ज़िंदगी की राहें भी अजीब होती है.. चलने का मन ना भी करे तब भी आपको चलना पड़ता है। रोहन तय नहीं कर पा रहा था कि काव्या का कहां तक साथ देना है…और एक तरफ़ मां की बीमारी और डर की वजह से रोहन इन दिनों अपने काम पर बिल्कुल फोकस नहीं कर पा रहा था… जिसको लेकर विवेक ने उसे समझाया भी था…' अगर ऐसे ही चलता रहा तो कुछ दिनों में सब बर्बाद हो जाएगा '.... मां के साथ रोहन ने कई जिम्मेदारी ख़ुद ही ले ली थी जैसे ये काव्या कि… वो चाहता तो बड़ी आसानी से पीछे हट सकता था, लेकिन उसकी परवरिश ने उसे ऐसा करने से रोक दिया था। घर के मुश्किल हालत होते हुए भी रोहन कभी भी किसी कि मदद करने का मौका नहीं छोड़ता। लेकिन रोहन को अभी काव्या नहीं एक दूसरी बात परेशान कर रही थी। अभी तो रोहन कि माँ भी उसके साथ थी... उसे यही लग रहा था कि माँ को अगर काव्या के बारे में पता चल गया तो उन्हें क्या कहेगा.. इतना तो ज़रूर पूछेंगी कि काव्या कौन है?? और रोहन क्यूं उसकी मदद कर रहा है??? ये तमाम सवाल उसके जेहन में थे और वो कार चला रहा था… कंचन ने अपनी लोकैशन भेज दी थी। कंचन हाथ में बैग लिए रोहन का वेट कर रही थी। उसने दूर से रोहन को कार में देख लिया था… आगे ट्रैफिक बहुत ज़्यादा था इसलिए उसने रोहन को कॉल करके वहीं रुकने को कहा…कुछ ही देर में कंचन और रोहन दोनो साथ थे।  

 

कंचन - आगे बहुत ट्राफिक था… मैंने सोचा आप बेवजह फंस जाएंगे इसलिए कॉल कर दिया था…. आपको कोई परेशानी तो नहीं हुई…

 

कंचन ने हिचकिचाते हुए पूछा… लेकिन उसने रोहन के सामने ये ज़ाहिर नहीं होने दिया कि वो जानती है इस वक्त रोहन किसके साथ था…  

 

रोहन - सारी शॉपिंग  हो गई या अभी भी कुछ रह गया है??

 

कंचन - नहीं.. पूरी शॉपिंग  नहीं हो पाई… अकेले बोर हो रही थी। कल आप साथ थे तो चूज़ करने में मदद मिल गई… वैसे भी आज तो मैं…

 

कंचन कुछ कहते-कहते रुक गई। उसके दिमाग़ में कुछ चल रहा था जिसे रोहन नहीं समझ पाया। जब आप ख़ुद उलझते होते हो तो सामने साफ़-साफ़ देख पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। कंचन की बातों का रोहन ने कुछ जवाब नहीं दिया.. या यूं कहें उसे कुछ भी कहने का मन नहीं हुआ, तभी कंचन ने हाथ बढ़ाकर कार का म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। कंचन को पुराने गाने सुनने का बहुत शौक था और इस वक्त पुराना गाना ही बज रहा था। उसने अपना सिर, सीट पर टिका दिया मानो वो इस पल को जीना चाहती थी। कार में बजता हुआ गाना उसे सुकून दे रहा था। उस वक्त रोहन ने कंचन को देखा जिसकी आंखें बंद थी, बाहर हल्की हल्की ठंड और तेज़ हवाएं इस पल को और भी खुबसूरत बना रही थी।  

ऐसी ही हसीन शाम थी जब माया ने रोहन से कहा था ...  

माया  - रोहन मैं तुम्हारे साथ लॉंग ड्राइव पर जाना चाहती हूं। बाहर ठंड हो और सिर बाहर निकाल कर ज़ोर-ज़ोर से मैं तुम्हारा नाम लेती रहूंगी और कहूंगी.. रोहन, आई लव यू!

 

माया को रोहन से एक ऐसी ही शाम गुजारने की ख्वाहिश थी..उसने रोहन से  वादा लिया था,  वादा साथ चलने का, वादा एक साथ खुश रहने का.. वक्त की धारा में सारे वादे दूर बह गए थे, जिन्हें कभी किनारा न मिल सका…और कभी किनारा दिखा भी तो तेज़ लहरों ने रुकने ना दिया… कुछ ऐसी ही हालत रोहन की थी। माया का उसकी ज़िंदगी में आना एक इत्तेफ़ाक था लेकिन उसकी मोहब्बत उसकी किस्मत थी। किस्मत ने ही उन्हें मिलाया और दूर भी कर दिया। माया के साथ बिताए हुए हल पल का हिसाब लगाते-लगाते रोहन को ये एहसास होता कि माया की मोहब्बत के बदले वो माया को प्यार न दे सका, जिसके सपने माया देखा करती थी… माया की मोहब्बत के क़र्ज़ से रोहन दबा हुआ था…बेशक माया उसकी ज़िंदगी से चली गई थी, लेकिन उसके ख्यालों पर हमेशा माया का कब्ज़ा रहा…रोहन माया कि यादों में घूम ही रहा था कि तभी कंचन ने रोहन से कहा…

 

कंचन - कहां जा रहे हैं हम?? घर का रास्ता तो पीछे रह गया… आई थिंक हमें पीछे लेफ्ट टर्न लेना था..

