रोहन और कंचन धीरे-धीरे अब करीब आने लगे थे। उनके बीच एक दोस्ती का रिश्ता बन रहा था और रह-रह कर रोहन को कंचन का यूं सुनसान सड़क पर उतरना परेशान कर रहा था। कंचन को शॉपिंग करना था लेकिन जिस जगह पर वो उतरी वहां कोई ऐसी दुकान नहीं थी जहां से कुछ खरीदा जा सके। कुछ ही देर में रोहन सिटी हॉस्पिटल  में था। काव्या को अस्पताल लाते वक्त उसे इसका बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि उसे इतनी चोटें आई होंगी। काव्या की हालत वाकई में बहुत ख़राब थी। अचानक रोहन को सामने देखकर वो हड़बड़ा गई… उसे समझ में नहीं आया कि रोहन यहां कैसे आया?? इससे पहले काव्या रोहन से कुछ पूछ पाती, रोहन ने कहा..

रोहन - हाउ आर यू   ??

काव्या  - फीलिंग बेटर... बट ..

काव्या को सही सलामत देख कर रोहन को तसल्ली हुई… उसका चमकता हुआ चेहरा साफ़ बता रहा था कि उसने जो किया, अच्छा किया था… अनजाने में ही सही काव्या की उसने मदद की थी, ठीक वैसे ही जैसे पहली बार उसकी मुलाकात हुई थी,काव्या को एयरपोर्ट छोड़ते वक्त रोहन को कहां मालूम था कि काव्या से उसकी दोबारा मुलाकात इस तरह से होगी… किस्मत ने क्यूं दोबारा रोहन को काव्या से मिलवाया था, ये बात वो समझ नहीं पा रहा था… इससे पहले काव्या अपनी बात आगे कहती, रोहन बोल पड़ा…

रोहन - ज़्यादा बोलो मत.. वैसे भी बोलोगी तो मेरा दिमाग ही खराब करोगी… क्यूंकी अच्छा  तुम्हें तो बोलना आता नहीं है… बस सवाल करना जानती हो… बाइ द वे जब पचती नहीं है तो तुम इतनी पीती क्यूं हो??? ओ माइ गॉड !!  ये मैंने क्या कह दिया?? अब तो ये लड़की मुझे छोड़ने वाली नहीं है… कहां की बात कहां जोड़कर मुझसे सवाल करेगी…  

काव्या ने कुछ बोला नहीं, बस मुस्कुरा रही थी… उसे पता था रोहन कहीं न कहीं सच कह रहा है… दो ही मुलाकात में दोनों एक दूसरे को कितनी अच्छी तरह समझ गए थे।  

काव्या  - थैंकयु एण्ड सॉरी  उस दिन के लिए…  

रोहन - ओ माइ गॉड !!! आई एम सर्प्राइज़ड …. तुम्हारी डिक्शनेरी में सॉरी और थैंक्यु, यही दो वर्डस हैं क्या?  

रोहन  - तुम आराम करो.. मैं डॉक्टर से मिल कर आता हूं..

काव्या ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वो दोबारा रोहन से मिलेगी और उसकी इस तरह से रोहन से मुलाकात होगी वो यही सोच रही थी रोहन यहां कैसे पहुंचा…ये सोचते हुए काव्या कुछ ढूँढने लगी तभी रोहन डॉक्टर से मिलकर वापस आ गया...

रोहन  - क्या चाहिए.. मैं देता हूं..

काव्या  - वो मेरा फ़ोन  नहीं मिल रहा है..

काव्या का एक्सीडेंट  कैसे हुआ, वो अस्पताल  कैसे आई और रोहन का यूं फिर से मिल जाना,काव्या ने इन सब बातों के बारे में इतना सोच लिया कि उसके सिर में दर्द होने लगा था। अपनी गाड़ी में काव्या को बैठाते वक्त रोहन ने उसका फ़ोन  उसकी कार से उठा लिया था लेकिन काव्या इस हालत में नहीं थी कि वो उसको फ़ोन  दे सकता था..

रोहन  - टेंशन मत लो.. तुम्हारा फ़ोन  मेरे पास है.. मैं कार से लाना भूल गया.. अभी लाता हूं..

काव्या  - रहने दो, अभी ज़रूरत नहीं है… वैसे तुम्हें किसने बताया मैं यहां हूं…

थोड़ी ही देर काव्या को सब पता चल चुका था...  कैसे उसका एक्सीडेंट  हुआ और कैसे रोहन उसे सिटी हॉस्पिटल  लेकर आया... सारी बातें जान लेने के बाद काव्या, कुछ देर चुप रही, फिर बोली…

काव्या  - थैंक्स… अगर तुम नहीं होते तो पता नहीं क्या हो जाता… थैंक्स फॉर एव्रीथिंग… और उस दिन के लिए सॉरी…

चोट कि वजह से काव्या कि आवाज़ में दर्द तो था ही लेकिन वो शर्मिंदा भी थी।  अपनी उन हरकतों के लिए जो उसने रोहन के साथ की थी। उसकी आंखें साफ बयां कर रही थीं कि उसे अपनी गलती का एहसास था।  जब सामने वाले शख़्स को गलती का एहसास हो जाए तो कोई किसी से कब तक नाराज़ या गुस्सा रह सकता है…

रोहन  - कैसी बातें कर रही हो... मैं तो उन सब बातों को कब का भूल चुका हूं।  वैसे तुम्हें अपने घर पर एक्सीडेंट  के बारे में बता देना चाहिए…

