रोहन - भाई मैं कह रहा हूं.. तुझे प्रॉब्लेम हो रही है, नींद आ रही है तो घर चला जा..

 

विवेक  - ये भी ठीक है… बाद में आप ही कहोगे मुसीबत में छोड़ कर निकल लिए..

 

रोहन जानता था विवेक उसका साथ नहीं छोड़ेगा… ज़िंदगी में उसके साथ जितना बुरा हुआ है, उसमें एक बात तो अच्छी हुई कि उसे विवेक उसे मिला है जिसने हमेशा उसका साथ दिया है।  आज जो कुछ भी वो कर पा रहा है विवेक के बगैर बिल्कुल नहीं कर पाता…एक ऐसा साथी जिसपर उसे पूरा भरोसा था… थोड़ी देर के बाद एसएचओ कर्मवीर थाने आ चुका था.. रोहन को देखते ही बोला..

 

एसएचओ - हम दोनों का कोई न कोई कनेक्शन ज़रूर है.. इतनी जल्दी मिलना हो रहा है.. अब बैठ भी जाइए.. अस्पताल  में आपके बारे में पता चला.. सारी रात आप वहीं थे.. एक अच्छे नागरिक का फ़र्ज़ आपने बखूबी निभाया.. किसी गैर के लिए रात भर अस्पताल  में रहना, आजकल लोग कहां करते हैं…

 

रोहन और विवेक दोनों चुपचाप एसएचओ की बातें सुनते रहे.. रोहन अच्छी तरह जानता था एसएचओ की इन बातों के पीछे कोई न कोई सवाल ऐसा होगा जो उसे चौंका देगा…

 

एसएचओ - वैसे एक बात है रोहन, अब आप पर मुझे कोई शक नहीं..

 

रोहन - समझा नहीं आप किस बारे में बात कर रहे हैं??

 

एसएचओ - अरे पवन चौहान के बारे में… आप जैसे लोग जितने ज़्यादा हो उतना ही अच्छा है… पुलिस वालों का काम आसान हो जाएगा… हमें भी रेस्ट करने का मौका मिलेगा…

 

 

रोहन - वो तो मैं काव्या को जानता था इसलिए उसको मदद कर रहा था..

 

 

एसएचओ - क्या कहा आपने? काव्या को आप जानते थे .. कैसे??

 

 

रोहन को लगा शायद उसे एसएचओ से यह नहीं कहना चाहिए था... रोहन को चुप देखकर एसएचओ ने फिर से कहा..

 

एसएचओ - आप काव्या को कैसे जानते हैं??

 

रोहन - मैं जानता हूं, कैसे.. यह मैं कैसे समझा सकता हूं..

 

एसएचओ - समझना पड़ेगा क्यूंकि काव्या आपको नहीं जानती.. वो मैं इसलिए कह रहा हूं, क्यूंकी जब मैंने उसको आपका इन्ट्रोडक्शन दिया ये कहते हुए कि अपने ही उसकी जान बचाई है तो उसने आपका नाम सुना और नाम सुनेने के बाद उसने यह नहीं कहा कि वो आप को जानती है।  

 

विवेक  - सर हो सकता है चोट की वजह से उन्हें याद नहीं आया होगा…

 

एसएचओ - इनकी तारीफ़..

 

रोहन - विवेक है.. मेरे साथ काम करता है..

 

एसएचओ - ऐसा है विवेक ये मेरा पुलिस स्टेशन  है.. यहां जब मैं कहता हूं बोलो तब ज़ुबान खुलती है समझे..  मैं रोहन से बात कर रहा हूं.. अगर तुम्हें तकलीफ़ हो रही है मेरे सवालों से, तो मैं रोहन से क्यूं पूछ रहा हूं?? तुम ही बताओ- काव्या और रोहन का क्या कनेक्शन है??

 

रोहन - सर, मैं बताता हूं… मैं पहले उससे मिल चुका हूं… गहरी जान पहचान नहीं है.. शायद उसे मेरा नाम याद न हो, मुझे देखेगी तो उसे याद आ जाए…

 

एसएचओ ने कुछ सोचा और फिर कहा आप जा सकते हैं… रोहन और विवेक दोनों पुलिस स्टेशन  से घर के लिए निकले… रास्ते भर विवेक रोहन को समझाता रहा, किसी के फड्डे में टांग नहीं डालनी चाहिए… एक तो हेल्प करो और फिर पुलिस स्टेशन  में सवालों का सामना करो। विवेक ने इशारों इशारों में रोहन को समझाने की कोशिश कि काम का बहुत नुकसान हो रहा है.. ऐसा ही चलता रहा तो आगे सर्वाइव करना मुश्किल हो जाएगा। जितने खर्चे रोहन ने पाले हुए थे, उसके लिए पैसों की ज़रूरत थी और फिलहाल पैसों आना बिल्कुल बंद हो गया था।  

क्या होगा रोहन कि ज़िंदगी का अगला मोड़ ? क्या काव्या उसको किसी नई मुसीबत में डालने वाले थी ?

क्या एसएचओ कर्मवीर ने वाकई रोहन को शक के दाएरे से बाहर कर चुका था या क्या यह उसकी कोई दूसरी चाल थी? 

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