 

कंचन के सवालों से रोहन अपने अतीत से पूरी तरह से लौट नहीं पाया था… कुछ हिस्सा अभी भी वहीं पर था जहां माया थी। रोहन ने गहरी सांस लेते हुए कहा…

 

रोहन - यू आर राइट! कंचन मैं अक्सर ऐसी गलतियां करता हूं। जहां मुड़ना चाहिए वहां नहीं मुड़ता हूं.. और जहां नहीं मुड़ना चाहिए, वहां मुड़ जाता हूं। सॉरी।  

 

रोहन की गहरी बातें कंचन को समझ में नहीं आई। कंचन गौर से रोहन को देखती रही… लेकिन रोहन का दर्द, उसकी बेचैनी, उसकी तड़प…कुछ नहीं दिख रहा था। कंचन सुलझी हुई लड़की थीलेकिन वो रोहन के उलझनों को नहीं समझ पा रही थी। वो तो अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी। उसे नहीं समझना था रोहन का अतीत। उसे नहीं जानना था कि रोहन की ज़िंदगी में क्या हुआ था। उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था कि रोहन का दिल किसने तोड़ा था। उसे तो बस रोहन का साथ अच्छा लग रहा था.. वो तो बस उसके करीब रहना चाहती थी। रोहन ने कंचन को बिना देखे हुए कुछ सोच कर कहा…

 

रोहन  - मैं अभी कुछ सोच रहा था, इसलिए ध्यान नहीं रहा। आगे इस बात का ध्यान रखना.. जब भी मैं कोई गलत टर्न लूं, तो मुझे उसी वक्त याद दिलाना और हो सके तो रोकने की कोशिश करना…

 

क्या कंचन रोहन की कही हुई बातों को समझ पाई थी? उसका चेहरा तो कुछ और ही इशारा कर रहा था। उसके चेहरे की हंसी तो कुछ और ही बता रही थी…

 

कंचन - कोई बात नहीं, साथ में खुबसूरत लड़की बैठी हो तो अक्सर ऐसा ही होता है..

 

कंचन ने रोहन को छेड़ने के लहज़े में कहा लेकिन उसे लगा रोहन ने ये सुना ही नहीं, क्यूंकि उसके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि वो किसी बात को लेकर परेशान है। जब रोहन घर पहुंचा तो विवेक वहीं पर था। वो जानता था कि विवेक क्यूं आया है लेकिन सब के सामने अंजान बना रहा, वैसे एक पल के लिए उसने सोचा चलो ठीक भी है।  उसे विवेक से कुछ इम्पॉर्टन्ट बातें भी करनी थी और उसे समझना भी था। कंचन अन्दर जा चुकी थी... बबलू ने दोनों से खाने के लिए पूछा लेकिन दोनों ने मना कर दिया… तभी विवेक ने रोहन को अकेला देखकर बोला….

 

विवेक  - आज बड़ी मुश्किल से सब सेट करके आया हूं.. आज कोई चैरिटी  नहीं… अगर आज भी काम नहीं हुआ तो आप समझ रहे हैं ना आगे हमें क्या-क्या करना है…

 

रोहन समझ रहा था, जिस काम के बारे में विवेक उससे कह रहा था, वो सिर्फ़ वही कर सकता था या यूं कहा जाए उसकी क़िस्मत के बगैर काम पूरा होना इम्पॉसिबल था। वो रोहन ही था, जो हारी हुई बाज़ी को जीत में बदल देता। एक ऐसा बाज़ीगर जिसने हारना नहीं सीखा, जिसने बड़े-बड़े धुरंधरों को धूल चटाई थी। रोहन के सामने अच्छे-अच्छे भी पानी मांग लेते… ऐसा जलवा था रोहन का।  अपने काम के लिए हमेशा ईमानदार रहा है रोहन… अगर उसकी मां बीमार नहीं पड़ती और यहां उसके साथ नहीं होती तो उसका एक-एक पल कीमती था…

 

रोहन - जानता हूं.. आज कोई गड़बड़ी नहीं होगी लेकिन सुन तो सही काव्या के बारे में तुमसे बात करनी है… एक प्रॉब्लेम हो गई है यार…

 

विवेक  - रोहन सर, आप कब समझेंगे अभी काव्या की प्रॉब्लेम इम्पॉर्टन्ट नहीं है… आज की मीटिंग में आपका जाना ज़रूरी है… अगर आज कोई गड़बड़ की आपने तो  मैं आगे से कोई मीटिंग फिक्स नहीं करूंगा…

 

आज विवेक रोहन को साथ ही ले जाने के लिए उसके घर आया था। रोहन ने उसे रुकने के लिए कहा और अंदर आ गया। कंचन मां को खाना खिला रही थी और बबलू भी वहीं था। रोहन अपने कमरे में गाया… कुछ सामान लिया और वापस आया। तब तक बबलू भी बाहर आ गया.. उसने बबलू को समझा दिया कि वो जा रहा है लेकिन मां को इस बारे में कोई ख़बर नहीं होनी चाहिए… एक बार फिर रोहन उस मंज़िल की तरफ़ बढ़ गया था जहां जाना उसकी क़िस्मत और ज़रूरत दोनों थी…

क्या रोहन की किस्मत देगी उसका साथ ?  

क्या रोहन कि ज़िंदगी में अब सब कुछ ठीक होने वाला था ?

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