काव्या चुप रही जैसे उसके दिमाग़ में कुछ चल रहा हो.. और उधर कंचन ऑटो  से सिटी हॉस्पिटल  पहुंच गई । जैसे ही रोहन ने उसे ड्रॉप  किया , काव्या ने ऑटो  लिया और उसका पीछा करते हुए सिटी हॉस्पिटल पहुंच गई। कंचन ने काव्या के रूम के बाहर एक आदमी से कुछ बात चीत कि और रोहन कि नज़रों से बचते हुए अस्पताल  से निकल गई।  

सिटी हॉस्पिटल  से जाते वक्त कंचन के दिमाग में बहुत सारे सवाल थे। रोहन का एक लड़की के साथ सिटी हॉस्पिटल  में होना उसे बहुत अजीब लगा और कंचन ने ऐसा क्यूं किया, शायद उस वक्त इस सवाल का जवाब उसके पास भी नहीं था। दिल पर किसका बस चलता है… क्या उसे रोहन पसंद आने लगा था या कोई और ही बात थी। इन्ही बातों को सोचते हुए कंचन ने ऑटो  लिया और मार्केट  की तरफ़ निकल गई जहां उसे शॉपिंग  करनी थी। इधर काव्या के साथ रोहन बैठा था । इस बात से अनजान कि यहां थोड़ी देर पहले कंचन आई थी।   रोहन ने फिर से काव्या से कहा..

रोहन - तुम्हें अपनी फैमिली  को सब कुछ बता देना चाहिए…

काव्या  - यू आर राइट बट  एक प्रॉब्लेम  है..

रोहन - क्या प्रॉब्लेम  है?? मैं मदद करूंगा तुम्हारी ..

काव्या  - तुम वो प्रॉब्लेम  सॉल्व नहीं कर सकते.. यू कांट डू एनीथिंग …

रोहन  - बताओ तो तुम्हारी प्रॉब्लेम क्या क्या है?

रोहन ने बड़े हक से कहा…फिर उसने एक दफा सोचा भी उसे इस बात के लिए काव्या को फोर्स नहीं करना चाहिए… लेकिन उसे इस हाल में देखकर यही ख्याल आया कि इस वक़्त काव्या के पास उसके किसी अपने का होना बहुत ज़रूरी है…

काव्या  - मैं भी चाहती हूं लेकिन अभी मैं अपने घर पर इन्फॉर्म नहीं कर सकती… समझने कि कोशिश करो…

रोहन कुछ समझ नहीं पाया… लेकिन इस वक्त काव्या की बात मानने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं था…

काव्या  - सॉरी उस दिन तुम्हारा नाम नहीं पूछा था..

जब पुरानी बातों को सोचकर हमें शर्मिंदगी महसूस होने लगे तो हम उसे सही ठहराने के बहाने ढूंढने लग जाते हैं…रोहन और काव्या की पहली मुलाक़ात जैसे हुई थी,  कम ही लोगों को ऐसी मुलाकात की चाहत होती है। काव्या भी इसी कशमकश में फंसी हुई थी… क्योंकि जिस तरह से वो रोहन के साथ पेश आई थी, उस बारे में सोच कर कोई भी इंसान किसी की मदद नहीं करता… लेकिन रोहन ने ऐसा नहीं किया… तभी रोहन ने काव्या के सवाल का जवाब धीरे से दिया…..

 

रोहन - वैसे लोग मुझे रोहन के नाम से जानते हैं… तुम जो चाहो तो वो कह सकती हो…

 

काव्या  - ओ माइ गॉड ! कितनी स्टूपिड हूं मैं.. उस पुलिस वाले ने तुम्हारा नाम बताया था.. मैं भूल गई..

 

रोहन के लिए प्रॉब्लेम  ये थी काव्या एक्सीडेंट  के बारे में घर पर बताना नहीं चाहती और काव्या को इस हाल में अकेला छोड़ देना उसे ठीक नहीं लग रहा था आख़िर वो करे तो क्या करे??

 

रोहन  - ओके काव्या , तुम रेस्ट करो, मैं फिर आऊंगा.. और हां, ये मेरा नंबर ले लो… किसी भी चीज़ की ज़रूरत होगी तो मुझे कॉल कर लेना या अस्पताल  के स्टाफ से कॉल करवा देना…. मैं चलता हूं…

काव्या फिलहाल रोहन की ज़िम्मेदारी थी। वो क्या करेगा कैसे करेगा उसे कुछ  समझ नहीं आ रहा था, फिर उसे याद आया कि विवेक उसके साथ है। वो कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकाल लेगा। सर्दी के मौसम में शाम जल्दी हो जाती है… लेकिन इस ढलती शाम में एक नशा था जिसे उसने माया के साथ महसूस किया था… माया कहती भी थी…

“रोहन आई लव विंटर्स" 

सूरज की गुनगुनी धूप, कोहरा, गर्म कपड़े से लदे हुए लोग सब माया को पसंद था… उसका बस चलता तो सर्दी का मौसम वो कभी जाने नहीं देती.. फ़ोन की घंटी ने रोहन को माया कि यादों से बाहर निकाल दिया… देखा तो कंचन का call था…फ़ोन उठाया तो..

कंचन - सर आप कहां हैं?? मेरी शॉपिंग  हो गई है.. अगर आप मुझे पिक कर लेते तो..

रोहन - हां मैं आता हूं.. लोकैशन भेज दो…

रोहन कंचन को पिक करने के लिए निकल जाता है रोहन रास्ते में फिर से एक बार कंचन के बारे में सोचता है कि कैसे वो एक सुनसान रोड पर उतरी थी और वो वहाँ करने क्या गई थी?? क्या रोहन और कंचन के बीच कोई नया रिश्ता बनने जा रहा था ? या रोहन के साथ ज़िंदगी चल रही है कोई नई चाल?   

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